Thursday, February 21, 2013

Swadeshi jagatan manch success in bringing back gulf workers


Huge effort that succeeded in bringing back Indian Migrants home by
Swadeshi Jagaran Manch &
Indian migrants rights and welfare forum
Two months earlier when I touredandhra Pradesh I was moved very much on hearing the pathetic stories of the families of workers who were mercilessly and illegally detained in gulf countries. Secondly I was much immersed by the continuous efforts our workers were doing to associate their problems. Now our state co-convener Sh. Narsimham Naidu and his team was making ini this resect. Now their efforts are Bearing some fruits. After returning from United Arab Ameerat he has sent a report of his successful efforts. Please go through ti
The effort of Shri. Kotapati Narsimham Naidu, Central working comitte member, Swadeshi Jagaran Manch &President, Indian Migrants Rights And Welfare Forum are relentless in availing the amnesty by Indian illegal migrants. He was behind the govt. for more than three months for their move on this issue.
SJM was very aware of the problems faced by the gulf sufferers , we made a survey on the villages that are mainly migrating to the Gulf from the Telangana districts of Andhra Pradesh and a book was released on this issue then.
Amidst this context Amnesty was announced by the UAE for a period of two months from December 4th 2012 to February 3rd 2013 and facilitated the illegal migrants to return to their home countries without any fine or imprisonment. Soon after the announcement we started
our effort by meeting the NRI cell at secretariat and several times we met The Hon’ble Chief Minister N. Kiran Kumar Reddy.
On 6th December 2012 he conducted a meeting in the press club with representatives from all political parties and Shri. Kashmir lal ji, SJM secretary and the gulf suffering families from all over Andhra Pradesh. That same day he took a oath to bring back all the Indian migrants back to India .
On 24th dec 2012 he met the CM, N. Kiran Kumar Reddy at his camp office and and submitted the memorandum containing the demands and the helpful measures to bring back the gulf sufferers. We got the assurance from him saying “ we will take the initiatives soon” but nothing moved forward.
On 2nd jan 2013 we announced the forum at press club meeting with Shri. Bandaru Dattatreya Garu Former Minister Union Minister for Railways. We named it as Indian Migrants Rights and Welfare Forum, a special wing to work on migrants issues.
On 10 th jan again we met the CM N. Kiran Kumar on this same issue. That day was a mile stone for our efforts at the scene he called Minister Sridhar Babu and ordered him to work on this issue to bring back sufferers. He assured 5 crore budget for it. From that day the work started from govt side. He appreciated our effort and asked us to cooperate the officials. From that day we were behind the minister and the NRI cell incharge Mr. Ramana reddy. We met them many times in their office.

Finally on 2nd feb they announced their tour to the Uae. Minister Sridhar Babu requested K. Narsimham Naidu to go to Gulf before they come and help them in listing out the Amnesty seekers in the Seven countries of Uae.
Narsimham Naidu left to Dubai on 10th feb. as soon as he reached there he found some people having their out date as 14th feb last to utilize amnesty he was aware that govt. may not respond soon so he with the activists there facilitated 14 tickets and helped them. He toured the maximum camps in Sharjah on 12th feb and identified 71 people ready to utilize the amnesty and sent the list to the Govt. for free tickets. On 13th feb he visited sharjah jail he found 40 people prisoned there and sent the report and they availed free tickets soon after the officials reached Sharjah.
From 14th feb the flow of sufferers started to Hyderabad. Every day atlest twenty to forty reached. All around his tour Mr. Naidu identified around 200 staying illegally there and 400 people in different jails in UAE. Before he leaving to India 100 tickets were issued and total list was given to the Govt. officials
He returned to India on 16th morning with twenty migrants with him. He was received by the Minister Sridhar babu and the Chief Minister N. Kiran Kumar Reddy at the airport.

Our motto is not only bringing back the sufferers but providing them rehabilitation and facilitate them the Govt schemes and help.










Wednesday, February 13, 2013

अवैध क्लीनिकल ट्रायल - बड़ी चिंता का कारण

अवैध क्लीनिकल ट्रायल - बड़ी चिंता का कारण

पिछले दिनों जो मामला बार सब्क ध्यान खीन्च रहा हे वो हे अवैध क्लीनिकल ट्रायल । ये हे क्या ? इंसान जब अस्पताल में होता है ,बीमार होता है तब उसकी बीमारी ठीक करने के लिए, मर्ज का इलाज करने के लिए कभी-कभार ड्रग ट्रायल किया जाता है। लेकिन अफसोस यह कि क्लीनिकल ट्रायल, ड्रग ट्रायल अब अवैध रूप ले चुका है तभी क्लीनिकल ट्रायल शब्द अब अवैध ड्रग ट्रायल कहलाने लगा है। यह चिंताजनक है जिसका समय रहते निदान ढूंढा जाना चाहिए। इस गंभीर मसले पर एक बात साफ है कि ड्रग ट्रायल के जो नियम-कानून हैं उनकी अनदेखी हो रही है।

रिपोर्ट के मुताबिक दवा के परीक्षण के दौरान देश में हर दो दिन में तीन लोगों की मौत हो रही है लेकिन लचर कानून का फायदा उठाते हुए जिन दवाओं को अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय देशों में प्रतिबंधित किया गया है, उन दवाओं को भारत में खुले आम बेचा और मरीजों को सुझाया जा रहा है। यहीं भारत के लिए सबसे बड़ी चिंता का कारण है। जो दवाइयां विदेशों में कई साल पहले बैन हो चुकी है वह भारत में धड़ल्ले से चल रही है और कई अस्पतालों में बेरोकटोक इसका इस्तेमाल किया जा रहा है।

अवैध ड्रग ट्रायल से हो रहे मौत के आंकड़ों की तस्वीर बड़ी भयानक है जो हमें सोचने और जल्द से जल्द कदम उठाने को कहती नजर आती है। भारत में अब तक विभिन्न दवाओं के क्लीनिकल ट्रायल के दौरान मरने वाले 2 हजार 374 लोगों में से सिर्फ 38 लोगों के परिजनों को ही मुआवजा मिल पाया है। देश में जनवरी 2007 से जून 2012 के दौरान हुए क्लीनिकल ट्रायल के दौरान या संबंधित दवाओं के प्रभाव के बाद अब तक कुल 2374 लोगों की मौत हुई। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक 2010 में 668, 2011 में 438 और जून 2012 तक 211 लोगों की मौत हुई। साथ ही देश में पिछले ढाई साल में दवा परीक्षण के दौरान 1,317 लोगों की मौत हुई है। यह आंकडे बताते हैं कि हमारे देश में ड्रग ट्रायल के नियम कानून को स्पष्ट दिशा निर्देश नहीं होने की वजह से किस तरह से ताक पर रख दिया गया है।

2011 में औषधि परीक्षण के कारण 438 लोगों की मौत हुई जिसमें कैंसररोधी दवाओं से जुड़ी 139, हृदय रोग से जुड़ी 229, मधुमेह से जुड़ी 31, मस्तिष्क एवं रक्त नलिकाओं से संबंधित 11, विषाणुरोधी दवाओं से जुड़ी 12 मौत एवं अन्य रोगों से जुड़ी 16 मौते शामिल है। क्लीनिकल परीक्षण के दौरान कई कारणों ने मरीजों पर गंभीर प्रभाव पड़ता है और मौतें भी होती है। ये मौतें कैंसर, हृदय संबंधी रोग और अन्य गंभीर बीमारियों के कारण हो सकती है। इन मौतों के कारणों और संबंधों का पता लगाने के लिए जांच की जाती है।

कुछ समय पहले एक प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अंतरराष्ट्रीय क्लीनिकल परीक्षण और शोध का बाजार करीब 500 मिलियन डॉलर का है। भारत में यह बाजार करीब दो अरब डॉलर का हो गया है और यह 50 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। दवा बाजार से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि, ज्यादातर नई दवाओं का आविष्कार अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, स्विट्जरलैंड जैसे विकसित देशों में होता है लेकिन इनका परीक्षण भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, अफ्रीकी देश, श्रीलंका जैसे विकासशील और गरीब देशों में किया जाता है।

इन मसले की गंभीरता पर अदालत भी चिंतित है तभी सुप्रीम कोर्ट ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों की बगैर परीक्षण वाली दवाओं के गैरकानूनी तरीके से लोगों पर किए जा रहे परीक्षणों को रोकने में विफल रहने के लिए केन्द्र सरकार की हाल ही में तीखी आलोचना की और कहा कि इस तरह के परीक्षण देश में तबाही ला रहे हैं और इस वजह से अनेक नागरिकों की मौत हो रही है।

कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि देश में सभी क्लीनिकल परीक्षण केन्द्र सरकार के स्वास्थ्य सचिव की निगरानी में ही किये जायें। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि इस मसले पर सरकार गहरी नींद में सो रही है और वह गैरकानूनी तरीके से क्लीनिकल परीक्षण करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों के इस धंधे को रोकने के लिये समुचित तंत्र स्थापित करने में विफल हो गयी है।

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को इस मसले पर लताड़ लगाते हुए कहा कि मौतों पर अंकुश लगना चाहिए और गैरकानूनी परीक्षण बंद होने चाहिए। न्यायालय ने इस याचिका पर कोई विस्तृत आदेश देने की बजाय पहले ऐसे परीक्षणों बारे में केन्द्र सरकार से जवाब तलब किया था।

सरकार अब ऐसी पुख्ता व्यवस्था करने पर विचार कर रही है जिसमें दवा परीक्षण से पहले मरीजों के साथ किसी तरह का धोखा न किया जा सके। यह जरूरी भी है। ड्रग ट्रायल कानून भी यही कहता आप मरीज को बताए बगैर किसी भी दवा का परीक्षण नहीं कर सकते। ज्यादतर यह भी शिकायत होती है कि मरीजों की इजाजत के बिना उन पर दवा परीक्षण किए जा रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक मंत्रालय एवं उसकी एजेंसी केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन ने नए दिशा निर्देश बनाने शुरू कर दिए हैं। माना जा रहा है कि दो-तीन महीने में परीक्षणों पर कड़े निर्देश तैयार कर उन्हें लागू किया जाए।

लेकिन एक बात जो सबसे जरूरी है वह ये कि हमारे देश में कानून, सख्त नियम, दिशा निर्देश बनकर जरूर तैयार हो जाता है लेकिन उसपर अमलीजामा पहनाने, क्रियान्वित करने, उसके सही ढंग से लागू होने की बात तो कोसों दूर होती है। थोथी दलीलों और लचर कानून से कुछ नहीं होनेवाला। सही मायने में इसके लिए गंभीरता से कोशिश करनी होगी। विदेशों में इसके नियम कानून कठोर है लेकिन भारत में लचर कानून की वजह से मल्टी नेशनल ड्रग कंपनियां भारत का रुख करती है। इसपर नियंत्रण जरूरी है क्योंकि यह मसला उन इंसानों की जिंदगी से जुड़ा है जिनका जीवन अनमोल है।

Tuesday, February 12, 2013

Swadeshi mela of Bokaro steelcity

On 7th feb 13, at the inauguration of the Swadeshi Mela ex Chief minister Arjuna Munda gave a very erudite speech advocating the Swadeshi ideas.

When in my speech I gave the example of how Tata was guided by swami Vivekanand as to how to start steel factories in India and persuaded him to open a very good institute of technical education etc. He was listening very carefully.later Sh Munda told me that not only this but when Tata failed to find the proper rail mines in our jharkhand area, Swami ji suggested him the name of a scientist who was expert in mine location, and that in a book, he has read that the same man brought success to Tata on this front. I have yet to know the proper proof of this.

Swami Vivekanand : young at 150, article by S Gurumurthi

SG , young at 150
By S Gurumurthy12th January 2013 12:00 AM
1. Chicago on September 11, 1893 at the first World Parliament of Religions. Rev John Henry Burrows, Pastor of the First Presbyterian Church of Chicago and a chief organiser of the parliament, recorded that the audience went into rapture with ‘a peal of applause that lasted for several minutes’. After silence was restored, he delivered his historic address, comprising exactly 471 words, in two minutes. Vivekananda unveiled the Hindu view of universal validity of all faiths — an idea unknown to religions born outside India. He demolished the hidden agenda to get the parliament nod for Christianity as the superior, universal faith. Burrows was explicitly committed to the superiority of Christianity as the universal religion, to the Bible as the universal book and to Jesus Christ as the universal saviour. Admits James Ishmael Ford, of the First Unitarian Church as late as on February 22, 2009: “For many of the Christian and Unitarian organizers the barely hidden agenda was to show the superiority of Protestant Christianity. But that show was, by universal acknowledgment, totally and completely stolen by the swami from Calcutta.”
2. I do not see into the future; nor do I care to see. But one vision I see as clear as life before me is that the ancient mother has awakened once more, sitting on her throne more glorious than ever. Proclaim her to the entire world with the voice of peace and benediction.” The young sanyasi’s vision then would have been dismissed as brain disorder. Today as the nation is preparing for his 150th birth anniversary, like many other think-tanks have prognosticated, the National Intelligence Council of the United States said last month that, by 2030, India will overtake China and will emerge as one of the three world powers, with the US and China.
3.
What did you see in Japan, and is there any chance of India following in the progressive steps of Japan?

None whatever, until all the three hundred millions of India combine together as a whole nation. The world has never seen such a patriotic and artistic race as the Japanese, and one special feature about them is this, that while in Europe and elsewhere Art generally goes with dirt. Japanese Art is Art plus absolute cleanliness. I would wish that everyone of our young men could visit Japan once at least in his lifetime.

Is it your wish that India should become like Japan?

Decidedly not, India should continue to be what she is. How could India ever become like Japan, or any nation for the matter of that? In each nation, as in music, there is a main note, a central theme, upon which all others turn. Each nation has a theme: everything else is secondary. India’s theme is religion, Social reform and everything else are secondary.

Therefore, India cannot be like Japan. It is said that when ‘the heart breaks,’ then the flow of thought comes. India’s heart must break and the flow of spirituality will come out. India is India. We are not like the Japanese, we are Hindus. India’s very atmosphere is soothing. I have been working incessantly here, and amidst this work I am getting rest. It is only from spiritual work that we can get rest in India. If your work is material here, you die of diabetes.

3.'What will you propose for the improvement of our masses?

We have to give them secular education. We have to follow the plan laid down by our ancestors, that is, to bring all the ideals slowly down among the masses. Raise them slowly up, raise them to equality. Impart even secular knowledge through religion.


Turning to America that was fast rising then
Sisters and brothers of America’. These five words that issued from the lip of the young Hindu monk Swami Vivekananda set the 6,000 strong audience of academics, intellectuals and spiritualists on fire at Chicago on September 11, 1893 at the first World Parliament of Religions. Rev John Henry Burrows, Pastor of the First Presbyterian Church of Chicago and a chief organiser of the parliament, recorded that the audience went into rapture with ‘a peal of applause that lasted for several minutes’. After silence was restored, he delivered his historic address, comprising exactly 471 words, in two minutes. Vivekananda unveiled the Hindu view of universal validity of all faiths — an idea unknown to religions born outside India. He demolished the hidden agenda to get the parliament nod for Christianity as the superior, universal faith. Burrows was explicitly committed to the superiority of Christianity as the universal religion, to the Bible as the universal book and to Jesus Christ as the universal saviour. Admits James Ishmael Ford, of the First Unitarian Church as late as on February 22, 2009: “For many of the Christian and Unitarian organizers the barely hidden agenda was to show the superiority of Protestant Christianity. But that show was, by universal acknowledgment, totally and completely stolen by the swami from Calcutta.”

Unparalleled in elegance and eloquence, the young Hindu monk proudly thundered before the Parliament of Religions that Hindus ‘not just tolerate’ but ‘accept all faiths as true’; their ‘nation has sheltered persecuted peoples of all religions and all nations of the earth’; ‘gathered in its bosom the purest remnant of the Israelites who took refuge’ when their holy temple was shattered to pieces; ‘sheltered and still fosters the remnant of grand Zoroastrian nation’. He concluded that ‘sectarianism, bigotry and its horrible descendant, fanaticism’, ‘have filled the earth with violence, drenched it with human blood, destroyed civilisation, and sent whole nations to despair’; let the parliament be ‘the death-knell of all fanaticism, of all persecutions with the sword or with the pen’. Vivekananda was just 30-years-old then. With no text or notes on hand, he spoke from within. He mesmerised the parliament. Burrows wrote: “Swami Vivekananda’s three speeches undoubtedly drew most attention from the American public.” A media comment was: ‘Vivekananda’s address before the parliament was broad as the heavens above us, embracing the best in all religions, as the ultimate universal religion’. Another comment was: ‘“That man a heathen!” said one, as he came out of the great hall, “and we send missionaries to his people! It would be more fitting that they send missionaries to us (America)”’. The Swami’s historic speech changed the global religious discourse forever.

He lived a little over eight years after he stormed America and spent half that period in India and the other half outside. In that short time, what he achieved for India, Hindu spiritualism and India’s Independence is immeasurable. His nationalist exhortations deified the nation, seeded the freedom movement and inspired great leaders. Mahatma Gandhi said that reading Vivekananda had made him love the country ‘hundred fold’. Jawaharlal Nehru saw the Swami as one of the great founders of the national movement, who inspired freedom fighters. Subhash Bose saw in Vivekananda “the spiritual father of modern nationalist movement”. Rajaji said that but for Vivekananda we would have lost our religion, not have gained our freedom; we owed everything to him”. Rabindranath Tagore said ‘if you want to know India, study Vivekananda’. Mystic nationalists like Maharishi Aurobindo and Subramanya Bharathi too were inspired by him. The British police, which repeatedly found Vivekananda literature in the possession of freedom fighters and revolutionaries, even mulled action against Ramakrishna Math. Vivekananda was the spiritual trigger for national freedom.

A rishi that he was, Vivekananda foresaw the rise of India a century before it began. When the world had written off the Hindu religion as worthless, Indian civilisation as dead, and Indians were slaves, the young seer said, “I do not see into the future; nor do I care to see. But one vision I see as clear as life before me is that the ancient mother has awakened once more, sitting on her throne more glorious than ever. Proclaim her to the entire world with the voice of peace and benediction.” The young sanyasi’s vision then would have been dismissed as brain disorder. Today as the nation is preparing for his 150th birth anniversary, like many other think-tanks have prognosticated, the National Intelligence Council of the United States said last month that, by 2030, India will overtake China and will emerge as one of the three world powers, with the US and China.

Turning to America that was fast rising then, Vivekananda prophetically told the Americans that they should import spiritualism from India to handle the ill-effects of their material prosperity. The rich America did not listen to the Indian mendicant. The result is that today half the American families are broken, 41 per cent of the US babies born are for unwed mothers, and 55 per cent of American first marriages, 67 per cent of the second and 74 per cent of the third marriages end in divorce — all indices of the huge spiritual crisis in the US. When Eleanor Stark wrote in her book The Gift Unopened that Vivekananda was the unique gift for the mankind that was still not opened, she was particularly true of the US.

Vivekananda repeatedly asserted that the core of India is religion and spirituality. A materially rising India needs to turn even more spiritual. The Supreme Court (in the Ayodhya case) approvingly referred to the Zakir Hussein Memorial Lecture of Shankar Dayal Sharma (President of India then) in which Sharma had said that ancient Indian thought provided for “developing Sarva Dharma Samabhav or secular thought “which enlightenment is the true nucleus of what is now known as Hinduism.” However, vote-bank politics of secularism is increasingly repudiating Hindu spiritual content. This threatens to de-Hinduise and de-spiritualise India.

The nation that Swami Vivekananda loved, breathed and gave his life for, is under great moral stress, with stinking corruption and shameless debauchery by public office holders. Today’s youth is angry, but directionless. A desperate nation is now recalling, and looking to, Vivekananda and his great thoughts for course correction. Today is the 150th birth anniversary of the patriotic monk. This is the occasion to reconnect the Indian youth to him. Posthumously, the young monk, still living in the hearts of Indians, is the most charismatic youth icon. Did he choose to die young at 39 to remain youthful ever, to inspire and guide the youth of India eternally?

S Gurumurthy is a well-known commentator on political and economic issues.

Implement GAAR immediately

Implement GAAR immediately
The Government of India is facing two kinds of financial deficits, namely, Fiscal Deficit and Current Account Deficit (CAD). Fiscal deficit is because of expanding public expenditure and inadequate public revenue. CAD is due to growing expenditure of for exchange and inadequate inflow of foreign exchange. The fiscal deficit of the central government has reached 6.0% of GDP, which is very high. The Finance Minister is taking a number of measures such as cutting down subsidy of diesel, and petrol for reducing the fiscal deficit. In the forthcoming budget 2013-14 he is expected to cut down, government expenditure on MGNAREGA, Health, Education and such other social welfare measures. Thus the burden of reducing fiscal deficit is conveniently transferred to the shoulders of the common man, who is already suffering from high inflation and shooting cost of living.


But the tragedy is that the same Finance Minister is stoutly refusing to take action on the MNCs who are cheating the nation every year by avoiding payment of crores of rupees of capital Gains Tax. They have been doing this by misusing double tax avoidance agreements (DTAAs), which the government of India has signed with several countries. The most notorious of such DTAAs is the DTAA with Mauritius. According to this agreement, companies registered in Mauritius, may invest their capital in India. They will be required to pay capital gains tax in Mauritius and not in India. But there is no capital gains tax in Mauritius. Thus Mauritius registered companies investing in India can totally avoid the payment of capital gains tax on capital gains made by them in India.


This facility is totally misused by MNCs of many western countries by routing their investments in India through shell companies (fake companies) registered in Mauritius, which is a poor island country. 40% of foreign capital coming to India comes through Mauritius registered fake companies. It is estimated that the India is losing about $ 80 billion of tax revenue annually due to DTA A with Mauritius. If this one loophole is plugged India’s fiscal deficit can be easily solved without imposing any burden on the common man. But our Financial Minister P. Chidambaram is not prepared for this. There are several such DTAAs that India has signed which are less harmful but still dangerous.


It is on account of the misuse of our DTAA with Mauritius that the British telecom company Vodafone successfully duped the Govt. of India, payment of capital gains tax to the extent of Rs. 11,200 crores, which was due by the Vodafone on account of its buying stakes of ESSAR company in the ESSAR-Hutchison company of India. There are several such instances of misuse of DTAAs by MNCs for the purpose of tax avoidance which is illegal.


Sri Pranab Mukherjee, who was the Finance Minister in 2011-12 declared in his speech presenting the budget for 2012-13, that general anti avoidance Rules, (GAAR ) would be adopted by the govt. which would enable the government to plug all such loop holes and GAAR would have retrospective effect. The parliament also passed the GAAR.


However P. Chidambaram who succeeded as Finance Minister on the election of Pranab Mukherjee as the president of India, did not want to implement GAAR which would have benefited the country’s revenue and foreign exchange to a great extent, and restrained the MNCS.


By appointing a pliable Parthasarthy Shome committee on the implementation of GAAR, P Chidambram has succeeded in postponing the GAAR to 2016. He is claiming that the ‘Ghost’ of GAAR is buried. Thus P Chidambram has killed a golden opportunity to reign in MNCs and to collect billions of dollars of legitimate tax due from them.


Pro-corporate and anti people P Chidambram has preferred to punish the common man with subsidy reduction and cut in social welfare expenditures and to allow MNCs like Vodafone to loot the nation every year and still go scot free.
Swadeshi Jagaran Manch vehemently condemns Finance Minister for this anti-nation and anti people decision and demands the immediate implementation of GAAR. SJM further demands that the notorious DTAA with Mauritius be scraped forth with.

The Philosophy of Swami Vivekananda and the ideology of the Indian State . Vikramjit Banerjee

The Philosophy of Swami Vivekananda and the ideology of the Indian State .
​​​​​​Vikramjit Banerjee
​​​​​​​Advocate , Supreme Court of India

The Importance of Swami Vivekananda as a founding idelogue of the present Indian state and society.

On the same issue and their views are almost the same , with the crucial difference that Vivekananda wanted to make the change from within and Ambedkar wanted to make the changes by rejecting the system entirely . Interestingly Gandhi raised the question of Vivekanand and his spiritual guru “Ram Krishna Paramhans” as a breaker of caste in his correspondence with Ambedkar and Ambedkar agreeing to the same and recognizing the fact was of the view that Ram Krishna had not been able to have a deep impact on Hindu society . Interestingly Ambedkar who had extensive knowledge of both
The perceptions of Swami Vivekananda about the social ,economic and political state of India .

Vivekananda is a radical traditionalist. His version and interpretation of high religious philosophy was also marked with a very specific political / economic outlook which arose from his concern about the people of his country , or his co-religionists . His vision is still relevant and broadly and startlingly still applicable in India today . However he through out because of his curious predicament remained scrupulously “apolitical” in that he always never took strong “political” stands against the Government at that time , being the British , since he realized that his intention to spread mass awareness would not be possible if the British became a hindrance to the same , yet his actual views and his sympathy for the goals of the Indian National Congress was barely hidden , as may be apparent from an interview which he gave to various of his disciples and followers. His trenchant views on Colonialism is apparent in his essay titled “East and West”.

The Complete Works of Swami Vivekananda; Vol; 5 Advaitia Ashram; Kolkata: 2006 page 365-



Interestingly his exploration of Hinduism and the condition of the people of India leads him to two broad presumptions , one that religion cannot be given on an empty stomache and two , the poor of India or as he would like to term the “sudra” should be awakened . This has lead to attempts by socialists and communists to appropriate the legacy of Swami Vivekananda . However Vivekananda was clearly and completely against formal rigid equality though he did claim to be a socialist in a very colloquial sense . Vivekananda recognized clearly that for a society to work in the long run , man had to be given the opportunity to excel and make money … and he has memorably and famously equalized the Grihasta ( householder ) making money with an anchorite ( sadhu) praying in his cell .

Vivekananda believed that the conception of caste was present in every society of the world , however in India it was the responsibility of those at the top of the pyramid in India , namely the Brahmin to raise those who are lower than him.. He believed the caste system to be one of the greatest social systems possible but in his own words “that through unavoidable defects , foreign persecutions , and , above all , the monumental ignorance and pride of many Brahmins who do not deserve the name , have thwarted in many ways , the legitimate fructification of this most glorious Indian institution”. Infact Vivekananda was of the view that the institution of caste was the most effective resistance which allowed India to defend it against invaders and the objective should be to raise the lower classes to higher class to Brahminhood.

Vivekananda had a very striking analysis of time and societies , he believed that societies have preponderance of qualities where sometimes either the Brahmin , Kshatriya , Vaisya or Sudra values predominate , all such societies have their advantages and their disadvantages . He also strongly believed that all societies moved in cycles of one age followed by the other.

He antedates Gandhi’s thinking on non violence his view being non violence and passive resistance is an action by the very brave and should not be an excuse by the weak , almost to the very specifics echoed by Mahatma Gandhi to justify passive resistance as a means of political action . He talks about democracy and self rule and the need to be rational in the application of our history and culture but he was skeptical of the rule of the majority . He vehemently opposes the Aryan invasion theory ( both on the grounds that it is not sound and on the ground that India is a composite entity ) and promotes the cause of the Shudra and the untouchable .
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Vivekananda was extremely perceptive of the problems of the “untouchable community “in India and his criticism was trenchant on Brahminism in that regard .He is the originator of the word “Dalit”, a word to be used for the pariahs , since it is a direct translation from the word “suppressed” to describe the situation of the “pariahs” of his time.Interestingly he realized as well that the only way to destroy the caste system in India was through “free market”.

Vivekananda is unique in that he is neither in thrall of the past , nor is he willing to discard everything from it . He says clearly that India needs to learn from the west but he is worried that westernization should not sweep everything that is worthy and good in India .Gandhi himself realized that though Vivekananda looked to the past for inspiration he did not want to replicate the past .In that way he is the “middle path” between Gandhi and Ambedkar ,and therefore reflective of the true Indian mean in society .

Swami Vivekananda’s reading both on modern and ancient texts is vast and his capability of drawing apt practical lessons from them is unparalleled .

In relation to the question of religion , it is striking that what Vivekananda had to say , he was clearly pro religion and was of the view that what was behind what goes as ill effects of religion was not due to religion per se , but the politics behind religion .In a most interesting paragraph he states the dilemma of the intermixture of religion and politics and the pitfalls that arise as a result .He was of the specific view that religion “ is neither talk nor theory nor intellectual consent” .However presciently he was extremely specific and clear that in India religion is integral and possibly the key element to public life and even if you have to explain politics you have to do it through religion.

Most interestingly Vivekananda was very clear that the greatest challenge in India was to assimilate all the constituents of India , however he was also clear that attempts to use force to enforce a common culture would fail as would attempts to impose a common language however a laudable objective it may be .

His perception of monotheism as indeed of absolutism remains extremely perceptive “ Monotheism like absolute monarchy is quick in executing orders , and a great centralization of force , but it grows no farther , and it’s worst feature is it’s cruelty and persecution . All nations coming within it’s influence perish very soon after a flaring up of a few years.”.The solution he suggests is something which is still reflected in the words of the Supreme Court of India and the great cliché repeated ad hominem by the Indian state “” ( Ekam Sadvipra Bahuda Vadanti ) which he said was the keynote to everything which has succeeded ,and the keystone of the arch .

In the present tumultuous times therefore he stands as an inspiration of a very unique philosophy which is not inward looking yet very proud of being what it is . He is the person who puts the markers which comprise the clear boundaries of modern popular Hinduism as well modern Indian nationalism . He also recognizes the economics of his age and the impact on India

Vivekananda’s Ideal Indian state

The question here is what sort of an Indian state would Swami Vivekananda have envisaged? It is a difficult to answer since Swami Vivekananda deliberately kept out of politics and consciously so. Yet , we can surmise some of the broad outlines that he would have looked forward to . I no doubt realize that my guess is as good as anyone else’s as to what sort of a grundnorm would Vivekananda have wanted , but for the sake of the present article I am putting forward my thoughts .

One thing is certain he would have definitely wanted a more equal society , both in economic terms as well as in social terms , that much is clearly apparent from his writings . But as he was wont to say that he was not against inequality per se as it was the nature of things , but he was against “privilege”.It would seem however he would not have wanted a state under a planned economy , he was clearly of the view that the duty of a Grihasta was to create and distribute wealth . He perhaps would have focused the constitution on the Grihasta and the family and put on them the onus of creating and distributing wealth in the society . He would have perhaps wanted the rich to be more integrated in the development of the society . It seems he wanted a strong independent Indian state , a state which used it’s mechanism to help the poor. He always said that he would not be against modern technology if it was for the benefit of the poor , which was very unlike Mahatma Gandhi’s stand on modern technology and civilization in his famous work “ Hind Swaraj”.

It is possible that he would have preferred a country which recognized the importance of religion and the Hindu religion to the society but which would be based on the eternal truth of “Ekam Sadvipra Bahuda Vadanti” , that is there is one truth and the wise call it by many names …in other words genuine and deep tolerance for all methods of worship.

Vivekananda would have wanted a country in which caste which is attached with privilege did not exist and indeed saw the future of caste as we know it today doomed , however he would have been definitely against war in the name of caste consciousness and the annihilation of caste. He saw the solution to India’s problems not in the abolition of caste per se but in the ending of privileges and by attempting to raise everyone to Brahminhood and not by bringing any one down .


Vivekananda , was always a proponent of individual liberty and freedom , yet based on Bharatiya tradition .He was also a democrat and was clearly against the rule of kings.He was also quite skeptical of the rule of majority and in a fantastic paragraph he clearly states that the danger of parliamentary democracy is that it becomes hostage to business interests.

Swamiji would have also possibly preferred Sanskrit as the national language for all India , though he was against the imposition of any specific language policy.

However undoubtedly he would have wanted a strong resurgent India . An India which would enjoy it’s rightful place in the world .However he would have wanted a spiritual India and an India which has not forgotten it’s older culture and wisdom .

In the end if there could be an “ideology” of Swami Vivekananda ( though I am sure he himself would have skeptical of any ideology ) it can be said to be encapsulated by oft quoted following quote which still haunts us today :

““O India! With this mere echoing of others, with this base imitation of others, with this dependence on others this slavish weakness, this vile detestable cruelty — wouldst thou, with these provisions only, scale the highest pinnacle of civilisation and greatness? Wouldst thou attain, by means of thy disgraceful cowardice, that freedom deserved only by the brave and the heroic? O India! Forget not that the ideal of thy womanhood is Sita, Savitri, Damayanti; forget not that the God thou worshippest is the great Ascetic of ascetics, the all-renouncing Shankara, the Lord of Umâ; forget not that thy marriage, thy wealth, thy life are not for sense-pleasure, are not for thy individual personal happiness; forget not that thou art born as a sacrifice to the Mother's altar; forget not that thy social order is but the reflex of the Infinite Universal Motherhood; forget not that the lower classes, the ignorant, the poor, the illiterate, the cobbler, the sweeper, are thy flesh and blood, thy brothers. Thou brave one, be bold, take courage, be proud that thou art an Indian, and proudly proclaim, "I am an Indian, every Indian is my brother." Say, "The ignorant Indian, the poor and destitute Indian, the Brahmin Indian, the Pariah Indian, is my brother." Thou, too, clad with but a rag round thy loins proudly proclaim at the top of thy voice: "The Indian is my brother, the Indian is my life, India's gods and goddesses are my God. India's society is the cradle of my infancy, the pleasure-garden of my youth, the sacred heaven, the Varanasi of my old age." Say, brother: "The soil of India is my highest heaven, the good of India is my good," and repeat and pray day and night, "O Thou Lord of Gauri, O Thou Mother of the Universe, vouchsafe manliness unto me! O Thou Mother of Strength, take away my weakness, take away my unmanliness, and make me a Man!"



The Continuing Legacy of Swami Vivekananda

Vivekananda has been the source of inspiration of nearly every socially conscious active political personality in modern India from Chakravarty Rajagopalachari , Rishi Aurobindo Ghose , Netaji Subhas Chandra Bose , Mahatma Gandhi , Bhupendra Nath Dutta , Indira Gandhi , M.S.Golwalkar onwards , they all have intimate connections to the philosophy and ideology of Swami Vivekananda .

He was come to signify Indian society’s attitude to the ideas of caste and untouchability .Vivekananda’s call for awakening the Sudra and establishing Sudra rule along with the duty of the so called upper castes to help uplift the Sudra is almost the logical basis on which the present reservation system is argued and predicated . Vivekananda’s call for protection and promotion of untouchables and his actually calling them “suppressed”( translated into the Hindi word Dalit) instead of the various names that they were known as before is now part of Indian lexicon His clear statement of the need to bring in the heart of Buddhism into the Brahminic religion so as to have equity in society predates and is in some ways the precursor to Ambedkar embracing Buddhism by opting out of Hinduism .His statement of “Ekam Satvipra Bahuda Vadanti” is almost the boilerplate formula of all arguments asking for religious toleration whether in the political space or in the judicial arena . Vivekananda remains the inspiration for the welfare state in India .

His ideas as to who is a Hindu , and what is a Hindu’s political and social obligations are the now accepted interpretations as to how a Hindu views himself . The Hindu today views the conception of caste , idol worship , service as a part of religious and charitable obligation , and the unity within all the various strains and interpretations of Hinduism , through the lens of Vivekananda. The oft repeated fact of the Hindu never conquering anyone by force comes inspired and straight out of the famous Chicago Speech of Swami Vivekananda at the World Parliament of Religions . His critique of conversion from Hinduism to other religions is now echoed everyday , as does his argument that religion cannot be given on an empty stomache and therefore it is important for Hindus to ensure that the need of the deprived be met .

The modern Hindu , the political Hindu and the religious Hindu arises out of Swami Vivekananda . He provides the arguments for both those who advocate religion as inseperable from politics and those who advocate the state to stay away from affairs of religion .

Vivekananada remains the single most important ideologue of the idea of India as we know it and as it exists today presently,. Swami Vivekananda recognizes that neither can Indians become Europeans nor should they want to become that under any circumstances and neither can they or should they want to go back home to the past unconditionally . He advocates a path combining the best of both Indian and Western , a path based on the single most important criteria that every idea must be tested , a path which does not reject Indian heritage as the Babasaheb does nor glorify it as the Mahatma does , but a path based on equity , justice , fraternity but always based on the needs and objects of the unique civilization of India.

Monday, February 11, 2013

स्वामी विवेकानंद , क्या आप जानते हैं?




स्वामी विवेकानंद
क्या आप जानते हैं?
1. इस तस्वीर में स्वामी विवेकानंद की विलक्षण मुद्रा के कारण यह उनकी सबसे अधिक प्रसिद्ध तस्वीर बन गई। अब तो इस मुद्रा को स्वामी विवेकानंद से जोड़कर ही देखा जाता है और इसे अक्सर विवेकानंद मुद्रा या विवेकानंद पोज़ के नाम से उल्लेखित किया जाता है; पर क्या आप जानते हैं कि इस मुद्रा का एक और नाम भी है? इसे शिकागो पोज़ भी कहा जाता है। तस्वीर का यह नामकरण इसलिए हुआ क्योंकि इस तस्वीर को सितम्बर 1893 में शिकागो में हुई विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद के ऐतिहासिक भाषण के बाद खींचा गया था। इस तस्वीर के फ़ोटोग्राफ़र का नाम था थॉमस हैरीसन। हैरीसन ने स्वामी विवेकानंद की आठ तस्वीरें ली थीं जिनमें से पाँच पर स्वामी जी ने अपने हस्ताक्षर भी किए थे।

2. स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता के एक रूढ़िवादी हिन्दु परिवार में हुआ था। जन्म के समय उनका नाम नरेन्द्रनाथ दत्त रखा गया। आगे चल कर नरेन्द्रनाथ को उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस ने सन्यासी होने की दीक्षा दी। चूंकि एक सन्यासी अपना सब कुछ त्याग देता है इसलिए नरेन्द्रनाथ ने अपने नाम को भी त्याग दिया और एक नया नाम धारण कर लिया: स्वामी विवेकानंद। स्वामी विवेकानंद भारतीय अध्यात्म और दर्शन में एक महत्त्वपूर्ण व्यक्ति रहे हैं। उन्होनें पश्चिमी देशों का वेदांत और योग दर्शन से परिचय कराया। स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने अपने शिष्य को सिखाया कि सभी धर्म सच्चे हैं और एक ही लक्ष्य की ओर जाने वाले अलग-अलग मार्गों की तरह हैं। इस विश्व में सभी कुछ ईश्वर है और ईश्वर के सिवा यहाँ कुछ भी नहीं है। इस दर्शन को अद्वैत वेदांत कहा जाता है। स्वामी विवेकानंद 1893 में हुई उक्त धर्म संसद में भाग लेने के लिए शिकागो गए। वहाँ इस भारतीय सन्यासी ने सभी का मन बिना प्रयत्न के ही जीत लिया। भारत वापस आने के बाद, 1897 में, उन्होनें रामकृष्ण मिशन नामक एक आध्यात्मिक और लोकहितैषी संस्था की नींव रखी।

3.स्वामी विवेकानंद ने भविष्यवाणी की थी कि वे 40 वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर सकेंगे। उनकी यह बात तब सच साबित हो गई जब 4 जुलाई 1902 को उनकी मृत्यु 39 वर्ष की उम्र में ही हो गई। उन्होने समाधि की अवस्था में अपने प्राण त्याग

4. 11 सितम्बर को “विश्व भाईचारा दिवस” मनाया जाता है। इसी दिन स्वामी विवेकानंद ने शिकागो धर्म संसद में अपना भाषण दिया था। विडम्बना यह है कि 11 सितम्बर को ही वर्ष 2001 में इतिहास का सबसे बड़ा आतंकवादी हमला हुआ।
5. भारत में स्वामी विवेकानंद के जन्मदिवस (12 जनवरी) को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है
6. कन्याकुमारी विवेकानंद रॉक मेमोरियल बनाने का काम स्वामी विवेकानंद की जन्मशती के उपलक्ष्य में 1963 में शुरु हुआ था। यह मेमोरियल भारत भूमि के सुदूरतम दक्षिणी बिंदू से 500 मीटर आगे समुद्र के बीच बना है। इसे बनाने में सात वर्ष का समय लगा था।
इस मेमोरियल को बनाने के राष्ट्रीय प्रयास में करीब तीस लाख लोगों ने आर्थिक सहायता दी। इन सभी व्यक्तियों ने कम से कम एक-एक रुपए का योगदान दिया।
7. स्वामी विवेकानंद पहले भारतीय थे जिन्हे हार्वर्ड विश्वविद्यालय में ओरियेंटल फ़िलॉसफ़ी चेयर स्वीकारने के लिए आमंत्रित किया गया था।
8., स्वामी विवेकानंद एक अच्छे कवि और गायक भी थे। उनकी सबसे पसंदीदा स्वरचित कविता का शीर्षक “काली द मदर” है।
इस लेख को और परिपूर्ण करने के लिए मैं नीचे शिकागो धर्म संसद में दिए स्वामी विवेकानंद के भाषण की रिकॉर्डिंग दे रहा हूँ। मैं जब भी इस भाषण को सुनता हूँ तो स्वामी विवेकानंद के ज्ञान और वाक-कौशल से चकित रह जाता हूँ! इस भाषण के लिए उन्होनें कोई तैयारी नहीं की थी; लेकिन फिर भी कितनी स्पष्टता के साथ उन्होंने अपनी बात कही। कोई झिझक नहीं, कोई अटकाव नहीं। भाषा का एकदम निर्मल बहाव इस भाषण में सुनने को मिलता है।

इस भाषण का हिन्दी अनुवाद भी मैं नीचे दे रहा हूँ। इसे मैंने सहारा न्यूज़ नेटवर्क की वेबसाइट समय लाइव से लिया है।

अमेरिका की बहनों और भाइयो!

आपने हमारा जैसा हार्दिक और स्नेहपूर्ण स्वागत किया है, उसके लिए आभार व्यक्त करने के लिए जब मैं यहां खड़ा हुआ हूं तो मेरा मन एक अकथनीय आनंद से भरा हुआ है.
मैं विश्व की सबसे प्राचीन संन्यासियों की पंरपरा की ओर से आपको धन्यवाद देता हूं; मैं आपको धर्मो की जननी की ओर से धन्यवाद देता हूं और मैं सभी वर्गो एवं पंथों के करोड़ों हिंदुओं की ओर से आपको धन्यवाद देता हूं.

इस मंच पर आए उन कुछ वक्ताओं को भी मेरा धन्यवाद, जिन्होंने पूर्व से आए प्रतिनिधियों का उल्लेख करते हुए आपको बताया कि दूर देशों से आए हुए ये सज्जन विभिन्न देशों में सहिष्णुता का संदेश पहुंचाने के सम्मान के अधिकारी हो सकते हैं.
मुझे उस धर्म से संबंधित होने का गर्व है, जिसने विश्व को सहिष्णुता औ सार्वभौमिक स्वीकार्यता का पाठ पढ़ाया. हम न केवल सार्वभौमिक सहिष्णुता में विश्वास करते हैं, बल्कि हम सभी धर्मो की सत्यता को स्वीकार करते हैं.
मुझे उसे देश से संबंधित होने में भी गर्व है, जिसने इस प्थ्वी के सभी धर्मो व सभी देशों के सताए हुए लोगों और शरणार्थियों को शरण दी है.

मुझे आपको यह बताने में गर्व है कि हमने उन पवित्र इजराइलियों को अपने कलेजे से लगाया है, जिन्होंने ठीक उसी वर्ष दक्षिण भारत में आकर शरण ली, जब रोमन अत्याचारियों ने उनके पवित्र मंदिर को ध्वस्त कर दिया था.
मुझे उस धर्म से संबंधित होने का गर्व है, जिसने महान जोरोस्ट्रियन राष्ट्र के विस्थापितों को शरण दी है और अब भी उनके विकास में सहयोग दे रहे हैं.

भाइयों, मैं आपके सामने उस भजन की कुछ पंक्तियां प्रस्तुत करूंगा, जिसको मैं अपने बचपन से दोहराता आया हूं और जिसे करोड़ों लोग प्रतिदिन दोहराते हैं -

‘जैसे विभिन्न स्रोतों से उद्भूत विभिन्न धाराएं
अपना जल सागर में विलीन कर देती हैं,
वैसे ही हे ईश्वर! विभिन्न प्रवृत्तियों के चलते
जो भिन्न मार्ग मनुष्य अपनाते हैं, वे
भिन्न प्रतीत होने पर भी
सीधे या अन्यथा, तुझ तक ही जाते हैं.’

वर्तमान सम्मेलन, जो अब तक हुई सबसे महान सभाओं में से एक है, स्वयं ‘गीत’ में बताए उस अद्भुत सिद्धांत का पुष्टीकरण और विश्व के लिए एक घोषणा है -

‘जो कोई, किसी भी स्वरूप में
मेरे पास आता है, मुझे पाता है;
सभी मनुष्य उन मार्गो पर
संघर्षरत हैं, जो अंत में उन्हें मुझे तक ही ले आते हैं.’

सांप्रदायिकता कट्टरता और उन्हीं की भयानक उपज धर्माधता ने बहुत समय से इस सुंदर पृथ्वी को ग्रस रखा है. उन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है, कितनी ही बार उसे मानव रक्त से सराबोर कर दिया है, सभ्यता को नष्ट किया है और समूचे राष्ट्रों को निराशा के गर्त में धकेल दिया है.

यदि ये राक्षसी कृत्य नहीं किए जाते तो मानव समाज उससे बहुत अधिकविकसित होता, जितना वह आज है. परंतु उनका अंतकाल आ गया है; और मुझे पूरी आशा है कि इस सम्मेलन के सम्मान में सुबह जो घंटानाद हुआ था, वह सभी प्रकार के कट्टरपन, सभी प्रकार के अत्याचारों, चाहे वे तलवार के जरिए हों या कलम के- और व्यक्तियों, जो एक ही उद्देश्य के लिए अग्रसर हैं, के बीच सभी प्रकार की दुर्भावनाओं के लिए मृत्यु का घंटानाद बन जाएगा.

यूरोजोन के कई देश दिवालिया होने के कगार पर


यूरोजोन के कई देश दिवालिया होने के कगार पर

अब सुना हे कि योरोपेअन युनिअन ने मोदी जी से दुबारा हाथ मिलाया हे, पर किस मजबूरी मे मिलाया हे इस्को भी समझना भी ज्रूरी हे।
वैश्विक अर्थव्यवस्था में यूरोजोन की हिस्सेदारी महत्वपूर्ण है. यूरोजोन 17 देशों का समूह है. इन देशों के नाम हैं- ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, साइप्रस, इस्टोनिया, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, ग्रीस, आयरलैंड, इटली, लक्जमबर्ग, माल्टा, नीदरलैंड, पूर्तगाल, स्लोवाकिया, स्लोवानिया और स्पेन. ये सभी देश साझा मुद्रा ‘यूरो’ में व्यापार करते हैं.
इससे सबकी अर्थव्यवस्था एक-दूसरे से जुड़ी हुई है. इनकी मौद्रिक नीति भी साझी है. यूरोपियन सेंट्रल बैंक इनकी मौद्रिक नीति की देखरेख करता है. किस देश को मदद देनी है, इसका निर्णय यह बैंक करता है.
वैश्विक आयात-निर्यात में यूरोजोन की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा (आयात- 20 फीसदी और निर्यात 21 फीसदी) है. यूरोपियन यूनियन और अमेरिका के बाद ग्लोबल अर्थव्यवस्था में इसका योगदान सबसे ज्यादा 14 फीसदी है. इसका जीडीपी भी अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा (8 ट्रिलियल डॉलर) है.
इसलिए अमेरिकी अर्थव्यवस्था के टूटने से दुनिया में जिस प्रकार हाहाकार मच जाता है, उसी प्रकार यूरोजोन के धराशायी होने से भी दुनिया की अर्थव्यवस्था कराह रही है. खर्चो में कटौती से उत्पादन और सेवाओं की खपत कम हो गयी है, जिससे ज्यादातर देशों का व्यापार प्रभावित हुआ है. वर्तमान आर्थिक संकट यूरोजोन पर छाये ऋण संकट की वजह से है.
यूरोजोन में मंदी की शुरुआत ग्रीस से हुई. इसने धीरे-धीरे समूचे यूरो जोन को और बाद में पूरी दुनिया को चपेट में ले लिया है. 2007 के सबप्राइम संकट से दुनिया पूरी तरह उबरी भी नहीं थी कि यूरोजोन के ऋण संकट ने दुनिया को दोबारा मंदी में धकेल दिया है. यूरोपीय संघ में शामिल होने से पहले ग्रीस का सरकारी खर्च और उपलब्ध संसाधनों में बड़ा अंतर इसकी बड़ी वजहों में एक है.
सिंगल करेंसी के तौर पर यूरो को अपनाने के बाद इसका सरकारी खर्च और बढ़ गया. 2007 तक यह खर्च यूरोपीय संघ के अन्य देशों की तुलना में लगभग 50 फीसदी अधिक था. वहीं, सरकार को टैक्स से आमदनी कम हो रही थी. इससे बजट घाटा लगातार बढ़ता गया. सरकारी खर्च इतना अधिक बढ़ गया कि खर्च और आय का आंकड़ा नियंत्रण से पूरी तरह बाहर हो गया.
इसके बाद, जब 2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी ने दुनिया को अपनी चपेट में लेना शुरू किया, तो ग्रीस उसके लिए तैयार नहीं था. इसका नकारात्मक असर उसकी अर्थव्यवस्था पर पड़ा. वह कर्ज लेकर काम चलाता रहा और इस तरह कर्ज भी बढ़ता गया. उस पर कर्ज इतना अधिक हो गया, जिसे वह चुकाने में समर्थ नहीं था. मजबूरन, उसे यूरोपीय संघ के सहयोगी देशों और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से विशाल कर्ज लेना पड़ा. ग्रीस हमेशा ही एक गंभीर डिफॉल्टर रहा है.
1830 में आधुनिक ग्रीस की स्थापना से ही हर दूसरे साल यह सरकारी कजरे के मामले में डिफॉल्टर रहा है. बेलआउट पैकेज के नाम पर भारी-भरकम वित्तीय मदद का भार ने यूरोजोन के अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर विपरीत प्रभाव डाला. ग्रीस को ऋण संकट से बचाने के लिए 130 अरब यूरो की मदद दी गयी थी, जबकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) ने भी 28 अरब यूरो की मदद दी. इसके बावजूद उसकी अर्थव्यवस्था की हालत नाजुक बनी रही. ग्रीस के वित्तीय कुप्रबंधन का असर फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों पर भी पड़ा है. निवेशक उन देशों में पैसा लगाने से कतराने लगे.
आज आलम यह है कि यूरोजोन के सभी देश कर्ज संकट में फंस गये हैं. उन पर बैंकों के भारी कर्ज हैं. वे कर्ज चुकाने में असफल हो रहे हैं. इससे इन देशों के बैंकों की आर्थिक हालत नाजुक हो गयी है.
यूरोपीय ऋण संकट 2010 में ग्रीस से शुरू हुआ और एक के बाद दूसरे यूरोपीय देशों को अपनी चपेट में ले रहा है. इन देशों का बजट घाटा बेलगाम बढ़ रहा है. शुरू में सरकार कर्ज लेकर योजनाओं को पूरा करती रही, लेकिन इसे चुकाने में असमर्थ होने की वजह से कई देश दिवालिया होने की कगार पर खड़े हैं.
ग्रीस, स्पेन, पुर्तगाल, आयरलैंड, स्लोवेनिया, मलयेशिया, फिनलैंड और इटली आदि सभी में सार्वजनिक कर्ज एवं घाटों की स्थिति बेहद खराब बनी हुई है. ग्रीस को संकट से उबारने के लिए यूरोजोन के देशों और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने उसे लगभग एक खरब डॉलर का बेलआउट पैकेज भी दिया. इसके बावजूद संकट बरकरार है.
यूरोजोन में चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था वाला स्पेन भी अब ग्रीस, आयरलैंड और पूर्तगाल की तरह संकटग्रस्त हो गया है. हालांकि इन तीनों देशों को इसीबी और आइएमएफ की ओर से बेल आइट पैकेज दिये गये हैं. लेकिन अर्थव्यवस्था पटरी पर आने की बजाय और खस्ता हो गयी है.
ग्रीस की स्थिति सबस नाजुक बनी हुई है. इसकी जीडीपी की विकास दर 4 फीसदी से नीचे आ गयी है. पुर्तगाल की जीडीपी की विकास दर 3 फीसदी हो गयी है. स्पेन से निवेशकों का विश्वास कम हो गया है. कर्ज संकट के दौर में जर्मनी और फ्रांस ही अपनी आर्थिक विकास की दर को कुछ हद तक बरकरार रख पाये हैं. स्पेन और ग्रीस में बेरोजगारी की दर 20 फीसदी हो गयी है. हालांकि जर्मनी में यह दर 6 फीसदी है. वहीं युवाओं में बेरोजगारी की दर जर्मनी व ऑस्ट्रिया में 10 फीसदी, स्पेन व ग्रीस में 50 फीसदी और पुर्तगाल में 35 फीसदी तक पहुंच गयी है ।

Friday, February 8, 2013

वैश्विक अर्थव्यवस्था में यूरोजोन के धराशायी होने की और मोदी जी


कई देश दिवालिया होने के कगार पर

अब सुना हे कि योरोपेअन युनिअन ने मोदी जी से दुबारा हाथ मिलाया हे, पर किस मजबूरी मे मिलाया हे इस्को भी समझना भी ज्रूरी हे।
वैश्विक अर्थव्यवस्था में यूरोजोन की हिस्सेदारी महत्वपूर्ण है. यूरोजोन 17 देशों का समूह है. इन देशों के नाम हैं- ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, साइप्रस, इस्टोनिया, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, ग्रीस, आयरलैंड, इटली, लक्जमबर्ग, माल्टा, नीदरलैंड, पूर्तगाल, स्लोवाकिया, स्लोवानिया और स्पेन. ये सभी देश साझा मुद्रा ‘यूरो’ में व्यापार करते हैं.
इससे सबकी अर्थव्यवस्था एक-दूसरे से जुड़ी हुई है. इनकी मौद्रिक नीति भी साझी है. यूरोपियन सेंट्रल बैंक इनकी मौद्रिक नीति की देखरेख करता है. किस देश को मदद देनी है, इसका निर्णय यह बैंक करता है.
वैश्विक आयात-निर्यात में यूरोजोन की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा (आयात- 20 फीसदी और निर्यात 21 फीसदी) है. यूरोपियन यूनियन और अमेरिका के बाद ग्लोबल अर्थव्यवस्था में इसका योगदान सबसे ज्यादा 14 फीसदी है. इसका जीडीपी भी अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा (8 ट्रिलियल डॉलर) है.
इसलिए अमेरिकी अर्थव्यवस्था के टूटने से दुनिया में जिस प्रकार हाहाकार मच जाता है, उसी प्रकार यूरोजोन के धराशायी होने से भी दुनिया की अर्थव्यवस्था कराह रही है. खर्चो में कटौती से उत्पादन और सेवाओं की खपत कम हो गयी है, जिससे ज्यादातर देशों का व्यापार प्रभावित हुआ है. वर्तमान आर्थिक संकट यूरोजोन पर छाये ऋण संकट की वजह से है.
यूरोजोन में मंदी की शुरुआत ग्रीस से हुई. इसने धीरे-धीरे समूचे यूरो जोन को और बाद में पूरी दुनिया को चपेट में ले लिया है. 2007 के सबप्राइम संकट से दुनिया पूरी तरह उबरी भी नहीं थी कि यूरोजोन के ऋण संकट ने दुनिया को दोबारा मंदी में धकेल दिया है. यूरोपीय संघ में शामिल होने से पहले ग्रीस का सरकारी खर्च और उपलब्ध संसाधनों में बड़ा अंतर इसकी बड़ी वजहों में एक है.
सिंगल करेंसी के तौर पर यूरो को अपनाने के बाद इसका सरकारी खर्च और बढ़ गया. 2007 तक यह खर्च यूरोपीय संघ के अन्य देशों की तुलना में लगभग 50 फीसदी अधिक था. वहीं, सरकार को टैक्स से आमदनी कम हो रही थी. इससे बजट घाटा लगातार बढ़ता गया. सरकारी खर्च इतना अधिक बढ़ गया कि खर्च और आय का आंकड़ा नियंत्रण से पूरी तरह बाहर हो गया.
इसके बाद, जब 2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी ने दुनिया को अपनी चपेट में लेना शुरू किया, तो ग्रीस उसके लिए तैयार नहीं था. इसका नकारात्मक असर उसकी अर्थव्यवस्था पर पड़ा. वह कर्ज लेकर काम चलाता रहा और इस तरह कर्ज भी बढ़ता गया. उस पर कर्ज इतना अधिक हो गया, जिसे वह चुकाने में समर्थ नहीं था. मजबूरन, उसे यूरोपीय संघ के सहयोगी देशों और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से विशाल कर्ज लेना पड़ा. ग्रीस हमेशा ही एक गंभीर डिफॉल्टर रहा है.
1830 में आधुनिक ग्रीस की स्थापना से ही हर दूसरे साल यह सरकारी कजरे के मामले में डिफॉल्टर रहा है. बेलआउट पैकेज के नाम पर भारी-भरकम वित्तीय मदद का भार ने यूरोजोन के अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर विपरीत प्रभाव डाला. ग्रीस को ऋण संकट से बचाने के लिए 130 अरब यूरो की मदद दी गयी थी, जबकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) ने भी 28 अरब यूरो की मदद दी. इसके बावजूद उसकी अर्थव्यवस्था की हालत नाजुक बनी रही. ग्रीस के वित्तीय कुप्रबंधन का असर फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों पर भी पड़ा है. निवेशक उन देशों में पैसा लगाने से कतराने लगे.
आज आलम यह है कि यूरोजोन के सभी देश कर्ज संकट में फंस गये हैं. उन पर बैंकों के भारी कर्ज हैं. वे कर्ज चुकाने में असफल हो रहे हैं. इससे इन देशों के बैंकों की आर्थिक हालत नाजुक हो गयी है.
वैल्यू रिसर्च के सीइओ धीरेंद्र कुमार कहते हैं कि यूरोपीय ऋण संकट 2010 में ग्रीस से शुरू हुआ और एक के बाद दूसरे यूरोपीय देशों को अपनी चपेट में ले रहा है. इन देशों का बजट घाटा बेलगाम बढ़ रहा है. शुरू में सरकार कर्ज लेकर योजनाओं को पूरा करती रही, लेकिन इसे चुकाने में असमर्थ होने की वजह से कई देश दिवालिया होने की कगार पर खड़े हैं.
ग्रीस, स्पेन, पुर्तगाल, आयरलैंड, स्लोवेनिया, मलयेशिया, फिनलैंड और इटली आदि सभी में सार्वजनिक कर्ज एवं घाटों की स्थिति बेहद खराब बनी हुई है. ग्रीस को संकट से उबारने के लिए यूरोजोन के देशों और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने उसे लगभग एक खरब डॉलर का बेलआउट पैकेज भी दिया. इसके बावजूद संकट बरकरार है.
यूरोजोन में चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था वाला स्पेन भी अब ग्रीस, आयरलैंड और पूर्तगाल की तरह संकटग्रस्त हो गया है. हालांकि इन तीनों देशों को इसीबी और आइएमएफ की ओर से बेल आइट पैकेज दिये गये हैं. लेकिन अर्थव्यवस्था पटरी पर आने की बजाय और खस्ता हो गयी है.
ग्रीस की स्थिति सबस नाजुक बनी हुई है. इसकी जीडीपी की विकास दर 4 फीसदी से नीचे आ गयी है. पुर्तगाल की जीडीपी की विकास दर 3 फीसदी हो गयी है. स्पेन से निवेशकों का विश्वास कम हो गया है. कर्ज संकट के दौर में जर्मनी और फ्रांस ही अपनी आर्थिक विकास की दर को कुछ हद तक बरकरार रख पाये हैं. स्पेन और ग्रीस में बेरोजगारी की दर 20 फीसदी हो गयी है. हालांकि जर्मनी में यह दर 6 फीसदी है. वहीं युवाओं में बेरोजगारी की दर जर्मनी व ऑस्ट्रिया में 10 फीसदी, स्पेन व ग्रीस में 50 फीसदी और पुर्तगाल में 35 फीसदी तक पहुंच गयी है