Saturday, July 31, 2021

ठेंगड़ी उवाच

दत्तोपंत जी कहते थे
A. स्वजाम क्यों: 7
2. विकास का मॉडल : 1
3. विदेशी पूंजी: 4
4. उच्च तकनीक कब; 2
5. विविध 

              
               अतः सावधान!!  सावधान!!!
।।।।।।

      6.          स्वदेशी के लिए जरूरी 

स्वदेशी एक बहुआयामी विषय है, यह बहुत विस्तृत विषय है।इस कार्य में सिर्फ प्रचार माध्यमों के सहारे सफल नहीं हुआ जा सकता है। इसके लिए प्रत्येक स्तर पर सघन कार्य करने की आवश्यकता है। 
      दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि देश में कोई सन्देश देना है तो आरम्भ स्वयं से किया जाए, यही अपनी परंपरा है। अर्थात हम स्वदेशी का आरम्भ अपने से करें, यह सबकी जिम्मेवारी है।
(पृ.51, पैरा 1, सर्वसमावेशी स्वदेशी) स्वदेशी बनाम बहुराष्ट्रीय शिकंजा, 1994, पुणे मंच की राष्ट्रीय परिषद बैठक)
           3.       हम संस्था नहीं, जन-आंदोलन हैं
स्वदेशी के अभियान में सहभागी होना यह सभी देशभक्तों का अधिकार एवं कर्तव्य है। अपनी-अपनी व्यक्तिगत या समूहगत अस्मिता को कायम रखते हुए सभी इसमें सहभागी हो सकें, ऐसी रचना का हमें विकास करना होगा। इस दृष्टि से पहली आवश्यकता यह है कि हममें से प्रयेक कार्यकर्ता के मन में यह भाव दृढ़ होना चाहिए कि 'स्वदेशी जागरण मंच' यह संस्था नहीं है, जन-आंदोलन है। ….यह जन-आंदोलन ग्राम-ग्राम तक कैसे फैलाया जा सकता है, इसकी योजना बनानी है।
(पृ.28, पैरा 1 अंतिम पंक्तियां, सर्वसमावेशी स्वदेशी) स्वदेशी जागरण मंच का समारम्भ, 21 नवम्बर, 1992, मुम्बई की मंच की राष्ट्रीय बैठक)
12.   राजनीतिक दलों की स्वदेशी कार्य में सहभागिता? 
कई बार पूछा जाता है कि राजनीतिक दलों का इसमें (स्वदेशी कार्य) में क्या सहयोग रहेगा? मेरे विचार से चूंकि यह मामला राष्ट्रीय महत्व का है इस लिए सभी राजनीतिक दलों के सभी देशभक्त व्यक्तियों का आह्वान करते हैं कि वे इस कार्य में शामिल हों।
(पृ.51, पैरा 3, सर्वसमावेशी स्वदेशी) स्वदेशी बनाम बहुराष्ट्रीय शिकंजा, 1994, पुणे मंच की राष्ट्रीय परिषद बैठक)

    
             13.  पढ़े-लिखों को भी समझाना क्यों?
आज को लोग सुशिक्षित हैं, उन्हें शिक्षा देने की आवश्यकता बहुत ज्यादा है। जो अल्पशिक्षित या अशिक्षित हैं उन्हें राष्ट्रीयता, संस्कृति और धर्म के परिपेक्ष्य में शिक्षित करने की आवश्यकता कम है। चूंकि इस समाज के शिक्षित लोग धरातल से कटकर 'लौहकवच' में रहते हैं, कुछ लोग आभिजात्य कॉलोनियों में रहते हैं, उनका सम्पर्क जनसाधारण से नहीं होता है। 
ये लोग पश्चिमी संस्कृति में पले-बढ़े हैं। ऐसे लोगों को सुशिक्षित करना बहुत कठिन है; लेकिन यह कार्य करना होगा।

(पृ.52, पैरा 1, सर्वसमावेशी स्वदेशी) स्वदेशी बनाम बहुराष्ट्रीय शिकंजा, 1994, पुणे मंच की राष्ट्रीय परिषद बैठक)

14.    क्या स्वदेशी दुनियां से अलग-थलग होना है?
      कुछ लोग कहते थे स्वदेशी इस आइसोलिज़्म (isolism) है। हम लोग कहते थे आइसोलिज़्म नहीं, वास्तविक जो विश्वकुटुम्ब निर्माण करना है -- 'न्यू इंटरनेशनल आर्डर' यह निर्माण करने का यही रास्ता है। ..हर देश स्वदेशी स्पिरिट का अवलम्बन करे। इसके द्वारा स्टेट फ्रीलांस बने, स्वावलम्बी बने। ऐसे स्वावलम्बी देशों का परस्पर सहयोग हो, जागतिक कल्याण के लिए... वही वसुधैव कुटुम्बकम् है।
(पृ 58, पैर 2 अंतिम पंक्तियां, सर्वसमावेशी स्वदेशी। आर्थिक स्वतंत्रता का संग्राम, 1997 हैदराबाद मंच की राष्ट्रीय सभा)    
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18.      स्वदेशी वैचारिक आंदोलन है

स्वदेशी जागरण मंच , यह एक वैचारिक आंदोलन है, और हमारा ऐसा आग्रह नहीं है कि स्वदेशी के लिए काम करने वाले और विदेशी पूंजी के खिलाफ काम करने वाले सभी लोग, हमारे ही छाते के, हमारे ही अम्ब्रेला के नीचे आने चाहिए। हम सAमझते हैं कि यह जो विदेशी पूंजी है और विदेशी सरकारें हैं, इनकी जो सांठगांठ है, इसका विरोध करना बहुत कठिन है...जैसे गुरिल्ला वॉर प्रेक्टिस चलते हैं, वैसे ही, यह जो आर्थिक युद्ध है, इस युद्ध में अलग-अलग शक्तियाँ, अपने-अपने स्थान पर, इसी तरह यह छापामार लड़ाई चलाएं। लेकिन सब लोगों ने एक विचार और एक ध्येय रहना चाहिए।

(सर्वसमावेशी स्वदेशी, पृ 76, विजय सुनिश्चित, वाराणसी में मंच के तृतीय सम्मेलन में बोलते हुए)

4. धर्माधिष्ठित मनोरचना क्या है?
पश्चिम के लोग केवल भौतिकवादी हैं, हमारे यहां भौतिकता का अभाव नहीं है, लेकिन भौतिक और अभौतिक, समुत्कर्ष व निःश्रेयस, दोनों को एक माना गया है। इसका कारण हमारे यहां की धर्माधिष्ठित मनोरचना है।
(पृ. 39, पैरा 2, सर्वसमावेशी स्वदेशी) स्वदेशी क्यों? बहुराष्ट्रीय शिकंजा, 1992 मुम्बई 22 नवंबर,  मंच की सार्वजनिक सभा में)
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विदेशी पूंजी क्यों? 
          5. ॥
          विदेशी पूंजी का विरोध क्यों?

विकसित देशों में जिस तरह पूंजी-निवेश होता है, वैसा ही पूंजी-निवेश हमारे देश में हो तो हमें कोई आपत्ति नहीं होगी। दो देशों के बीच आपसी बातचीत के समय भी राष्ट्रीय-हितों को ध्यान में रखा जाता है, किंतु हमारे यहां तो समझौता करने वालों ने एकदम आत्मसमर्पण कर दिया है।

(पृ.52, पैरा 1, सर्वसमावेशी स्वदेशी) स्वदेशी बनाम बहुराष्ट्रीय शिकंजा, 1994, पुणे मंच की राष्ट्रीय परिषद बैठक)
 ... 

    2.     विदेशी पूंजी से सावधान
विदेशी पूंजी के हाथ बहुत लंबे हैं। लोगों को गुमराह करने की उनकी क्षमता असीम है। झूठे प्रचार की कला के विशेषज्ञ बहुत बड़ी संख्या में उनकी सेवायों में हैं।.. सामान्यजन ऐसे दुष्प्रचार का शिकार आसानी से बनते हैं, क्योंकि उसके पीछे विदेशियों के हाथ है, ऐसा अस्पष्ट सन्देह भी उनके सरल मन में निर्माण नहीं होता।.... (राष्ट्रऋषि दत्तोपंत ठेंगड़ी)
(पृ.23, पैरा 3, सर्वसमावेशी स्वदेशी) स्वदेशी जागरण मंच का समारम्भ, 21 नवम्बर, 1992, मुम्बई की मंच की राष्ट्रीय बैठक)
  8.              क्या विदेशी निवेश बिना विकास संभव है?
अब एक प्रश्न खड़ा होता है कि क्या विदेशी निवेश के बिना हम आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो सकते हैं? इसका उत्तर भी सकारात्मक है। यदि लोगों में देशभक्ति की भावना जागृत की जाती, जिसके कारण हम घरेलू बचत बढ़ाते, उपभोग को नियंत्रित रखते तो हमारे ही अंदर पूंजी बनाने की ताकत बहुत ज्यादा आ जाती।

               9.      विदेशी निवेश कब?
इंग्लैंड, फ्रांस, अमरीका, जर्मनी, इटली जैसे विकसित देश भी विदेशी निवेश का स्वागत करते हैं। लेकिन इस संदर्भ में यह समझना होगा कि विकसित देशों में जो निवेश होता है और हमारे देश में जो निवेश होता है, या तृतीय विश्व के सभी देशों में होता है, उसमें क्या अंतर हैं। विकसित देशों में जो निवेश होता है, वह उनकी शर्तों पर होता है। वे अपने राष्ट्रहित का पूरा ध्यान रखते हैं।
(पृ.43 पैरा 1, सर्वसमावेशी स्वदेशी)
  
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7. तकनीक पर किसका नियंत्रण हो?
कंप्यूटर तकनीक के जनक सुप्रसिद्ध डॉ वीनर (Wiener)  भी कहते हैं कि विज्ञान और तकनीक की अनियंत्रित प्रगति होगी तो मनुष्य को लाभ ही हयोग, इसकी गारंटी है? उन्होंने कहा कि तकनीक पर नियंत्रण रखने वाली संस्था होनी चाहिए, जो वैज्ञानिकों व तकनीक के जानकारों की न हो, बल्कि सांस्कृतिक प्रवृति के मानवजाति का कल्याण चाहने वाले लोग हैं उनकी नियंत्रित संस्थाएं होनी चाहिए।
(पृ.46 पैरा 1, सर्वसमावेशी स्वदेशी)
(आइंस्टाइन व ऑपेन्ह्यमेर रोने लगे अणुबम निर्माण के बाद)

  
              10. उच्च तकनीक कब स्वीकार करना
तकनीक के बारे मे भ्रम है कि हर एक नई तकनीक मानवता के लिए उपयोगी है। लेकिन ऐसा है नहीं। नई तकनीक अकेले  नही आती, बल्कि पाश्चात्य संभ्यताएँ भी आती हैं। ...दूसरी बात उनकी सब तकनीक लोगों को बेरोजगार करने वाली हैं। कुछ क्षेत्र विशेषकर देशकी सुरक्षा के लिए उच्च तकनीक की आवश्यकता है, लेकिन वहां वे उच्च तकनीक लाना नहीं चाहते हैं। 
(पृ.44 पैरा 1, सर्वसमावेशी स्वदेशी)
।।।।

          11.   वस्तु के निर्माता, क्रेता व विक्रेता से सम्पर्क क्यो?

अब तक हम लोगों ने जन-जागरण के माध्यम से स्वदेशी वस्तुओं के बारे में लोगों को बताने का कार्य किया है।... अब थोक वस्तुओं के विक्रेता और क्रेता दोनों से सम्पर्क करके उन्हें स्वदेशी वस्तुएँ बेचने और खरीदने के लिए सहमत करना।           

साथ ही अब उद्योगपतियों पर जोर डालना होगा कि वे अपनी वस्तुओं की उत्पादन-लागत वस्तु पर लिखकर दें।..कई संस्थाएं भी इस कार्य में सहयोग करना चाहती है, धीरे-धीरे इन संस्थाओं का सहयोग लिया जा सकता है।
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15.     नई तकनीक की मृगमरीचिका
वे लोग कहते हैं कि अप-टू-डेट (अधुनातन) तकनीक ला रहे हैं। लेकिन कोई भी सरकारी नेता यह बताए कि 45 साल में हमने  कौनसी अप-टू-डेट (अधुनातन) तकनीक ली है। विदेशों में ऐसी परिस्थिति है कि तकनीक पर प्रयोग चलते रहते हैं। हित यह है कि एक वस्तु के निर्माण करने के लिए आज जो तकनीक है वह 5-6 महीने में 'आउटडेटेड (प्रयोग से बाहर) हो जाती है। नई तकनीक का निर्माण होता है। लेकिन पुरानी तकनीक जो उनके गोदाम में पड़ी है, ऐसी पुरानी तकनीक हमारे देश पर लाद देते हैं!

(पृ. 45, पैरा 1, सर्वसमावेशी स्वदेशी) स्वदेशी क्यों? बहुराष्ट्रीय शिकंजा, 1992 मुम्बई 22 नवंबर,  मंच की सार्वजनिक सभा में)

16.        विरोध किसका लुटेरों का न कि उसके  सामान्य देशवासी का
हम अमरीका के सख्त खिलाफ हैं, ऐसा कहते हैं, लेकिन इसके कारण मिसअंडरस्टैंडिंग नहीं होनी चाहिए। हम सर्वसाधारण अमरीकन के खिलाफ नहीं हैं। वो बेचारा इतना ही इन्नोसेंट है, जितने हम हैं।...अमरीका हो या गोर देशों में सरकारों व विदेशी पूंजी, इनकी जो सांठगांठ है, इसके खिलाफ हम बात कर रहे हैं।
(पृ 61, पैरा 1 अंतिम पंक्तियां, सर्वसमावेशी स्वदेशी। आर्थिक स्वतंत्रता का संग्राम, 1997 हैदराबाद मंच की राष्ट्रीय सभा)
17.     हरामखोर देश कौन हैं?
कभी-कभी हमारे भाषण में हरामखोर शब्द आता है, लोग कहते हैं साहब ये अनपर्लियामेंट्री है,  मैंने कहा ये ठीक है। लेकिन इनका योग्य वर्णन करना हो तो इससे कम गंदा शब्द शब्दकोश में नहीं। इसलिए इन शब्दों का प्रयोग कर रहा हूँ। यह वास्तव में दुष्ट लोग हैं, हरामखोर हैं, दुनिया को खाकर हम मजे में कैसे रह सकते हैं, हमारा कंजुमारिज़्म कैसे चल सकता है, यह सोचने वाले हैं। 
(पृ 66, पैरा 1 अंतिम पंक्तियां, सर्वसमावेशी स्वदेशी। आर्थिक स्वतंत्रता का संग्राम, 1997 हैदराबाद मंच की राष्ट्रीय सभा)

18.      स्वदेशी वैचारिक आंदोलन है

स्वदेशी जागरण मंच , यह एक वैचारिक आंदोलन है, और हमारा ऐसा आग्रह नहीं है कि स्वदेशी के लिए काम करने वाले और विदेशी पूंजी के खिलाफ काम करने वाले सभी लोग, हमारे ही छाते के, हमारे ही अम्ब्रेला के नीचे आने चाहिए। हम सAमझते हैं कि यह जो विदेशी पूंजी है और विदेशी सरकारें हैं, इनकी जो सांठगांठ है, इसका विरोध करना बहुत कठिन है...जैसे गुरिल्ला वॉर प्रेक्टिस चलते हैं, वैसे ही, यह जो आर्थिक युद्ध है, इस युद्ध में अलग-अलग शक्तियाँ, अपने-अपने स्थान पर, इसी तरह यह छापामार लड़ाई चलाएं। लेकिन सब लोगों ने एक विचार और एक ध्येय रहना चाहिए।

(सर्वसमावेशी स्वदेशी, पृ 76, विजय सुनिश्चित, वाराणसी में मंच के तृतीय सम्मेलन में बोलते हुए)

1.    विकास का स्वदेशी मॉडल कैसा हो?
हम लोग तो 'डे-टू-डे' एक्टिविटी' में लगे हुए हैं। हम ऐसे थोड़े से लोग इस बौद्धिक काम के लिए उपयुक्त हो सकते हैं, ...इसलिए हर स्तर पर ऐसा मॉडल तैयार करने के लिए जो बुद्धिमानी चाहिए, ऐसी बुद्धिमानी रखने वाले लोगों की खोज करना, जिसको कहा गया है 'हंट फ़ॉर द टैलेंट'। यह आवश्यक है, वह अभी से करना आवश्यक है।
                -- राष्ट्रऋषि दत्तोपंत ठेंगड़ी
(पृ. 135, पैरा 1, सर्वसमावेशी स्वदेशी) विकास का मॉडल, 9,10 जनवरी 2004 को  कड़ी,गुजरात, मंच की राष्ट्रीय अधिवेशन ) जीवन का अंतिम वर्ष) 
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