Tuesday, September 20, 2016

प्रदुषण के भारत व दुनियां को मापे जाने वाले नुक्सान

वायु प्रदूषण से सालाना 56 हजार करोड़ डॉलर का नुकसान, 14 लाख मौत केवल भारत में। ऐसी खबर एक सप्ताह पूर्व छपी तो मैं पढ़कर एकदम चोंका। अभी तक ऐसे आंकलन छपते थे जो सूक्ष्म प्रभाव वाले या अनगिनत असर दर्शाते थे, यथा कि इतने शहर डूब जायेंगे, कि लोगों का सांस लेना मुश्किल हो जायेगा, आदि, आदि। पर ये खबर एकदम साफ बताती है कि देश की अर्थव्यवस्था को वायु प्रदूषण से सालाना 56,049 करोड़ डॉलर से अधिक का नुकसान हो रहा है तथा 14 लाख से ज्यादा लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ती है। विश्व बैंक द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2013 में वायु प्रदूषण की रोकथाम तथा इससे होने वाली बीमारियों के इलाज पर भारत का खर्च 50,510.3 करोड़ डॉलर रहा था। इसके अलावा 14,03,136 लोगों की वायु प्रदूषण जनित बीमारियों से मौत हो गई थी। श्रमबल की हानि के रूप में भी अर्थव्यवस्था को 5,539 करोड़ डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा। इस प्रकार कुल नुकसान 56,049.3 करोड़ डॉलर रहा जो देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 8.53 प्रतिशत था। रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 1990 में वायु प्रदूषण के मद में जनकल्याण पर खर्च 10,490.6 करोड़ डॉलर रहा था। इसके अलावा श्रमबल हानि के रूप में 2,874.2 करोड़ डॉलर रहा था। वर्ष 1990 में इससे 10,43,182 लोगों की मौत हुई थी।
वायु प्रदूषण से जीडीपी को होने वाले नुकसान के मामले में चीन पहले नंबर पर, भारत दूसरे नंबर पर तथा अमेरिका तीसरे नंबर पर है। चीन ने वर्ष 2013 में इससे जुड़ी कल्याणकारी योजनाओं पर 1,58,976.7 करोड़ डॉलर तथा अमेरिका ने 45,467.5 करोड़ डॉलर खर्च किये थे। इनके अलावा रूस और जापान का खर्च भी 10 हजार करोड़ डॉलर से ज्यादा है। विश्व बैंक के अनुसार, वायु प्रदूषण सबसे घातक प्रदूषण के रूप में सामने आया है। यह दुनिया भर में समय से पहले मौत का चौथा सबसे बड़ा कारक है। इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को वर्ष 2013 में 22,500 करोड़ डॉलर के बराबर श्रमबल का नुकसान हुआ था। इसके अलावा इससे जुड़ी कल्याणकारी योजनाओं पर होने वाला खर्च पाँच लाख करोड़ डॉलर रहा जो दुनिया की कुल जीडीपी का 7.5 प्रतिशत है।
इस बात को पढ़ कर एकात्म मानव दर्शन, हिन्द स्वराज सबके अर्थ समझ आने लगते है कि हमारे देश के चिंतक प्रकृति संरक्षण पर इतना ध्यान क्यों देते थे।


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