Thursday, August 2, 2018

दस गीत (स्वदेशी के)

गीत क्र. 1
मेरा हो मन स्वदेशी, मेरा हो तन स्वदेशी मेरा हो............
मन स्वदेशी, मेरा हो तन स्वदेशी !
मर जाऊं तो भी मेरा -होए कफन स्वदेशी !!
1. चट्टान टूट जाए, तूफान घुमड़ के आए !
गर मौत भी पुकारे ,तो भी लक्ष्य हो स्वदेशी !!
मेरा हो मन स्वदेशी, मेरा हो तन स्वदेशी...

2. जो गाँव में बना हो, और गाँव में खपा हो !
जो गाँव को हँसाए , जो गांव को बसाए !
वह काम है स्वदेशी ,वह नाम है स्वदेशी !!
मेरा हो मन स्वदेशी, मेरा हो तन स्वदेशी...

3. जो हाथ से बना हो, या गरीब से लिया हो ! जिसमें स्नेह भरा हो ,वह चीज है स्वदेशी !!
मेरा हो मन स्वदेशी, मेरा हो तन स्वदेशी...
4. मानव का धर्म क्या है , मानव का दर्द जाने !
जो करे मनुष्यता की ,रक्षा वही स्वदेशी !!
मेरा हो मन स्वदेशी, मेरा हो तन स्वदेशी...
5. करें शक्ति का विभाजन , मिटें पूँजी का ये शासन !
बने गाँव स्वावलम्बी , वह नीति है स्वदेशी !! 
मेरा हो मन स्वदेशी, मेरा हो तन स्वदेशी ...

6. तन में बसन स्वदेशी, मन में लगन स्वदेशी ! फिर हो भवन - भवन में, विस्तार हो स्वदेशी !!
मेरा हो मन स्वदेशी, मेरा हो तन स्वदेशी,
मर जाऊं तो भी मेरा होए कफन स्वदेशी ।

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गीत क्रमांक 2
मरें भी अगर तो स्वदेशी कफ़न हो! गीत।
जिएं तो बदन पर स्वदेशी वसन हो!
मरें भी अगर तो स्वदेशी कफ़न हो!

1. पराया सहारा है अपमान होना,
जरूरी है निज शान का ध्यान होना,
है वाजिब स्वदेशी पे कुर्बान होना,
इसी से है संभव समुत्थान होना,
लगन में स्वदेशी के हर मुर्दो ज़न हो!
मरे भी तो तन.....

2. निछावर स्वदेशी पे, कर मालओ-जर दो,
स्वदेशी से भारत का भंडार भर दो,
रहें चित्र-से, वह चकाचौंध कर दो,
दिखा पूर्वजों के लहू का असर दो,
स्वदेशी ही सज-धज, स्वदेशी चलन हो!
मरे भी तो....
3. चलो, इस तरफ़ अपना चरख़ा चला दो,
मनों सूत की ढेरियां तुम लगा दो,
बुनो इतने कपड़े, मिलों को छका दो,
जमा दो, स्वदेशी का सिक्का जमा दो,
स्वदेशी ही गुल, औ स्वदेशी चमन हो!
मरे भी तो....
4. करो प्रण कि आज़ाद होकर रहेंगे,
जहां में कि बरबाद होकर रहेंगे,
सितमगर ही या शाद होकर रहेंगे,
कि हम शादो-आबाद होकर रहेंगे,
स्वदेशी ही ‘अख़्तर’ स्वदेशी कथन हो। .
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       गीत क्रमांक 3
 
स्वदेश का प्यार।
जो भरा नहीं है भावों से,
जिसमें बहती रस धार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर हैं,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं। । ध्रु।।
1.जो जीवित जोश जगा न सका,
उस जीवन में कुछ सार नहीं।
जो चल न सका संसार संग,
उसका होता संसार नहीं।
जिसने साहस को छोड़ दिया,
वह पहुंच सकेगा पार नहीं। ...
जो भरा नहीं है भावों से,
जिसमें बहती रस धार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर हैं,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।

2. जिसकी मिट्टी में उगे-बढ़े,
पाया जिसमें दाना-पानी।
हैं मात-पिता बंधु जिसमें,
हम हैं जिसके राजा-रानी।
जिसने कि खजाने खोले हैं,
नव-रत्न दिये है लासानी।
जिस पर ज्ञानी भी मरते हैं,
जिस पर है दुनिया दीवानी।
उस पर है नहीं पसीजा जो,
क्या है वह भू पर भार नहीं। ...
वह हृदय नहीं है पत्थर हैं,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।
3. निश्चित है, निस्संशय निश्चित,
है जान एक दिन जाने को।
है काल दीप जलता हर दम,
जल जाना है परवाने को।
है लज्जा की यह बात शत्रु,
आये आंखे दिखलाने को।
धिक्कार मर्दुमि को ऐसी,
लानत मर्दाने बाने को।
सब कुछ है अपने हाथों में,
क्या ढाल नहीं तलवार नहीं।.....
वह हृदय नहीं है पत्थर हैं,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।
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        गीत  4
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(यह उद्यान स्वदेशी हो )
कलियां, सुमन, सुगन्धों वाला,
यह उद्यान स्वदेशी हो।
हर क्यारी, हर खेत स्वदेशी,
हर खलिहान स्वदेशी हो।।
तन-मन-धन की, जनजीवन की
प्रिय पहचान स्वदेशी हो।
मान स्वदेशी, आन स्वदेशी,
अपनी शान स्वदेशी हो।
वीर शहीदरों के सपनों का,
हर अभियान स्वदेशी हो।
एड़ी से चोटी तक सारा,
हिन्दुस्तान स्वदेशी हो।।1।।

अभिमन्यू सा चक्रव्यूह में,
मेरा भारत देश घिरा।
रथ को स्वार्थ के पथ रोकें,
कहां क्षितिज का स्वर्ण सिरा।।
सजे खड़े हैं द्रोण, कर्ण
और दुष्ट दुशासन, दुर्योधन।
कौन युधिष्ठिर, भीम, नकुल,
सहदेवों को दे उद्बोधन।।
जो अर्जुन का मोह मिटा दे,
वह भगवान स्वदेशी हो।
एड़ी से चोटी तक सारा, हिन्दुस्तान स्वदेशी हो ।।2।।
मन गिरवी है, तन गिरवी है,
गिरवी है हर श्वास यहां।
फाके को फाका की कहिए,
मत कहिए उपवास यहां।।
गांधी तेरी खादी रोती, देख दशा इस देश की।
राष्ट्र अस्मिता सिया सरीखी, बन्दी है लंकेश की। जो लंका में आग लगा दे, वह हनुमान स्वदेशी हो। एड़ी से चोटी तक सारा, हिन्दुस्तान स्वदेशी हो।।3।।

‘राजनीति’ को देखो, इंग्लिश बोल रही फर्राटे से।
‘संस्कृति’ दिल बहलाती है, टी.वी. के सन्नाटे से।।
संस्कारों का किया दाखिला, ‘कान्वेंट’ में गर्व से।
जाने क्या हो गया, मनाने लगे, पतन भी पर्व से।।
आजादी और लोकतंत्र की,
हर संतान स्वदेशी हो।
एड़ी से चोटी तक सारा, हिन्दुस्तान स्वदेशी हो।।4।।
भारत माता के मंदिर में, बहुत प्रदूषण बढ़ा दिया।
लोकतंत्र के शव पर, गांधीवाद काट कर चढ़ा दिया।।
समझौतों की बात यहां पर,
होती है हत्यारों से।
भारत की कुछ गलियां गूंजे,
परदेसी जयकारों से।।
बलिदानों की इस धरती पर,
मां का गान स्वदेशी हो।
एड़ी से चोटी तक सारा, हिन्दुस्तान स्वदेशी हो।।5।।
सोने वालों सोना छोड़ो,
जागो सोना, सोना लो।
आज विदेशों के कब्जे से,
वतन का कोना-कोना लो।
वापस लो, व्यापार गया जो,
वापस स्वाभिमान लो।
फिर भारत को विश्व गुरू करना है,
मन में ठान लो।
उन्नतियों के इन गीतों का
हर सोपान स्वदेशी हो।
एड़ी से चोटी तक सारा, हिन्दुस्तान स्वदेशी हो।।6।।
कृष्णगोपाल कंसल

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गीत 5
अपनी मिट्टी, अपना पानी,
अपना पवन प्रकाश हो।
अपनी मति गति रहे स्वदेशी,
पक्का आत्मविश्वास हो।।

1. कर्जे लेकर धाक बढ़ाना,
झूठी शान हराम है।
खा पीकर सब खर्च करे जो, अकर्मण्य का काम है।
प्रखर तीर से धरा चीरकर, प्रकट सुधा उल्लास हो।
अपनी मिट्टी, अपना पानी, अपना पवन प्रकाश हो।
अपनी मति गति रहे स्वदेशी, पक्का आत्मविश्वास हो।।
अपने पांवों की ताकत से, पहुंचे वैभव शीर्ष पर।
परदेशी वैसाखी के बल, नहीं बन सके जगदीश्वर।।
विश्व गुरू निज अस्त्र छोड़कर,
भिक्षुक नहीं हताश हो।
अपनी मिट्टी, अपना पानी, अपना पवन प्रकाश हो। अपनी मति गति रहे स्वदेशी, अडिग आत्मविश्वास हो।।

3. देशी द्रव्यों की पोषकता, युग-युग सिद्ध प्रसिद्ध है।
परदेशी तथ्यों का हित भी, विष मिश्रित संदिग्ध है।।
अपना सूरज, अपना सागर, अपना मलय सुवास हो।
अपनी मिट्टी, अपना पानी, अपना पवन प्रकाश हो।  अपनी मति गति रहे स्वदेशी, अडिग आत्मविश्वास हो।।
4. आजादी का फिर मतवाला,
जोश खरोश जगाना है। स्वदेशी के अवलंबन हेतु मंत्र अचूक सिखाना है।।
आत्मशक्ति से प्राप्त अलौकिक,
सर्वांगीण विकास हो।
अपनी मिट्टी, अपना पानी, अपना पवन प्रकाश हो। अपनी मति गति रहे स्वदेशी, अडिग आत्मविश्वास हो।। मोहन खंडेलवाल ‘मुकुल’

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.    गीत 6
देश प्रेम का भाव जगाने
देश प्रेम का भाव जगाने,
ग्राम नगर अभियान चले।
लिए स्वदेशी मंत्र आज फिर, बालक वृद्ध जवान चले।।
आज विदेशी कंपनियाँ फिर
भरत भूमि आईं हैं।
भारती की प्रभुसत्ता पर
अधिकार जमाने आईं हैं।
डालर के बल पर स्वदेश में
उद्योग लगाने आयीं हैं।
जाग उठो हे भारत वासी, आजादी का गान चले।। ...
लिए स्वदेशी मंत्र आज फिर,
बालक वृद्ध जवान चले।।1।।
करें प्रतिज्ञा भारत वासी
वस्तु स्वदेशी लेंगे हम।
अपना पैसा अपने घर में
देश समृद्ध बनायें हम।।
माटी से सोना उपजाएँ
जाल विदेश काटें हम।
स्वाभिमान का भाव जगाने
ग्राम नगर अभियान चले।।
लिए स्वदेशी मंत्र आज फिर,
बालक वृद्ध जवान चले।।2।।

ग्राम-ग्राम उद्योग लगायें,
हस्तकला सरसायें हम।
भरे रहें भण्डार सभी के,
अधिक अन्न उपजाएँ हम।।
घर-घर दीप जले लक्ष्मी के,
गीत खुशी से गायें हम।
भारत भू का भाग जगाने,
स्वदेशी की तान चले।।
लिए स्वदेशी मंत्र आज फिर,
बालक वृद्ध जवान चले।।3।।
अपने पैरों आज खड़े हो,
भीख नहीं हम माँगेंगे।
कठिन परिश्रम करके हम सब,
आगे कदम बढ़ायेंगे।।
चरण चूमने मंजिल आये,
समृद्धि का सोपान चले,
लिए स्वदेशी मंत्र आज फिर,
बालक वृद्ध जवान चले।।4।।
मोहन खंडेलवाल ‘मुकुल’
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   गीत 7


स्वार्थ, अलस और दास्यभाव को,
दूर हमें भगाना है।
स्वदेशी को अपनाना है,
समर्थक सबको बनाना है।।
शस्त्र स्वदेशी, वस्त्र स्वदेशी,
वस्तु स्वदेशी लाना है।
बीज स्वदेशी, खाद स्वदेशी,
अन्न स्वदेशी खाना है।।ध्रुव।।

कारीगरी में और शिल्प में, कोई नहीं बढ़कर हमसे,  श्रेष्ठ कृषि और उद्योगों में ,बन सकते हैं हम फिरसे।
सब जनहित की प्रतिभाओं को
मुक्त हमें पनपाना है।।1।।
बीज स्वदेशी

जैसा बोलें, लिखते वैसा, भाषा अपनी न्यारी है
संस्कृत मां की सभी बेटियां, बोलियां हमको प्यारी हैं ।
अंग्रेजी से रक्षण करके, इन सब को बचाना है।।2।। बीज स्वदेशी

वैश्वीकरण के नाम हो रहे,
आर्थिक हमले को समझें
उपनिवेश के माया-जाल में,
गलती से भी ना उलझे ।
मंत्र स्वदेशी, और तंत्र से,
जगमग जग करवाना है।।3।।
बीज स्वदेशी,,,
अंधकार को ना अपनाएं,
मोमबत्ती की ज्योत बुझाकर
करें प्रकाशित हृदय-हृदय को,
घर-घर  नन्दा दीप जलाकर
विदेशियत को दूर हटाकर,
मन स्वदेशी बनाना है।।4।। अज्ञात ..........................................
स्वदेशी गीत 8
हर हाथ को हो काम,
हर खेत को हो पानी।
जग भर में फिर गूंजेगी,
भारत की अमर कहानी।।ध्रु।। भारत की अमर ....
जो देश बड़े कहलाते
माया का जाल बिछाते।
निज स्वार्थ-सुरक्षा खातिर
आर्थिक बंधन बंधवाते।।
इन षडयंत्रों को जाने
हम ध्वसं करें मनमानी।।1।।
जग भर में फिर गूंजेगी, भारत की अमर कहानी
हर घर का मिटे अंधेरा
शिक्षा के दीप जलायें।
अपने पैरो पर अपने
उद्योग-को पनपायें।।
भावना स्वदेशी जागे
है अपने मन ठानी।2।।
जग भर में फिर गूंजेगी,
भारत की अमर कहानी

हम आज नहीं युग-युग से
मानव का धर्म निभाते।
नर में नारायण देखा
जड़ में भी चेतन पाते।।
अपना अतीत पहचान
े हम बनें राष्ट्र अभिमानी।।3।।
जग भर में फिर गूंजेगी, भारत की अमर कहानी ‘अनिमेष’ .
.....................................
   गीत 9

श्रम हो अपना, पूंजी अपनी,
गुणवत्ता में भी श्रेष्ठ हमीं।
ग्राहक तब सारा जग होगा।
नत-मस्तक सारा जग होगा,
बोलेगा जय भारत माँ की।।ध्रु।।
भारत के ग्राम, नगर, घर में हर हाथ कला-कौशल जाने।
फिर क्यों विदेश वह भागेगा जब हम उसके गुण पहचाने।।
ना हम विदेश-निर्भर होंगे ठानी है भाग्य बदलने की।।1।। नत-मस्तक जग होगा, बोलेगा जय भारत माँ की ..

विकसित देशों ने जाल रचे हम से शतरंजी चाल चली।
बौद्धिक सम्पद् उत्पादों पर फैलाये माया-जाल, छली।।
ले देश-भक्ति की धार प्रखर काटेंगे जड़ षडयंत्रों की।।2।। नत-मस्तक जग होगा, बोलेगा जय भारत माँ की ...

जय-जय जवान, जय हो किसान हम ही होंगे विज्ञान-जयी।
उद्यम का ध्वज अपना लेकर भारत बन जाये काल-जयी।।
भावना स्वदेशी, जय स्वदेश यह भाव-भूमि हो हर मन की।।3।। नत-मस्तक जग होगा, बोलेगा जय भारत माँ की ..

श्रम हो अपना, पूंजी अपनी,
गुणवत्ता में भी श्रेष्ठ हमीं।
ग्राहक तब सारा जग होगा।
नत-मस्तक सारा जग होगा,
बोलेगा जय भारत माँ की।।ध्रु।।
. ‘अनिमेष’ ............................

गीत 10,

स्वदेश भाव फिर जगे,
स्वदेशी की पुकार है।
अस्मिता पर देश के,
विदेश का प्रहार है।।धु्रव।।

देश-देश लूटकर जो बने महान है। आई.एम.एफ., गैट, वर्ल्ड बैंक के निधान है
झोंकते हैं धूल, झूठ का, गरम बाजार है।।1।।
स्वदेश भाव फिर जगे, स्वदेशी की पुकार है।

कुटुंब है वसुंधरा, हम धरा के पूत हैं समग्रता, एकात्मता की,
संस्कृति की दूत है
सत्यापन का हमें,
मिला सुसंस्कार है।।2।।
स्वदेश भाव फिर जगे,
स्वदेशी की पुकार है।

कुटुंबभाव तोड़कर जो
रच रहे बाजार है
धर्मभाव छोड़कर, जगा रहे विकार है आक्रमण जो कर रहा,
वो शत्रु धुवांधार है।।3।।
स्वदेश भाव फिर जगे, स्वदेशी की पुकार है।

उठो जगो उखाड़ दो,
विज्ञापन के जाल को
जवाब दो खराखरा,
विदेशियों के मॉल को (2)
हिंद देश में सुनो,
उठा प्रचंड ज्वार है।।4।।
स्वदेश भाव फिर जगे, स्वदेशी की पुकार है। .
.....................

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