Friday, January 2, 2015

मेड बाई इण्डिया’ से ही विकास सम्भव MADE BY INDIA..





‘मेड बाई इण्डिया’ से ही विकास सम्भव MADE BY INDIA..
Professor Bhagwati Prakash Sharma (12148 words)( 220 sentences)
प्रकाशक
ज्ञान भारती प्रकाषन
सी-27/65, जगतगंज, वाराणी - 221002
प्राक्कथन
‘मेड बाई इण्डिया’ से ही विकास सम्भव
विगत 23 वर्षों में आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत, आयातों में उदारीकरण से जहाँ देश,विदेशों से आयातित वस्तुओं के बाजार में बदलता चला गया है, वहीं विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) को प्रोत्साहन देते चले जाने से देश के सगंठित क्षैत्र के उत्पादन तंत्र के दो तिहाई पर विदेशी कम्पनियों का स्वामित्व व नियन्त्रण हो गया है। इसी प्रकार देश के वित्तीय बाजार भी आज विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) के ही नियन्त्रण में जाने के मार्ग पर चल रहे हैं। बोम्बे स्टाक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध शीर्ष 500 स्वत़ंत्र (BSE 500) कम्पनियों में उनके प्रवर्तकों के अंशों को छोड़ कर स्वत़ंत्र क्रय-विक्रय हेतु उपलब्ध शेयरों के 42 प्रतिशत पर आज विदेशी सस्ंथागत निवेशकों का ही नियन्त्रण हो गया है।
आज जब देश में शीतल पेय व जूते के पालिश से लेकर टी.वी., फ्रीज समेत सीमेण्ट पर्यन्त अधिकांश उत्पादों का उत्पादन विदेशी कम्पनियाँ उनके ब्राण्ड के अधीन ही कर रही हैं। ऐसी दशा में और अधिक विदेशी निवेश आकर्षित कर उन्हें ‘मेक इन इण्डिया’ की सुविधा प्रदान करने से स्वावलम्बी आर्थिेक विकास सम्भव नहीं हो सकेगा आज आवश्यकता इस बात की है कि देश में उत्पादों व ब्राण्डों का विकास कर उनके उत्पादन, विपणन व निर्यात संवर्द्धन हो। विश्व भर में ‘‘मेेड बाई इण्डिया’’ वस्तुओं व सेवाओं के प्रवर्तन व संवर्द्धन की अत्याधिक आवश्यकता है। भारतीय उद्यम व भारतीय उद्यमी अपने उत्पादों व ब्राण्डों को विश्व में प्रतिष्ठापित कर सकें इस हेतु नीतिगत पहल का किया जाना परम आवश्यक है।
तथाकथित आर्थिक सुधारों के पूर्व शीतल पेय, स्वचालित वाहनों, टी.वी. व रेफ्रीजरेटर से लेकर सीमेण्ट विघुत सयंत्र निर्माण, दूरसंचार एवं नगरीय विकास पर्यन्त सभी उद्योग व सेवा सवंर्गो में स्वदेशी उद्यमों का ही वर्चस्व था। विगत 23 वर्षों में बनी विविध सरकारों द्वारा अपनायी विदेशी प्रत्यक्ष निवेश प्रोत्साहन की नीति के परिणामस्वरुप ही आज देश में सगंठित क्षेत्र का लगभग दो तिहाई उत्पादन तंत्र विदेशी स्वामित्व व नियन्त्रण में चला गया है। इस प्रकार देश में उत्पादित उत्पादों का उत्पादन विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ ही कर रही हैं। अतःएव विदेशी पूंजी निवेश आमंत्रित कर देश में उत्पादन हेतु विदेशियों को आमं़त्रण देने की नीति, विगत 23 वर्षों से चली आ रही पराश्रयकारी नीतियों का ही विस्तार है। उद्योग ही नहीं अब तो वाणिज्य के क्षेत्र में थोक व्यापार, बीमा व पेन्शन जैसी वाणिज्यिक सेवाओं विदेशी निवेश और अनुबन्ध पर कृषि व जी. एम. फसलों के अनुमोदन जैसे नर्णयों या प्रस्तावित निर्णयों से वाणिज्य, नगरीय निर्माण आधारिक रचानाओं व कृषि पर्यन्त समग्र अर्थतंत्र ही उत्तरोत्तर विदेशी स्वामित्व व नियन्त्रण में जाने को है। विगत 30 वर्षों में विश्व में आयी तकनीकी क्रांति व उत्तरोत्तर हुये नवीन आविष्कारों से उत्पादित वस्तुओं की देश के बाजारों में उपलब्धी वैश्विक आधुनिकीकरण की सतत् व सहज प्रक्रिया का भाग है। अन्यथा देश विगत 23 वर्षों में लागू आर्थिक सुधारों से देश पिछडता गया है। आर्थिक व तकनीकी मापदण्डों पर वैश्विक स्पद्र्धाओं से ही एक सम्प्रंभुत्व सम्पन्न अर्थ व्यवस्था के रूप सहज रूप से आगे बढने देष की सामथ्र्य पर इन कथित आर्थिक सुधारों या नवउदारवादी आर्थिक नीतियों के गंभीर दुश्प्रभाव हुए है। साथ ही आयात उदारीकरण, विदेषी निवेष प्रोत्साहन, कठोर बौद्धक सम्पदाधिकारों के मार्ग पर तेजी से आगे बढ़ने के कथित प्रस्ताव और अवसरंचना विकास व सामाजिक सेवाओं में विदेशी निवेश में आमंत्रण जैसे प्रस्ताव स्थितियों की प्रतिकूलता के वृद्धि करने वाले ही सिद्ध होते है। वर्ष 1991 में देश की अर्थ व्यवस्था व औद्योगिक उत्पाद तंत्र को वैश्विक व्यवस्था से समेकित (Integrate) करने और तब हमारे बजट में विद्यमान राजकोषीय घाटे एवं विदेश व चालू किये व्यापार खाते में घाटे की समस्या से उबारने के घोषित लक्ष्यों के साथ आर्थिक नीतियों को लागू किया उन से देश औद्योगिक उत्पादन, राजकोषीय सन्तुलन, विदेशी व्यापार सन्तुलन, तुलनात्मक आर्थिक विकास, विनिमय दरों और अनेक सामाजिक मानकों के साथ साथ हमारी रक्षा व्यवस्था पर्यन्त सभी मूल्यांकन आधारों पर प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुआ है। इस लघु पुस्तिका में सुधारों के प्रतिकूल प्रभावों एवं देश अर्थ व्यवस्था प्रगति के पथ पर ले जाने हेतेु समावेशी व धारणक्षम विकास की रीति नीति के विपवेचन के पूर्व सर्वप्रथम इस अध्याय में कुछ लघुशीर्ष को तालिकाओं व चित्रों से यह स्पष्ट करने का प्रयन्त किया जा रहा है। यहाँ पर इसके केवल 2 ही उदाहरण उद्धत कर देना पर्याप्त है। उदाहरणार्थ वर्ष 1999 के पूर्व देश में सारा सीमेन्ट भारतीय स्वदेशी उद्यम बनाते थे। देश में निर्माण कार्यों में उछाल आने की आशा में यूरोप के छह बडे़ सीमेन्ट उत्पादकों ने दक्षिण पूर्व एशिया के कोरिया आदि देशोें से सस्ती सीमेन्ट भेज कर प्रारंभ कर हमारे देश में स्थानीय सीमेन्ट उत्पादकों को दबाब में लाकर उनको उद्यम बिक्री को बाध्य करके आज हमारी आधी से अधिक सीमेण्ट उत्पादन क्षमता पर कब्जा कर लिया है। आज शीतल पेय जैसे अनेक उपभोक्ता उत्पादों के 70-80 प्रतिशत तक बाजार कोक-पेप्सी के हाथों टूथ पेस्ट व जूते पाॅलिश सदृश अनेक उपभोक्ता उत्पादों में 85-90 प्रतिशत बाजार एवं स्वचालित वाहनों से लेकर टीवी, फ्रीज, ऐसी, सीमेन्ट आदि टिकाऊ उपभोक्ता उत्पादों में 65-70 प्रतिशत बाजार विदेशी कम्पनियों के नियंत्रण में है। उदाहरणार्थ आज टाटा के टिस्को के सीमेन्ट के कारखाने हो या एसीसी व गुजरात अम्बुजा आदि के यूरोपीय कम्पनियों लाफार्ज व डाॅलसिम द्वारा अधिग्रहण के बाद आज देश की दो तिहाई सीमेन्ट उत्पादन क्षमता यूरोपिय सीमेन्ट उत्पादकों के स्वामित्व व नियंत्रण में गयी है। अर्थात् विदेशी कम्पनियां भारत में ‘‘मेक इन’’ कर रही हैं।
इसलिये देश को स्वालम्बन व विकास के मार्ग पर अग्रसर करने हेतु तकनीकी राष्ट्रवाद का अवलम्बन लेते हुए हमें सभी प्रकार की वस्तुओं व सेवाओं के अपने ब्राण्ड विकसित करने चाहिए और देश-विदेश में उनका चलन बढ़ाने हेतु सर्वप्रथम देश में आम व्यक्ति में स्वदेशी भाव जागरण आवश्यक है। ‘‘मेड बाई इण्डिया’’ की दृष्टि से जहाँ देश के उद्योगों को उद्यम बन्दी से बचाने के साथ-साथ विदेशी अधिग्रहणों से बचाना है। देश में उत्पाद व ब्राण्ड विकसित करने हेतु चीन की भाँति तकनीकी राष्ट्रवाद; यूरो. अमरीकी देशों की तरह उद्योग सहायता संघों के विकास; सहकारी अनुसंधान के मानक संवर्द्धन; वैकल्पिक उत्पाद विकास के लिये मितव्ययी इंन्जिनीयरिंग (Frugal Engineering) के विकास, विदेशों में भारत के ब्राण्ड, उत्पाद, सेवा उत्पाद व उपक्रम अधिग्रहण आदि पर हमारी दृष्टि होनी चाहिये।

भगवती प्रकाश शर्मा




प्रस्तावकी
सम्मानीय आज के कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. आद्या प्रसाद पाण्डेय जी, अजय कुमार प्रान्त संघटक, काशी स्वदेशी जागरण मंच, श्रद्धेय इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रो. भगवती प्रकाश शर्मा जी, सबके परिचित और देश भर में चर्चित ऐसे मुख्य अतिथि माननीय दीनानाथ झुनझुनवाला जी और अतिप्रिय प्राध्यापक, वर्षों से समाज के कार्य को आगे बढ़ाने वाले ऐसे प्रो. बेचन जायसवाल जी, मित्र डाॅ. यशोवर्धन जी एवं सामने बैठे मित्रों, बंधुओं, सार्थियों आज के मंच संचालक
डाॅ. अनूप मिश्रा जी सौभाग्य से अर्थशास्त्र के प्राध्यापक हैं और साथ ही आपके मंच पर अर्थशास्त्र के दो विश्वविद्यालयों के विद्धान बैठे हुए हैं और एक विषय खुद चलाते हैं। मेरा कोई अनुभव नहीं है लेकिन जैसा कहा कि कार्यक्रम का आयोजन एक स्वाभाविक प्रक्रिया है और वर्तमान परिस्थितियों में सामाजिक नवजागरण का काम होता रहें, उसी को ध्यान में रखकर के यह कार्यक्रम आगे बढ़ा है। आज आपको ‘‘मेड बाई इण्डिया’’ का प्रारूप कया है? यह हमारे लिए कौन सा रास्ता सुझाएगा और वह मार्ग जो होगा उससे मार्ग से भारत की परिस्थिति कौन सी खड़ी होगी? क्या वह विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था का एक मानक बनेगा? क्या इस देश के बेरोजगारों के बीच चैतन्यता लाएगा? क्या यह हमारे आत्मगौरव, स्वावलम्बन और स्वाभिमान को बढ़ाने वाला है? इसके द्वारा Ownership की अवधारणा को सम्बल मिलेगा क्या? ऐसे बहुत सारे प्रश्न हम सबके मन में आना स्वाभाविक ही है। क्योंकि आज भी स्वतंत्रता के 67 साल के बाद ऐसा लगता नहीं कि भारत का आत्म गौरव कहीं दिखता हो। आज भी अंग्रेजी के कुछ शब्द बोलकर, कुछ लिखकर, वैसा वस्त्र पहनकर, वैसा घर का परिचय दिलाकर हम गौरव प्राप्त करते दिखते हैं। तो यह विचार करना होगा कि ‘‘मेड बाई इण्डिया’’ आज हमारे बीच में व्याख्याता जो उस पर विचार रखने वाले है और ये हमें कौन सा रास्ता सुलझाएंगे मै तो केवल इतना ही ध्यान कराना चाहता हूँ कि सौभाग्य से इस 21वीं शताब्दी के दूसरे दशक में बढ़ रहे भारत को एक मौका पिछले कुछ महीनों से मिला है। इस तरह राष्ट्रीय नवजागरण की चेतना के प्रकाश ने भारत की पहचान पूरे विश्व में बढायी है। आज लोग भारत को समझना चाहते है, देखना चाहते है कि भारत कैसा है? इसकी मूल शक्ति क्या है? उसको खोजना है तो मेड बाई इण्डिया यहाँ की खनिज सम्पदा, यहाँ की उपजा ऊ जमीन, यहाँ के दुधारू पशु, यहाँ के कामगार और यहाँ के घरेलू उत्पाद को बढ़ाने वाला होगा क्या?
यह प्रश्न आपके मन में होगा, मेरे मन में भी हो सकता है, ऐसे बहुत सारे प्रश्न हमारे मन में उत्पन्न हो रहे होंगे और हम चाह रहे होंगे कि ये चिन्तन ठीक तरह से हो, लेकिन एक बात ध्यान करनी पड़ेगी की चमक को देखकर के चैतन्यता की समझ नहीं बनाई जा सकती, आज भारत का एक दूसरा चित्र भी है जो मैं आपके सामने रखता हूँ, मैे नहीं खोजा है, यह भारत के योजना आयोग और भारत की पिछली सरकार ने खोज करके रखा है कि आज भारत में बीस करोड़ लोगों को दो वक्त की रोटी नहीं मिलती। आज बीस प्रतिशत लोग योजना आयोग ने जितने भी रूपये निर्धारित किये है उसके भी नीचे बी.पी.एल. है। आज स्वतंत्रता के 67 साल बाद भी देश भर में लगभग 20 करोड़ लोग निरक्षर है। आज भारत के अन्दर से 8 से 10 करोड़ नौजवान बेरोजगार है... यह आज के भारत का एक चित्र है, अब इस चित्र में से हम कौन सा रास्ता खोजेंगे? तो मैं आपको एक छोटा सा उल्लेख महात्मा गाँधी को ध्यान कराता हूँ... गाँजी जी कहते है कि ‘‘स्वदेशी वह भावना है जो हमें दूरदराज के बजाय अपने आस-पास के परिवेश के ही उपयोग एवं सेवा की ओर ले जाती है। आर्थिक क्षेत्र में हमें निकट-पड़ौसियों द्वारा उत्पादित वस्तुओं का ही उपयोग चाहिए और यदि उन उद्योग धंधों में कोई कमी हो तो मुझे उन्हें ज्यादा सम्पूर्ण और सक्षम बनाकर उनकी सेवा करनी चाहिए। मुझे लगता है कि यदि ऐसे स्वदेशी को व्यवहार में उतारा जाए तो इससे स्वर्णयुग की अवधारणा हो सकती है।’’ लेकिन इस विचार को महात्मा गाँधी ने जब आज से लगभग 100 वर्ष पूर्व दिया तब भारत अपने स्वराज्य, स्वाभिमान और स्वावलम्बन के लिए तड़प् रहा था। फिर भी ‘‘स्वदेशी’’ का बोध स्वराज्य की मूल मंत्र था और ‘‘स्वदेशी’’ ही भारत के नायक लाल-बाल-पाल का उद्घोष भी था।
जब हम की परिस्थितियों का विचार करते है तब साफ-साफ दिखता है कि 20वीं सदी का पूर्वार्थ स्वदेशी उद्घोष, विचार एवं व्यवहार से गुंजायमान था। इस समय यह आवश्यक हो गया कि आज 21वीं सदी का पूर्वार्थं जिस आर्थिक स्वतंत्रता की लड़ाई विदेशी वस्तुओं और नीतियों के खिलाफ लड़ रहा है, उसमें स्वदेशी ही एक ऐसा मंत्र है, जो भारत के श्रम और उसकी प्रगति का वाहक बन गया है। नही ंतो जिस चमक के साथ विश्व की कम्पनियाँ भारत की ओर बढ़ रही है, उससे वह हमारे रम का पूरी तरह से उपयोग करेंगी और मुनाफा भी विदेशों में ले जाएँगी। जिससे प्रगति भारत की नहीं विदेशों की होगी। इस तरह सम्पूर्ण भारत श्रमिक भारत में परिवर्तित होता चला जायेगा। जिससे हमारी Ownership जो अीाी हमें दिख रही है वह क्षीण होती चली जायेगी और हम अपने स्वामित्व के आत्मविश्वास को भी खो देंगे। इस समय आवश्यक हो गया है कि युवा भारत को श्रमिक बनाने वाले अभियान से विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था आधारित प्रारूप की ओर बढ़ने का मार्ग सुझाया जाय। जिससे भारत के घरेलू उद्योग, कुटीर उद्योग और लघु उद्योग को बढ़ावा मिलेगा। जिसका मूलभूत ढाँचा स्वदेशी आधारित होगा और आस-पास की वस्तुएँ ही उत्पादन में सहायक होगी। इनसे रोजगार का सृजन होगा उसमें श्रम भी अपना होगा और भविष्य का स्वाम्वि भी। इस तरह जो उत्पादन होगा वह भारत का भारतीयों द्वारा बना होगा।
मैं समझता हूँ कि ‘‘मेड बाई इण्डिया’’ इसी विचार का आगे बढाने का एक मानक है। यह विचार कैसे दिखेगा? तो काशी में एक प्रयास कर रहे है कि आने वाले फरवरी मास में 14 फरवरी से 24 फरवरी के बीच में बेनियाबाग मैदान में ‘‘मेड बाई इण्डिया’’ की अवधारणा पर ‘‘स्वदेशी मेला’’ का आयोजन होगा। जिसमें घरेलू उद्योग, कुटीर उद्योग, लधु उद्योग तथा हस्तशिल्प और इस दिशा में शोध करने वाले लोगों को जगह मिलेगी जिससे उनकी ब्रांडिंग होगी। इस तरह उनका बाजार में जाकर अपने उत्पाद के बारे में कहने का उनका साहस बढ़ेगा। हम उनका विश्वास बढ़ाना चाहते है कि वे अपने उत्पाद के साथ बाजार में जगह बनायें और स्वावलम्बन के प्रतीक बनें। इस स्वावलम्बन के कत्र्तव्यबोध को जगाते हुए श्रद्धेय दतोपन्त जी कहते है - ‘‘जो स्वदेशी है, उसको केवल सेवा कार्य तक मत समझो, उसको केवल उपभोग तक मत समझो, उसको केवल जीवन के आयाम के इन छोटे पहलुओं तक मत सोचों, स्वदेशी इस देश का आत्म गौरव है, चैतन्यता है, प्रकाश हे और मानवता की सेवा करने का सबसे बड़ा माध्यम है।’’ मैं यही कहूँगा कि आज की यह गोष्ठी ‘‘मेड बाई इंडिया’’ के विचार की अवधारणा को जिस रास्ते पर लेकर के चलेगी, उस रास्ते का हमस ब मिलकर अनुकरण करेंगे।



मेड बाई इण्डिया
प्रो. भगवती प्रकाष शर्मा
स्वदेशी जागरण मंच
परम सम्मानित मा. दीनानाथ जी झुनझुनवाला, मान्यवर आद्या प्रसाद जी, मान्यवर जायसवाल जी, श्री अजय जी, डाॅ. यशोवर्धन जी और इस सभागार में उपस्थिति बंधुओं!
​विगत 23 वर्षों से देश में लागू आर्थिक सुधारों के नाम पर आयात उदारीकरण से देश का विदेश व्यापार घाटा बढ़ता गया व उत्पादक उद्योग बन्द होते गये और वहीं दूसरी ओर विदेश निवेश प्रोत्साहन से देश का उत्पादन तंत्र ही विदेशी नियन्त्रण में जाता चला जा रहा है। इसके परिणाम स्वरूप हमारी मुद्रा की कीमत जो 1991 में 18 रुपये प्रति डालर थी, वह गिर कर 62 रुपये प्रति डालर हो गयी। इस प्रकार आज अमेरिका की मुद्रा ‘डालर’ की कीमत हमारी मुद्रा ‘रूपये’ की तुलना में 62 गुनी है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि 1917 में पहला भारतीय रूपये का जो नोट छपा था उस समय 13 डाॅलर के बराबर एक भारतीय रुपया था और 1947 में जब हम स्वाधीन हुए, उस समय भी साढ़े तीन रुपये बराबर एक डाॅलर था, वहीं मनमोहन सिंह जी ने जब आर्थिक सुधार लागू किये तब 18 रुपये बराबर एक डाॅलर था और आज 62 रुपये बराबर एक डाॅलर है। क्रूड पैट्रोलियम का एक बैरल जो 85 डाॅलर प्रति बैरल है। यदि आज आजादी के समय की एक्सचेंज रेट होती तो आज एक बैरल के हमें मात्र 295 रूपये देने पड़ते, जिसके आज हमें 5270 रुपये देने पड़ रहे हैं। देश की सारी महँगाई जो है एक तरह से आज आयातित है, और हम अपने रुपये का जो अवमूल्यन करते रहे हैं उससे महँगाई बढ़ती रही है। दो-तीन बातें मैं प्रारम्भ में और कर लूंँ। मेरे पूर्व वक्ताओं ने भी काफी हमारे आर्थिक इतिहास की बात की है। इस संबंध में एक बात और जोड़ देना चाहता हूंँ कि एंगस मेडिसन एक ब्रिटिश इकोनाॅमिक हिस्टोरियन हुये हंै, उनकी पिछले साल मृत्यु हो गई, उनको ओ.ई.सी.डी. देशों के समूह जिसमें सारे औद्योगिक देश आते है, अर्थात अमेरिका, यूरोप जापान कोरिया आदि देशों के इस संगठन ‘आर्गेनाइजेशन फार इकोनाॅमिक कोआॅपरेशन एण्ड डेवलपमेंट कंट्रीज’ ने कहा कि वे दुनिया का 2000 साल का आर्थिक इतिहास लिखंे। इस पर उन्होंने वल्र्ड इकोनाॅमिक हिस्ट्री: ए मैलेनियम पर्सपेक्टिव लिखा और वह जो मैलेनियम पर्सपेक्टिव उन्होंने लिखा उसमें उन्होंने कहा कि सन् शून्य ए.डी. से लेकर 1700 एडी तक अर्थात ईसा के जन्म से सन् 1700 ईस्वी तक भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी। उनके अनुसार इस्वी सन् एक से 1000 ईस्वी तक भारत का दुनिया के जी.डी.पी. में 34 प्रतिशत हिस्सा या कन्ट्रीब्यूशन था। अमेरिका, यूरोप चीन सब पीछे थे। 1000 ईस्वी से 1500 ईस्वी के बीच विश्व के कुल उत्पादन में भारत का अंश 32 प्रतिशत था 1700 एडी में भी यह 24 प्रतिशत था। आज यदि हम देखें तो जब हम स्वाधीन हुए उस समय हमारा एक्सचेंज रेट के आधार पर विश्व के नामिनल जी.डी.पी. में योगदान 3.8 प्रतिशत था। मनमोहन सिंह जी ने जब आर्थिक सुधार लागू किये उस समय 3.2 प्रतिशत था और आज वो मात्र 2.5 प्रतिशत है। वल्र्ड जी.डी.पी. में हमारा अंश क्रय क्षमता साम्य (Purchasing power Parity) के आधार पर चाले 5 प्रतिशत अंष है, पर वह एक अलग अवधारणा है। उसे यहाँ छोड़ दीजिये, जो वल्र्ड का नामिनल जी.डी.पी है उसमें हमारी एक्सचेंज रेट के आधार पर यह हमारी स्थिति है। हम दुनिया की 16.5 प्रतिशत जनसंख्या है लेकिन विश्व के जी.डी.पी. में हमारा कुल योगदान 2.5 प्रतिशत है हमारे पूर्व इतिहास पर और भी दृष्टि डाले तो अभी तमिलनाडु में कोडुमनाल नाम के स्थान पर एक उत्खनन हुआ है। पिछले 20-22 वर्षों में वहा पर एक पुरानी औद्योगिक नगरी निकली है। उस औद्योगिक नगरी में स्टील बनाने के कारखाने भी निकले हैं, वस्त्र बनाने के कारखाने भी निकले है, वहाँ पुरातात्विक उत्खनन में रत्नों के संवर्धन के भी उद्यम निकले हैं और वहाँ पर विट्रीफाइड क्रुसीबल्स भी निकले हैं। स्टील बनाने के लिए वे क्रुसीबल्स जो निकले हैं वे विट्रीफाइड है हम कहते हैं कि अभी जो ये विट्रीफिकेशन वाली टाइलें आती है वे, यूरो विट्रीफाइड टाइलें यूरोप में विकसित हुयी हैं, यूरोप में पहली बार विट्रीफिकेशन का अभी विकास हुआ है। लेकिन, हमारे यहाँ वो तेइस सौ साल पुराने विट्रीफाइड क्रुसिबल्स निकले हैं अर्थात् हम उस समय विट्रीफिकेशन करते थे। वहाँ पर इजिप्ट के सिक्के भी निकले हैं तो रोम व थाईलैण्ड के भी सिक्के निकले हैं। अर्थात् तब हम अपने औद्योगिक उत्पाद विश्व भर में निर्यात करते थे। इसलिये वल्र्ड जी.डी.पी. में हमारा उच्च योगदान था, लेकिन, आज हम कहाँ है? पिछले साल अर्थात् 2013-14 में हमारी मेन्यूफेक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ रेट (वार्षिक वृद्धि दर) ऋणात्मक अर्थात् नेगेटिव हो गई थी, ऐसा पहली बार हुआ आजादी के बाद 1950 के दशक में भी हमारी मैन्यूफेक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ रेट 5.9 प्रतिशत थी साठ के दशक में दो युद्ध होने के बाद भी हमारी मैन्यूफेक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ रेट 5.6 प्रतिशत थी और 1990-91 में जिस समय हमें बैंक आॅफ इंग्लैण्ड के पास सोना गिरवी रखना पड़ा था। उस समय भी हमारे मैन्युफेक्चरिंग सेक्टर की वृद्धि दर (ग्रोथ रेट) 4.5 प्रतिशत थी। हमारे आजादी के बाद के इतिहास मंे यह 4.5 प्रतिशत से नीचे कभी नहीं गई। लेकिन, 2012-13 हमारी उत्पादक उद्योगों की यह उत्पादन वृद्धि दर गिरकर 1.91 प्रतिशत और 2013-14 में ऋणात्मक या नेगेटिव हो गई। आज देश के पास सर्वाधिक युवा शक्ति हैं, और जो मेन्यूफेक्चरिंग सेक्टर है वहीं रोजगार का मुख्य आधार होता है उस रोजगार से प्राप्त आय से ही सब लोग बाजार में माल खरीदते है इससे और इन्वेस्टमेन्ट होता है और पुनः उत्पादन बढ़ता है और विकास का चक्र गतिमान होता है। उससे ही देश व स्वतः स्फूर्त विकास की दिशा में आगे जा सकता है। इसलिए देश का मैन्यूफेक्चरिंग सेक्टर स्वस्थ हो यह आवश्यक है। देश में उत्पादक उद्योगों के हृास के कारण ही आज हम देखे तो देश के विदेश व्यापार में 150 अरब डाॅलर का घाटा है। आज हम सब प्रकार के उच्च प्रौद्योगिकी आधारित उत्पादों के मामले में आयातों पर निर्भर हो गये हैं। हमको लगता है कि आज टेलीकाॅम में हमने बहुत प्रगति की है। सब की जेब में एक सेलफोन वह भी स्मार्ट फोन है। लेकिन, उसमें जो प्रौद्योगिकी है, उसमें हम कहीं नहीं। दूरसंचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हम पूरी तरह बाहरी देशों पर अवलम्बित हो गये है। हमारा वैल्यू एडिशन क्या है? फस्र्ट जनरेशन आॅफ टैलीकाॅम टेक्नाॅलोजी में हम किसी से पीछे नहीं थे। हमारे सी.डाॅट के विकसित टेलीफोन के इलेक्ट्रोनिक एक्सचेंज बहुत उत्तम थे। वे 80,000 लाइनों वाले एक्सचेंज मोटोरोला, अमेरिकन कम्पनी और सीमेन्स (जर्मन कम्पनी) की तुलना में कुछ माइने में इनसे भी बेहतर टेलीफोन एक्सचेंज विकसित कर लिए थे। तब फिक्स्ड लाइन के समय राजीव गाँधी और सेैम पित्रोदा दोनों ही यह नहीं सोच पाये कि दुनिया में सेकेण्ड जनरेशन टेलीकाॅम टेक्नालाॅजी अर्थात् मोबाइल टेलीफोनी पर रिसर्च हो रही है अगर हमने उस समय उस पैसे का कुछ हिस्सा सेकेण्ड जनरेशन (2 जी) टेक्नालाॅजी पर खर्च किया होता तो मोबाईल टेलीफाॅनी में भी हम फस्र्ट जनरेशन टंेलीकाॅम टेक्नोलाॅजी की तरह ही दुनिया में विश्व स्तरीय प्रौद्योगिकी विकसित कर सकते थे। लेकिन, उस दिशा में हमने तब काम ही नहीं प्रारम्भ किया। चीन ने बाद में बहुत कोशिश की कि, वह थर्ड जनरेशन (3 जी) टेलीकाॅम टेक्नालाॅजी के विकास में यूरो-अमेरिकी कम्पनियों को पीछे छोड़ दे मगर वह कर नहीं पाया। उसने पैसा पानी की तरह बहाया। लेकिन, फिर उसने और भी ज्यादा राशि चैथी पीढ़ी अर्थात् फोर्थ जनरेशन (4 जी) पर अनुसंधान (आर एण्ड डी) पर खर्च किया और इसलिये फोर्थ जनरेशन टेलीकोम टैक्नोलाॅजी उसने यूरो-अमेरिकी देशों की कम्पनियों से भी जल्दी विकसित कर ली। आज हम तो सेकेण्ड जनरेशन टेलीकोम टैक्नोलाॅजी, थर्ड जनरेशन टेलीकोम टैक्नोलाॅजी और फोर्थ जनरेशन टेलीकोम टैक्नोलाॅजी, सभी में पूरी तरह से चीन पर अवलम्बित हैं।
अब दूसरी और यदि बात करें इलेक्ट्रानिक उत्पादों की तो आज इलेक्ट्रानिक उत्पादों (प्रोडक्ट) में भी यही स्थिति हो गई है। पेट्रोलियम के बाद दूसरा सर्वाधिक आयात का मद है इलेक्ट्रानिक उत्पाद। ऐसा भी अनुमान है कि 2017 के आते-आते हमारा पेट्रोलियम का इम्पोर्ट भी इलेक्ट्रोनिक उत्पादों के आयातों से पीछे रह जायेगा और इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट में हमारे इम्पोर्ट और ज्यादा बढ़ जायेंगे। इलेक्ट्रॉनिक में हम आज कुछ ज्यादा उत्पादन करने की स्थिति में नहीं है और इसलिए आज जितने इंजीनियरिंग कालेज है, वहाँ विद्यार्थी भी इलेक्ट्रानिक्स लेने में हिचकते हैं वे देखते हैं कि इसमें हमारा भविष्य नहीं है क्योंकि देश में मेन्यूफैक्चरिंग नहीं है तो कम्पनियाँ हायरिंग अर्थात् नौकरी देने के लिए नहीं जाती, हायरिंग के लिए नहीं जाती, तो विद्यार्थी देखते हैं कि इलेक्ट्रानिक्स लेकर क्या करेंगे, आगे कैरियर नहीं है और इसलिये जब हमारे पास इलेक्ट्रानिक के फील्ड में प्रतिभा नहीं होगी, तो क्या हम आने वाले पाँच या दस वर्षों में भी इलेक्ट्रानिक उत्पादों के उत्पादन के फील्ड में अपना कोई स्थान बना पायेंगे? पावर प्लांटस के डेवलपमेन्ट में हमारी काफी कुछ ठीक स्थिति थी। विदेशों में भी कई जगह हम अपने पावरप्लांट सप्लाई भी करते थे। आज स्थिति इसमें भी यह है कि जो दो तरीके के पावरप्लांट हैं- एक सुपर क्रिटिकल टेक्नोलॉजी आधारित पावरप्लांट, जहाँ पावर जनरेशन की लागत आधी आती है, कोयला कम जलता है प्रदूषण कम फैलता है। दूसरा प्रकार है सब-क्रिटिकल पावर प्लांट, जिसमें कोयला ज्यादा जलता है, प्रदूषण ज्यादा फैलता है, और जनरेशन लागत ज्यादा आती है। आज एक भी सुपर क्रिटिकल पावर प्लांट का आर्डर भेल, या एल.एण्ड.टी. जैसी हिन्दुस्तानी कम्पनियों के पास नहीं है, जो अभी उनके पास 24000 मेगा वाट के पावर प्लांट बनाने के काम मिल हुये हंै, वे सारे के सारे पुराने पड़ चुके है। सब-क्रिटिकल पाॅवर प्लाण्ट््स है। देश के सोर के सारे आधुनिक व सुपर क्रिटिकल पावर प्लांट्स के आर्डर केवल और केवल चाइनीज कम्पनियों के पास हैं और भारतीय कम्पनियों की तुलना में अधिकतम 36000 मेगावाट के पावर प्लांट्स के आर्डर चाइनीज कम्पनियों के पास हैं। आज जब हमारी पावरप्लांट बनाने वाली कम्पनियों के पास में एक भी आर्डर सुपर क्रिटिकल पावर प्लांट के लिए नहीं है तो आने वाले 20 वर्षों के लिए हम सुपर क्रिटिकल पावर प्लांट के क्षेत्र में भी चीन पर अवलम्बित हो जायेंगे। अब सवाल यह उठता है कि अगर हमारे पावर प्लांट हम देश में नहीं बना रहे हैं तो देश में संबंधित सहायक उद्योग व कम्पानेण्ट सेक्टर, उसमें विकसित होने वाले रोजगार और उनके धन के बहुत हस्तान्तरण से होने वाली उसकी दस गुनी आय के लाभ से भी हम वंचित रह जायेंगे। एक पावर प्लांट बनता है भेल एन.एल.टी. या किसी कम्पनी में तो उसकी जो कम्पोनेन्ट सेक्टर की कम्पनियाँ है, जिनको हम सहायक उद्योग कहते हैं उनको बड़ी मात्रा में काम मिलता है। इससे एक से दो हजार तक सहायक उद्योगों को काम मिलता है। एक पावर प्लांट देश में बनता है तो उससे अनेक बनता है, तो उसके में उनको एनामल्ड वायर चाहिए, तो वायर एनामलिंग की 200 कम्पनियाँ खड़ी होती है, वायर एनामलिंग वाला अगर कॉपर वायर खरीदेगा, तो वायर ड्राइंग मशीन वाली 200 कम्पनियां खड़ी होती है, इस तरह 1000-1200 सहायक उद्योगों का कम्पोनेन्ट सेक्टर खड़ा होता है। उसके कारण खास करके इस प्रकार के मल्टीप्लायर इम्पैक्ट से देश में ही पावर प्लाॅण्ट निर्माण होने पर कम्पोनेन्ट सेक्टर में 1000-1200 सहायक उद्योग चलते हैं, 7-8 गुणा रोजगार सृजित होता है और 8-10 गुना कारोबार विस्तार होता है। इसे समझाने के लिये मैं बिल्कुल एक गाँव का उदाहरण लेता हूँ कम्पोनेन्ट सेक्टर में गुणन प्रभाव से रोजगार व कारोबार विस्तार इसी से समझ आ जायेगा यथा, यदि गाँव के किसी व्यक्ति ने 200 रुपये का जूता वहाँ के मोची से खरीदा तो 100-100 रुपये के दो नोट उस मोची की जेब में चले गये, उस मोची ने गाँव के लोहार से जूता बनाने का औजार 200 रूपये का खरीदा तो वे ही 100-100 रुपये के दो ही नोट उस लोहार के पास चले जाते है। लोहार अगर दर्जी से 200 रुपये से कपड़े सिलवाता है तो वे ही 100-100 के दो नोट उसके पास चले जाते हैं और दर्जी अगर किसान से 200 रूपये के उत्पाद खरीदता है तो वे 100-100 रूपये के दो नोट उसके पास चले जाते हैं। ऐसे यदि तहसील, तालुका या गाँव में वह 100-100 रुपये के केवल दो नोट वहाँ पचास लोगों के बीच में घूम जाते हैं तो 10,000 रुपये की आय सृजित होती है और वही अगर हमने बाटा का जूता पहन लिया तो बाटा इण्डिया लिमिटेड, इंग्लैण्ड की कम्पनी है। और वे 200 रुपये अगर इंग्लैण्ड चले गये तो एक प्रकार से वह मल्टीप्लायर इम्पैक्ट से 200 रुपये से उस तहसील में 10,000 रुपये की आय और 50 लोगों को योगक्षम मिल सकता था वह 200 रूपये की राशि बाहर चली जाती है। ठीक इसी प्रकार अगर पावर प्लांट चीनी कम्पनियाँ सप्लाई करती है तो यह जो कम्पोनेन्ट सेक्टर का विकास होता, वह चीन में होगा। यदि रूपये 1000 करोड़ के पावरप्लांट के आर्डर किसी भारतीय उत्पादक के पास है और वह कम्पोनेन्ट की सोर्सिंग अगर अपने देश से करता हैं तो मेड बाई इण्डिया के गुणन (multiplier) प्रभाव से कम से कम 20 हजार करोड़ रूपये व अधिकतम 50 हजार करोड़ रुपये का डाउन दि लाइन रोजगार व कारोबार विस्तार होता है, फ्लो आॅफ फण्ड नीचे तक जाता हैं और पावर प्लांट बाहर से आ जाते है, यदि चीनी व विदेशी कम्पनियों को ‘मेक इन इण्डिया’ का निमंत्रण देकर विदेशी निवेश बुलाया जाता है तो वे सारा साज सामान बाहर से लाकर, यहाँ पर केवल पाॅवर प्लांट या अन्य वस्तुओं को एसेम्बल मात्र करेंगे। पिछले 23 वर्षों में यही हुआ है। हमारे पहले से चले आ रहे उत्पादक उद्योग भी बदल गए है। विदेशी कम्पनियां अपने वैश्विक श्रम विभाजन के सिद्धान्त पर बाहर से हिस्से पुर्जे ला कर यहाँ पर केवल उन्हें जोड़ने या एसेम्बल करने का ही काम करती हैं। इससे टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट भी वहाँ पर ही होता है और हम एक प्रकार से पूरी तरह से उन पर अवलम्बित हो जाते हैं। आज इसलिए विदेशी निवेश सवर्द्धन के कारण हम केवल असेम्बली लाइन्स के देश रह गए हैं। एसेम्बली लाइन्स के देश किस प्रकार से रह गए हैं। मैं थोड़ा स्पष्ट कर दूँ। सारे रेफ्रीजरेटर 1995-96 तक हम लोग बनाते थे, केलविनेटर सबसे ज्यादा बिकता था। व्हर्लपूल अमेरिका से आयी उसने केलविनेटर आफ इण्डिया लिमिटेड खरीद ली और नाम कर लिया व्हर्लपूल, तो ए.बी. इलेक्ट्रानिक्स स्वीडन से आयी उसने व्हर्लपूल से केलविनेटर नाम खरीद लिया, बिरला से उसने ऑलविन खरीद ली उसने महाराजा इन्टरनेशनल भी खरीद ली। और इस तरह अपने देश के रेफ्रीजरेटर के उद्योग के दो तिहाई पर विदेशी नियंत्रण हो गया जिससे रेफ्रिजरेटर बनता था उसके कच्चे माल से रेफ्रीजरेटर तक सारी चीजे देश में बनती थीं। अब जब व्हर्लपूल आ गई तो उसने कहा कि वी वुल्ड बी सोर्सिंग ए बेटर कम्प्रेशर प्रहृाम अवर ओन सब्सीडियटी इन यूनाइटेड स्टेटस और उन्होंने मिनी कम्प्रेशर जिसमंे कि रेफ्रीजरेटर बनाने में जो मेन टेक्नोलॉजी लगती है वो तो मिनी कम्प्रेशर अमेरिका में लाना शुरू कर दिया बाकी तो अलमारी का एक ढाँचा है। व्हर्लपूल ने जब रेफ्रीजरेटर का मिनी कम्प्रेशर अमेरिका से लाना शुरू किया। तो एक पुर्तगाल की कम्पनी टैकामेश आयी और उसने व्हर्लपूल को प्रस्ताव दिया कि तुम ये मिनी कम्प्रेशर नहीं बनाते हो, यह मिनी कम्प्रेशर प्लांट तुम मुझे बेच दो, तब वह उसने उन्हें बेच दिया। फिर श्रीराम इंस्ट्रीयल इंजीनियरिंग लिमिटेड जो देश की दूसरी मिनी कम्प्रेशर बनाने वाली कम्पनी थी उसका भी मिनी कम्प्रेसर बनाने वाला संयंत्र उसने खरीद लिया। इससे इण्डिया की मिनी कम्प्रेशर बनाने की मोनोपोली या एकाधिकार टैकोमेश उस पुर्तगाली कम्पनी के पास चली गई। तब उसने ने भी मिनी कम्प्रसेर के हिस्से बाहर से लाकर यहांँ असम्बेल करना आरंभ कर दिया। देश मिनी कम्प्रसेर के उत्पादक से ऐसेम्बल कर्ता रह गया। देश में मिनी कम्प्रसेर एसेम्बल करने के लिये वह सिलिण्डर कहीं से लाती है। पिस्टर्न कहीं एक देश से लाती है, वाल्व कहंी और से लाती है आज जैसे बी.एम.डब्लू. कार है पूरी दुनिया में जितनी बी.एम.डब्लू. कारें बनती है, उसके हार्न हिन्दुस्तान में बनते हैं और बाकी सारे पार्ट बाहर से आकर असेम्बल होते हैं।
स्वाधीनता के समय भी हम इतने परावलम्बित नहीं थे। साबुन से लेकर स्पात (steel) तक सभी क्षेत्रों में हम प्रौद्योगिकी सम्पन्न थे। स्टील उद्योग मे टाटा स्टील या टिस्को कम्पनी भी थी, गोदरेज सोप या टाटा आइल मिल्स भी थी, जो साबुन बनाती थी और टिस्को जैसे स्टील उत्पादक भी देश में थे। तब हमारे नेताओं और सरकार ने कहा समाजवाद लायेंगे और समाजवाद के नाम पर चालीस के करीब इंडस्ट्रीज हमने पब्लिक सेक्टर के लिए रिजर्व कर दी। अइरन और स्टील बिरला के एक लाइसेन्स के लिये की दो पीढ़ी निकल गई हमने कहा प्राइवेट सेक्टर पर नया लाइसेंस नहीं देंगे। पहले यह स्थापित इनसिस्टेंट स्टील मैन्यूफेक्चरर को भी कैपासिटी एक्सपान्शन की परमिशन नहीं देंगे। कच्चा लोहा अर्थात् ;पतवद वतमद्ध देश में बहुत थी। हम कच्चा लोहा ;पतवद वतमद्ध निर्यात करते और और लोहा व स्पात आयात कराते। उदाहरणार्थ हम जापान की निप्पाॅन कम्पनी को कच्चा खनिज निर्यात करते, वह वहां पर जापान में उससे लोहा व स्पात बना कर हमें बेचती, उससे रोजगार जापान में मिलता, उत्पाद शुल्क का राजस्व जापान की सरकार को मिलता और प्रौद्योगिकी इनकी विकसित होती। वर्ष 1947 से 1981 तक 30,000 करोड़ रुपये का लोहा व स्पात इम्पोर्ट करना पड़ा। तब तक देश पर विदेशी कर्ज केवल 18,000 करोड़ रुपये का ही था। अगर हमने आइरन व स्टील की देश में उत्पादन की छूट दी होती तो हमारे पास 12,000 करोड़ रुपये का उस समय फॉरन एक्सचेंज सरप्लस होता। हम कर्जदार होने के बजाय देश में टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट करते। समाजवाद के नाम पर देश में उद्यम स्थापना को बाधित करने में नेहरू - इन्दिरा गाँधी युग में सभी प्रयत्न कियेगये थे। इसलिये 1948 व 1956 के औद्योगिक नीति प्रस्तावों में 40 के लगभग उद्योगों को सार्वजनिक क्षेत्र के लिये आरक्षित करने के अतिरिक्त दूसरा हमने शेष वर्गों में भी इण्डस्ट्रीज (डेवलपमेण्ट एण्ड रेगुलेशन्स) एक्ट 1951 के अधीन उद्योग लगाने के लिये औद्योगिक लाइसेन्स अनिवार्य कर दिया। इसलिये तब कोई भी उद्योग लगाने के लिए लाइसेन्स जरूरी होता था। और सरकार लाइसेंस बहुत कम देती थी और देती भी थी तो बहुत कम क्षमता के देती थी, उससे ज्यादा कोई उत्पादन कर लेता तो पेनालिटी लगती थी। इसलिये देश में शक्कर, सीमेन्ट, स्कूटर, कार ट्रेक्टर, स्पात से लेकर हर चीज थी। 10-10 साल की अग्रिम बुकिंग करानी पड़ती थी, पर सरकार समाजवादी नीतियों के नाम पर नये लाइसेंस नहीं देती थी। स्वाधीनता के 40 वर्षों तक देश के उद्योगों को घरेलू माँग, जतने उत्पादन की भी छूट नहीं थी। इसलिये वे निर्यात की तो साथ ही नहीं सकते थे। हाइएस्ट रेट आफ इनकम टैक्स 70 के दशक में 97.3 प्रतिशत थी। क्या आय पर 97.3 प्रतिशत टेक्स देना सम्भव हो सकता है? अब आदमी अगर अपनी इनकम को सही डिक्लेयर करता था, तो 97.3 प्रतिशत इनकम टैक्स में चला जाता और नहीं डिक्लेयर करता तो उसकी वह आय काला धन बन जाती है कैपिटल फॉरमेशन हमने नहीं होने दिया, केवल काले धन के सृजन का मार्ग तय किया। अस्सी के दशक तक मरने वाले की सम्पत्ति पर जो मृत्यु कर लगता था, उसकी आय से ज्यादा उसकी वसूली पर व्यय होता था। उस समय की ऐसे बहुत सी विसंगतियाँ थीं। मैं बहुत गहराई में अभी समय सीमा के कारण नहीं जाऊँगा। देश में 44 वर्षों तक उद्यमों को हमने विकसित नहीं होने दिया और 1991 में अचानक कह दिया कि अब देश के उद्यमों को विदेशी स्पर्धा के लिए तैयार हो जाना चाहिए। जिस दिन भारत में उद्योग स्थापना के अनिवार्य औद्योगिक लाइसेन्स वाले कानून इण्डस्ट्रीज डेवलपमेंट एण्ड रेगुलेशन्स एक्ट को समाप्त किया, जिस दिन हमने पब्लिक सेक्टर के लिए रिजरवेशन काफी कुछ कम किए, जिस दिन हमने एकाधिकार व प्रतिबन्धात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम को समाप्त कर देश के उद्यमियों को स्वतंत्र किया, उसी दि नही हमने अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष व विश्व बैंक के दबाव में आयात व विदेशी निवेश संवर्द्धन प्रारम्भ कर दिया। अगर हमने चार पाँच साल के लिए इंटरनल लिब्रलाइजेशन करके और भारतीय उद्यमियों को अपनी स्पर्धा क्षमता ठीक करने का अवसर दिया होता तो जो हमारे उद्योग उद्यम बन्दी या विदेशी अधिग्रहण (टेकओवर) के शिकार हुए वो नहीं होते। अब चूँकि पहले हमने अपने देश में उद्योग लगने नहीं दिये, हर चीज का अभाव था। टाटा की दो पीढ़ी कार उत्पादन के लाइसेन्स के लिये व बिरला समूह की 2 पीढ़ी स्पात उत्पादन का लाइसेन्स मांगती रह गयी, हम आयात आश्रित रह गये उसके बाद 1991 में विदेशी निवेश खोलकर हमने व आयात खुले कर अचानक फॉरेन कम्पटीशन इनवाइट कर लिया। 1991 में हमने सभी जगह के आयात खुले कर दिये। फॉरेन डायरेक्ट इनवेस्टमेन्ट की संवर्धन की नीति अपना ली और उसके कारण देश का समग्र
देश में शीतल पेय से सीमेण्ट तक व जूते के पाॅलिश से लेकर टी.वी., फ्रिज तक अधिकांश उत्पादन विदेशी कम्पनियाँ बना रही है। वर्ष 1991 से जो विदेशी उत्पादकों को विदेशी निवेश के बदले जो विदेशी निवेशकों को ‘देश में उत्पादन’ (डंाम पद प्दकपं) के निमन्त्रण नीति चल रही है। उससे प्रश्न यह खड़ा होता है कि देश के उत्पादन के साधनों पर 5 वर्ष बाद किसका नियन्त्रण होगा। हम भारतीयों का या विदेशी निवेशकों का? हमारा 80-85 प्रतिशत जूते का पाॅलिश एक अमेरिकी कम्पनी हमारे ही देश में बना कर बेच रही है। सारे शीतल पेय दो अमरीकी कम्पनियाँ बना रही हैं। दो तिहाई स्कूटर विदेशी और दो तिहाई सीमेण्ट देश में विदेशी कम्पनियाँ ही बना रही है। वर्ष 1991 से विदेशी निवेश से ‘मेक इन इण्डिया’ की जो सुविधा विदेशियों को मिल रही है, वह उधार की कोख (surrogate Mothers) की सुविधा जैसा ही है। बाजार हमारा, श्रम शक्ति हमारी पर लाभ उनका, स्वामित्व उनका और नियन्त्रण उनका।
उत्पादन तंत्र का दो तिहाई आज विदेशियों के नियंत्रण में चला गया। उदाहरण के लिए हमारे देश में साफ्ट ड्रिंक्स के करीब पचास-साठ ब्रांड्स विभु, सुनौला, थम्स अप, लिम्का, कैम्पा कोला बहुत सारे पूरे देश भर में अनेक ब्रांड थे और अब दो विदेशी ब्राण्ड ही बच गये सारी साफ्ट ड्रिंक्स कम्पनियाँ या तो बंद हो गई या विदेशियों द्वारा अधिग्रहीत (टेकओवर) कर ली गई। जैसे पारले प्रोडक्ट का साफ्ट ड्रिंक का जो 600 करोड़ रुपये वार्षिक का साफ्ट ड्रिंक्स का व्यवसाय था, वह कारोबार कोको कोला ने अधिग्रहित (टेकओवर) किया। पार्ले प्रोडक्ट्स के शीतल पेय व्यवसाय के अधिग्रहण की इस कहानी को बताने से थोड़ा सा समय ज्यादा लगेगा। लेकिन, इससे यह स्पष्ट होगा कि भारत में उत्पादन के नाम पर 1990 के दशक में चलते हुये उद्यमों को अधिग्रहीत करने का षड़यंत्र था। कान्सपिरेन्सी किस तरह की होती रही है। जब कोका कोला कम्पनी आई तो उसमें सबसे पहले पारले प्रोडक्ट्स लगेगा थम्स अप लिम्का के बॉटल बाजार से गायब होनी शुरू हो गयी। दुकानदारों को पार्ले के ब्राण्डों के खाली क्रेट के बदले कोका कोला के भरे क्रेट मिलने लग गये।
उस समय शीतल पेय काँच की बोतलों में आता था जो बॉटल मेन्यूफेक्चरर था। पारले प्रोडक्ट्स के बाॅटल निर्माता को भी अनुबन्धित कर लिया कि हम तुमसे इतनी बोतल खरीदेंगे शर्त यह है कि इस अवधि में तुम किसी दूसरे के लिए बोतल नहीं बनाओगे। अब पार्ले प्रबन्धन को लगा कि हमारी बोतल मार्केट से वापस री-सरकुलेट होकर नहीं आ रही है कि उनको धोकर वापस भरें, तब अपने मेन्युफेक्चरर को कहा कि इतनी बोतल बना दो तो उसने कहा नहीं अब तो मैं टाई-अप हूँ, मैं नहीं करूँगा। इसके अतिरिक्त हाइवे पर व अन्यत्र रेस्टोरेण्टों को भी अनुबन्धित कर लिया कि जैसे मान लो बनारस से दिल्ली तक हाइवे पर आपने उस समय देखा होगा कि जो ढाँबे वाले या रेस्टोरेंट वाले होते थे उनको एक छोटा फ्रिज मुफ्त देती थी कम्पनी और कहती थी अपना पूरा परिसर हमारे ब्राण्ड के नाम से पेंट करवा लो और एक या दो साल तक किसी दूसरे का साफ्ट ड्रिंक नहीं रखना तो यह फ्रिज मुफ्त देंगे यानी कि बाजार पर अपना एकाधिकार करना। जैसा मैंने पूर्व में कहा कि हमारे यहाँ इनकम टैक्स रेट बहुत ऊंची थी, पूंजी निर्माण कठिन था। किसी भी कम्पनी का सार्वजनिक निर्गम (Public Issue of Shares) आता तो पूंजी निर्गमन नियन्त्रक अनुमोदन आवश्यक था। इसलिये हिन्दुस्तान में किसी भी कम्पनी में प्रवर्तकों (Promoters) के शेयर 10-20 प्रतिशत ही होते थे। 40 प्रतिशत के करीब शेयर्स फाइनेन्शियल इन्स्टीट्यूूशन्स के पास होते थे। उन दिनों ऐसे भी समाचार थे कि शेयर बाजार से पार्ले के शेयर कुछ कोका कोला कम्पनी ने खरीदने प्रारम्भ किये थे। इसलिये पार्ले के मालिकों को लगा कि कहीं ऐसा ना हो कि वो 10-12 प्रतिशत शेयर स्टाक मार्केट से खरीद कर उसका हास्टाइल टेकओवर (बलात अधिग्रहण) न हो जाए। ऐसे में पार्ले कम्पनी पूरी हाथ से निकल सकती थी, इसलिए 600 करोड़ के टर्नओवर वाली कम्पनी जिसके थम्स अप, लिम्का जैसे अत्यन्त लोकप्रिय ब्राण्ड थे बिक गयी। इस तरह से पिछले दिनों एफ.डी.आई. को खोलने से देश के एक कर उद्योग विदेशी स्वामित्व में गये हैं। अब तक देश के वे ही उत्पाद भारतीय उद्यम बनाते थे, वे अब भारत में विदेशी उद्यम बना रहे हैं। सीमेण्ट का ही उदाहरण लें। 1998 तक देश का सारा सीमेण्ट भारतीय उद्यम बनाते थे। आज देश का आधे से अधिक, लगभग दो तिहाई सीमेण्ट छः यूरोपीय कम्पनियों के नियन्त्रण में चला गया है, वे हमारे सीमेण्ट को ‘मेक इन इण्डिया’ कर रही है। सीमेण्ट उद्योग अधिग्रहण का एक रोचक उदाहरण है। इसी उदाहरण से मुझे याद आ रहा है कि अमेरिका और कनाडा में 90 के दशक में खूब कन्स्ट्रक्शन होते थे। जैसे आजकल हमारे यहाँ हो रहे हैं। मल्टीप्लेक्स और बहुत मल्टीस्टोरी बिल्डिंग और हाइवेज, तो सीमेन्ट, वहाँ उत्तरी अमेरिका में एक उदीयमान उद्योग अर्थात् एक सनराइज इण्डस्ट्री बन गया यूरोप के बड़े सीमेन्ट के बड़े कारखाने अर्थात सीमेण्ट मेजरस, ने उत्तरी अमेरिका में अर्थात्् संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में सस्ती सीमेन्ट की डम्पिंग यूरोप से शुरू की। वहाँ की सीमेन्ट इण्डस्ट्री को टेकओवर करने के लिए और वहाँ पर जब सस्ती सीमेन्ट बिकने लगी, तब वहाँ के सीमेन्ट के कारखाने वालों ने हाथ खड़े करने शुरू कर दिये, वो कारखाने बिके, उन्हें बड़े यूरोपीय सीमेण्ट उत्पादकों ने अधिग्रहीत किया। नब्बे के दशक में पूर्वी यूरोप में व मध्य 90 के दशक में लेटिन अमेरिका में और 1997 से दक्षिण पूर्वी एशिया में इन्हीं बडे यूरोपीय सीमेण्ट उत्पादकों ने सस्ती सीमेण्ट की डम्पिंग कर सीमेण्ट उत्पादन का अधिग्रहण किया। दक्षिण पूर्वी एशिया से इनहीं यूरोपीय सीमेण्ट उत्पादकों ने भारत में सस्ती सीमेण्ट की डम्पिंग शुरू की थी। यहाँ मेरी आयु के जो लोग है, उनको अच्छी तरह से याद होगा। कोरिया की सीमेन्ट उस समय में 98-99 या 2000-2001 में बहुत सस्ती, इस देश में बिकती थी, वो यूरोपीय कम्पनियों ने यहाँ की सीमेन्ट कम्पनियों को रुग्ण करने के लिए यह काम किया था। सबसे पहले टाटा ने हाथ खड़े किये, टिस्को के सीमेन्ट प्लांट बिके, फ्रेंच कम्पनी लाफार्ज ने खरीदे। टाटा समूह दूसरी बार पुनः दबाव में आया। ए.सी.सी. जो हिन्दुस्तान का सबसे बड़ा सीमेन्ट ग्रुप था, देश की 20 प्रतिशत सीमेन्ट मैन्यूफेक्चरिंग पूरे देश में ए.सी.सी. के कारखानों के पास थी, वो बिकी, उसको हाॅलसिम में एक स्विस कम्पनी ने खरीद लिया। थोड़ा मजाक के नाते ये भी सुन लीजिये कि स्वीटजरलैण्ड कितना बड़ा है, हमारे अक्साई चिन से थोड़ा बड़ा है, जो जवाहर लाल नेहरू की लापरवाही से चीन ने हमसे छीन लिया था। कुल 38,000 वर्ग किलोमीटर का अक्साईचीन है, और 41,000 वर्ग किलोमीटर क्षैत्रफल का स्वीटजरलैण्ड का है। उसके बाद में गुजरात अबूंजा बिकी, उसको भी होल्सिम ने खरीद लिया। अब होल्सिम और लाफार्ज दोनों यूरोपीय कम्पनियाँ मिल कर एक हो गई, फिर इसी तरीके से कई कारखाने हैडरबर्ग व इटालिसीमेन्टी जैसी अन्य छः यूरोपीय सीमेण्ट उत्पादकों ने देश भर में सीमेन्ट के कारखानों को अधिग्रहण किया। जो सीमेण्ट भारतीय उद्यम बनाते थे, त बवह मेड बाई इण्डिया था अब वह मेड बाई इण्डिया विदेशी यूरोपीय कम्पनियाँ नाम मात्र के निवेश से हमारे यहाँ वे बना रही है। कई कारखाने बन्द भी हो गये और बड़े कारखाने विदेशियों द्वारा ले लिये गये। आज की तारीख में देश का लगभग दो तिहाई के, आस-पास सीमेण्ट देश में विदेशी कम्पनियाँ बना रही हैं। यह लगभग मेक इन इण्डिया ही होता जा रहा हैं। जो सन् 2000 के पहले शत प्रतिशत हिन्दुस्तानियों के पास था और अब नाम तो गुजरात अम्बूजा है। लेकिन होलसिम ने ले लिया, वो उसकी ब्रांड रायलटी स्विटजरलैण्ड भेजता है उसकी टेक्नोलॉजी भी इण्डिया में विकसित हुयी है और उसका ब्रांड भी भारत में विकसित हुआ है और उसकी रायल्टी व लाभ विदेश में जाते हैं, चूने का पत्थर हमारा सीमेण्ट हमारी जन शक्ति बनाती है यानी कि उसमे मैंनेजिंग डायरेक्टर से लेकर श्रमिक तक जो सारे लोग काम करते हैं वे सब हिन्दुस्तानी हैं और सारी की सारी सीमेन्ट हम खरीदते है, लेकिन मुनाफा वहाँ जाता है, अब हमारा सीमेण्ट हालसिम, लाफार्ज आदि मेक इन इण्डिया कर लाभ यूरोप ले जा रहीं है। चाहे नेस्ले की चाॅकलेट हो या दूध है लेकिन, मुनाफा वहाँ जाता है, अब नेस्ले की टॉफी हो या नेस्ले का पाउडर का दूध हो, दूध हिन्दुस्तानी गरीब किसान निकालता है, वो किसी कम्पनी को बेचता है और उसमें भी मैंनेजिंग डायरेक्टर से लेकर मजदूर तक सारे हिन्दुस्तानी लोग है और उसका अगर पाउडर का दूध या उसकी टाफी, चाकलेट या उसका जो भी बन जाता है आइसक्रीम, उसमें ब्रांड अगर नेसले लगता है, तो मुनाफा स्वीटजरलैण्ड जाता है। टेक्नोलाजी डेवलपमेंट वहाँ होती है और अगर ब्रांड अमूल, सागर, सरस, साँची या ऐसा लग जाता है तो उसका सारा मुनाफा टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट हिन्दुस्तान में होगा। इसलिये हमें चाहिये ‘मेड बाई इण्डिया’ और न कि विदेशी निवेश से विदेशी उद्यमों का मेक इन इण्डिया। अब पिछले दिनों यह जो 1991 से ही जबसे हमने एफ.डी.आई. (फॉरेन डायरेक्ट इनवेस्टमेन्ट) के नाम से विदेशी उद्यमों का उत्पादन के लिये प्रोत्साहन देने की नीति शुरू की, उसके बाद से जूते के पॉलिश, टूथपेस्ट उसके आगे चलें तो टीवी, फ्रिज उसके आगे चलें तो स्कूटर, सबसे ज्यादा, आधे से ज्यादा होण्डा का एक्टिवा ही बिकता है। कारें भी दो तिहाई विदेशी उसके आगे चले, तो टेलिकाम व पावर प्लाण्ट निर्माण में भी बढ़ता विदेशी नियन्त्रण हो रहा है। अगर इस देश का सम्पूर्ण उत्पादन तंत्र पर विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनी का कब्जा हो जायेगा तो ‘मेक इन इण्डिया’ तो वो करेंगे, बना लेंगे हिन्दुस्तान में, लेकिन अगर देश के उत्पादन के साधनों पर विदेशी कम्पनियों का ही कब्जा हुआ तो, उसके मालिक आप और हम होंगे या विदेशी कम्पनियाँ? कल को चुनाव में कोई राजनीतिक दल चंदा लेने के लिए जायेगा तो वो हमारे देश के लोगों के पास नहीं बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लोगों के पास यानि वो हमारे सूत्रधार बन जायेंगे। हमारे देश के उत्पादन तंत्र के साथ व्यापार, वाणिज्य व कृषि सहित सम्पूर्ण आर्पूित तंत्र भी विदेशी नियन्त्रण में जाने को है। उदाहरण के लिए बाजार में नेचर फ्रेश नाम का आटा कारगिल नामक अमेरिकन कम्पनी का है, एक प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी है सीमित नियंत्रण वाली है, उसका 136 अरब डॉलर का साल का कारोबार है, भारत में 4 अरब डालर (रुपये 24,000 करोड़ रुपये) का कारोबार है। अपना आटा बाजार में लाने के लिये उसने मध्य प्रदेश के किसानों की 6000 हेक्टयर जमीन ठेके पर ली, किसान जो जमीन का मालिक था वो बटाइदार ( Share Croppers)) हो गया। ये किसान खेती कारगिल के लिए करेगा और वो गेहूँ, या सोयाबीन व मक्का का बीज देती है और वो उसका गेहूँ आदि बोते हैं, फसल सारी कारगिल उठाती है उसकी आटा के पशु आहार के लिये बड़ी-बड़ी आटा मिलें हैं। इससे कई रोलर फ्लोर मिलें, मिल डाली, दो डाली, तीन चार और डाली तो उससे कई रोलर फ्लोर मिले, पंजाब और मध्य प्रदेश में बंद हुई। हिन्दुस्तान में लघु उद्योगों की श्रेणी में तीसरे स्थान पर सर्वाधिक लघु उद्योग आटा चक्कियाँ हैं लेकिन अब क्या होता है। चाहे वो आशीर्वाद आटा आ.टी.सी. का हो, या नेचर फ्रेश आटा कारगिल का हो, हम उन विज्ञापनों से उस आटे की तरफ जाते हैं, तो खेत खलियान से किचन तक की पूरी फ्रूड सप्लाई चेन कारगिल या आई.टी.सी. टेकओवर कर रही है यानी की ‘मेक इन इण्डिया’ तो है गेहूँ की खेती हम कर रहे हैं, आटा भी हम पीस रहे हैं, खा भी हम रहे हैं, लेकिन हमारा टोटल फूड सप्लाई चेन व पशु आहार से दूध व दूध के उत्पाद तक का खाद्य श्रृंखला विदेशी अधिग्रहीत कर रहे हैं। इसी तरह से टोमैटो की फार्मिंग भी हमारा किसान कर रहा है। हिन्दुस्तान लिवर जो एग्लो डच कम्पनी की है और ऐसा बहुत सारा, उसकी भी हम गहराई में नहीं जायेंगे।
One page missing 23 to page 24)

अब यहाँ विदेशी निवेशक भारत में उद्यम लगाकार या अधिग्रहीत कर जो कुछ उत्पादन या ‘मेक इन इण्डिया’ कर रहे है उसका एक और प्रकरण है। कोरिया की एक कम्पनी है। उसमें कुछ वर्ष पूर्व अपनी महिला कर्मचारियों को यह आदेश दिया गया कि हमारे यहाँ आफिशियल वियर स्कर्ट है और इसलिए आप साड़ी या सलवार सूट पहन के नहीं आयेंगी। स्कर्ट पहन कर आयेंगी। मतलब बहुत सारी महिलायें ऐसी भी होती है जो घर से स्कर्ट पहन के नहीं जाती तो वहाँ चेजिंग रूम में जाकर के बदलती है, जब उन्होंने ये लागू किया था तब कई महिला संगठनों ने इसका विरोध भी किया था। तो उन्होंने अनिवार्यता तो समाप्त कर दी पर वह परोक्ष सन्देश तो रहता ही है। अगर वहाँ कैरियर में ग्रो करना है और अपना कैरियर प्रमोशन लेने हैं तो उनका आफिशियल वियर या ड्रेस कोड को प्राथमिकता देनी ही होती हैं। यानि की जब देश का उत्पादन तंत्र विदेशी नियंत्रण में जाता है, तब संस्कृति भी वह विदेशी ही आरोपित करते हैं। अब हम एक छोटा-सा उदाहरण मैं इसके साथ और जोड़ देना चाहता हूँ। अगर देश का उत्पादन तंत्र देश की विदेशी नियंत्रित है तो हम कहाँ तक सुरक्षित रह पायेंगे। खाद्य श्रृंखला पर भी विदेशी नियन्त्रण से क्या हो सकता है, इसे देखें तो आप सबको याद होगा कि मैकडकाउ बीमारी फैली थी और इंग्लैण्ड में और गायें पागल होने लगी थी, बड़ी संख्या में लाखों गायों को मारकर समुद्र में गाड़ना पड़ा था। ऐसा क्यों हुआ? वहाँ पर जो पशुआहार या कैटलफीड बनाने वाली कम्पनियाँ है उन्होंने देखा कि वहाँ के कत्लखानों में जो जानवरों की आँते, किडनी और लिवर आदि फालतू अंग रह जाते हंै। मांस की डिब्बाबंदी के बाद उन सबको क्रश करके उन्होंने नूडल्स बनाया और डेयरी ओनर्स को कहा कि ये प्रोटीन रिच, मिनरल रिच, विटामिनरिच नूडल्स है। इसमें पर 100 ग्राम पशु आहार में प्रोटीन लागत कम आयेगी, तो गायें जो बेचारी शाकाहारी प्राणी है, उनको मांसाहारी बना दिया। कत्लखानों के वेस्ट अर्थात अपशिष्टों के नूडल्स खिलाने से उसमें कोई अनअईडेन्टीफाइड या अज्ञात वाइरस का संक्रमण या कोन्टामिनेशन होने से वे गायें पागल होने लगीं, फिर उनका बीफ अर्थात् गौमास जो खाते थे, और इंग्लैण्ड में बीफ का चलन बहुत ज्यादा है, वो लोग पागल होने लगे। सारा पता चला तो उन गायों को नष्ट किया। अपने देश में भी कुछ शाकाहारी लोगों तक भी खाद्य श्रृंखला में संक्रमण से ‘मेड-काऊ’ बीमारी से ग्रस्त हुये हैं।
उदयपुर में हमारे यहाँ एक राजस्थान रेवैन्यू सर्विस के अधिकारी थे, उन्हीं दिनों की बात है, जिस समय एक आइसक्रीम कम्पनी को इंग्लैण्ड की एक कम्पनी ने खरीद लिया था। तब अधिग्रहण के बाद उसका आइसक्रीम मिक्स इंग्लैण्ड से आता था। उन दिनों उन शर्मा जी का देहावसान मेड-काऊ बीमारी से हुआ। वो बेचारे शाकाहारी व्यक्ति थे, लेकिन ऐसा हो सकता है कि उन दिनों चूँकि हमारी आइसक्रीम कम्पनी को एक इंग्लैण्ड की कम्पनी ने खरीदा था। उसका आइसक्रीम मिक्स में जो मैडकाउ बीमारी से ग्रस्त गायों के वायरस का संक्रमण रहा हो सकता है। उन दिनों हिन्दुस्तान में ऐसे कई लोगों की डेथ जिनकी मैडकाउ से हुई और जो शाकाहारी थे। अगर हमारा सारा उत्पादन तंत्र विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनी के हाथ में हो तो क्या होगा। उत्पादन का बड़ा भाग विदेशी नियन्त्रण में जाने के बाद हम व्यापार व वाणिज्य में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश अर्थात एफ.डी.आई को निमंत्रण देते चले जा रहे है उदाहरण के लिए इन्श्योरेन्स में हम कह रहे हैं कि हम एफ.डी.आई. 26 प्रतिशत से बढ़ाकर 49 प्रतिशत करेंगे और कहा ये जा रहा है कि इससे 6 अरब डॉलर इसमें आयेंगे। लेकिन 6 बिलियन डॉलर छोडि़ये एक बिलियन डॉलर भी कहाँ से आयेगा। हाँ हमारी लाखों करोड़ की बचते व निवेश विेदेशी नियन्त्रण में अवश्य जायेगा आप खुद विचार करिये। जब 2002 में हमने इन्श्योरेन्स में 26 प्रतिशत एफ.डी.आई. का प्रावधान किया था और उस समय भी यह जरूरी कर दिया था कि प्रत्येक नयी निजी कम्पनी में अनुभवी विदेशी पार्टनर लेना जरूरी होगा और उस समय हमारी इकोनॉमी 10 प्रतिशत वार्षिक से बढ़ रही या ग्रोे कर रही थी, इन्श्योरेन्स सेक्टर में 25 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर थी उस समय से लेकर आज तक 12 साल में मात्र 1.36 अरब डॉलर एफ.डी.आई. आया है, इन्श्योरेन्स सेक्टर की कुल पूँजी 6 बिलियन डॉलर से कम है। और वह 29000 करोड़ रुपये की मात्र पूँजी है और इतनी-सी पूँजी से इन्श्योरेन्स सेक्टर के पास आपके हमारे प्रीमियम के पैसे जमा होते है। वह 18 लाख करोड़ रुपये की राशि है अर्थात मात्र 29 हजार करोड़ की पूंजी से इन्श्योरेन्स कम्पनियाँ हमारी 18 लाख करोड़ रुपये कंन्ट्रोल करती हैं। यानि कि जो एक डॉलर आता है, वह करीब 57 डॉलर या एक रुपया जो एफ.डी.आई. का इन्श्योरेन्स क्षेत्र में आता है तो वह हमारे 57 रुपये को कंट्रोल करता है। इस प्रकार हमारे फाइनेन्शियल रिर्सोसेज उनके हाथ में जाते है। इसलिये इन्श्योरेन्स सेक्टर में हम अगर एफ.डी.आई. सीमा बढ़ाते है व पेन्शन क्षेत्र में विदेशी पूंजी की छूट देते हैं तो हमारे सारे वित्तीय संसाधन उनके हाथ में होंगे। उन साधनों को चाहें तो वे स्टाक मार्केट में सट्टेबाजी काम में ले, या वो चाहे तो इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेन्ट के काम में लेवें। यह उनका निर्णय होगा। केवल सरकार की विदेशी निवेश की लालसा में देश का उत्पादन तंत्र विदेशी नियंत्रण में जाता है तो बहुत बड़ी चुनौती हम सबके लिए खड़ी होती है। वस्तुतः विदेशी निवेश के नाम पर देश के उद्योग, व्यापार, वाणिज्य, कृषि, इन्फ्रास्ट्रक्चर व सामाजिक सेवाओं को एक-एक कर विदेशी नियन्त्रण में जाते निहारते रहने के स्थान पर हमें विश्व स्तरीय उत्पाद व ब्राण्ड विकसित करने चाहिये। आज यदि देश को विकसित देशों की अग्र पंक्ति में खड़ा करना है तो विदेशी निवेश के नाम पर विदेशी कम्पनियों को ‘मेक इन इण्डिया’ का आवाहन देकर देश में विदेशी कम्पनियों को उत्पादन का आमन्त्रण देने के स्थान पर हमें ‘मेड बाई इण्डिया’ को लेाकप्रिय करने हेतु अपने उत्पाद व ब्राण्ड विकसित करने चाहिये। आज विश्व के औद्योगिक राष्ट्र तक टेक्नो-नेशनलिज्म (Techno-Nationalism)अर्थात् तकनीकी राष्ट्रवाद और इकोनामिक नेशनालिज्म (Economic Nationalism) अर्थात् आर्थिक राष्ट्रवाद या (Economic Patriotism) अर्थात् राष्ट्र निष्ठा के माध्यम से तकनीकी व आर्थिक स्वावलम्बन की ओर बढ़ रहे हैं। इसलिए आज ‘मेड बाई इण्डिया’ के बारे में जब हम बात करते हैं तो पाते हैं दुनिया में इन दिनों टेक्नो नेशनलिज्म की बात चल रही है कि हम सब जगह डी.वी.डी. से खूब काम लेते है और डी.वी.डी. प्लयेर्स का भी। चीन को लगा कि ये डी.वी.डी. और डी.वी.डी. प्लेयर्स की सारी रायलिटी अमेरिका को जाता है, उसने कहा, मैं ई.वी.डी. बनाऊँगा। अर्थात् एनहान्स्ड वर्सेटाइल डिस्क ((Enhanced Versatile Disc) और उसने ई.वी.डी. और ई.वी.डी. प्लेयर्स बनाने शुरू कर दिये और चीन में अब ई.वी.डी. प्लेयर्स और ई.वी.डी. बिकती है, डी.वी.डी. नहीं इसी तरह से हम सब लोगों के पास कम्प्यूटर होगा और उसमें आपरेटिंग सिस्टम विंडोज। इसको अन्यथा नहीं ले, हममें से अनेक लोग हिन्दुस्तान में पाइरेटेड, या बिना लाइसेंस के आपरेटिंग सिस्टम या साफ्टवेअर काम ले लेते हैं। तब भी देश की कितनी रायल्टी राशि बाहर जाती है, लाइसेन्स के बदले में। हम अपना आपरेटिंग सिस्टम व साफ्टवेयर क्यों नहीं विकसित करते? अब चीन ने अपना चाइनीज आपरेटिंग सिस्टम, विंडोज और एनन्ड्राड को रिप्लेस करने के लिए बना लिया। अक्टूबर महीने में ही उसने लांच किया है और बहुत जल्दी चीन यह कर देगा कि चाइना में जो कम्प्यूटर उपयोग होंगे और उनमें जो आपरेटिंग सिस्टम होगा वो चाइनीज आपरेटिंग सिस्टम सी.ओ.एस. होना चाहिए विंडोज नहीं होना चाहिये। जैसे वायरलेस कम्यूनिकेशन के लिए सारे वायरलेस प्रोडक्ट्स, स्मार्ट फोन, इंटेल कम्पनी की सैट्रिनो स्क्रीपचर या इनक्रिरेशन लैगुएज पर होते हैं और वह उसपर काम करता है, चाईना को लगा कि ये जो अमरीकी कम्पनी की एनक्रिरशन लेंग्वेज है, मुझे अपनी बनानी चाहिए और चीन ने नयी एनक्रिप्शन भाषा वापी अर्थात WAPI अपनी एनक्रियेशन लेंग्वेज बनायी और 2004 में उन्होंने फैसला किया कि चाइना में केवल वही वायरलेस कम्यूनिकेशन के प्रोडक्ट्स बिकेगें, जिनमें वापी एनक्रिप्शन होगा। हम इंटेल का सेंटीनो एनक्रिपचर नहीं अलाउ करेंगे, तो जार्ज बुश उस समय राष्ट्रपति थे, उन्होंने चाइनीज नेतृत्व से बात की आप ऐसा मत करो और चीन ने उस रिक्वेस्ट को इसलिए नहीं माना कि अमेरिका के राष्ट्रपति ने कहा था। वस्तुतः वह अभी तक वाइ-फाइ फ्रेण्डली नहीं है इसलिए चीन ने देखा कि वह उसे वाइ-फाइ फ्रेण्ड्ली करें, तब तक अमेरिका की बात मान लेने में कोई हर्ज नहीं हैं। उसके बदले उसने उससे चार नेगोशियेशन में अन्य लाभ उठाये। लेकिन वो अपनी अल्टरनेटिव एनक्रिप्शन बनाने के क्रम में तेजी से लगा हैं दूसरा उदाहरण हम भारत का लेते है सुपर कम्प्यूटर ‘क्रे’ हमको नहीं मिल रहा था जबकि 124 करोड़ रुपये हम उसको देने को तैयार थे। हमारे यहाँ विजय भाटकर पुणे में रहते थे, उन्होंने कहा कि हमें प्रोसेसिंग स्पीड ही तो बढ़ानी है, हम पैरलल प्रोसेसर क्यों न बनायें। दुनिया में उस समय तक किसी ने भी पैरलल प्रोसेसर की बात ही नहीं सोची थी। उन्होंने पैरलल प्रोसेसर परम बनाया और व्रेहृ से फास्टर प्रोसेसिंग वाला हमने 1 करोड़ से भी कम मात्र कुछ लाख रुपये में पैरलल प्रोसेसर परम बना लिया। आज हम 500 टैराफ्लाप यानी 500 ट्रिलियन फ्लोटिंग इन्स्ट्रक्शन प्रति सेकेण्ड की प्रोसेसिंग स्पीड वाला परम हम अपने देश में बना रहे है यह है टेक्नो-नेशनलिज्म यानि की जहाँ भी हम अपना इनीशियेटिव लेंगे अपना प्रोडक्ट हम बना सकते हैं। अब हम समय सीमा को ध्यान में रखते हुये आर्थिक राष्ट्र निष्ठाभिव्यक्ति या आर्थिक राष्ट्रवाद पर चर्चा करेंगे। फ्रांस के प्रीमियर हाँ फार्मर प्रीमियर डी. विलेपान उसके चैम्पियन माने जाते हैं, डेनिवन फ्रांस की एक डेयरी कम्पनी है। हमारे यहाँ भी काम करती है तो डेनिवन को पेप्सी कम्पनी खरीदने गई, तो फ्रांस के प्रधानमंत्री डी. विलेपान ने कानून बनाकर कहा कि डेनविन हमारी बहुत प्रतिष्ठित डेयरी कम्पनी है। यह फ्रेन्च स्वामित्व में ही रहनी चाहिये (इट शुड बी फ्रेंच ओन्ड) इसको हम अमेरिकी स्वामित्व में नहीं जाने देंगे या अमेरिकी ओन्ड नहीं होने देंगे और उन्होंने उसका अधिग्रहण रुकवा दिया। उसके बाद एक कनाडा की कम्पनी गई और उसने वहाँ की स्वेज नाम की यूटिलिटी कम्पनी जो गैस और पावर में काम करती थी, उसको अधिग्रहण करना चाहा, तो उन्होंने कहा नहीं-नहीं इसको हम केनेडियन्स को नहीं लेने देंगे। अमेरिका की यूनोकल कम्पनी है, वो उनकी ऊर्जा की आधारभूत कम्पनी है और चाइना ने उसे 18.5 अरब डॉलर में खरीदने की पेशकश कर दी। वह कम्पनी बिकने को तैयार थी। उसके प्रवर्तक बेचने को तैयार थे, लेकिन अमेरिकी सीनेट में 6 बार इस पर बहस हुई कि अगर यूनोकल कम्पनी चाइनीज स्वामित्व में चली जायेगी, तो हमारी एनर्जी सिक्योरिटी या ऊर्जा सुरक्षा चाइनीज के हाथ में पड़ जायेगी। इसलिए हम इसको चाइनीज ओन्ड नहीं होने देंगे। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर चाइनीज कम्पनी इसको खरीदने की पेशकश वापस नहीं लेती है, तो हमको सीनेट से कानून बनाना होगा। तब जाकर उस चीनी कम्पनी ने यूनोकल को खरीदने की पेशकश वापस ली। यानि कि दुनिया का हर देश आज अपन इकोनॉमिक नेशनलिज्म की दृष्टि या प्वाइंट आफ व्यू से प्रयासरत है कि उसके उद्योग, व्यापार, वाणिज्य, कृषि, इन्फ्रास्ट्रक्चर आदि विदेशी स्वामित्व व नियंत्रण में नहीं जाए। इसलिये ठीक उसी प्रकार से हमें भी आज ‘मेड बाइ इण्डिया’ की अवधारणा विकसित करने की आवश्यकता है। उसके लिये भारतीय उत्पाद व ब्राण्ड विकसित करने होंगे। आज हम इस भ्रम में हैं कि हम विश्व की साफ्टवेयर राजधानी हैं। लेकिन, दुनिया की शीर्ष 100 साफ्टवेयर कम्पनियों में भारत की किसी भी कम्पनी का नाम नहीं है, हमारे साफ्टवेअर इंजिनियर सनमइक्रो सिस्टम के लिए काम करते है, एपल के लिए काम करते है, गूगल के लिए काम करते हैं या और भी अनगिनत विदेशी कम्पनियों के लिये काम करते हैं। हम उन कम्पनियों से मिलने वाले पैकेज या अपने वेतन से खुश हो जाते हैं। वास्तव में आज अगर आप देखें तो अमेरिका के जी.डी.पी. 7.1 प्रतिशत कान्ट्रीब्यूशन अर्थात् योगदान केवल कापीराइट्स की रायलिटी का है, कापीराइट की रायलिटी में मुख्यतः पब्लिकेशन्स की और कम्प्यूटर साफ्टवेयर की रायल्टी आती है। इस 7.1 प्रतिशत रायल्टी का योगदान कितना होता है। वह इण्डिया के कुल जी.डी.पी. के आसपास होता है उसका (अमरीका का) 20 ट्रिलियन डॉलर का जी.डी.पी. है, तो लगभग उसका 1.42 ट्रिलियन डालर (रुपये 90 लाख करोड़ तुल्य) केवल कापीराइट की रायलिटी का है। और उस राॅयल्टी की अधिकांश मजदूरी कौन करता है? हम लोग, हिन्दुस्तानी लोग। आज चाहे आॅरेकल कम्पनी हो, चाहे गूगल में हो, उनके सोफ्टवेयर विकास में 60-70 फीसदी इन्टलेक्चुअल एनर्जी यानि बौद्धिक ऊर्जा हिन्दुस्तानियों की लगती है।
आज सबसे एडवांस साफ्टवेयर साफ्टवेयर है, ERP (Enterprise Resources Planning) शायद आप भी अपने यहाँ काम लेते होंगे। ई.आर.पी. साफ्टवेयर में ‘आरेकल या सेप ए.जी. जैसी यूरो-अमरीकी कम्पनियों का नाम है। ऐसी बहुत सी कम्पनियाँ ई.आर.पी. साफ्टवेयर बनाती हैं। 60 से 70 प्रतिशत काम हिन्दुस्तानी लोग करते है। लेकिन ई.आर.पी. साफ्टवेयर में हिन्दुस्तान का कोई प्रोडेक्ट या ब्राण्ड नहीं है, हमारा ई.आर.पी. सोफ्टवेयर में अर्थात हिन्दुस्तानी ब्राण्ड का एक प्रतिशत तो छोड़ो पाव प्रतिशत भी मार्केट शेयर का नहीं है, हम दूसरो के लिए काम कर रहे है, हम दूसरो के लिए श्रम करते हैं, साफ्टवेयर बनाते है। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि चाहे मूर्त उत्पाद हो या अमूर्त साफ्टवेयर हम अपने उत्पाद व ब्राण्ड विकसित करें वी हैव टू डेवलप अवर ओन प्रोडक्ट्स एण्ड ब्रांड्स। हमको अपना प्रोडक्ट डेवलप करना है, हमको अपना ब्रांड डेवलप करना है और अपने प्रोडक्ट्स और ब्रांड को हमको पूरी दुनिया में स्थापित करना है। हम मार्स ऑबीटर सबसे कम लागत का बनाकर पहली बार में सफलता पूर्वक भेज कर विश्व कीर्तिमान बना सकते हैं तो छोटे-छोटे प्रोडक्ट्स और ब्रांड्स डेवलप करना कोई मुश्किल काम नहीं है। हमारे जो इन्डस्ट्री क्लसटर्स (उद्योग संकुल) है, उनको Consortium (उद्योग सहायता संघों) में बदलने की आवश्यकता है। प्रत्येक इण्डस्ट्री क्लस्टर (उद्योग संकुल) के लिये प्रौद्योगिकी विकास के लिये व बाजार अनुसंधान के लिये सामूहिक अनुसंधान इण्डस्ट्री कन्सोटियम (उद्योग सहायता संघ) बनाकर ही किया जा सकता है। अमेरिका में तो ऐसे उद्योग सहातया संघों के लिये प्राी-काम्पिटिटिव रिसर्च को वैधानिक आधार प्रदान करने के लिये एक सहकारी अनुसंधान अधिनियम (Cooperative Research Act) 1984 में ही बना लिया गया था। आपको ध्यान हो तो यूरोप की जो एयरक्राफ्ट मैन्यूफैक्चरिंग कम्पनी एयरबस है वो भी करीब 1000 छोटे-छोटे कम्पोनेन्ट मैन्यूफेक्चरर्स का कन्सोर्शियम बना था, बाद में वह एयर बस कम्पनी में बदला। देश में 400 प्रमुख उद्योग सकुल हैं, उन्हें उद्योग सहायता संघों में विकसित करना होगा। हमें वर्टिकल क्लस्टर्स का भी विकास करना होगा और काॅआपरेटिव रिसर्च एक्ट जैसे कानून यदि अमेरिका मंे 1984 मंे बन गया तो आज वैसे कानूनों के बारे में हमें भी सोचना होगा। उसी से मेड बाई इण्डिया का मार्ग बनेगा। मेड बाई इण्डिया के लिये इच्छा शक्ति चाहिये और कुछ नहीं। बस, हथियार डालकर, विदेशी पूंजी आमन्त्रित कर विदेशी निवेशकों से देश में उत्पादन करने के लिये कहने से हम विकसित नहीं होगे। एक बार हम इण्डस्ट्री कन्सोर्टियम विकास के अपेक्षाकृत श्रम साध्य मार्ग से परे आज की प्रबन्ध रणनीति या strategic Management की बात करें तो, समय कम होने पर भी मैं टाटा समूह के (Product and Brand Development) के दो उदाहरण देना चाहूंगा।
टाटा समूह के देश में 200 हार्स पाॅवर के सफल ट्रक रहे हैं। जब सन् 2000 के बाद स्वीडिश कम्पनी वाॅल्वों के 200 हार्स पावर से बड़े ट्रक व बस आने लगे। तब या तो देश का उच्च क्षमता के ट्रक व बसों का बाजार वोल्वों के हाथ जाने दिया जा सकता था। वोल्वो का आज देश में बैंगलोर के पास ऐसेम्बली लाइन भी है। लेकिन, टाटा मोटर्स को जब लगा कि नहीं वोल्वो के हाथों उच्च क्षमता वाले ट्रकों का बाजार समर्पित कर उसे देश में निर्बाध मेक इन इण्डिया का अवसर देने के स्थान पर तत्काल मेड बाई इण्डिया से देश का बाजार देश के उद्यमों के नियन्त्रण में रहे ऐसा कुछ करना चाहिये। उच्च क्षमता वाले ट्रकों की प्रौद्योगिकी के विकास व वैसे माडल विकसित कर बाजार में उतारने में 3-4 वर्ष भी लग सकते थे। उसके बाद उच्च क्षमता के ट्रकों के बाजार का वापस लेना सहज नहीं होता। वोल्वो के ‘मेक इन इण्डिया’ का भी साम्राज्य हो जाता। तत्काल ‘मेक बाई इण्डिया’ उत्पाद स्पद्र्धा में बाजार में उतारने के लिये टाटा मोटर्स ने कोरिया की दिवालिया कम्पनी डेवू समूह की बन्द पड़ी डेवू कामर्शियल वेहिकल्स लिमिटेड, जिसके 200-400 हार्स पावर के ट्रकों का कोरिया के बाजार में दिवालिया होने के पहले 25 प्रतिशत बाजार पर कब्जा रहा है। डेवू के वे ट्रक चीन में दक्षिण पूर्व एशिया में भी चलन में रहे थे। इसलिये उस दिवालिया समूह की बन्द पड़ी कम्पनी के सफल रहे माॅडल के लिये लगभग 500 करोड़ रुपयों में खरीद कर हाथों-हाथ उच्च क्षमता के ट्रक बाजार में उतार दिये। कोरिया में एक उत्पादन केन्द्र मिल जाने पर उसके माध्यम से टाटा के न्यून क्षमता के अन्य माॅडल कोरिया सहित सम्पूर्ण दक्षिण पूर्व एशिया में भी उतार दिये। ‘मेड बाई इण्डिया’ के साथ-साथ ‘मेक इन कोरिया’ का विस्तारित लाभ भी ले लिया। अन्यथा केवल वाल्वों के ‘मेड इन इण्डिया’ लेवल के बाहर से लाकर हिस्से पुर्जे जोड़ कर बेचे माॅडल्स का ही एकाधिकार हो जाता।
स्मायाभाव होने पर भी टाटा का ही रणनीतिक विस्तार का दूसरा एक उदाहरण मेड बाई इण्डिया ब्राण्ड प्रवर्तन को उदाहरण और देना चाहूंगा। टाटा टी का चाय का ब्राण्ड सन् 2000 तक विदेश में तो दूर देश में भी इतना चलन में नहीं था टेट्ली एक यूरोप की घाटे में चल रही चाय कम्पनी थी। लेकिन उसका यूरोप व अमेरिका में ‘टी बेग्ज’ के 17 से 21 प्रतिशत तक बाजार पर कब्जा था। इसलिये उसे उसने 40 करोड़ पाउण्ड में सन् 2000 में खरीद लिया। इससे टेटली ब्राण्ड टाटा का हो गया, भारत का हो गया और भारत की टाटा टी एक अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनी व विश्व की दूसरी सबसे बड़ी चाय कम्पनी बन गयी।
आज जब देष का उत्पादन तंत्र विदेषी नियंत्रण में जा रहा है, तो वे संस्कृति को भी अपने ढंग में परिवर्तित करने का भी प्रयत्न कर रहे है। हमारे देष में रेडीमेड फूड (अर्थात् तैयार खाद्य) का चयन नहीं है। अधिकांष लोग संयुक्त परिवार में रहते है इसलिये खाद्य आहार घर में ही तैयार हो जाते है। इसी प्रकार संयुक्त परिवार में साथ में रहने के कारण एक टी.वी. और एक फ्रीज से पूरे परिवार का काम चल जाता है। जबकि पाष्चात्य देषों में अलगाववादिता के कारण परिवार के प्रत्येक सदस्य के पास उसके कक्ष में उसका अपना अलग टी.वी. व फ्रीज होता है इसलिये कई विदेषी निवेषकों व उनके ब्वदेनसजंदजे का मानना है कि देष में परिवारों में अलगाववाद का बीजारोपण किये बिना रेडीमेड फूड व उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं की बिक्री में तीव्रता से वृद्धि नहीं कि थी जा सकती है। ऐसा तभी सम्भव है जब संचार माध्यमों पर पारिवारिक अलगाव के प्रसंगों का महिमामंडन हो। इसलिये योजना पूर्वक ऐसे सीरियल प्रायोजित किये जा रहे है जिनमें पति-पत्नी को झगड़ते हुए दिखाया जाता है कि उनका तलाक लेते हुए दिखाया जाता और उनके तलाक लेने के बाद अलग-अलग पुनर्विवाह करते दिखा जाता है। इससे पहले आज के युवावर्ग में भी इन बातों को बढ़ावा मिलता है। एक युवक या युवती 24-25 वर्ष का होते होते।
हजारों विवाहित जोड़ों को झगड़ते हुए देख लेता है या लेती है, झगड़ने के बाद वे उन्हें तलाक लेते हुए भी देखते हैं, तलाक लेने के बाद पुर्नविवाह करते हुए देखलाया जाता हैं। हमारे यहाँ तो मरने के बाद पिण्ड भी पति पत्नी दोनों के मिला दिए जाते थे ताकि अगले जन्म में भी साथ रहंे और यहाँ पर यह है कि जो बात अकल्पनीय थी। हमारे देश में चालीस साल पहले कोई सोच ही नहीं सकता था, तलाक लेकर वापस नई शादी की जा सकती है, आज चार साल का बच्चा या बच्ची जो चैबीस साल, अट्ठाइस साल का हुआ है या हुयी है, उस समय तक वो मीडिया पर 10 से 15 हजार तलाक और पुनर्विवाह देख चुका या देख चुकी होगी जिस समय उसके दाम्पत्य में 2-3 दिन का भी छोटा-सा कोई खटपट होगा, तो उसको लगेगा, ये रोज-रोज की झंझट से तो ज्यादा बढि़या तलाक ले लो और री-मैरिज करेंगे। अब उनका एक छोटा बच्चा या बच्ची है, रीमैरिज की तो सौतेली माँ या सौतेला पिता मिलेगा। उस नये परिवार में और अगर उसने रीमैरिज नहीं की, तो सिंगल पैरेन्ट मिलेगा। आज यूरोप और अमेरिका में आधे से अधिक बच्चे ऐसे हैं जो या तो सिंगल पैरेन्ट के साथ रह रहे हैं या सौतेले पिता और सौतेली माँ के साथ रह रहे हैं। अब सवाल यह है कि यदि ऐसा चलन भारत में भी बढ़ा तो हमारा समाज शास्त्र कैसा होगा। अब इससे आगे और चलिये आप हर विवाहित महिला का एक पुरुष मित्र दिखाना, हर विवाहित पुरुष की एक महिला मित्र दिखलाना, दोनों को झगड़ते हुए दिखाना, झगड़ने के बाद दो महीने के लिए, वो विवाहित अपने पुरुष मित्र के यहाँ रहने चली जायेगी, विवाहित पुरुष अपनी महिला मित्र के यहाँ रहने चला जायेगा, वापस दोनों आ जायेंगे। सीरियल्स में संवाद लेखन में भी यही ध्यान रखा जाता है। आप यह पायेंगे कि किसी भी सीरियल में कौप्लीमेन्ट्री डायलाग्स अर्थात सकारात्मक संवाद 16 से 20 प्रतिशत से ज्यादा नहीं रखते हैं। नोन-काम्प्लीमेन्ट्री डायलाग जैसे मान लो पिता जी ने बच्चे से पूछा, अरे तू परसो फिल्म देखने गया था। मुझे बताया नहीं, तो 20 साल पहले का डायलाग लेखक जो होता था, वो उससे बुलवाता था कि पिताजी मैं डर रहा था, इसीलिए नहीं बताया या मैं भूल गया था या मैं नहीं गया था। आपको किसी ने गलत सूचना दी। अब का संवाद लेखक उससे सही जवाब नहीं दिलवाता है। अब वह प्रतिप्रश्न करवायेगा कि आप बताओ आपको किसने कहा? पिताजी कहेंगे तू मुझसे पूछ रहा है? पहले तू बता, और दोनों विवाद में उलझ जायेंगे और इसलिए मूल बात रह जायेगी और उनमें एक दूसरे की गरिमा का लिहाज समाप्त हो जायेगा। आज 15-16 प्रकार के नकारात्मक संवाद ही मिलेंगे। हम इनमें से 3-4 प्रकार की बात करें तो प्रति प्रश्न करना, आरोप मढ़ देना का उपहास करना या चेतावनी के संवाद। अर्थात् प्रतिप्रश्न नहीं तो आरोप लगाना, तुम ऐसे हो, तुमने ये नहीं किया? तुमने मेरे लिए क्या किया? चाहे पति-पत्नी के बीच बातचीत हो, माँ-बाप और बच्चों के बीच बातचीत हो, ग्रैण्ड पैरेन्ट्स और ग्रैण्ड चिल्ड्रेन के बीच बातचीत हो, दो भाईयों के बीच बातचीत हो या एक दूसरे का। ऐसे 10-15 तरह के नकारात्मक संवाद इसलिये रखे जाते हैं कि समाज जीवन के भी लोग इसी भाव से बात करें। इसलिये विदेशी निवेश से बचते हुये जब तक हम ‘मेड बाई इण्डिया’ को नहीं करेंगे, तो हमारी संस्कृति, हमारा परिवार, हमारा अर्थतंत्र, हमारे आर्थिक संसाधन, हमारी राजनीति, हमारा वेश-भूषा, भाषा ये सारी की सारी, मैं अभी उसको गहराई में नहीं जाऊँगा। अन्यथा अब तो शिक्षा में भी विदेशी निवेश की बात हो रही है, चिकित्सा मे भी हो रही है, जलदाय योजनाओं में हो रहा है। गृह निर्माण व बड़ी परियोजनाएँ भी विदेशियों के हाथ में जा रही हैं। चीन 20 अरब डालर निवेश कर रहा है। अभी भी देश में 60 अरब डालर की 108 परियोजनायें देश में चीनी कम्पनियों के पास हैं, चीन को देश में 2 औद्योगिक पार्क विकसित करने के समझौते हमने किये हैं। चीन के साथ विदेश व्यापार में हमारा 40 अरब डालर वार्षिक का घाटा है। अब इतने बड़े निवेश से उसे ‘मेक इन इण्डिया’ से भारत मात्र में लाभ कमाने और देश से बाहार ले जाने का अवसर मिलेगा। अभी हमारे विदेशी व्यापार में ही घाटा है, चीन से जो विदेशी माल आ रहा है। उसका हम बहिष्कार भी कर सकेंगे, सरकार भी उसके ऊपर कोई टेक्निकल बैरियस कोई प्रतिबंध लगा सकती है, क्योंकि चीन नॉन मार्केट इकोनामी है, डब्लू.टी.ओ. ने भी हमको, उसके प्रोडक्ट्स को मार्केट एक्सिज देना जरूरी नहीं है, तो चीन के आने वाले वस्तुओं पर उसके साथ जो हमारा 40 अरब डालर का घाटा है, विदेशी व्यापार में उसको हम पाटने का सोवरिन राइट रखते हैं। लेकिन चीन एक बार यहाँ जो 20 बिलियन डालर का इनवेस्टमेन्ट की सुविधा दे रहा हैं, वो ये यह इनवेस्टमेन्ट कर देगा तो उसके बाद वो यहाँ से मुनाफा बाहर ले जायेगा ही और वो मुनाफा ले जाने के अलावा अपने लाभों का पुनर्निवेश (reinvestment of profits ) भी करेगा। अपना बेस बढ़ा लेगा, वो हमारे यहाँ इंडस्ट्रियल पार्क बना रहा है तो इंडस्ट्रियल पार्क में भी उसके हिस्से पुर्जे आयेंगे। उससे हमारे कई छोटे बड़े उद्योग भी चैपट होंगे और एक तरह से फिर उसके बाद भी हम अपने भुगतान संकट की स्थिति से उबर ही नहीं पायेंगे। इसलिए यह जो है हमको ‘मेड बाई इण्डिया’ के लिए तीन बातें करने की आवश्यकता है। जहाँ कहीं हम उद्यमियों को इस बात के लिए प्रेरित करें, वो अपनी प्रेरणा से अपने उद्योग लगायें। एक छोटा सा उदाहरण किरन मजूमदार शाह का हैं। जूलॉजी में एम.एस.सी. करने के बाद मात्र दस हजार रुपये की पूँजी से एक गैराज में बायोकॉन नाम से एक फर्म खोली और बैंक के पास गई, बैंक ने ऋण देने से मना कर दिया। लेकिन धीरे-धीरे उसने अपना व्यवसाय व अनुसंधान जारी रखा, उसने स्व-कौशल से ऐसे उत्पाद विकसित किये की जब वह बायोकान कम्पनी का जो पब्लिक इश्यू बाजार में जारी किया तो उसके शेयरों के पब्लिक इश्यू के लिये 30 गुने आवेदन आये 30 गुना over-subscription, हिन्दुस्तान की धनाढयतम महिला हैं और धनाढयतम महिला होने के साथ-साथ अनेक लाइफ सेविंग वैक्सीन, डी.एन.ए., रीकाम्बीनेन्ट टेक्नोलॉजी से जो वैक्सीन बनते हैं, जो बहुत महँगे हैं दुनिया में बहुत कम व एफोरडेबल लागत पर में, वो कीमत पर जीवन रक्षक दवाईयाँ उपलब्ध करवा रही हैं यानि की एक लड़की एम.एस.सी. करके और अपना एक छोटा-सा 10,000 रुपये की पूँजी से कारोबार करके, वो इतना आगे जा सकती है। इसलिये आवश्यकता है ‘मेड बाई इण्डिया’ के घोष से देश में हम प्रोडेक्ट व ब्राण्ड विकसित करें। अपने उद्यम विकसित कर उत्पादन करें। विदेशी पूंजी से आज अधिकांश उत्पादन हो रहा है, उसका स्थान भारतीय उद्यम लें। हम अपने, हमारे उद्यमी, अपने प्रोडक्ट एवं ब्राण्ड डेवलप करें, हमारा युवा वर्ग अपना खुद का काम करके और अपने प्रोडक्ट्स और ब्राण्ड डेवलप करने की बात करे। स्विस कम्पनी हालसिम हमारी गुजरात अम्बुजा व ए.सी.सी. को खरीद कर देश का सीमेण्ट बनायें। उसके बदले डेवू कामर्शियल वेहीकल्स लिमिटेड को टाटा मोटर्स खरीद कर देश के उच्च क्षमता के ट्रक बनाये या टेटूली को खरीद कर ‘टाटा टी’ अर्थात् टाटा बेवरेज दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी कम्पनी बन जाये। स्वीडिश कम्पनी ‘वोल्वो’ विदेशों से पुर्जे ला कर देश को एसेम्बली लाइन वाले देश में बदल दे, वेसे विदेशी पूंजी आधारित ‘मेक इन इण्डिया’ के स्थान पर हम टाटा मोटर्स में डेवू या लेण्ड टावर जगुआर को लेकर हम भारतीय ‘मेक इन चाइना’ करें। इसी प्रकार इंग्लैण्ड या ‘मेक इन चाइना’ करें। इसी प्रकार अमेरिकी फाइजर कम्पनी देश में दवा बनाये या किरण मजूमदार जैसे उद्यमी बायोकान की स्थापना से विश्व मानवता को राहत देवें।
इसके साथ ही आर्थिक राष्ट्रनिष्ठा की अभिव्यक्ति या स्वदेशी भाव का परिचय देते हुए हम अगर विदेशी वस्तुओं का पूर्ण बहिष्कार कर देते हैं। अगर हम जूते का पालिश चेरी खरीदने की बजाय रॉबिन या गेही खरीदेंगे तो मुनाफा और उसकी तकनीक सब कुछ हिन्दुस्तान का रहेगा और चेरी खरीदेंगे तो अमेरीकी आज हिन्दुस्तान का 80 प्रतिशत जूते का पालिश जो है, रैकिट कालमेन अमेरीकी कम्पनी ‘मेक इन इण्डिया’ कर रही है। क्यों? उसमें कौनसी प्रौद्योगिकी चाहिये? केवल ब्राण्ड व राष्ट्रनिष्ठा अगर हमें बल्ब खरीदना है और अगर ट्यूबलाइट खरीदनी है तो फिलिप्स की खरीदेंगे, तो मुनाफा हॉलैण्ड जायेगा और अगर हमने बजाज या ऑटोपाल या सूर्या या कोई हिन्दुस्तानी ब्राण्ड खरीदेंगे तो लाभ भी यहीं रहेगा, सम्पूर्ण उत्पादन यहीं होगा व प्रौद्योगिकी हमारी रहेगी। इसलिए हमको आर्थिक राष्ट्रनिष्ठा का परिचय देते हुए विदेशी वस्तुओं का पूर्ण बहिष्कार की बात सोचनी चाहिए, अपने उत्पाद व ब्राण्ड प्रस्तुत कर तकनीकी राष्ट्रवाद को विदेशी अधिग्रहण से बचाने के लिये फ्रेंच प्रधानमंत्री डी विलेपान की तरह आर्थिक राष्ट्रवाद को प्रखर करना चाहिये। इण्डस्ट्री क्लस्टर को कन्सोर्टियमों में बदलने के लिये यूरो अमेरिकी काॅआपरेटिव रिसर्च का वातावरण बनाना चाहिये और उद्यमिता विकास हेतु युवा वर्ग को तैयार कर बायोकाॅन व निरमा जैसे उदाहरण खड़े करने चाहिये। इन सभी की रीति-नीति पर और कभी चर्चा करेंगे, अभी मैं अपनी चर्चा को यहीं पूरी करता हूँ।


17 comments:

  1. हम सरकार अनुमोदित कर रहे हैं और प्रमाणित ऋण ऋणदाता हमारी कंपनी व्यक्तिगत से अपने विभाग से स्पष्ट करने के लिए 2% मौका ब्याज दर पर वित्तीय मदद के लिए बातचीत के जरिए देख रहे हैं जो इच्छुक व्यक्तियों या कंपनियों के लिए औद्योगिक ऋण को लेकर ऋण की पेशकश नहीं करता है।, शुरू या आप व्यापार में वृद्धि एक पाउंड (£) में दी गई हमारी कंपनी ऋण से ऋण, डॉलर ($) और यूरो के साथ। तो अब एक ऋण के लिए अधिक जानकारी के लिए हमसे संपर्क करना चाहिए रुचि रखते हैं, जो लोगों के लागू होते हैं। उधारकर्ताओं के डेटा की जानकारी भरने। Jenniferdawsonloanfirm20@gmail.com: के माध्यम से अब हमसे संपर्क करें
    (2) राज्य:
    (3) पता:
    (4) शहर:
    (5) सेक्स:
    (6) वैवाहिक स्थिति:
    (7) काम:
    (8) मोबाइल फोन नंबर:
    (9) मासिक आय:
    (10) ऋण राशि की आवश्यकता:
    (11) ऋण की अवधि:
    (12) ऋण उद्देश्य:

    हम तुम से जल्द सुनवाई के लिए तत्पर हैं के रूप में अपनी समझ के लिए धन्यवाद।

    ई-मेल: jenniferdawsonloanfirm20@gmail.com

    ReplyDelete
  2. सभी को नमस्कार,
    आप एक तत्काल ऋण की जरूरत है?
    आप एक ऋण परियोजना की जरूरत है?
    एक घर या एक कार खरीद रहे हो?।
    ऋण ऋण का भुगतान करने के लिए?
    "निवेश ऋण" प्रस्तावों
    आप किसी भी वित्तीय कठिनाई होती है?
    आप बैंकों द्वारा अस्वीकार कर दिया और scammers द्वारा धोखा दिया गया है?
    हम आपकी समस्या का अतीत की बात करने के लिए यहाँ हैं !!
    हमें तुरंत ईमेल, हम 24 घंटे के भीतर तुरंत उपचार की गारंटी।

    हम क्रेडिट 2000-900000 यूरो और पुनर्भुगतान समय के लिए भुगतान की अवधि (1-30 वर्ष) की पेशकश करते हैं।
    संपर्क: leonafrederickloan@gmail.com
              meridian.bank.mail@gmail.com

    हमें चुनने के लिए धन्यवाद ...

    -
    - - - - - - - - - -

    पश्चिम ड्राइव, 60F
    डी-40 212 Auxtin, टेक्सास
    अमरीका / टेक्सास
    ईमेल: leonafrederickloan@gmail.com
    टैक्स नंबर: 133/5805/2033
    जिला न्यायालय टेक्सास, एच आर बी 56 768
    प्राधिकरण: टेक्सास परिषद

    ReplyDelete
  3. Helo,
    मैं Blenda कोनोली, उधारदाताओं

    व्यक्तिगत ऋण
    एक जीवन भर का व्रत अवसर।
    आप एक ऋण के लिए सही दूर की जरूरत है

    अपने कर्ज का भुगतान करने के लिए, या आप

    बढ़ाने के लिए ऋण की जरूरत है

    अपने वाणिज्यिक?
    आप द्वारा अस्वीकार कर दिया गया है
    बैंकों और अन्य संस्थानों को आर्थिक रूप से?
    आप एक ऋण के एकीकरण की जरूरत है

    या ग्रहणाधिकार प्रतिज्ञा?
    फिर से देख रहे हैं क्योंकि हम यहाँ हैं

    अपनी समस्याओं के सभी आर्थिक रूप से बनाने के लिए

    एक मामले में पिछले है। हमें

    व्यक्तियों के लिए धन उधार दे
    कौन है, आर्थिक रूप से मदद की जरूरत है जो

    बुरा क्रेडिट है या

    पैसे की जरूरत है
    बिलों का भुगतान करने के लिए, में निवेश करने के लिए

    2% के स्तर पर वाणिज्य। मैं महू

    सूचित करने के लिए इस माध्यम का उपयोग

    आप हम सहायता प्रदान करते हैं कि

    यकीन किया जाए और प्राप्तकर्ता और होगा

    loan.So संपर्क पेशकश करने को तैयार

    आज हमें ई-मेल के माध्यम से:
    (Blendaconnollyloanfirm@gmail.com)
    डाटा उधारकर्ताओं
    1) पूरा नाम:

    ..............................

    ............... ..........
    2) देश: ..............................

    ................ ........... ..
    3) पता: ..............................

    ................ ............
    4) देश: ..............................

    ................ ................
    5) लिंग:

    ..............................

    ................ .............. ....
    6) विवाह की स्थिति:

    ..............................

    ............... ....
    7) कार्य:

    ..............................

    ................ .. .....
    😎 संख्या फ़ोन:

    ..............................

    ................ ..
    9) हालांकि कार्यस्थल में ब्यूरो:

    .....................
    10) मासिक आय:

    ..............................

    ...............
    11) ऋण राशि की आवश्यकता:

    .............................. .......
    12) अवधि ऋण:

    ..............................

    ............... ...
    13) ऋण भत्ते:

    ..............................

    ..............
    14) धर्म: ..............................

    ................ ..... .....
    15) इससे पहले कि आप विनती कर रहे हैं

    ........................ .........
    धन्यवाद,
    Blenda

    ReplyDelete
  4. Kami adalah sebuah organisasi yang dibentuk untuk membantu orang yang membutuhkan bantuan, seperti bantuan keuangan. Jadi, jika Anda akan melalui masalah keuangan, jika Anda memiliki kekacauan finansial dan Anda perlu dana untuk memulai bisnis Anda sendiri atau Anda membutuhkan pinjaman untuk membayar utang atau membayar tagihan, memulai bisnis yang baik atau Anda merasa sulit
    mendapatkan pinjaman dari bank lokal, hubungi kami hari ini via e - surat brendaconnollyloanfirm@gmail.com
    "Jadi, jangan biarkan kesempatan ini berlalu,
    Anda disarankan untuk mengisi dan mengembalikan rincian di bawah ini .. Nama Anda: ______________________
    Alamat Anda: ____________________
    Negara: ____________________
    Tugas Anda: __________________
    Jumlah pinjaman yang diperlukan: ______________
    Jangka waktu pinjaman: ____________________
    Pendapatan bulanan: __________________
    Nomor ponsel: ________________
    Apakah Anda mengajukan pinjaman sebelumnya: ________________
    Jika Anda telah membuat pinjaman sebelumnya, di mana Anda diperlakukan dengan jujur? ... Bertindak cepat dan keluar dari tekanan keuangan, berantakan, dan tantangan dari kontak brenda connolly PINJAMAN PERUSAHAAN hari ini melalui e - mail:brendaconnollyloanfirm@gmail.com

    ReplyDelete
  5. Kami adalah sebuah organisasi yang dibentuk untuk membantu orang yang membutuhkan bantuan, seperti bantuan keuangan. Jadi, jika Anda akan melalui masalah keuangan, jika Anda memiliki kekacauan finansial dan Anda perlu dana untuk memulai bisnis Anda sendiri atau Anda membutuhkan pinjaman untuk membayar utang atau membayar tagihan, memulai bisnis yang baik atau Anda merasa sulit
    mendapatkan pinjaman dari bank lokal, hubungi kami hari ini via e - surat brendaconnollyloanfirm@gmail.com
    "Jadi, jangan biarkan kesempatan ini berlalu,
    Anda disarankan untuk mengisi dan mengembalikan rincian di bawah ini .. Nama Anda: ______________________
    Alamat Anda: ____________________
    Negara: ____________________
    Tugas Anda: __________________
    Jumlah pinjaman yang diperlukan: ______________
    Jangka waktu pinjaman: ____________________
    Pendapatan bulanan: __________________
    Nomor ponsel: ________________
    Apakah Anda mengajukan pinjaman sebelumnya: ________________
    Jika Anda telah membuat pinjaman sebelumnya, di mana Anda diperlakukan dengan jujur? ... Bertindak cepat dan keluar dari tekanan keuangan, berantakan, dan tantangan dari kontak brenda connolly PINJAMAN PERUSAHAAN hari ini melalui e - mail:brendaconnollyloanfirm@gmail.com

    ReplyDelete
  6. मैं नाम से जेसिका markey हूँ। मैं Nort प्रोविडेंस, रोडे द्वीप में संयुक्त राज्य में रहते हैं, मैं अपनी हताशा के कारण इस माध्यम का उपयोग करने के लिए सभी ऋण चाहने वालों को सचेत करने के लिए क्योंकि scammers everywhere.Few महीने पहले मैं आर्थिक रूप से तनावपूर्ण था, और देखते हैं बहुत सावधान रहने की मैं कई द्वारा scammed गया था चाहते हैं ऑनलाइन उधारदाताओं। मैं लगभग आशा खो दिया था जब तक मेरे एक दोस्त ने मुझे एक बहुत ही विश्वसनीय ऋणदाता श्रीमती ब्रेंडा कोनोली जो मुझे किसी भी तनाव के बिना € 95,000 2hours के तहत की एक असुरक्षित ऋण के लिए उधार देने कहा जाता है के लिए भेजा। आप ऋण के किसी भी प्रकार की जरूरत होती है तो सिर्फ उसके माध्यम से अब संपर्क करें: brendaconnollyloanfirm@gmail.com मैं नरक मैं उन धोखाधड़ी उधारदाताओं के हाथों throughin पारित कर दिया की वजह से सभी ऋण चाहने वालों को सचेत करने के लिए इस माध्यम का उपयोग कर रहा हूँ। और मैं नहीं चाहता भी मेरे दुश्मन इस तरह के नरक के माध्यम से पारित करने के लिए है कि मैं उन धोखाधड़ी ऑनलाइन उधारदाताओं के हाथों में पारित के माध्यम से, मैं भी तुम मुझे जो आप दूसरों के लिए एक बार एक ऋण की जरूरत में भी कर रहे हैं करने के लिए इस जानकारी को पारित करने में मदद करना चाहते हैं जाएगा यह भी Mrs.blenda कोनोली से अपने ऋण प्राप्त है, मैं प्रार्थना करता हूँ कि भगवान ने उसे लंबे life.God पर मैं अपने ऋण को उसे forever.Jessica markey गवाही आशीर्वाद दे देना चाहिए

    ReplyDelete
  7. मैं नाम से जेसिका markey हूँ। मैं Nort प्रोविडेंस, रोडे द्वीप में संयुक्त राज्य में रहते हैं, मैं अपनी हताशा के कारण इस माध्यम का उपयोग करने के लिए सभी ऋण चाहने वालों को सचेत करने के लिए क्योंकि scammers everywhere.Few महीने पहले मैं आर्थिक रूप से तनावपूर्ण था, और देखते हैं बहुत सावधान रहने की मैं कई द्वारा scammed गया था चाहते हैं ऑनलाइन उधारदाताओं। मैं लगभग आशा खो दिया था जब तक मेरे एक दोस्त ने मुझे एक बहुत ही विश्वसनीय ऋणदाता श्रीमती ब्रेंडा कोनोली जो मुझे किसी भी तनाव के बिना € 95,000 2hours के तहत की एक असुरक्षित ऋण के लिए उधार देने कहा जाता है के लिए भेजा। आप ऋण के किसी भी प्रकार की जरूरत होती है तो सिर्फ उसके माध्यम से अब संपर्क करें: brendaconnollyloanfirm@gmail.com मैं नरक मैं उन धोखाधड़ी उधारदाताओं के हाथों throughin पारित कर दिया की वजह से सभी ऋण चाहने वालों को सचेत करने के लिए इस माध्यम का उपयोग कर रहा हूँ। और मैं नहीं चाहता भी मेरे दुश्मन इस तरह के नरक के माध्यम से पारित करने के लिए है कि मैं उन धोखाधड़ी ऑनलाइन उधारदाताओं के हाथों में पारित के माध्यम से, मैं भी तुम मुझे जो आप दूसरों के लिए एक बार एक ऋण की जरूरत में भी कर रहे हैं करने के लिए इस जानकारी को पारित करने में मदद करना चाहते हैं जाएगा यह भी Mrs.blenda कोनोली से अपने ऋण प्राप्त है, मैं प्रार्थना करता हूँ कि भगवान ने उसे लंबे life.God पर मैं अपने ऋण को उसे forever.Jessica markey गवाही आशीर्वाद दे देना चाहिए

    ReplyDelete
  8. आप एक आदमी या एक औरत हैं, आप एक ऋण के लिए अपने व्यापार के बढ़ने के लिए देख रहे हैं
    या अपने स्वयं के व्यवसाय या ऋण, बिलों का भुगतान, अपने घर का किराया? यदि हाँ, तो हम अधिक से अधिक € 500,000,000.00 एक परिपक्वता है कि आप खर्च कर सकते हैं, और ऋण के किसी भी प्रकार है, जो ग्राहक के अनुरोध किया जाना चाहिए साथ (€) तक € 15,000.00 (€) के अपने जवाब ऋण है: * व्यक्तिगत ऋण * व्यवसाय ऋण, व्यक्तिगत ऋण * 2% ब्याज अधिक जानकारी के लिए संपर्क ईमेल के लिए ब्याज प्रदान की (boltonmicrofinance@gmail.com)

    ReplyDelete
  9. क्या आपको अपने कर्ज का भुगतान करने के लिए तत्काल ऋण की आवश्यकता है या आपको अपने व्यवसाय में सुधार करने के लिए ऋण की आवश्यकता है? क्या आपको एक समेकन ऋण या बंधक की जरूरत है? क्या आपको बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों द्वारा अस्वीकार कर दिया गया है? अब और नहीं खोजिए क्योंकि हम आपकी सभी वित्तीय समस्याओं को अतीत की बात करने के लिए यहां हैं !! हम 2% की कम और सस्ती ब्याज दर पर कंपनियों, निजी संस्थाओं और व्यक्तियों को ऋण देते हैं आप ई-मेल के जरिए हमसे संपर्क कर सकते हैं: (georgelucy007@gmail.com)

    डेटा का आवेदन

    1) नाम ...........................
    2) देश .......................
    3) पता ......................
    4) लिंग ........................
    5) वैवाहिक स्थिति ...
    6) व्यवसाय ................
    7) फोन नंबर ...........
    8) काम के स्थान पर स्थिति .....
    9) मासिक आय ....................
    10) ऋण राशि .........
    11) ऋण की अवधि .....
    12) ऋण का उद्देश्य ..................
    13) जन्म तिथि ........................

    धन्यवाद।

    ReplyDelete
  10. Hello everyone am here to testify how i got my loan from MRS LINDA ROBORT LOAN FIRM a friend of mine introduce me to MRS LINDA ROBORT LOAN FIRM who promised to help me and indeed she did as she promised without any form of delay.I never thought there are still reliable loan lenders until i met MRS LINDA ROBORT LOAN FIRM,who are indeed helped with the loan and changed my belief.I dont know if you are in any way in need of a genuine and urgent loan,free feel to contact

    MRS LINDA ROBORT LOAN FIRM

    email: mrslindarobertloanfirm@outlook.com

    https://mrslindarobortloanfirm.yolasite.com/

    Whatsapp: +1 727 731 9117

    Hotline :+1 336 283 2076

    ReplyDelete
  11. Hello,
    my name is Marian Savic, I was a victim of fraud in the hands of fake lenders. I have lost about 10 million because i needed a big capital of 150 million. I almost died, I had no place to go . My business was destroyed and in the process I lost my son. I could not stand this happening again. in January 2017, My friend introduced me to a good mother, Mrs Ivana Luka, that ultimately helped me secure a loan in her loan company . I wish to use this opportunity to advice fellow Indonesians that there are many scammers out there, so if you need a loan, and wish to secure a loan fast, only register through Mrs Ivana Luka and you can contact her via email: (ivanaluka04@gmail.com). you can also contact me through my email: (mariansavic271@gmail.com). if you have any doubt. she is the only person reliable and trustworthy.
    Thank You.

    ReplyDelete
  12. अली potrebujete posojilo ZA Zaghonan PODJETJE? 2% posojila ponujajo zainteresirane organizacije में posameznike दा NAS kontaktirate Preko email..globalalliancecompanyg@gmail.com

    ReplyDelete
  13. ऋण! ऋण !! ऋण !!!
    क्या आप एक सम्मानित और मान्यता प्राप्त निजी ऋण कंपनी की तलाश कर रहे हैं जो जीवन समय अवसरों पर ऋण देता है। हम बहुत ही त्वरित और आसान तरीके से सभी प्रकार के ऋण प्रदान करते हैं, व्यक्तिगत ऋण, कार ऋण, गृह ऋण, छात्र ऋण, व्यापार ऋण, निवेश ऋण, ऋण समेकन, और अधिक क्या आपको बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों द्वारा अस्वीकार कर दिया गया है? क्या आपको एक समेकन ऋण या बंधक की जरूरत है? अब और नहीं खोजिए क्योंकि हम यहां अपनी सारी वित्तीय परेशानियों को अतीत की बातों के लिए बनाने के लिए यहां हैं। हम 2% की दर से वित्तीय सहायता की आवश्यकता वाले व्यक्तियों और व्यवसायों के लिए ऋण धनराशि निकालते हैं कोई सामाजिक सुरक्षा नंबर आवश्यक नहीं है और कोई क्रेडिट जाँच की आवश्यकता नहीं है, गारंटी की 100%। मैं इस माध्यम का उपयोग करना चाहता हूं कि आपको सूचित किया जाए कि हम विश्वसनीय और लाभार्थी सहायता प्रदान करते हैं और हमें आपको एक ऋण प्रदान करने में खुशी होगी।
    तो आज हमें ईमेल करें: (victoriaemmanuelloan@gmail.com) अब एक ऋण के लिए आवेदन करने के लिए

    ReplyDelete
  14. हैलो, यह डोनेगल वित्तीय समूह है एक सम्मानित, वैध और
    मान्यता प्राप्त ऋणदाता हम सभी प्रकार के ऋण को बहुत तेज में देते हैं और
    आसान तरीका। हम दोनों वाणिज्यिक ऋण, व्यापार ऋण, ऋण की पेशकश करते हैं
    समेकन, छात्र ऋण या अपनी पसंद के किसी भी प्रकार के ऋण पर 2%
    ब्याज दर। यदि आप रुचि रखते हैं तो इस ईमेल पर हमें वापस आ जाओ
    पता donegalgroupint@gmail.com


    Hello, this is Donegal financial group. A reputable, legitimate &
    accredited lender. We give out loan of all kinds in a very fast and
    easy way. We offer both commercial loan, business loan, Debt
    Consolidation, student loan or any kind of loan of your choice at 2%
    interest rate. If you are Interested get back to us on this Email
    address donegalgroupint@gmail.com

    ReplyDelete

  15. We are a Finance Industry Company professionals with over 15 Years Experience and a focus on providing Bank Guarantee and Standby Letter of Credit from some of the World Top 25 Prime Banks primarily from Barclays, Deutsche Bank, HSBC,Credit Suisse e.t.c.

    FEATURES:
    Amounts from $1 million to 5 Billion+
    Euro’s or US Dollars
    Great Attorney Trust Account Protection
    Delivered via MT760, MT799 and MT103 Swift with Full Bank Responsibility
    Brokers Always Protected

    Purchase Instrument of BG/SBLC : 32%+2% Min Face Value cut = EUR/USD 1M-5B
    Lease Instrument of BG/SBLC : 4%+2% Min Face Value cut = EUR/USD 1M-5B

    Interested Agents/Brokers, Investors and Individual proposing international project funding should contact us for directives.We will be glad to share our working procedures with you upon request.


    We Facilitate Bank instruments SBLC for Lease and Purchase. Whether you are a new startup, medium or large establishment that needs a financial solution to fund/get your project off the ground or business looking for extra capital to expand your operation,our company renders credible and trusted bank guarantee provider who are willing to fund and give financing solutions that suits your specific business needs.

    We help you secure and issue sblc and bank guarantee for your trade, projects and investment from top AA rated world Banks like HSBC, Barclays, Dutch Ing Bank, Llyods e.t.c because that’s the best and safest strategy for our clients.e.t.c

    DESCRIPTION OF INSTRUMENTS

    1. Instrument: Funds backed Bank Guarantee(BG) ICC-600
    2. Currency : USD/EURO
    3. Age of Issue: Fresh Cut
    4. Term: One year and One day
    5. Contract Amount: United State Dollars/Euros (Buyers Face Value)
    6. Price : Buy:32%+1, Lease: 4%+2
    7. Subsequent tranches: To be mutually agreed between both parties
    8. Issuing Bank: Top RATED world banks like HSBC, Barclays, ING Dutch Bank, Llyods e.t.c
    9. Delivery Term: Pre advise MT199 or MT799 first. Followed By SWIFT MT760
    10. Payment Term: MT799 & Settlement via MT103
    11. Hard Copy: By Bank Bonded Courier


    Interested Agents,Brokers, Investors and Individual proposing international project funding should contact us for directives.We will be glad to share our working procedures with you upon request.



    Name:Richardson McAnthony
    Contact Mail : intertekfinance@gmail.com

    ReplyDelete
  16. क्या आपको व्यवसाय, ऋण ऋण शुरू करने के लिए तत्काल ऋण की आवश्यकता है? एक कार या एक घर खरीदते हैं? अगर हाँ तो चिंता न करें, क्योंकि हम बिना किसी संपार्श्विक और बिना क्रेडिट जाँच के 3% की कम और सस्ती ब्याज दर पर सभी प्रकार के ऋण प्रदान करते हैं। यदि आपको नीचे की जानकारी के साथ ऋण की आवश्यकता है तो हमारे पास वापस आ जाओ। अब हमसे हमसे संपर्क करें: EMAIL trustfundfinaceservice@gmail.com

    ReplyDelete
  17. नमस्ते, यदि आप एक व्यापार ऋण की तलाश कर रहे हैं? व्यक्तिगत ऋण, गृह ऋण, कार ऋण, छात्र ऋण, ऋण समेकन ऋण, असुरक्षित ऋण, उद्यम पूंजी, आदि या यदि आप किसी भी कारण बैंक या वित्तीय संस्था द्वारा खारिज कर दिया है? मैं श्रीमती मैरियन लुकास निजी ऋणदाता हूं और मैं 2% की ब्याज दर वाले व्यवसायों और व्यक्तियों के लिए ऋण प्रदान करता है और कम और सस्ती है। यदि आपको इसमें रुचि हो? पर संपर्क करें आज: (chosenloanfinancial@gmail.com)

    ReplyDelete