राजनीति: निर्यात के मौके और चुनौतियां
तीन मुख्य बिंदु
*एक कि चीन से पलायन करने वाली कंपनियों को आकर्षित करना, उनके लिए स्थान ढूंढना आदि। सरकार की प्लग एंड प्ले योजना।
**दूसरे की भारत का दवा उद्योग में नई बात की अमरीका से बाहर अमरीकी दवा स्टैण्डर्ड पर दवा बनाने वाला हब सर्वधिक हमारे यहां है। 2019-20 में भारत से 21.98 लाख करोड़ रुपए मूल्य की वस्तुओं का निर्यात किया गया था
*** तीसरे कौन से क्षेत्र हैं जहां निर्यात हो सकता है: चूंकि इस समय दुनिया में दवाओं सहित कृषि, प्रसंस्करित खाद्य, परिधान, जेम्स व ज्वैलरी, चमड़ा और इसका सामान, कालीन, इंजीनियरिंग उत्पाद जैसी कई वस्तुओं के निर्यात की अच्छी संभावनाएं हैं, लेकिन जिसमे ज्यादा कमाई है जैसे AI, ऑटोमोटिव, इलेक्ट्रॉनिक आदि उसमे हम पीछे है ।
चौथे की जो चुनौती हमारे आगे हैं उनसे निबटना। सस्ता रेट पर इन्वेस्टमेंट, सरकारी लालफीताशाही, भृष्टाचार, एवं दूसरे देश जैसी सुविधाएं देती हैं, वो सब देना।
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चीन की अर्थव्यवस्था अभी पूरी तरह से कोरोना संकट से मुक्त नहीं हो पाई है। चीन के उद्योग अपनी पूरी क्षमता से उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं। चीन से निर्यात घट गए हैं। ऐसे में भारत निर्यात के नए मौकों को हासिल कर सकता है।
जनसत्ता
May 11, 2020 2:25 AM
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कोविड-19 के बाद विश्व व्यापार में भारी बदलाव की संभावना है।
जयंतीलाल भंडारी
कोरोना महामारी के वैश्विक संकट में दुनिया में भारत एक मददगार देश के रूप में भी उभरा है। भारत ने एक सौ बीस से ज्यादा देशों को दवाइयां निर्यात की हैं। ऐसे में भारत को दुनिया के नए दवा उत्पादक क्षेत्र के रूप में भी देखा जा रहा है। हाल के वक्त में भारत ने दवाइयों और खाद्य पदार्थों सहित कई वस्तुओं का निर्यात कर जरूरतमंद देशों को जिस तरह से बड़ी राहत दी है, उससे भारत के लिए नई निर्यात संभावनाएं भी बनी हैं।
भारत के विनिर्माण क्षेत्र का नया केंद्र बनने और निर्यात बढ़ने की संभावनाओं को लेकर कई रिपोर्टें आई हैं। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन में कार्यरत कई वैश्विक निर्यातक कंपनियां अब अपने विनिर्माण का काम पूरी तरह या आंशिक रूप से दूसरे देशों में स्थानांतरित करने की तैयारी कर रही हैं। ये कंपनियां यूरोपीय देशों, अमेरिका और जापान की हैं और चीन की नीतियों से इनका भारी नुकसान हुआ है। इन कंपनियों को आकर्षित करने के लिए भारत इन्हें बिना किसी परेशानी के जमीन मुहैया कराने पर काम कर रहा है। खासतौर से जापान, अमेरिका, दक्षिण कोरिया और ब्रिटेन की कई कंपनियां भारत को प्राथमिकता दे भी रही हैं। ये चारों देश भारत के शीर्ष दस व्यापारिक भागीदारों में शामिल हैं।
इन देशों की विनिर्माण इकाइयों के चीन से निकल कर भारत आने पर निश्चित रूप से भारत के निर्यात मौकें बढ़ेंगे। कई वैश्विक संगठनों की रिपोर्टों में कहा गया है कि चीन से अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, दक्षिण कोरिया और आॅस्ट्रेलिया सहित कई देशों की वैश्विक निर्यातक कई कंपनियां अपना निवेश समेट कर और उत्पादन बंद कर भारत आने की तैयारी कर रही हैं। यह परिदृश्य बता रहा है कि भारत अगर इस अवसर का लाभ उठा लेता है तो वह आने वाले वक्त में निर्यात का बड़ा केंद्र बन सकता है।
मौजूदा वैश्विक परिदृश्य में कारोबारी संभावनाओं का फायदा उठाने के लिए पिछले दिनों भारत सरकार ने कई बैठकें की हैं और रणनीतियों पर चर्चा की है। इन बैठकों में विदेशी कंपनियों को आकर्षित करने के लिए "आओ और काम शुरू करो" (प्लग एंड प्ले) मॉडल को साकार करने पर सहमति बनी और इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारें मिल कर काम करेंगी। प्लग एंड प्ले मॉडल में कंपनियों को सभी इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार मिलती है और उद्योग सीधे उत्पादन शुरू कर सकता है। ऐसे में वैश्विक निर्यात की नई संभावनाओं को साकार करने के लिए सरकार के कुछ विभाग आगे बढ़ते हुए दिखाई भी दे रहे हैं।
केंद्र सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने निर्यात संवर्द्धन परिषद के साथ बैठक आयोजित की, जिसमें कोरोना संकट खत्म होने के बाद भारत को पूरी दुनिया की आपूर्ति शृंखला का प्रमुख हिस्सा बनाने और भारत को दुनिया का अग्रणी निर्यातक देश बनाने की योजना पर काम शुरू करने का निर्णय लिया गया।
यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने निवेशकों को आकर्षित करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी के 'प्लग एंड प्ले' मॉडल को साकार करने के मद्देनजर मॉडिफाइड इंडस्ट्रियल इन्फ्रास्ट्रक्चर अपग्रेडेशन स्कीम (एमआइआइयूएस) में बदलाव करने और औद्योगिक उत्पादन के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) में गैर-उपयोगी खाली पड़ी जमीन का इस्तेमाल करने के संकेत दिए हैं। सरकार विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) में खाली पड़ी करीब तेईस हजार हेक्टेयर से अधिक जमीन का इस्तेमाल नए उद्योगों के लिए शीघ्रतापूर्वक कर सकती है। सेज में सभी ढांचागत सुविधाएं मसलन बिजली, पानी और सड़क जैसी सुविधाएं मौजूद हैं।
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चूंकि इस समय दुनिया में दवाओं सहित कृषि, प्रसंस्करित खाद्य, परिधान, जेम्स व ज्वैलरी, चमड़ा और इसका सामान, कालीन, इंजीनियरिंग उत्पाद जैसी कई वस्तुओं के निर्यात की अच्छी संभावनाएं हैं, अतएव ऐसे निर्यात क्षेत्रों के लिए सरकार के रणनीतिक प्रयत्न लाभप्रद होंगे।
imp. इसमें कोई दो मत नहीं है कि भारतीय दवा उद्योग पूरी दुनिया में अहमियत रखता है। भारत अकेला एक ऐसा देश है जिसके पास यूएसएफडीए (युनाइटेड स्टेट्स फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) के मानकों के अनुरूप अमेरिका से बाहर सबसे अधिक संख्या में दवा बनाने के प्लांट हैं। ऐसे में पिछले वर्ष 2019-20 में भारत से 21.98 लाख करोड़ रुपए मूल्य की वस्तुओं का निर्यात किया गया था। अब नए परिदृश्य में भारत से अधिक निर्यात बढ़ा कर निर्यात मूल्य को ऊँचाई पर ले जाने की संभावनाएं हैं।
विशेष:खासतौर से विशेष आर्थिक क्षेत्र, नियार्तोन्मुखी इकाइयां (ईओयू) औद्योगिक नगरों और ग्रामीण इलाकों में काम कर रही निर्यात इकाइयों से विशेष उम्मीद हैं। देश में दो सौ अड़तीस सेज के तहत पांच हजार से अधिक इकाइयों में इक्कीस लाख से अधिक लोग काम कर रहे हैं। पिछले वित्त वर्ष 2019-20 में सेज इकाइयों से करीब 7.85 लाख करोड़ रुपए का निर्यात किया गया था।
चीन की अर्थव्यवस्था अभी पूरी तरह से कोरोना संकट से मुक्त नहीं हो पाई है। चीन के उद्योग अपनी पूरी क्षमता से उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं। चीन से निर्यात घट गए हैं। ऐसे में भारत निर्यात के नए मौकों को हासिल कर सकता है। इस साल मार्च की शुरूआत में भारत ने फैसला किया था कि चीन से दवा उत्पादन के लिए आने वाले कच्चे माल का देश में ही उत्पादन शुरू किया जाए। इसके लिए सरकार ने दो हजार करोड़ रुपए खर्च करने की योजना बनाई है।
लेकिन इस समय देश के निर्यातकों को जिन मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, उन पर भी ध्यान दिया जाना जरूरी हैं। निर्यात संगठनों का कहना है कि वैश्विक निर्यात बाजार में बन रहे अवसरों को हासिल करने के लिए जरूरी है कि सरकार पहले देश के निर्यातकों की मुश्किलों को दूर करे और उन्हें निर्यात बढ़ाने के लिए हरसंभव मदद और रियायतें दे। ऐसे में सरकार को निर्यातकों की मुश्किलों को भी दूर करना है और साथ ही नए निर्यात प्रोत्साहनों के जरिए निर्यातकों को मदद भी देनी है। चार मई के बाद अभी भी देशभर में निर्यात उद्योग से संबंधित कई फैक्ट्रियां बंद हैं। निर्यात इकाइयों के भुगतान रुके हुए हैं।
मजदूर अपने घरों को लौट रहे हैं। फेडरेशन आॅफ इंडियन एक्सपोर्ट आॅगेर्नाइजेशन का कहना है कि निर्यात क्षेत्र की नौकरियां बचाना भी मुश्किल भरा काम हो गया है। स्थिति यह है कि जून तक की अवधि निर्यातकों के लिए महत्वपूर्ण है। यदि जून 2020 तक मुश्किलों से जूझ रही निर्यात विनिर्माण इकाइयां पर्याप्त उत्पादन नहीं कर पाएंगी तो पूरे वर्ष के लिए विदेशी खरीददारों की योजना से बाहर हो जाएंगी। इसलिए सरकार को निर्यात क्षेत्र पर विशेष ध्यान देना होगा और जल्द ही कोई राहत पैकेज जारी करना होगा।
निर्यात बढ़ाने के लिए कई बातों पर ध्यान देने की जरूरत है। देश में निर्यातकों को सस्ती दरों पर और समय पर कर्ज दिलाने की व्यवस्था सुनिश्चित की जानी होगी। पिछले कुछ सालों में निर्यात कर्ज का हिस्सा घटा है। ऐसे में किफायती दरों पर कर्ज सुनिश्चित किया जाना जरूरी है। इसके अलावा अन्य देशों की गैर शुल्कीय बाधाएं, मुद्रा का उतार-चढ़ाव, सीमा शुल्क अधिकारियों से निपटने में मुश्किल और सेवा कर जैसे निर्यात को प्रभावित करने वाले कई मुद्दों से निपटने की रणनीति जरूरी है।
सरकार अगर देश की निर्यातक इकाइयों को प्रतिस्पर्धी देशों की तुलना में अधिक प्रोत्साहन देती है तो निश्चित रूप से भारत की निर्यातक इकाइयाँ दुनिया के बाजार में पैठ बनाने में कामयाब हो सकती हैं। और इसका फायदा देश की अर्थव्यवस्था को मिलेगा।
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