Saturday, July 18, 2020

चीन का ऋणजाल, भागवती जी


अपने ही ऋणजाल के षड़यन्त्र से ढहती चीनी अथर्व्यवस्था

प्रो. भगवती प्रकाश

विकासशील देशों को ऋण के प्रलोभन में अपनी “बेल्ट एण्ड रोड़“ परियोजना में सम्मिलित कर छदम शर्तों पर दिये ऋण के बदले में उनकी भूमि व संसाधनों को हस्तगत कर, आर्थिक उपनिवेश बनाने के षड़यंत्र में लिप्त चीन अब कोरोना संकट के चलते स्वयं ही दिवालियापन की ओर बढ़ रहा है। चीनी वुहान वायरस से फैली महामारी के कारण चीन की राजनयिक प्रतिष्ठा, अथर्व्यवस्था और उसकी अत्यन्त महत्वाकांक्षी ’बेल्ट एण्ड रोड’ परियोजना गंभीर संकट में पड़ी दिखाई दे रहीं हैं।

ऋणजाल के कुचक्र पर आधारित बेल्ट एण्ड रोड़ परियोजना

अपने विशाल विदेशी मुद्रा भण्डार और वृहद निमार्ण कंपनियों के सहारे विश्व भर में आधारभूत संरचनाओं के लिए ऊँची ब्याज दर पर अपारदर्शी शर्तों पर परियोजनाओं के निमार्ण के बाद उन देशों की सम्पत्तियों को अधिग्रहीत कर आर्थिक उपनिवेश की स्थापना में लगे चीन से धीरे-धीरे अब अधिकांश देश अलग होते जा रहे हैं। ऋण के बदले में उसकी बेल्ट एण्ड रोड़ परियोजना में सम्मिलित लगभग 78 देशों में से कई देश अब कोविड महामारी के कारण उस ऋण की अदायगी के योग्य ही नहीं रह गये हैं। इससे चीन के अरबों डॉलर के ये ऋण डूबने के कगार पर हैं। बेल्ट एण्ड रोड़ परियोजना, जिसे नया सिल्क रूट कहा जा रहा है, एक ऐसी “विशाल व्यापार, निवेश और आधारभूत-संरचना विकास की परियोजना है, जिसका उद्देश्य भौगोलिक, व्यापारिक एवं वित्तीय रूप से एशिया, यूरोप, अफ्रीका और ओशियानिया के अनेकों देशों को जोड़ना बताया जाता रहा है। इसमें सड़क, रेल मार्ग, सामुद्रिक मार्ग तीनों ही प्रकार के परिवहन की आधारभूत संरचनाओं का निमार्ण सम्मिलित है। परियोजना में सम्मिलित देशों के साथ पारदर्शिता रहित अनुबन्धों, अत्यन्त ऊंची व अव्यवहारिक ब्याज दरों, भ्रष्ट शासकों को आर्थिक प्रलोभन और ऋणग्राही देशों को बिना जानकारी दिये सीधे चीनी कम्पनियों को निमार्ण कार्यों का ऊँची दरों पर किये भुगतान आदि के कारण अब वे देश उस ऋण को चुकाने की स्थिति में ही नहीं हैं। छलपूवर्क अपनी ही कम्पनियों को ऊंची लागत पर सीधे-सीधे छदम रीति से भुगतान करते रहने से उन सरकारों को, पूरी निमार्ण अवधि के दौरान भी यह पता नहीं होता था कि इस प्रकार के छदम भुगतानों से चीन ने कितना ऋण उनके नाम चढ़ा दिया है। फिर उस छदम ऋण को चुकाने में विफल रहने वाले देशों की उस सम्पूर्ण परियोजना व अन्य समपाश्विर्क सम्पित्तयों को चीनी कम्पनियाँ हस्तगत कर लेती रहीं हैं। श्रीलंका के हंबनतोटा व अफ्रीका में जीबूती का बन्दरगाह, केन्या का मोम्बासा बन्दरगाह आदि ऐसे कई उदाहरण हैं। ऋण के बदले उन सम्पित्तयों व उस देश के अन्य संसाधनों को 99 वर्ष के लिए की लीज पर बलपूवर्क हथिया कर वहाँ अपने सैन्य अड्डे तक बना लिए हैं। चीन के इस ऋणजाल के चक्रव्यूह को समझकर अब अधिकांश ऋणग्राही देशों ने उन ऋणों की अदायगी में असमथर्ता बतानी आरम्भ कर उस जाल को ध्वस्त करना आरम्भ कर दिया है।

भुगतान विलम्बन और ऋणों के डूबने का संशय

पाकिस्तान सहित अधिकांश ऋणग्राही देशों ने अब कोविड-19 महामारी के बाद चीन से लिये ऋणों के पुनभुर्गतान के लिये 10-10 वर्ष के अतिरिक्त समय की मांग कर दी है। चीन के पास इन सभी देशों की इस मांग को स्वीकारने के अतिरिक्त कोई विकल्प भी नहीं है। अपने ही वुहान वायरस से वैश्विक अथर्व्यवस्था में आये गतिरोध के बाद अब चीन द्धारा कई देशों को दिये ऋण वापस कदाचित ही मिल पाएंगे। कई देश चीन के इस ऋणजाल के कुचक्रों की कार्य प्रणाली को समझ चुके हैं। पिछले सप्ताह में ही केन्या में एक जनहित याचिका पर निर्णय करते हुये न्यायालय ने चीन द्धारा ऐसे ऋणजाल से बनाये एक स्टेण्डर्ड गेज रेल मार्ग के 3.2 अरब डॉलर (25,000 करोड़ रूपये तुल्य राशि) के अनुबन्ध को अवैध घोषित कर दिया है। अब चीन के ऋण से बनी परियोजनाओं पर ऐसे न्यायिक निर्णयों की सभी देशों में बाढ़ आ सकती है। पिछले वर्ष ही दो अफ्रीकी देशों- सियरा लियोन और तंजानिया ने भी “बेल्ट एण्ड रोड़ परियोजना“ से स्वयं को अलग कर लिया था। दो वर्ष पूर्व 2018 में म्यांमार ने भी चीन के सहयोग से बनने वाले क्यायूकफ्यू बन्दरगाह प्रोजेक्ट को अत्यन्त छोटा कर दिया था। इस बन्दरगाह को भी चीन के बेल्ट एण्ड रोड़ इनिशिएटिव प्रोजेक्ट के अधीन ही बनाया जाना था। मलेशिया में भी ईस्ट कोस्ट रेल लिंक (म्ब्त्स्) प्रोजेक्ट की लागत भी शुरू से दो तिहाई घटा दी गई थी। कम्बोडिया में तो चीन का भारी जनविरोध भी आरम्भ हो गया है। दक्षिण पूर्व एशिया में चीन के सबसे बड़े साझेदार देश की जनता को भय है कि कहीं कम्बोडिया चीन के अधीन न हो जाए। काउंसिल फॉर द डिवेलपमेंट ऑफ़ कंबोडिया के मुताबिक, चीन ने 2016 में 3.6 अरब डॉलर का निवेश किया था, जो एक साल बाद दोगुना बढ़कर 6.3 अरब डालर हो गया। कम्बोडियाई सरकार ने कोह कोंग प्रांत को चीन की एक कम्पनी को 99 साल की लीज पर दिया, जो देश के कुल कोस्टलाइन का 20 प्रतिषत है।

इस प्रकार “बेल्ट एण्ड रोड़ परियोजना“ के साझेदार देशों में बढ़ती जाग्रति, चीनी ऋणजाल के कुचक्र और वुहान वायरस के कारण उनमें आ रही आर्थिक गिरावट आदि से उसकी यह बेल्ट एण्ड रोड़ परियोजना भी ढह जाने की सम्भावनाएं बढ़ने लगीं है। इसी कारण से परियोजना के सदस्य कई देश चीन को ऋण को चुकाने में देरी के लिए बाध्य कर रहे है। पाकिस्तान तक ऋणां के पुनभुर्गतान में दस वर्ष की देरी चाहता है और कई अफ्रीकी देश भी कर्ज-माफी की मांग कर रहे है। चीन ऐसे समय में, जब उसकी राजनयिक प्रतिष्ठा अपने न्यूनतम स्तर पर है, इन देशों की मांगों को ख़ारिज नहीं कर सकता है। आज उसकी प्रतिष्ठा का स्तर तिएनमन चौक की घटनाओं या तिब्बत को हस्तगत करने के समय से भी नीचे गिर चुकी है। इसलिए, बीजिंग ने लगभग 77 देशों के लिए ऋण पुनभुर्गतान स्थगित कर दिया है। इनमें से 40 तो अफ्रीकी देश हैं। वर्ष 2019 में, बीजिंग ने लगभग अमेरिका सहित विश्व के 150 देशों को 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण दे रखा होने का आकलन है, जिसका एक भाग अब डूबने के कगार पर है या विलम्ब से प्राप्त होगा।

वर्ष 2013 में ही चीन ने अपना व निवेश व्यापार बढ़ाने के लिए 3.87 ट्रिलियन डॉलर और 2951 अंगभूत परियोजनाओं से युक्त यह अति महत्वाकांक्षी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के अधीन ’बेल्ट एण्ड रोड़ इनिशिएटिव’ नाम से प्रस्तावित किया था। इस परियोजना के अन्तगर्त ही विकास के नाम पर चीन ने अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, दक्षिण-पूर्व एशिया, मध्य एशिया और यूरोप में अरबों डॉलर की कई परियोजनाओं को वित्तपोषित किया है। अन्य देश विकास के नाम पर ऋण लेते गए और चीन देता गया। अब लगभग 20 प्रतिषत बेल्ट एण्ड रोड़ परियोजनायें कोरोना महामारी से उपजे आर्थिक संकट के कारण गम्भीर रूप से प्रभावित हैं व 40 प्रतिषत परियोजनायें न्यूनाधिक सीमा में प्रभावित हुयी हैं। हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू के अनुसार इस परियोजना के लिए चीन ने विश्व के 150 देशों को 1.5 ट्रिलियन डॉलर (115 लाख करोड़ रूपये तुल्य) ऋण दे रखा है, जबकि विश्व बैंक व मुद्राकोष द्धारा केवल 500 अरब डॉलर का ही ऋण दिया हुआ है। अमेरिका पर चीन के 1.04 ट्रिलियन डॉलर के ऋण सहित विश्व के सभी देशें में चीन की कुल बकाया उधारी लगभग 5 ट्रिलियन डॉलर (375 लाख करोड़) की है। यदि वुहान वायरस की क्षतिपूर्ति के बदले सभी देश सामूहिक निणर्य लेकर इस ऋण को चुकता घोषित कर दें तो चीन का दिवालिया होना अवश्यम्भावी है, जिसके लिए विश्व का जनमानस तैयार करना कठिन, पर असम्भव नहीं है।

उत्तर-दक्षिण कॉरिडार चीनी परियोजना पर भारत का काट

पाक अधिकृत कश्मीर से निकलने वाले चीन-पाक आर्थिक गलियारा भी इसी बेल्ट एण्ड रोड़ परियोजना का अंग होने से भारत ने तो आरम्भ से ही चीन के बेल्ट एण्ड रोड़ फोरम में हिस्सा लेने से स्पष्ट मना कर दिया है। मुम्बई से चाबहार के रास्ते उत्तरी यूरोप तक 13 देशें की भागीदारी वाली “अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर“ योजना इस चीनी परियोजना का बेहतर विकल्प ही नहीं उसका काट भी है। रेल, सड़क और समुद्री परिवहन वाले 7200 किलोमीटर लम्बे इस “अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर“ पर भारत, रूस और ईरान ने साल 2000 में सहमति बनाई थी। यह कॉरिडोर हिंद महासागर और फारस की खाड़ी को ईरान के जरिये कैस्पियन सागर से जोड़ेगा और फिर रूस से होते हुए उत्तरी यूरोप तक भारत की व्यापारिक पहुँच बनाएगा। इसके अन्तगर्त ईरान, अजरबैजान और रूस के रेल मार्ग भी भारत से जुड़ जाएंगे। इसी उत्तर दक्षिण कॉरिडोर योजना के अधीन ही भारत ईरान के चाबहार बन्दरगाह का विकास कर रहा है। चाबहार के रास्ते भारत कोरोना महामारी के चलते अफगानिस्तान को खाद्यान्न व दवाईयां की पूर्ति कर सका है। चीन के “बेल्ट एण्ड इनिशिएटिव“ के काट के रूप में देखते हुये अमेरिका ने ईरान पर आरोपित आर्थिक प्रतिबन्ध से भी मुक्त रखा हुआ है। इसमें 13 देश भारत, ईरान, रूस, टर्की, अजरबेजान, कजाखस्तान, आर्मेनिया, बेलारूस, ताजिकिस्तान, किर्गिजिस्तान, ओमान, यूक्रेन व सीरिया सदस्य के रूप में जुड़े हुए हैं और बुल्गारिया आब्जर्वर या पयर्वेक्षक की भूमिका में है। वतर्मान में मुंबई से मास्को या सेंटपीटरसबर्ग माल भेजने में 40-45 दिन का समय लगता है। अगर उसे इस उत्तर-दक्षिण कॉरिडोर के रूट से भेजेंगे तो यह 25 दिन में पहुंच जायेगा। इसमें समय के साथ-साथ व्यय भी 40 प्रतिषत से कम आयेगा, जिससे हमारा व्यापार बढ़ेगा। यह कॉरिडोर हमारे व्यापार के साथ-साथ सैंट्रल एशिया में हमारे रणनीतिक हितों के लिये भी महत्त्वपूर्ण है। भारत ने अफगानिस्तान में एक सड़क इसी श्रृंखला में बनाई है जिससे वहाँ की स्थिरता और शांति स्थापना में भी हम योगदान दे सकेंगे और यह कॉरिडोर सामरिक दृष्टि से भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होगा।

ब्लूडॉट नेटवर्क“ भी चीनी “बेल्ट एण्ड रोड़“ परियोजना का विकल्प

हाल ही में अमेरिका, जापान व आस्ट्रेलिया द्धारा प्रस्तावित ब्लू डॉट नेटवर्क भी चीन के बेल्ट एण्ड रोड इनिशिएटिव का बहुत अच्छा अमेरिकी काट है, जिस पर अमेरिकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा के अवसर पर फरवरी 25 के संयुक्त वक्तव्य में भारत ने भी अपनी रुची व्यक्त कर दी है। इसे नवंबर 2019 में थाईलैंड में ही इंडो-पैसिफिक बिजनेस फोरम में जापान, आस्ट्रेलिया व अमेरिका द्धारा लॉन्च किया गया था। भारत भी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान के साथ चार देशों के संयुक्त रणनीतिक समूह ’क्वाड’ का पहले से ही सदस्य है।

विश्व भर में उच्च गुणवत्ता वाली आधारभूत संरचनाओं के विकास के लिए निजी क्षेत्र के नेतृत्व वाले, टिकाऊ और भरोसेमंद विकल्पों की पहुँच हो, इसलिए कई देश ‘बेल्ट एण्ड रोड़’ के स्थान पर ब्लू डॉट नेटवर्क के अधीन आधारभूत संरचनाओं के विकास को प्राथमिकता देंगे। भारत-अमेरिकी संयुक्त बयान के अनुसार, ब्लू डॉट नेटवर्क “एक बहुहितधारक पहल होगी जो वैश्विक आधारभूत संरचनाओं के विकास के लिए उच्च गुणवत्ता वाले विश्वसनीय मानकों को बढ़ावा देने के लिए सरकारों, निजी क्षेत्र और सिविल सोसाइटी को एक साथ लाएगा“। आज अमेरिकी बेस रेट (ब्याज दर) जो हमारी रेपो दर की तरह होती है, शून्य होने से चीन के 6.5-7 प्रतिषत ब्याज के स्थान पर इस योजना में वित्तीय लागत अत्यन्त कम होगी। ऋणजाल में फाँसने वाली चीनी बेल्ट एण्ड रोड़ परियोजना के स्थान पर भारत का “अन्तर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण गलियारा योजना“ और ब्लू डॉट नेटवर्क जैसी न्याययुक्त व पारदर्शी योजनाएँ विश्व को बेहतर विकल्प देगी।

भारत की समयोचित दृढ़ता

भारत ने हाल ही में गलवान घाटी की घटनाओं के बाद आवश्यक दृढ़ता दिखाते हुये दूरसंचार, निमार्ण, रेल परियोजनाओं में और अन्य कई क्षेत्रों में चीनी कम्पनियों की भागीदारी पर जो रोक लगायी है। उसका चीनी अथर्व्यवस्था पर भारी दबाव पड़ेगा। अमेरिका द्धारा चीनी आयातों से लेकर, अमेरिकी शेयर बाजार में चीनी कम्पनियों के सूचीयन तक पर जो प्रतिबन्ध लगाये है उसके कारण और यूरोपीय देश जो चीन पर कई प्रतिबन्ध लगा रहे है, उनके कारण चीन की निर्यात आधारित अथर्व्यवस्था का चरमराना स्वाभाविक है। चीन 1849 से 1949 की अवधि को चीनी इतिहास का एक शमर्नाक काला अध्याय मानता है। वर्ष 1899 में तो उसे हॉंगकॉंग को भी 100 वर्ष के लिए इंग्लैण्ड को लीज पर देना पड़ा था। अब वुहान के वायरस के बाद और भारत से शत्रुतापूर्ण व्यवहार के बाद आने वाली गिरावट से चीनी इतिहास का 2020 से दूसरा शमर्नाक काला अध्याय आरम्भ होगा। इसलिए अब भारत को भी ’वन चाइना’ अथार्त एकल समेकित चीन के स्थान पर “त्रिराष्ट्र युक्त चीन“ अथार्त चीन, तिब्बत व ताईवान के प्रति तीन पृथक राष्ट्रों के रूप में व्यवहार की नीति पर चलना आरम्भ कर देना चहिये। कश्मीर व अरुणाचल के सम्बन्ध में चीन के व्यवहार को देखते हुए यही उसका सटीक उत्तर होगा। चीन की सामरिक क्षमताओं का आधार आर्थिक है। वर्ष 2018 में भारत के आयात ही 90 अरब डॉलर (लगभग रूपये 7 लाख करोड़) के थे। अब आत्मनिभर्र भारत अभियान के फलस्वरूप घटकर अत्यन्त न्यून रह जायेंगे। जापान, अमेरिका व यूरोप सहित अधिकांश देश द्धारा आर्थिक बहिष्कार चीन को पराभव की ओर ले जायेगा। चीनी वस्तुओं के वैश्विक बहिष्कार से यह घटित होना अवश्यम्भावी है।

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