Friday, August 30, 2019

कृषि की समस्या व समाधान, मेरे नोट्स

Agriculture Role in India - Problems & Challenges
केरल प्रवास में कृषि व उसकी समस्या व समाधान पर एक कार्यक्रम था, उसके लिए जो बिंदु तैयार किये, उसी का सारांश नीचे दे रहा हूँ।
"The farmer is the only man in our economy who buys everything at retail, 

पांच बाते किसान के बारे में:
1. पहली, कि मानना पड़ेगा कि किसान की हालत खराब है।
2. दूसरी की जैविक खेती जरूरी भी ओर छोटे किसानों के लिए बेहद लाभदायक है। इसके साथ ही मोटे अनाज या coarce या millets का महत्व भी बताना।
3. तीसरी बात है कि सरकार भी कुछ कर रही है। अंधे विरोध में अच्छी-अच्छी योजनाओं का प्रचार नहीं हो पा रहा, और सरकार से ठीक संवाद कर, जहां जरूरी है, वहां उचित विरोध कर, लोग सरकारी योजनाओं का लाभ लेना भी भूल जाते हैं।
4. और चौथी बात है कि वैश्वीकरण के युग मे अंतराष्ट्रीय शक्तियों पर नकेल भी बड़ी जरूरी है। AoA आदि। हरेक के दिमाग़ में बस अडानी, अम्बानी ही भरा रहता है। 

5. पांचवा और अंतिम भाग ये है कि किसान की ओर देखने का नजरिया बदलना भी जरूरी है। किसान होंसला हार गया तो देश की अन्न सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी, जो सीमा सुरक्षा जितनी ही जरूरी है। अतः इसके लिए भी जनजागरण जरूरी है। जय जवान, जय किसान का नारा शास्त्री जी ने सोच समझ कर दिया। आज़ादी पूर्व खड़ी के लिए आंदोलन चलाया था, अब खाद के लिए जरूरी है।
अब विस्तार से बताते हैं:
1. किसान की हालत खराब है।
A. सभी पार्टियां किसी विषय  पर सहमत हों या नही, पर एक बात पर जरूर सहमत होंगे कि आज देश मे किसान की हालत खराब है। दवा एक पर एक दे रहे हैं, पहले भी देते रहे, लेकिन मर्ज बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की।
B.  कहीं किसानों की आत्महत्या, कहीं ये सत्य की 45 से 50 फीसदी लोग कृषि कर रहें हैं लेकिन जीडीपी में योगदान कृषि मात्र 15 से 17 फीसदी। (b) कहीं इस बात से की दुनियां की सर्वाधिक कृषि योग्य भूमि हमारे पास लेकिन हमारा कृषि  उत्पाद का प्रतिशत मात्र 7.30 लेकिन चीन की हमारे से कम लेकिन 19.49 फीसदी।
(C) कहीं इस बात से भी दुर्दशा का पता चलता है कि चीन के 29.5 फीसदी लोग खेती में लगे हैं हमारे 47 फीसद। अमरीका के दो फीसदी।
(D) कहीं इस बात से भी पता चलता है कि 43.5 प्रतिशत किसान कर्ज में डूबे हैं और हर सरकार इस आश्वासन पर वोट बटोरती है कि किसानों के ऋण माफ किए जाएंगे।
2. जैविक खेती:   

दूसरी कि बड़े-बड़े इलाज चाहे कर ले, लेकिन कहीं परम्परागत तरीके ज्यादा कारगर होंगे जिनसे कॉरपोरेट्स को कोई लाभ नहीं, यथा जैविक खेती, कम खाद, कम पानी की खपत वाले मोटे अनाज, मिलेट्स, आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां, हर्बल प्लांटेशन, खेत में तालाब, कुँए,  एनीकट पानी के स्त्रोत आदि।  हमारी औसत खेती 1.6 हेक्टेयर की है और अधिकांश किसान सीमांत व मझोले है, उनके लिए ये कम लागत वाले नुक्से बड़े कारगर होंगे।
कई लोगों को जैविक नाम से चिढ़ हो गयी, उनके लिये बजट में जीरो बजट खेती को कह ले, परंपरागत खेती कह लें,  खेती करना। पशु रखें गए तो दूध भी होगा, गोबर भी होगा, जहरीले रसायन की दुर्गंध नहीं होगी तो उसका परिवार के साथ खेत मे समय बिताने का मन भी करेगा। दूसरी बात और ध्यान रखे जी। जैविक खेती भूतकाल का भूत नहीं, वर्तमान की सर्वाधिक मांग वाली उपज है, भविष्य की सर्वोच्च पद्धति है। अंतराष्ट्रीय मांग लगातार बढ़ रही है। (डेटा)
C. आयुर्वेदिक या हर्बल उत्पादों की मांग लगातार बढ़ रही है देश में और विदेश में भी। बड़े किसानों और कंपनियों के झूठे दुष्प्रचार से बचना चाहिए।
A. दुनिया मे 8.9% की रफ्तार से एक 19 में 7 करोड़ हैक्टर यानि 17 करोड़ एकड़ जमीन और जैविक खेती हुई। ये मत पूछना ये कितने प्रतिशत है, कुल कृषि भूमि का 1.4% है। 
2015 के एक आकलन के अनुसार, जैविक खाद्य पदार्थ और पेय का अन्तरराष्ट्रीय बाजार करीब 63 बिलियन अमेरिकी डाॅलर का है। यानि समझने के लिए जितना हर प्रकार का सामान चीन से भारत मे आता है उससे बड़ा बाजार जैविक का है।अमेरिका, जर्मनी और फ्रांस इसके बड़े माँग क्षेत्र हैं। यूरोप और चीन का नम्बर इनके बाद है। प्रति व्यक्ति खपत के लिहाज से स्विटजरलैण्ड, डेनमार्क और लक्समबर्ग अग्रणी हैं। इसकी पूर्ति के लिये आज दुनिया के 170 देशों की करीब 7 सो लाख हेक्टेयर भूमि को प्रमाणिक जैविक कृषि क्षेत्र में बदला जा चुका है। हालांकि यह रकबा कृषि उपयोग में आ रही कुल वैश्विक भूमि का मात्र एक फीसदी है। इस रकबे में ओसिनिया, यूरोप और लेटिन अमेरिका के बाद क्रमशः एशिया, उत्तरी अमेरिका तथा अफ्रीका का योगदान सबसे ज्यादा है। आॅस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना और अमेरिका ने अपनी-अपनी भूमि को जैविक रूप में ज्यादा बचाकर रखा है। निश्चित तौर पर इसमें खेती के अलावा जंगल का रकबा भी शामिल है। यह भले ही बाजार का एजेंडा हो। लेकिन यह सेहत और पर्यावरण के संरक्षण के लिये हितकर एजेंडा भी है।
B. जैविक  आजकल बाजार में कई ब्रांड के जैविक खाद्य पदार्थ उपलब्ध हैं जिनमें कुछ बड़े ऑर्गेनिक ब्रांडों के नामों में ऑर्गेनिक इण्डिया, प्योर एंड श्योर, फैब इण्डिया, नवधान्य, डाउन टू अर्थ, 24 मंत्रा, ग्रीन सेस, सात्विक, सन ऑर्गेनोफूड्स, ऑर्गेनिका, सनराइज, ऑर्गेनिक तत्व इत्यादि शामिल हैं। उपरोक्त के अलावा भी बाजार में कई बड़े ब्रांड उपलब्ध हैं। इंटरनेटऑल9ई पर इनका नाम सर्च करके इनकी वेबसाइट से अपने नजदीकी स्टोर का पता लगा सकते हैं। 

सन 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष के नाते मनाया जाने वाला है। इसको पारित करवाने में भारत का भी बड़ा हाथ है। तारना त्रयोदशी तथा मिलेट्स पर मेरा अलग से लेख ब्लॉग में छपा हुआ है।


C.  कृषि में अतुल सामर्थ्य (भगवती जी)

आज भी भारत यथेष्ट उत्पादन कर विश्व की दो तिहाई आबादी को खाद्य आपूर्ति कर सकता है।

1.  यहां विश्व की सर्वाधिक 18.9 करोड़ हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि है। यह विश्व का दूसरा सर्वाधिक सिंचित क्षेत्रफल वाला देश भी है। 

2. हर साल देश का 20 करोड़ हेक्टेयर मीटर जल बहकर समुद्र में चला जाता है। इसका यथोचित उपयोग करके हम सिंचित क्षेत्र को 6.67 करोड़ हेक्टेयर के वर्तमान स्तर से 16 करोड़ हेक्टेयर तक बढ़ा सकते हैं। ऐसा करके देश न केवल विश्व की शीर्ष खाद्य शक्ति बन सकता है, बल्कि विश्व की दो तिहाई यानी 500 करोड़ की आबादी को खाद्य आपूर्ति भी कर सकता है। 

3. अभी देश में असिंचित भूमि में खाद्यान्न उत्पादकता 750 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा सिंचित क्षेत्र में 3 टन प्रति हेक्टेयर है। वहीं, जैविक खाद-प्रधान देश नीदरलैंड में खाद्यान्न उत्पादकता 9 टन प्रति हेक्टेयर है। देश में उपलब्ध जलराशि से सिंचाई ।। को बढ़ा कर कुल 16 करोड़ हेक्टेयर कर लेने पर देश के कृषि उत्पादन को सवा दो गुना बढ़ाया जा सकता है, जबकि नीदरलैंड  की तरह जैविक खाद व उन्नत कृषि पद्धतियों का समावेश कर इसे 6 गुना किया जा सकता है।


इसी तरह, कृषि आय, कृषि क्षेत्र में सकल घरेलू उत्पाद बढ़ाकर देश की सकल वार्षिक आर्थिक वृद्धि दर में तेजी लाने के साथ बढ़े हुए कृषि निर्यात से विदेश व्यापार घाटे को भी समाप्त कर सकते हैं। कृषि पर निर्भर देश की आधी से भी अधिक आबादी की आय बढ़ने पर होने वाली अतिरिक्त खरीदारी एवं मांग-वृद्धि से देश की औद्योगिक उत्पादन वृद्धि दर भी सहजता से 2 से 3 गुना हो जाएगी। अभी देश में 3-5 करोड़ टन अतिरिक्त खाद्यान्न भंडार हैं। 75 लाख टन आलू आधिक्य है। 

जयंती लाल  भंडारी ने कहा है कि 


यह तुलनात्मक आर्थिक परिदृश्य इस बात का भरोसा देता है कि वैश्विक मंदी की चुनौतियों के बीच भारत की अर्थव्यवस्था डगमगाने वाली नहीं है। देश के सरकारी गोदामों में खाद्यान्न, दलहन और तिलहन का पर्याप्त भंडार है। देश का वर्तमान खाद्यान्न भंडार करीब डेढ़ साल तक लोगों की खाद्यान्न संबंधी जरूरतों को पूरा कर सकता है। इस महीने के अंत तक देश के सरकारी भंडारों में करीब दस करोड़ टन खाद्यान्न का भंडार होगा। यह बात महत्त्वपूर्ण है कि देश में चल रही विभिन्न जन कल्याणकारी योजनाओं और राशन कार्ड रखने वाले लोगों को वर्ष में करीब छह करोड़ टन अनाज वितरित किया जाता है।


हाल में कृषि मंत्रालय ने जो आंकड़े जारी किए हैं, वे बता रहे हैं कि देश में खाद्यान्न उत्पादन 29.19 करोड़ टन के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच सकता है। कृषि और उससे संबंधित क्षेत्रों के साढ़े तीन फीसद की दर से वृद्धि करने की बात भी सामने आई है। यह भी बताया गया है कि आगामी फसल वर्ष 2020-21 में खाद्यान्न उत्पादन लक्ष्य 29.83 करोड़ टन रखा गया है। पहली बार इतना बड़ा खाद्यान्न उत्पादन लक्ष्य रखा गया है। इस बड़े लक्ष्य के पूरे होने की संभावना इसलिए है कि भारतीय मौसम विज्ञान (आइएमडी) ने इस वर्ष मानसून के अच्छा रहने की भविष्यवाणी की है। अच्छे मानसून से कृषि और घरेलू क्षेत्र के लिए पानी की जरूरत पूरी करने में मदद मिलेगी। बेहतर कृषि से ग्रामीण क्षेत्रों में वस्तुओं और सेवाओं की मांग में वृद्धि होगी और संपूर्ण अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ने में मदद मिलेगी

organicfacts.net.in और organicshop.in आदि साइट्स पर देश के जाने-माने ऑर्गेनिक फूड स्टॉल्स की जानकारी मिल सकती है जिनका हम अपनी जरूरत के अनुसार चुनाव कर सकते हैं। देश के कई बड़े रिटेल स्टोर्स जैसे रिलायंस, हाइपर सिटी, बिग बाजार, स्पेंसर्स और ईजी डे पर भी जैविक खाद्य पदार्थ मिलते हैं। सिक्किम यद्यपि छोटा प्रदेश है, पर पूर्णतयः आर्गेनिक है, बाकी प्रदेश भी प्रेरणा ले सकते हैं। टैग लाइन ये है कि अब कोई ये न कहे कि दुनिया के प्रदूषण में किसान का भी हाथ है! ताक़तवरों नें पाप किए हैं ! भुगतने कमज़ोरों को पड़ेंगे !!


प्रदीप जी: भारत के खेतों में रासायनिक ज़हर छिड़का गया :-

2018 में 5438 करोड़ किलोग्राम

2019 में 5621 करोड़ किलोग्राम

2020 में 5988 करोड़ किलोग्राम ।इस रासायनिक ज़हर नें अरबों ₹ किसानों की जेब से निकाल लिए ।


इस ज़हर को अगर 130 करोड़ नागरिकों में देखें - तो प्रत्येक के हिस्से लगभग 4 किलो यह ज़हर हर महीने आया !   और एक साल में 46 किलो से अधिक, अर्थात सामान्य आदमी 45-50 किलो का होता है तो सालाना अपने वजन का तुलादान अपने ही शरीर को पेस्टिसाइड्स का।

अस्पतालों और दवाइयों नें खरबों ₹ इससे बीमार नागरिकों की जेब से निकाल लिए !

Now, None should say that farmers too have their contribution towards rising global pollution!
Since 1990 the market for organic food and other products has grown rapidly, reaching $63 billion worldwide in 2012. This demand has driven a similar increase in organically farmland that grew from 2001 tmanagedo 2011 at a compounding rate of 8.9% per annum.

As of 2019, approximately 70,000,000 hectares (170,000,000 acres) worldwide were farmed organically, representing approximately 1.4 percent of total world farmland (in satyamev jayte serial this fact was disclosed by sh. Sheroff ,  fertilizers industrialist president
Now, None should blame, that farmers too have their contribution towards rising global pollution

2. There has been a lot of discussion on the poor state of farmers in India. Farm loan waivers by the newly elected Congress governments in Madhya Pradesh, Rajasthan and Chhattisgarh have hit the national headlines. According to a report published in MINT newspaper on January 22, 2019, Indian Government is considering a plan to transfer cash to farmers instead of offering subsidies on various agricultural inputs. “The government is planning to club all farm subsidies including fertiliser costs and instead pay farmers cash…,” notes the article. The plan for the handout comes after the Bharatiya Janata Party was voted out in key state elections last month, forcing the government to draw up a course correction before federal polls due by May.

.Agriculture in India: 50% Population Generating 17% GDP

Agriculture contributes to 6.4% of the total world’s economic production. China is the largest contributor followed by India accounting for 19.49% and 7.39% of the total agricultural output respectively. India is the first and foremost an agriculture-based economy with 47% of its working population employed in the agriculture sector while China employs only 29.5% of its population in agriculture. With about half its population employed in agricultural activities, this should be a prominent source of India’s GDP if not the main source. In India, agriculture constitutes 17.32% of GDP as per 2018 data and this value has remained somewhat constant since 2011.

Problems & Issues of Agriculture in India

Farming Debt -
With the advancement of technology, capital is becoming a key factor in the development of agriculture. According to the NABARD, All India Financial Inclusion Survey (NAFIS) conducted by National Bank for Agricultural and Rural Development (NABARD) in 2016-17, 43.5% agricultural households reported to have borrowed any money from some source or the other. 60.4% of them reportedly borrowed from institutional sources exclusively.  Further, 30.3% borrowed from only informal sources and 9.2% of agricultural households borrowed from both sources. The rural population is widely dependent on local money lenders for loans who charge very high interest rates. According to 2015 National Crime Records Bureau data, as many as 8,007 Indian farmers committed suicide in 2015, an increase of 41.7% from 5,650 in 2014, 39% of farmers who died in this manner were in debt. In 2014, 20.6% of farmers who killed themselves had borrowed money.
Agriculture Land Holdings -
ccording to NAFIS, the average size of agricultural land holding of a household is 1.1 hectare in 2015-2016.
Even the state wise average land holding was quite uneven. While Nagaland (2.1 ha), Rajasthan (1.9 ha) and Haryana (1.7 ha) reported higher land sizes per household, it was around 0.5 Ha in Bihar, West Bengal, Tripura, Sikkim and Jammu & Kashmir.

This fragmentation of land is blamed mostly on inheritance laws where in the land sizes grow smaller with each passing generation and the smaller size of land leads to less productivity.

Equipment -
Seeds: The yield is mainly dependent on quality of the seed. High Yielding Variety Programme (HYVP) was launched in 1966-67 to increase the seed production in India. Although the seed production has increased, these seeds are not available to a large number of farmers due to their high prices.
Chemicals: The agricultural prosperity of a country is measured in terms of amount of fertiliser used. India’s low yields are owed to the continuous production without adequate soil nourishment which is done using manure and fertilisers. Chemical fertilisers being costly, cow dung is the most effective natural manure but it is mainly used as kitchen fuel in form of dung cakes. India has a potential of 650 million tonnes of rural and 160 lakh tonnes of urban compost which is not fully utilized at present. The utilization of this potential will solve the twin problem of disposal of waste and providing manure to the soil.
Mechanical Equipment: Despite large scale mechanisation in some parts of the country, majority of farmers (small and marginal) still use conventional hand tools for most of their farming operations. NAFIS showed that only 5.2% of agricultural households in the country owned a tractor and 1.8% owned a power tiller. This results in wastage of human labour and lower yields per capita labour force.
Irrigation: Despite being the second largest irrigated country in the world after China, only one-third of cultivated land in India is irrigated. India, where rainfall is uncertain, irrigation is a major factor that needs to be looked upon to increase yields. Access to drip irrigation and sprinkler was limited to 1.6% and 0.8% families respectively according to NAFIS. Punjab, Haryana and western Uttar Pradesh where more than half the lands are under irrigation have seen tremendous increase in production.
Lack of Marketing and Storage -
After harvest, farmers usually sell off their produce at throw-away prices due to lack of storage facility and the ever-increasing burden of debt. This produce is often sold to local traders and money lenders at very low price. The Rural Credit Survey Report remarked that producers in general sell their produce at an unfavourable place and at an unfavourable time and usually get unfavourable terms. Many market surveys have revealed that middlemen take away about 48% of the price of rice, 52% of the price of groundnuts and 60% of the price of potatoes offered by consumers. Apart from this about 6.6% of the total produce is lost due to inadequate storage facilities.
Low Farm Productivity –
Although India’s total land area is slightly more than one-third of China’s, its arable land is marginally bigger than China, being second only to that of USA. Despite this, India contributes to only 7.39% of the global agricultural output while China contributes 19.49%. The productivity of Indian agriculture is quite low as compared to that of China which can be attributed to the high land-man ratio, lack of mechanisation, lower capital and many other reasons. According to World Bank Economic Indicators Indices, Indian agricultural productivity is 1202.45 USD against an arable land of 52.6% while China’s is 1529.17 USD against 12.7% arable land in 2016.
Steps Take to Increase Farmers’ Income

Innovative Schemes -
Rythu Bandhu Scheme 2018: Also known as the Farmers’ Investment Support Scheme, it is a welfare program started by the Government of Telangana in May 2018. It is the first direct farmer investment support initiative in India, where cash is paid directly to the farmers. Rs 4000 per acre is to be provided to each farmer twice a year. 58.33 lakh farmers are recipients of this fund. Some affluent farmers have been encouraged to forego the support under Give it up option and the money saved goes to the Rythu Samanvaya Samithi (RSS) corpus.
AGRI UDAAN 2017: Indian Council of Agricultural Research (ICAR) and the National Academy of Agricultural Research Management (NAARM)’s technology business incubator a-IDEA launched Agri-Udaan, a food and agribusiness accelerator 2.0 in August 2017 along with IIM Ahmedabad’s Centre for Innovation, Incubation and Entrepreneurship (CIIE). This initiative promotes agricultural innovation and start ups and helps them gain mentorship and potential investment.
SAMPADA 2017: To obtain the goal of doubling farmers’ income by 2022, the Government of India approved Pradhan Mantri Kisan SAMPADA Yojana (Scheme for Agro-Marine Processing and Development of Agro-Processing Clusters) with an allocation of Rs 6000 crore during 2016-20. SAMPADA will be implemented by the Ministry of Food Processing Industries (MoFPI). The scheme aims at creating modern infrastructure and an effective supply chain management from farm to retail to help farmers get better returns on their produce.
Farm Loan Waiver -
Following in the footsteps of Andhra Pradesh and Telangana who waived off 24000 crore and 17000 crore respectively in 2014 and Tamil Nadu waiving off 6095 crore in 2016, in 2017-18, Maharashtra has waived 34000 crore, Uttar Pradesh 36000 crore, Punjab 10000 crore and Karnataka 8000 crore of farm loans. Most recently, the newly elected governments in Madhya Pradesh, Rajasthan and Chhattisgarh also started the process in December 2018. In an interview with The Economic Times on 6th January 2018, the newly elected president of FICCI, Sandip Somany said referring to the farm loan waivers, “It only gives immediate relief... I am not against it, but it does not guarantee that the farmer will not get into that mess again.”
Increased Storage and Better Marketing -
Agriculture storage capacity in India increased at 4% CAGR between 2014-17 to reach 131.8 million metric tonnes. The Government also launched an umbrella scheme Pradhan Mantri Annadata Aay SanrasHan Abhiyan (PM-AASHA) in September 2017 to help farmers get adequate prices for their produce. The scheme has three parts Price Support Scheme (PSS), Price Deficiency Payment Scheme (PDPS) and Private Procurement and Stockist Scheme (PPSS). While PSS sees that the expenditure and losses due to procurement of pulses, oilseeds and copra will be borne by the centre, PDPS proposes to cover all oilseeds and pay farmers directly in their bank accounts the difference between MSP and actual selling price. In the case of oilseeds, States will have the option to roll out PPSSs in select districts where a private player can procure crops at MSP when market prices drop below MSP.
Agriculture Export Policy 2018-
The Union Cabinet approved an export policy for agriculture in December 2018 and lifted all restrictions on organic and processed food. This is an initiative to help the government achieve its goal of doubling farmers’ income by 2022. The policy seeks to increase agriculture exports to $60 billion from $30 billion in 2017. The government will also invest 1400 crore to set up specialised clusters in different states for a variety of produce to push exports.
Agriculture Subsidy: Keeping Farmers Dependant
The biggest dilemma with the subsidies offered to farm sector is that they do not reach 100% to the farmers. While the intention of the Government offering subsidy on seeds, fertilizers, irrigation is not questioned, its implementation remains faulty and the middlemen involved in it usurp a major part of the subsidy amount. Besides, the agriculture subsidy makes the farmer dependant till the subsidy is received from the relevant agency. This is the reason that Government of India has decided to evolve a mechanism to transfer cash directly in farmers’ account instead of payin g subsidy of giving loan waiver. This will help the farmer to reduce the financial burden and buy the required inputs for the crop as per his

Data on agriculture: 

 4.3 Agricultural land

At present some 11 percent (1.5 billion ha) of the globe's land surface (13.4 billion ha) is used in crop production (arable land and land under permanent crops). This area represents slightly over a third (36 percent) of the land estimated to be to some degree suitable for crop production.
##Roughly 37% of Earth's land is today employed for agricultural purposes, with about 11% used for growing crops and the remainder for pasture. With more than seven billion mouths to feed greater demands are being put on agriculture than ever before, at the same time as land is being degraded by factors such as soil erosion, mineral exhaustion and drought.
Wikipedia

The history of Agriculture in India dates back to Indus Valley Civilization. India ranks second worldwide in farm outputs. As per 2018, agriculture employed more than 50% of the Indian work force and contributed 17–18% to country's GDP.

In 2016, agriculture and allied sectors like animal husbandryforestry and fisheries accounted for 15.4% of the GDP (gross domestic product) with about 41.49% of the workforce in 2020. India ranks first in the world with highest net cropped area followed by US and China. The economic contribution of agriculture to India's GDP is steadily declining with the country's broad-based economic growth. Still, agriculture is demographically the broadest economic sector and plays a significant role in the overall socio-economic fabric of India.

India exported $38 billion worth of agricultural products in 2013, making it the seventh largest agricultural exporter worldwide and the sixth largest net exporter.Most of its agriculture exports serve developing and least developed nations. Indian agricultural/horticultural and processed foods are exported to more than 120 countries, primarily to the Japan, Southeast AsiaSAARC countries, the European Union and the United States.[9][10]

मोटा अनाज: बहुत पुरानी बात नही है ये ...... 1960 तक भारत मे गेहूं का आटा जिससे पूड़ियाँ बनती थीं , साल में बमुश्किल एकाध बार जब कभी कोई शादी बियाह य्या काज प्रयोजन होता तो पूड़ियाँ बनती थीं ....... अंग्रेजों के मानसिक गुलाम ही गेहूं की रोटी खाते थे ....... शेष भारत , आम जन सब जौ , चना , मक्का , मटर , बाजरा ज्वार खाते थे ........ 


1960 से पहले हमारे पूर्वज सब यही मोटे अनाज खाते थे । वो तो 1965 में  जो हरित क्रांति के नाम पर देश पर गेंहू थोपा गया ।


पुरातन काल मे हमारे पूर्वज टामुन , मड़ुआ , सांवा , कोदो , कंगनी , तिन्ना , करहनी , जैसे सात्विक अन्न खाया करते थे जो अब लगभग लुप्तप्राय हैं । 

बहुत सा ऐसा भोजन था जिसे अन्न माना ही नही जाता था । जैसे कुट्टू और सिंघाड़ा ...... इनकी गिनती अनाज में नही बल्कि फलों में होती थी और इनकी रोटी को फलाहार माना जाता था ......

आज भी व्रत त्योहारों में इनका सेवन फलाहार के रूप में होता है ........


पिछले दो वर्षों से मैं देश भर के दूरदराज के गांवों में हमारा ये जो भूला बिसरा पुराना पुरातन वैदिक अन्न है इसके उत्पादन के विषय मे जानकारी जुटा रहा हूँ ।

अपनी इस खोज में मैंने ये पाया कि जहां जहां भी पूंजीवादी एक फ़सली अवैज्ञानिक  कृषि है वहां से ये अनाज पूरी तरह लुप्त हो चुके हैं । और जहां अभी भी इंटेलिजेंट इलाके हैं वहां इनकी खेती अब भी हो रही है ........ जैसे ये कोदो , मड़ुआ , रागी , कंगनी , टामुन जैसे अन्न अभी भी उत्तराखंड के ऊपरी इलाकों , झारखंड , छत्तीसगढ़ के जंगलों और बुंदेलखंड के सूखे असिंचित खेतों में अब भी मिल जाते हैं ......

 एक दिन मैंने कुछ महिलाओं को नहर किनारे की दलदली जमीन में झाड़ियों में घुस के एक  प्राकृतिक / जंगली अनाज तिन्ना बटोरते देखा ।

ये वनवासी औरतें दिन भर तिन्ना झाड़ती तो दो तीन किलो अन्न मिलता । 

फिर एक दिन उन्हीं में से एक महिला मुझे पाव भर तिन्ना दे गई ........ उसकी खीर बनी ....... पूर्णतया प्राकृतिक ऑर्गेनिक अन्न .......जो अपने आप वर्षा ऋतु में दलदल में उग आता है ....... क्या दिव्य स्वाद था उसका .......

फिर उसी तरह एक दिन गांव में सांवा का चावल खाया , सांवा की खीर खाई ....... वाह ...... क्या दिव्य भोजन था वो ......

जब Diabetese हो गयी तो डॉक्टर ने कहा गेहूं छोड़ दो और जौ बाजरे का आटा खाओ ...... जौ तो इतना आसान न था पर बाजरा ला के घर मे ही पीसने लगे ....... 


फिर जब इस विषय मे अध्ययन किया तो पाया कि आज life Style जनित जो भी स्वास्थ्य समस्याएं हैं उनकी जड़ में ये 3 चीज़ें हैं ........

गेहूं का आटा / मैदा यानी White आटा

White Sugar 

White Salt 

अगर आप अपने भोजन में ये 3 चीज़ छोड़ के मोटे अनाज जौ बाजरा चना कोदो सावां टामुन मड़ुआ रागी कनगी इत्यादि शामिल कर लें और White Sugar की जगह गुड़ , शक्कर , राब 

और सफेद नमक की जगह सेंधा नमक और Rock Salt  काला नमक शामिल कर लें तो बहुत सी स्वास्थ्य समस्याएं तो यूँ ही हल हो जाएंगी । 

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