Monday, February 11, 2013

स्वामी विवेकानंद , क्या आप जानते हैं?




स्वामी विवेकानंद
क्या आप जानते हैं?
1. इस तस्वीर में स्वामी विवेकानंद की विलक्षण मुद्रा के कारण यह उनकी सबसे अधिक प्रसिद्ध तस्वीर बन गई। अब तो इस मुद्रा को स्वामी विवेकानंद से जोड़कर ही देखा जाता है और इसे अक्सर विवेकानंद मुद्रा या विवेकानंद पोज़ के नाम से उल्लेखित किया जाता है; पर क्या आप जानते हैं कि इस मुद्रा का एक और नाम भी है? इसे शिकागो पोज़ भी कहा जाता है। तस्वीर का यह नामकरण इसलिए हुआ क्योंकि इस तस्वीर को सितम्बर 1893 में शिकागो में हुई विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद के ऐतिहासिक भाषण के बाद खींचा गया था। इस तस्वीर के फ़ोटोग्राफ़र का नाम था थॉमस हैरीसन। हैरीसन ने स्वामी विवेकानंद की आठ तस्वीरें ली थीं जिनमें से पाँच पर स्वामी जी ने अपने हस्ताक्षर भी किए थे।

2. स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता के एक रूढ़िवादी हिन्दु परिवार में हुआ था। जन्म के समय उनका नाम नरेन्द्रनाथ दत्त रखा गया। आगे चल कर नरेन्द्रनाथ को उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस ने सन्यासी होने की दीक्षा दी। चूंकि एक सन्यासी अपना सब कुछ त्याग देता है इसलिए नरेन्द्रनाथ ने अपने नाम को भी त्याग दिया और एक नया नाम धारण कर लिया: स्वामी विवेकानंद। स्वामी विवेकानंद भारतीय अध्यात्म और दर्शन में एक महत्त्वपूर्ण व्यक्ति रहे हैं। उन्होनें पश्चिमी देशों का वेदांत और योग दर्शन से परिचय कराया। स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने अपने शिष्य को सिखाया कि सभी धर्म सच्चे हैं और एक ही लक्ष्य की ओर जाने वाले अलग-अलग मार्गों की तरह हैं। इस विश्व में सभी कुछ ईश्वर है और ईश्वर के सिवा यहाँ कुछ भी नहीं है। इस दर्शन को अद्वैत वेदांत कहा जाता है। स्वामी विवेकानंद 1893 में हुई उक्त धर्म संसद में भाग लेने के लिए शिकागो गए। वहाँ इस भारतीय सन्यासी ने सभी का मन बिना प्रयत्न के ही जीत लिया। भारत वापस आने के बाद, 1897 में, उन्होनें रामकृष्ण मिशन नामक एक आध्यात्मिक और लोकहितैषी संस्था की नींव रखी।

3.स्वामी विवेकानंद ने भविष्यवाणी की थी कि वे 40 वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर सकेंगे। उनकी यह बात तब सच साबित हो गई जब 4 जुलाई 1902 को उनकी मृत्यु 39 वर्ष की उम्र में ही हो गई। उन्होने समाधि की अवस्था में अपने प्राण त्याग

4. 11 सितम्बर को “विश्व भाईचारा दिवस” मनाया जाता है। इसी दिन स्वामी विवेकानंद ने शिकागो धर्म संसद में अपना भाषण दिया था। विडम्बना यह है कि 11 सितम्बर को ही वर्ष 2001 में इतिहास का सबसे बड़ा आतंकवादी हमला हुआ।
5. भारत में स्वामी विवेकानंद के जन्मदिवस (12 जनवरी) को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है
6. कन्याकुमारी विवेकानंद रॉक मेमोरियल बनाने का काम स्वामी विवेकानंद की जन्मशती के उपलक्ष्य में 1963 में शुरु हुआ था। यह मेमोरियल भारत भूमि के सुदूरतम दक्षिणी बिंदू से 500 मीटर आगे समुद्र के बीच बना है। इसे बनाने में सात वर्ष का समय लगा था।
इस मेमोरियल को बनाने के राष्ट्रीय प्रयास में करीब तीस लाख लोगों ने आर्थिक सहायता दी। इन सभी व्यक्तियों ने कम से कम एक-एक रुपए का योगदान दिया।
7. स्वामी विवेकानंद पहले भारतीय थे जिन्हे हार्वर्ड विश्वविद्यालय में ओरियेंटल फ़िलॉसफ़ी चेयर स्वीकारने के लिए आमंत्रित किया गया था।
8., स्वामी विवेकानंद एक अच्छे कवि और गायक भी थे। उनकी सबसे पसंदीदा स्वरचित कविता का शीर्षक “काली द मदर” है।
इस लेख को और परिपूर्ण करने के लिए मैं नीचे शिकागो धर्म संसद में दिए स्वामी विवेकानंद के भाषण की रिकॉर्डिंग दे रहा हूँ। मैं जब भी इस भाषण को सुनता हूँ तो स्वामी विवेकानंद के ज्ञान और वाक-कौशल से चकित रह जाता हूँ! इस भाषण के लिए उन्होनें कोई तैयारी नहीं की थी; लेकिन फिर भी कितनी स्पष्टता के साथ उन्होंने अपनी बात कही। कोई झिझक नहीं, कोई अटकाव नहीं। भाषा का एकदम निर्मल बहाव इस भाषण में सुनने को मिलता है।

इस भाषण का हिन्दी अनुवाद भी मैं नीचे दे रहा हूँ। इसे मैंने सहारा न्यूज़ नेटवर्क की वेबसाइट समय लाइव से लिया है।

अमेरिका की बहनों और भाइयो!

आपने हमारा जैसा हार्दिक और स्नेहपूर्ण स्वागत किया है, उसके लिए आभार व्यक्त करने के लिए जब मैं यहां खड़ा हुआ हूं तो मेरा मन एक अकथनीय आनंद से भरा हुआ है.
मैं विश्व की सबसे प्राचीन संन्यासियों की पंरपरा की ओर से आपको धन्यवाद देता हूं; मैं आपको धर्मो की जननी की ओर से धन्यवाद देता हूं और मैं सभी वर्गो एवं पंथों के करोड़ों हिंदुओं की ओर से आपको धन्यवाद देता हूं.

इस मंच पर आए उन कुछ वक्ताओं को भी मेरा धन्यवाद, जिन्होंने पूर्व से आए प्रतिनिधियों का उल्लेख करते हुए आपको बताया कि दूर देशों से आए हुए ये सज्जन विभिन्न देशों में सहिष्णुता का संदेश पहुंचाने के सम्मान के अधिकारी हो सकते हैं.
मुझे उस धर्म से संबंधित होने का गर्व है, जिसने विश्व को सहिष्णुता औ सार्वभौमिक स्वीकार्यता का पाठ पढ़ाया. हम न केवल सार्वभौमिक सहिष्णुता में विश्वास करते हैं, बल्कि हम सभी धर्मो की सत्यता को स्वीकार करते हैं.
मुझे उसे देश से संबंधित होने में भी गर्व है, जिसने इस प्थ्वी के सभी धर्मो व सभी देशों के सताए हुए लोगों और शरणार्थियों को शरण दी है.

मुझे आपको यह बताने में गर्व है कि हमने उन पवित्र इजराइलियों को अपने कलेजे से लगाया है, जिन्होंने ठीक उसी वर्ष दक्षिण भारत में आकर शरण ली, जब रोमन अत्याचारियों ने उनके पवित्र मंदिर को ध्वस्त कर दिया था.
मुझे उस धर्म से संबंधित होने का गर्व है, जिसने महान जोरोस्ट्रियन राष्ट्र के विस्थापितों को शरण दी है और अब भी उनके विकास में सहयोग दे रहे हैं.

भाइयों, मैं आपके सामने उस भजन की कुछ पंक्तियां प्रस्तुत करूंगा, जिसको मैं अपने बचपन से दोहराता आया हूं और जिसे करोड़ों लोग प्रतिदिन दोहराते हैं -

‘जैसे विभिन्न स्रोतों से उद्भूत विभिन्न धाराएं
अपना जल सागर में विलीन कर देती हैं,
वैसे ही हे ईश्वर! विभिन्न प्रवृत्तियों के चलते
जो भिन्न मार्ग मनुष्य अपनाते हैं, वे
भिन्न प्रतीत होने पर भी
सीधे या अन्यथा, तुझ तक ही जाते हैं.’

वर्तमान सम्मेलन, जो अब तक हुई सबसे महान सभाओं में से एक है, स्वयं ‘गीत’ में बताए उस अद्भुत सिद्धांत का पुष्टीकरण और विश्व के लिए एक घोषणा है -

‘जो कोई, किसी भी स्वरूप में
मेरे पास आता है, मुझे पाता है;
सभी मनुष्य उन मार्गो पर
संघर्षरत हैं, जो अंत में उन्हें मुझे तक ही ले आते हैं.’

सांप्रदायिकता कट्टरता और उन्हीं की भयानक उपज धर्माधता ने बहुत समय से इस सुंदर पृथ्वी को ग्रस रखा है. उन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है, कितनी ही बार उसे मानव रक्त से सराबोर कर दिया है, सभ्यता को नष्ट किया है और समूचे राष्ट्रों को निराशा के गर्त में धकेल दिया है.

यदि ये राक्षसी कृत्य नहीं किए जाते तो मानव समाज उससे बहुत अधिकविकसित होता, जितना वह आज है. परंतु उनका अंतकाल आ गया है; और मुझे पूरी आशा है कि इस सम्मेलन के सम्मान में सुबह जो घंटानाद हुआ था, वह सभी प्रकार के कट्टरपन, सभी प्रकार के अत्याचारों, चाहे वे तलवार के जरिए हों या कलम के- और व्यक्तियों, जो एक ही उद्देश्य के लिए अग्रसर हैं, के बीच सभी प्रकार की दुर्भावनाओं के लिए मृत्यु का घंटानाद बन जाएगा.

2 comments:

  1. Sri vivekanand ji ke Chicago ke bhashan ka hindi mein anuvaad karne ke liye bahut bahut dhanyawad

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