Friday, February 8, 2013

वैश्विक अर्थव्यवस्था में यूरोजोन के धराशायी होने की और मोदी जी


कई देश दिवालिया होने के कगार पर

अब सुना हे कि योरोपेअन युनिअन ने मोदी जी से दुबारा हाथ मिलाया हे, पर किस मजबूरी मे मिलाया हे इस्को भी समझना भी ज्रूरी हे।
वैश्विक अर्थव्यवस्था में यूरोजोन की हिस्सेदारी महत्वपूर्ण है. यूरोजोन 17 देशों का समूह है. इन देशों के नाम हैं- ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, साइप्रस, इस्टोनिया, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, ग्रीस, आयरलैंड, इटली, लक्जमबर्ग, माल्टा, नीदरलैंड, पूर्तगाल, स्लोवाकिया, स्लोवानिया और स्पेन. ये सभी देश साझा मुद्रा ‘यूरो’ में व्यापार करते हैं.
इससे सबकी अर्थव्यवस्था एक-दूसरे से जुड़ी हुई है. इनकी मौद्रिक नीति भी साझी है. यूरोपियन सेंट्रल बैंक इनकी मौद्रिक नीति की देखरेख करता है. किस देश को मदद देनी है, इसका निर्णय यह बैंक करता है.
वैश्विक आयात-निर्यात में यूरोजोन की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा (आयात- 20 फीसदी और निर्यात 21 फीसदी) है. यूरोपियन यूनियन और अमेरिका के बाद ग्लोबल अर्थव्यवस्था में इसका योगदान सबसे ज्यादा 14 फीसदी है. इसका जीडीपी भी अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा (8 ट्रिलियल डॉलर) है.
इसलिए अमेरिकी अर्थव्यवस्था के टूटने से दुनिया में जिस प्रकार हाहाकार मच जाता है, उसी प्रकार यूरोजोन के धराशायी होने से भी दुनिया की अर्थव्यवस्था कराह रही है. खर्चो में कटौती से उत्पादन और सेवाओं की खपत कम हो गयी है, जिससे ज्यादातर देशों का व्यापार प्रभावित हुआ है. वर्तमान आर्थिक संकट यूरोजोन पर छाये ऋण संकट की वजह से है.
यूरोजोन में मंदी की शुरुआत ग्रीस से हुई. इसने धीरे-धीरे समूचे यूरो जोन को और बाद में पूरी दुनिया को चपेट में ले लिया है. 2007 के सबप्राइम संकट से दुनिया पूरी तरह उबरी भी नहीं थी कि यूरोजोन के ऋण संकट ने दुनिया को दोबारा मंदी में धकेल दिया है. यूरोपीय संघ में शामिल होने से पहले ग्रीस का सरकारी खर्च और उपलब्ध संसाधनों में बड़ा अंतर इसकी बड़ी वजहों में एक है.
सिंगल करेंसी के तौर पर यूरो को अपनाने के बाद इसका सरकारी खर्च और बढ़ गया. 2007 तक यह खर्च यूरोपीय संघ के अन्य देशों की तुलना में लगभग 50 फीसदी अधिक था. वहीं, सरकार को टैक्स से आमदनी कम हो रही थी. इससे बजट घाटा लगातार बढ़ता गया. सरकारी खर्च इतना अधिक बढ़ गया कि खर्च और आय का आंकड़ा नियंत्रण से पूरी तरह बाहर हो गया.
इसके बाद, जब 2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी ने दुनिया को अपनी चपेट में लेना शुरू किया, तो ग्रीस उसके लिए तैयार नहीं था. इसका नकारात्मक असर उसकी अर्थव्यवस्था पर पड़ा. वह कर्ज लेकर काम चलाता रहा और इस तरह कर्ज भी बढ़ता गया. उस पर कर्ज इतना अधिक हो गया, जिसे वह चुकाने में समर्थ नहीं था. मजबूरन, उसे यूरोपीय संघ के सहयोगी देशों और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से विशाल कर्ज लेना पड़ा. ग्रीस हमेशा ही एक गंभीर डिफॉल्टर रहा है.
1830 में आधुनिक ग्रीस की स्थापना से ही हर दूसरे साल यह सरकारी कजरे के मामले में डिफॉल्टर रहा है. बेलआउट पैकेज के नाम पर भारी-भरकम वित्तीय मदद का भार ने यूरोजोन के अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर विपरीत प्रभाव डाला. ग्रीस को ऋण संकट से बचाने के लिए 130 अरब यूरो की मदद दी गयी थी, जबकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) ने भी 28 अरब यूरो की मदद दी. इसके बावजूद उसकी अर्थव्यवस्था की हालत नाजुक बनी रही. ग्रीस के वित्तीय कुप्रबंधन का असर फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों पर भी पड़ा है. निवेशक उन देशों में पैसा लगाने से कतराने लगे.
आज आलम यह है कि यूरोजोन के सभी देश कर्ज संकट में फंस गये हैं. उन पर बैंकों के भारी कर्ज हैं. वे कर्ज चुकाने में असफल हो रहे हैं. इससे इन देशों के बैंकों की आर्थिक हालत नाजुक हो गयी है.
वैल्यू रिसर्च के सीइओ धीरेंद्र कुमार कहते हैं कि यूरोपीय ऋण संकट 2010 में ग्रीस से शुरू हुआ और एक के बाद दूसरे यूरोपीय देशों को अपनी चपेट में ले रहा है. इन देशों का बजट घाटा बेलगाम बढ़ रहा है. शुरू में सरकार कर्ज लेकर योजनाओं को पूरा करती रही, लेकिन इसे चुकाने में असमर्थ होने की वजह से कई देश दिवालिया होने की कगार पर खड़े हैं.
ग्रीस, स्पेन, पुर्तगाल, आयरलैंड, स्लोवेनिया, मलयेशिया, फिनलैंड और इटली आदि सभी में सार्वजनिक कर्ज एवं घाटों की स्थिति बेहद खराब बनी हुई है. ग्रीस को संकट से उबारने के लिए यूरोजोन के देशों और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने उसे लगभग एक खरब डॉलर का बेलआउट पैकेज भी दिया. इसके बावजूद संकट बरकरार है.
यूरोजोन में चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था वाला स्पेन भी अब ग्रीस, आयरलैंड और पूर्तगाल की तरह संकटग्रस्त हो गया है. हालांकि इन तीनों देशों को इसीबी और आइएमएफ की ओर से बेल आइट पैकेज दिये गये हैं. लेकिन अर्थव्यवस्था पटरी पर आने की बजाय और खस्ता हो गयी है.
ग्रीस की स्थिति सबस नाजुक बनी हुई है. इसकी जीडीपी की विकास दर 4 फीसदी से नीचे आ गयी है. पुर्तगाल की जीडीपी की विकास दर 3 फीसदी हो गयी है. स्पेन से निवेशकों का विश्वास कम हो गया है. कर्ज संकट के दौर में जर्मनी और फ्रांस ही अपनी आर्थिक विकास की दर को कुछ हद तक बरकरार रख पाये हैं. स्पेन और ग्रीस में बेरोजगारी की दर 20 फीसदी हो गयी है. हालांकि जर्मनी में यह दर 6 फीसदी है. वहीं युवाओं में बेरोजगारी की दर जर्मनी व ऑस्ट्रिया में 10 फीसदी, स्पेन व ग्रीस में 50 फीसदी और पुर्तगाल में 35 फीसदी तक पहुंच गयी है

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