Sunday, August 7, 2016

स्वदेशी के हुतात्मा वीर बाबू गेनू

स्वदेशी के हुतात्मा वीर
बाबू गेनू
निकी स्मृति में आर.के.पुरम्, सेक्टर-8 और 9 के बीच के मार्ग का नाम रखा
गया है। उनका जीवन परिचय 8 प्रश्नों मेें .....

1. बाबू गेनू क्यों प्रसिद्ध हुआ?
बाबू गेनू मुंबई का एक साधारण मिल मजदूर था। परंतु 22 वर्ष की आयु में
‘स्वदेशी’ के लिए अपने प्राणों को न्योछावर करने वाला वह देश का पहला व
एकमात्र शहीद था। इस कारण वह पूज्य बन गये।

2. बाबू के जन्म स्थान आदि के बारे में बतायें?
बाबू गेनू सईद महाराष्ट्र प्रांत के पूणे जिले के छोटे से गांव महालुंगे
पड़वल का रहने वाला था। बाबू का जन्म वर्ष 1908 था।

3. बाबू के परिवार के बारे में बताओं?
बाबू अत्यंत गरीब किसान परिवार में जन्मे थे। जब गेनू 2 वर्ष की आयु के
थे, तो उनके पिता स्वर्ग सिधार गये। माता मुंबई आकर एक कपड़ा मिल में
मजदूरी करने लगी। बहन कुछ घरों में बर्तन मांजने व सफाई आदि का काम करने
लगी। दो अन्य छोटे भाई गांव में मजदूरी कर पेट पालते थे। अतः चारों भाई
अत्यंत गरीबी में पले व बढ़े।

4. मुंबई आकर गेनू ने देशभक्ति के संस्कार कैसे प्राप्त किये?
उसका एक मित्र प्रहलाद नाई उसे देशभक्ति की बातंे सुनाता था और वह स्वयं
भी उस समय के आंदोलनों में हिस्सा लेता था। उसने ही प्रथम रुचि गेनू के
मन में पैदा की। दूसरे, एक मुस्लिम शिक्षक जिन्हें गेनू प्यार से ‘चाचा’
कहता था, उन्होंने भी गेनू को देशभक्ति के पाठ पढ़ाये। उसी चाचा ने बाबू
गेनू की हर तरह से सहायता भी की और अच्छे देशभक्ति के संस्कार दिए। बालक
गेनू उन्हें गुरू व पिता, दोनों मानता था।

5. गेनू के मन पर किन घटनाओं का ज्यादा असर हुआ?
1919 में जलियावाले बाग के भीषण हत्याकांड के वर्णन को सुनकर उसके मन पर
बड़ा असर हुआ। दूसरे, 1928 में साइमन कमीशन को प्रतिकार करते हुए लाला
लाजपतराय की हत्या का भी उस पर बहुत प्रभाव पड़ा। स्वयं भी गेनू ने साइमन
कमीशन का विरोध करने के लिए एक बड़ा जुलूस आयोजित किया।
तीसरे, भगतसिंह, सुखदेव व राजगुरू को दी गई फांसी का भी उस पर गहरा
प्रभाव पड़ा। विशेषकर क्रांतिकारी राजगुरू का गांव गेनू के गांव के बहुत
निकट था। अतः उसे राजगुरू के बलिदान से बहुत प्रेरणा मिली। चैथे, महात्मा
गांधी जी के प्रति उसे अगाध श्रद्धा थी। वह कांग्रेस पार्टी का सक्रिय
कार्यकत्र्ता था और उसका पंजीयन क्रमांक 81941 था।

6. क्या बाबू गेनू को देशभक्ति के कारण कभी जेल भी हुई?
हां, वे दो बार जेल गये। पहली बार महात्मा गांधी जी के नमक आंदोलन के समय
अपने ताना जी पथक (वाहिनी) के साथ वे जेल में रहे। इन्हीं दिनों उसे अपनी
माता व अपने प्रिय शिक्षक चाचा की मृत्यु का समाचार मिला। माता जी की
मृत्यु का समाचार पाकर वह बहुत दुःखी हुए परंतु उन्होंने कहा -
‘‘मित्रों, अब मैं पूरी तरह मुक्त हो गया हूं। भारत माता को मुक्त करवाने
के लिए अब मैं कुछ भी कर सकता हूं।’’
दूसरी बार भी न्यायमूर्ति दस्तूर ने उन्हें छः माह की सश्रम कारावास की
सजा सुनाई। लेकिन जेल से लौटने पर वह पहले की तरह की घर-घर जाकर स्वदेशी
का प्रचार करने लगा।

7. और 12 दिसंबर की घटना कैसे हुई?
12 दिसंबर 1930 को शुक्रवार का दिन था। मुंबई के कालकादेवी इलाके में एक
गोदाम विदेशी माल से भरा था। उसे दो व्यापारियों ने खरीद लिया। उन्होंने
तय किया इसे लारियों से भरक मुंबई की कोट मार्केट में ले जायेंगे। इस काम
को रोकने (पिकेटिंग) की जिम्मेदारी कांग्रेस पार्टी ने बाबू गेनू व उसके
‘तानाजी पथक’ को दी और उसकी तैयारी हुई। हनुमान रोड पर इसे रोकने की
योजना बनी। इस सत्याग्रह को देखने लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी।
अंग्रेज अधिकारी मिस्टर फ्रेजर को इस सत्याग्रह की जानकारी पहले से थी और
उसने भारी संख्या में पुलिस बल को पहले ही बुलवा लिया। प्रातः साढ़े सात
बजे सत्याग्रही व दर्शक भारत माता की जय के नारे लगा रहे थे। उधर विदेशी
माल से भरी गाड़ी आ रही थी। बाबू के आदेश पर पहले एक-एक करके उनके साथी
आगे बढ़े। पुलिस ने खींचकर उन्हें परे कर दिया और उनकी जमकर पिटाई की।
अंततः जब स्वयं बाबू गेनू की बारी आई तो अंग्रेज अफसर काफी चिढ़ गया था।
उसने लारी ड्राईवर बलवीर सिंह को कहा, ‘‘लारी चलाओ। ये हरामखोर अगर मर भी
गया तो कोई बात नहीं।’’ बलबीर सिंह गाड़ी रोके खड़ा रहा, नारे लगते रहे।
इतने में अंग्रेज सार्जेन्ट गुस्से से भारतीय ड्राईवर को पीछे धकेल स्वयं
लारी चलाने लगा। और लो..... उसने बाबू गेनू की खोपड़ी से गाड़ी गुजार दी।
सड़क खून से पट गई। यह घटना 11 बजे की है। 12.30 बजे तक बाबू को अस्पताल
लाया गया और 4.50 सायंकाल बाबू गेनू के प्राण पखेरू उड़ गये। सब और
‘‘बाबू गेनू-अमर रहे’ के नारे रूंधे गलों से लग रहे थे। एक अनाम मजदूर
जन-जन का श्रद्धेय बन गया।
अगले दिन एक भारी जनसमूह शवयात्रा के साथ था। श्री कन्हैया लाल मुंशी,
लीलावती मुंशी, जमनादास मेहता जैसे बड़े-बड़े नेता श्रद्धांजलि सभा में
उपस्थित थे। 13 दिसंबर को पूरा मंुबई शहर बंद रहा।

8. बाबू गेनू के बलिदान से क्या शिक्षा मिलती है?
किसी के पेशे व आर्थिक स्थिति से उसकी देशभक्ति को आकंना ठीक नहीं। गरीब
से गरीब व्यक्ति भी देश के लिए सर्वस्व न्यौछावर कर सकता है। दूसरे
‘‘स्वदेशी का स्वीकार एवं विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार’’ बाबू गेनू का
नारा उनके जीवन का सार था। जिस उद्देश्य के लिए बाबू गेनू ने प्राण
न्यौछावर किए उस ‘स्वदेशी’ के प्रचार-प्रसार के लिए हमें डटकर काम करना
चाहिए। यह उस वीर को सच्ची श्रद्धांजलि है।

9. क्या आज भी बाबू गेनु की परम्परा चल रही है?
जी, जगह जहाँ चलने वाले स्वदेशी आंदोलनों के प्रारम्भ करने वाले एर चलने वाले लोग उसी राह पर ही चल रहे है, चलते रहे है।। वृक्ष बचाने के लिए आंदोलन चलाने वाली राजस्थान की अमृतादेवी और उनके साथ बोलकर  पोने तीन सो शहीद उसी परम्परा के द्योतक है,  सिर दिए जो ..... बचे, तो भी सस्ता जान. अफ़्रीका में जो हुआ, १५० व्यक्तियों की जान गयी। ऐसी सूची। 



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Suraj Bhardwaj
9899225926

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