Tuesday, May 3, 2011

मुक्त व्यापर समझोते - भाजपा

मुक्त व्यापार समझोतों के बारे में भाजपा का पहला वक्तव्य जो की प्रकाश जावेडकर नें दिया


( बहुत दिनों से स्वदेशी जागरण मंच मुक्त व्यापार समझोतो के बारे में कह रहा है की ये बहुत ही भयानक शुरुआत है, लेकिन राजनीतिक पार्टिओं की और से कोई विशेष बयानबाजी इस और नहीं की गयी थी, और ये दुखदाई बात थी। खैर पहली बार इस २१ अप्रैल को भाजपा का ये बयाँ आया है, इस लिए गौर करने लायक है, और आर्थिक शेत्र के समाचार पत्रों ने इसे प्रमुखता से छापा है। हम अंग्रेजी और हिंदी दोनों छाप रहे हैं। हमें ध्यान रहे की २ मार्च को एक विशेष प्रदर्शन एड्स पीड़ित लोगों द्वारा किया गया क्योंकिउनको ऐसा लगत्ता है की यूरोपियन यूनियन के साथ भारत का मुक्त व्यापर समझोता होने से इन दवायों की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि
होगी, और दुनिया का यही अनुभव है। लगे हाथ बता दे की स्वदेशी जागरण मंच ने एम् पदर्शन इसी प्रकार का किया था जंतर मटर पर जिसमे श्री गोबिन्द्चार्य के साथ साथ भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय महा मंत्री श्री केलकर और भरिय मजदूर शांघ के संगठन मंत्री क्रिशन चंदर मिश्र भी पधारे थे, और अपना प्रभावी संबोधन भी किया। इस लियइ आने वाले दिनों में ये एक प्रभावी मुद्दा बन्ने वाला है.
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भाजपा के राष्ट्रीीय प्रवक्ता व सासंसंसंसं द श्री प्रकाश जावडेकेकर द्वारागुरूुरूवार, 21 अप्रै्रलैल, 2011 को जारी


सरकार द्वारा सभी हिस्सेदारों के साथ उचित परामर्श किये बिना विभिन्न देशों के साथ मुक्त व्यापारसन्धि/सी।ई।सी.ए/सी.ई.पी.ए आदि व्यापारी समझौते करने सम्बन्धी कार्यवाही की भाजपा निन्दा करती है। सम्प्रग सरकारजापान, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया और मलेशिया के साथ पहले ही व्यापक आर्थिक सहभागिता करार ख्कम्परिहेिन्सवइकोनामिक पार्टनरशिप एग्रीमेण्ट्स(सीईपीए), कर चुकी है। इसमें आसियान और थाईलैण्ड के साथ वस्तु विनिमय करार भीकिये हैं। यूरोपीय यूनियन और ईएफटीए के साथ सीईपीए करने हेतु बातचीत कर रही है। इन सभी करारों से भारत कीसमग्र विकास रणनीति, विशेषकर रोजगार निर्माण, आयात, निर्यात एवं खेती पर बहुत अधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकताहै। यह तथ्य भी निन्दनीय है कि ऐसे करार, जिनसे भारतीय अर्थव्यवस्था पर लम्बे समय तक बहुत अधिक बुरा प्रभाव पड़सकता है, पर मन्त्रिमण्डल में भी चर्चा नही की गई, संसद और विपक्षी पार्टियों की बात तो दूर रही।सम्प्रग सरकार डब्ल्यू.टी.ओ. के अन्तर्गत बहुपक्षीय समझौते का पालन नहीं कर रही है और दोहा राउण्ड मेंसौदेबाजी सम्बन्धी अपनी शक्ति को संकुचित कर रही है। यहां तक कि 2010-11 के आर्थिक सर्वेक्षण (पृष्ठ 186) मेद्विपक्षीय समझौतों में नई सनक के बारे में सरकार को चेतावनी दी गई है। इसमें कहा गया है ``कुछ मामलों में भागीदारदेशों को होने वाले लाभ बहुत अधिक हैं और भारत को होने वाला शुद्ध लाभ बहुत थोड़ा अथवा नगण्य है। एफअीएएस सेभी एक नये प्रकार का इन्वर्टिड डयूटी स्ट्रक्चर बन जायेगा। इससे स्थानीय निर्माण को प्रोत्साहन नही मिलेगा क्योंकि यहएफटीए आयातों के मुकाबले प्रतिस्पर्धात्मक नहीं है। एफटीएएस/सीईसीएएस से सम्बन्धित नीति में घरेलू क्षेत्र की विशिष्टबातों का ध्यान रखा जाना चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि एफटीएएस अधिक संख्या में न हो´´।कुछ अति महत्वपूर्ण मुददे इस प्रकार है :पहला, सम्पम्प्रग्रग सरकार 2003 में ें कानकुनुन डब्ल्यू.टी.ओ.े. मिनिस्टीरियल कान्फ्रेसेंसं्रेसेंसं मेेंं ेेंं सिंगंगापुरुर मुदुददोेंं ेेंं को हटाने के बाद भारतको हुएुए लाभों ें को गवंवं ा रही है।ै। सरकारी प्राप्तियों, निवेशों और स्पर्धा की नीतियों को दोहा राउण्ड से हटा दिया गया है।वास्तव में अब सरकार लाभों को व्यर्थ जाने दे रही है और विकसित देशों के दबाव में आ रही है और सीईसीए/सीईपीएके माध्यम से इन सभी मुददों पर सक्रिय रूप से बातचीत कर रही है।दसूसूसू रा, कृिृषि औरैर स्वास्थ्य प्रम्रमुख्ुखत: राज्यों ेेंं का विषय है।ै। सम्पम्प्रग्रग सरकार राज्य सरकारोेंं ेेंं से सलाह मशविरा किये बिनाएफटीए पर बातचीत कर रही है औरैर इस तरह वह संिंविधान द्वारा गांरंरंरंरटीशुदुदा संघ्ंघीय ढांचंचे को अनदेख्ेखा कर रही है।ै।तीसरा, सम्पम्प्रग्रग सरकार द्वारा एफटीए के बारे मेेंं ेेंं चल रही वार्ता पारदशीZ नहीं है औरैर वह गोपेपनीय है।ै। आश्चर्यजनक बातयह है कि सरकार प्रभाव मूल्यांकन अध्ययन, बातचीत सम्बन्धी पाठ और संगत जानकारी लोगों को नही दे रही है। राजगसरकार ने सभी पार्टियों से सलाह मशविरा किया था और अपनी पहल पर इस पर संसद में भी बहस करवाई थी। सम्प्रगसरकार इस प्रयोजनार्थ बनाये गये एक निकाय अर्थात् टीईआरसी में बातचीत कर रही है। इस निकाय में गैर-निर्वाचितप्रतिनिधि बहुसंख्या में है।भाजपा मांग करती है,1. एफटीएएस/सीईसीएएस पर चर्चा हेतु सर्वदलीय बैठक हो।2. सम्पंन हुए और वार्ता अधीन सभी एफटीएएस पर संसद में व्यापक चर्चा कराई जाये।3. अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियों के अनुसमर्थन के लिये एक विधान पेश किया जाये ताकि उन पर संसद की अनुमति ली जासके।4. एफटीएस/सीईसीएएस, विशेषकर यूरोपीए संघ-भारत के बारे में बातचीत का पाठ और प्रभाव मूल्यांकन अध्ययनको तुरन्त सार्वजनिक किया जाये।(श्याम जाजू)ूमुख्यालय प्रभारी

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