Sunday, February 15, 2015

हमारे देश का दवा उद्योग दुनिया के गरीबों की आस

दुनियाभर में कमजोर वर्ग की आस भारत का दवा उद्योग।
वैसे तो 21 मई को संयुक्त राष्टसंघ द्वारा योग को अंतर्राष्ट्रीय दिवस घोषित करने से दुनिया का बहुत बड़ा भला होने वाला है। फिर भी अंग्रेजी या ऐलोपैथिक दावा के क्षेत्र में भारत का बहुत बड़ा योगदान है। कैसे जानिये एक समाचार द्वारा।
जनवरी 2014 से जनवरी 2015 तक के 13 महीनों में भारतीय अरबपतियों की कुल संपत्ति में 4,64,067 करोड़ रुपए की वृद्धि हुई। इसमें सबसे बड़ा योगदान दवा उद्योगपतियों का रहा। इन सबका धन इसलिए बढ़ा, क्योंकि उनके शेयरों में विदेशी संस्थागत निवेशकों ने खूब निवेश किए। जानकारों ने इसे अनेक चुनौतियों के बावजूद भारतीय दवा उद्योग की संभावनाओं में निवेशकों के कायम भरोसे का प्रमाण माना। यानी दुनियाभर के बाजारों में सस्ती दवा उपलब्ध कराने वाली भारतीय दवा कंपनियों की साख कायम है। ये दवाएं न सिर्फ अफ्रीका और अन्य विकासशील देशों में, बल्कि अमेरिका में भी कमजोर वर्ग के मरीजों की आस बनी हुई हैं। नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री जोसेफ स्टिगलिट्ज ने पिछले हफ्ते लिखे लेख में यहां तक कहा कि अगर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को अपने बहुचर्चित हेल्थकेयर प्रोग्राम की सफलता सुनिश्चित करनी है, तो उन्हें भारतीय दवा उद्योग पर नकेल कसने की कोशिशों से बाज़ आना चाहिए। गौरतलब है कि पेटेंट संबंधी जिन भारतीय कानूनों की वजह से हमारी कंपनियां सस्ती दवाएं मुहैया कराने में कामयाब हुई हैं, उन्हें बदलवाने के लिए अमेरिकी कंपनियां अभियान चलाती रही हैं और ओबामा प्रशासन उनकी तरफ से भारत पर दबाव डाल रहा है।
ये कानून 1970 के दशक में बने, जिनसे उन्नत और कारगर जेनरिक दवाओं के उत्पादन का रास्ता खुला। वैश्विक पेटेंट व्यवस्था विश्व व्यापार संगठन के तहत ट्रिप्स समझौते के 2005 में लागू होने से बदली। फिर भी कई मामलों में भारतीय कंपनियों के लिए जेनरिक दवाओं का उत्पादन मुमकिन बना रहा। ये औषधियां पेटेंट-अधिकार रखने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों की दवाओं की तुलना में कितनी सस्ती होती हैं, इसकी एक मिसाल हेपेटाइटिस-सी की दवा सोवाल्डी है। अमेरिका में इसकी पेटेंटेड दवा के पूरे कोर्स पर 84,000 डॉलर खर्च होते हैं, जबकि भारतीय कंपनियां उसका जेनरिक संस्करण 1,000 डॉलर में उपलब्ध कराती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पिछली अमेरिका यात्रा के दौरान दोनों देशों में भारत की पेटेंट नीति के पुनर्मूल्यांकन पर सहमति बनी थी। स्वाभाविक रूप से इससे दुनियाभर में चिंता पैदा हुई, लेकिन निवेशकों ने जैसा भरोसा भारतीय कंपनियों में दिखाया है, उससे उम्मीद बनती है कि भारतीय सफलता की ये शानदार कहानी आगे भी जारी रहेगी। एनडीए सरकार को इसे अवश्य सुनिश्चित करना चाहिए

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