Friday, October 14, 2016

बंद होते उद्योग - कैसे होगा चीनी आयात से मुकाबला


कैसे करेंगे चीन का मुकाबला
चीन से सीमा पर खतरा अलग है और पकिस्तान की मदद से आतंकवाद की लगाई फैक्टरी अलग से खतरा है।पर आर्थिक खतरे के मुकाबले सेना की तरह हमारे उद्योग धंधो का तगड़ा होना भी जरूरी है। दुःख व चिंता का विषय है की ऐसा हो नहीं रहा। एक एक कर भार्यया उद्योग बंद हो रहे है। देखे कैसे।
नवभारत टाइम्स अपने संपादकीय में लिखता है कि बैंकों का बढ़ता बट्टा खाता विकास की राह में एक बड़ा रोड़ा साबित हो सकता है। पिछले दिनों पता चला कि फंसा हुआ कर्ज हमारे अनुमान से काफी अधिक है। ग्लोबल न्यूज एजेंसी रायटर्स द्वारा आरटीआई के जरिये निकाली गई जानकारी के मुताबिक दिसंबर 2015 से इस साल जून तक ऐसे कर्जों की कुल रकम 8 लाख 6 हजार करोड़ रुपये से बढ़कर 9 लाख 22 हजार करोड़ रुपये हो चुकी थी।
यानी सिर्फ छह महीने के अंदर खराब कर्जों में 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। यहां फंसे हुए या खराब कर्ज से मतलब बैंकों द्वारा बांटे गए ऐसे कर्ज से है, जिसके मूल की तो क्या, ब्याज की भी अदायगी नहीं हो पा रही है। रिजर्व बैंक ने सभी बैंकों से कहा था कि वे मार्च तक अपने सभी फंसे हुए कर्जों को साफ तौर पर अपने खातों में दर्ज करें। अभी उन्होंने जिस हद तक भी ऐसा किया है, उस हद तक उनके लिए अपने लाभ का एक हिस्सा इनकी अदायगी के मद में अलग रखना पड़ा है।
इससे उनका मुनाफा तेजी से घट रहा है, जो अगले मार्च के बाद और तेजी से घटेगा। दरअसल, पिछले कुछ वर्षों में देश में ऐसा माहौल बना दिया गया है कि विकास का सारा दारोमदार औद्योगिक घरानों पर है, लिहाजा उन्हें कर्ज देने में बैंकों को कोई हीलाहवाली नहीं करनी चाहिए। इन घरानों ने अपने सरकारी संपर्कों का लाभ उठाकर बैंकों से अंधाधुंध कर्जे लिए और अक्सर करके इन्हें साफ डकार गए। होम लोन में तो लोगों का घर बंधक रहता है, पर औद्योगिक ऋण में ऐसा कुछ भी नहीं होता, लिहाजा अदायगी रुकने के बाद बैंकों के पास करने को कुछ होता ही नहीं।
आज एक तरफ बैंकों के कर्ज फंसे हुए हैं, दूसरी तरफ औद्योगिक उत्पादन में लगातार दूसरे महीने गिरावट दर्ज की गई है। माना जाता है कि अगस्त-सितंबर में ही कंपनियां त्योहारी सीजन को ध्यान में रखकर ज्यादा उत्पादन करती हैं। लेकिन इस बार सीन अलग है। जाहिर है, अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर कई चीजें नकारात्मक चल रही हैं। रिजर्व बैंक ने रिपो रेट घटाकर इकॉनमी में हलचल पैदा करने की कोशिश की है, लेकिन अपने फंसे हुए कर्ज से परेशान बैंक इस कमाई के सीजन में भी आम लोगों के लिए कर्ज सस्ता नहीं कर पाए हैं।
अपनी बैलेंस शीट दुरुस्त करने के लिए वे शेयरों और बॉन्ड्स के जरिये भी पैसे उगाहने की स्थिति में नहीं हैं। ऐसे में सरकार उन्हें नकदी उपलब्ध करा सकती है। वित्त मंत्री ने कहा भी है कि केंद्र सरकार बैंकों के साथ है। माना जा रहा है कि इस साल खरीफ की अच्छी फसल हुई है और कर्मचारियों को बढ़ा वेतन और एरियर भी मिलने वाला है। इससे अर्थव्यवस्था में मांग पैदा होगी और हालात सुधर जाएंगे। लेकिन इन अनुकूल स्थितियों का लाभ उठाने के लिए यह जरूरी है कि सरकार बैंकों को जल्द से जल्द मौजूदा संकट से उबारे।
चिंता का विषय ये है कि अगर चीन का मुकाबला करना हे उत्पादन कइ मामले में तो यहाँ पर उद्योग ज्यादा चुस्त होने चाहिए। इधर अगर एक एक कर बंद होते जायेंगे तो सस्ता उत्पादन और प्रचुर उत्पादन कैसे होगा।

No comments:

Post a Comment