Tuesday, August 31, 2021

ठेंगड़ी जी : पर्यावरण पर उनकी सोच

ठेंगड़ी जी और  पर्यावरण: 
1.  भूमिका: अपने समय के अनुरूप बहुत अधिक सजग थे: वे पर्यावरण के बारे में अत्यधिक चिंतित थे, एक दार्शनिक की तरह केवल अनुभव नहीं बल्कि अनुभूति के आधार पर वे आगामी दुर्दशा देख रहे थे। चंडीगढ़ में अधिवक्ता परिषद के कार्यक्रम में उस समय 1995 में Environment Protection पर विस्तार से बोला जो आज पुस्तिका के रूप में विद्यमान हैं। B. इसके अतिरिक्त एक लेख 9 पृष्ठ का अलग से है जिसमें लगभग सभी बातें आयी है और उसी में से 10 उक्तियां हिंदी व अंग्रेजी में नीचे दी गयी हैं। यह लेख उनके द्वारा लिखे गए एक पेपर पर आधारित है जिसे 1992 में देश के बुद्धिजीवियों में बांटा गया था।  C. उन्होंने जो पांच संगठन खड़े किए उनमें से एक पर्यावरण मंच भी खड़ा किया है। D. हर साल भारतीय प्रतीक के नाते उन्होंने अमृतादेवी बलिदान दिवस को 28 अगस्त को मनाने की परंपरा डाली है।
उन्होंने जो बातें कहीं हैं वे मेरे हिसाब से पांच हैं। 

पहला कि यह  मानना पड़ेगा कि यह मानवनिर्मित त्रासदी हैं न कि दैवनिर्मित। इसका ज्यादा प्रभाव पश्चिम में औद्योगिक युग के साथ प्रारंभ  हुआ। लगभग पूरा विश्व आब इस बात को मानता है। 
दूसरा कि इसको मनुष्य को ही रोकना है। इसके लिये सरकार को अच्छे और मजबूत नियम बनाने चाहिए और पूरे जोरशोर से उनको अमल में भी लाना चहिये। वास्तव में आज दोनों बातों में कमियां हैं। उनकी पुस्तक Environmental Protection इसी बात पर आधारित है।
तीसरी बात है कि मूलतः विकास और प्रकृति का विरोध नहीं है, दोनों सम्भव है। बात बिगड़ती इस बात से है कि हम दोहन नहीं शोषण कर रहे हैं। प्रकृति रूपी गाय का दोहन  milking नहीं बल्कि शोषण एक्सप्लॉइटशन कर रहे हैं। भारत हज़ारों साल दुनियां का  अग्रणी देश रहा परन्तु प्रकृति के साथ सहजीवन simbiosis रहा। मनुष्य अपने कक प्रकृति का हिस्सा मानता रहा। इसी सोच को बदलने की जरूरत है। द्वैत पश्चिम की अवधारणा है, अद्वैत भारतीय सोच है। 
 चौथी  बात है कि चाहे जितने भी कानून बना लीजिए, जब तक समाज इसके महत्व को नहीं समझता, इसे मन से अंगीकार नहीं करता है, तब तक बहुत अधिक सफलता की संभावना  नहीं है। अतः प्रबल जनजागरण की जरूरत है।

 अंतिम और पांचवी  बात है कि इसके लिए प्रेरणा कहाँ से मिले और प्रतिमान (  model)किसे बनाया जाए। तो उनका कहना है कि भारत ही इसका प्रत्यक्ष मॉडल युगों-युगों से रहा है, और आगे भी रहेगा। इसी को आगामी प्रारूप के नाते विश्व के आगे भी रखना होगा। 

हाँ, एक बात और भी ध्यान आयी है और वो है कि कैसे उन्होंने इसके नुकसान भी बताए हैं, प्रदूषण के। अलग-अलग वर्गों पर इसका प्रभाव भी बताया है। इस प्रकार शुरुआत की भूमिका इसी में निहित है।  उन्होंने  वनवासियों पर इसके प्रभाव की चर्चा की, पशुपक्षियों पर प्रभाव की भी चर्चा भी की। आज बहुत ही मुखर रूप से इस त्रासदी की चर्चा साल दर साल हो रही है। विश्व में ट्यो इसकी बातचीत स्टॉकहोम में 1972 के अधिवेशन से हुई जिस दिन यानी 5 जून को पर्यावरण दिवस के नाते मनाया जाता है।
पहला तथ्य की . यह मानवनिर्मित त्रासदी है। इंडस्ट्रियल रेवोलुशन के साथ भी इसका सम्बन्ध है:   
पहला कि यह  मानना पड़ेगा कि यह मानवनिर्मित त्रासदी हैं न कि दैवनिर्मित। इसका ज्यादा प्रभाव पश्चिम में औद्योगिक युग के साथ प्रारंभ  हुआ। लगभग पूरा विश्व आब इस बात को मानता है। उनका मानना है कि यद्यपि 1904 में WH हडसन ने एक उपन्यास मात्र  GREEN MANSIONS लिखा था पर वह कोई शोध ग्रन्थ नहीं था, मात्र उपन्यास ही था। वैसे 1973 में एक शूमाखर द्वारा लिखित पुस्तक स्माल इस ब्यूटीफुल ने काफी बड़ा तहलका मचाया था और उसने भी भारतीय या बुद्ध का रास्ता अपनाने की ताकीद की थी। उस समय का उद्घोष था, बिग इस बेटर। शूमाखर ने सिद्ध किया कि नहीं स्माल इस ब्यूटीफुल है। (Small Is Beautiful: A Study of Economics As If People Mattered is a collection of essays published in 1973 by German-born British economist E. F. Schumacher. The title "Small Is Beautiful" came from a principle espoused by Schumacher's teacher Leopold Kohr[1] (1909–1994) advancing small, appropriate technologies, policies, and against big is better) 
इसी दौरान एक दूसरी पुस्तक रेचल कार्सन की  भी बड़ी लोकप्रिय हुई --  Silent Spring. (Silent Spring is an environmental science book by Rachel Carson.[1] The book was published on September 27, 1962, documenting the adverse environmental effects caused by the indiscriminate use of pesticides. Carson accused the chemical industry of spreading disinformation, and public officials of accepting the industry's marketing claims unquestioningly)
A.   Western Philosophy - Source of Pollution: 
उनकी पहली उक्ति बड़ी महत्वपूर्ण है कि कैसे पश्चमी विचारधारा में मनुष्य और प्रकृति को आपस में भिड़ा दिया है। वे रेने डेकार्ट का उल्लेख करते हैं जिसको पश्चिमी दर्शन के पुरोधा माना जाता है। (रेने देकार्त (1596 से 1650) जो कि दार्शनिक होने के साथ साथ एक सुप्रसिद्घ गणितज्ञ थे, वे दर्शन को विज्ञान में परिवर्तित करना चाहते थे। आधुनिक पाश्चात्य दर्शन का जनक के रुप में इन्हें जाना जाता है, साथ ही साथ इन्होंने ज्ञान के लिए बुद्धि को सर्वोत्तम राह बताया, क्योंकि इसमें ज्ञान सार्वभौमिक व अनिवार्य होता है,
"The modern Cartesian Reductionist philosophy has pitted man against views nature as if man himself is not part of nature. It permits ruthless destruction of Nature in the service of the ever-growing appetites of man. The result is serious depletion of natural resources, grave disturbance of the eco-system and a level of pollution that is increasingly endangering all life-forms.
पश्चिमी दर्शन की देन है प्रदूषण:
"कार्टेज़ियन न्यूनीकरण के आधुनिक सिद्धान्त ने मनुष्य को  प्रकृति का दुश्मन बना दिया है, मानो मनुष्य स्वयं प्रकृति का अंश न हो। मानव के निरंतर बढ़ने  वाले लालच को शांत करने के लिये प्रकृति का बेरहमी से विनाश करने की अनुमति इसमें दी गयी है। फलस्वरूप प्राकृतिक साधनों में गम्भीररूप से कमी आकर पर्यावरण प्रणाली  का सन्तुलन बिगड़ रहा है और प्रदूषण का स्तर समूची जीवसृष्टि को खतरे में डाल रहा है। (तीसरा विकल्प, पर्यावरण, पृष्ठ 137).
उनका मानना है और आज दुनियां भी मां रही है कि विकसित देश ही ज्यादा प्रदूषण की जननी है। एक उक्ति उनकी है: 
B. Developed Nations Produce Pollution:
The pollution per inhabitant in the upper fifth of the world is about fifty times more than in the other four-fifths, and full industrial development of underdeveloped countries might raise the world pollution rate to a level at which it might wipe off the major part of the world's population. 
  विकसित देशों की देन है प्रदूषण:
  विश्व की जनसंख्या के 1/5भाग का प्रदूषण अन्य 4/5 भाग से 50 गुना अधिक है, और अविकसित देशों में यदिऔद्योगिक विकास पूर्णरूप से हुआ तो विश्वप्रदूषण का स्तर इतना बढ़ जाएगा कि दुनिया का अधिकांश हिस्सा नष्ट ही हो जाएगा।
 (तीसरा विकल्प, पर्यावरण, पृष्ठ 138)
उनका यह भी विश्लेषण बड़ा वैज्ञानिक था कि ऑक्सीजन की ज्यादा जरूरत भी औद्योगिक देशों को है जो इसको समाप्त कर रहे हैं।
C. Ruthless Industrialisation Causes Pollution: 

The oxygen requirement of the technosphere of industrial society is at least fifteen times that of a normal bio-sphere. Similarly, if the  developing countries come to the level of developed countries, some of the key metals and minerals would be exhausted well within the next hundred years.
अंधाधुंध औद्योगिकीकरण का परिणाम  है प्रदूषण
औद्योगिक समाज के तकनीकी वातावरण (technosphere) को सामान्य जैव पर्यावरण की अपेक्षा कम से कम 15 गुना अधिक प्राणवायु की आवश्यकता होती है। उसी प्रकार यदि विकसनशील देश विकसित देशों के स्तर को छू लेंगे तो कुछ आधारभूत धातुएं और खनिज द्रव्य आगामी सो वर्षों में समाप्त  हो जाएंगे। (तीसरा विकल्प, पर्यावरण, पृष्ठ 138)
वे निसंकोच रूप से योजनाकारों तथा शासकों को वर्तमान त्रासदी के लिए जिम्मेवार मानते हैं: 
D.  Main Culprits of Pollution?
Our planners and rulers are guilty of deliberately neglecting ecological considerations to favour the financiers.पहला उपाय सामान्यतः बताया जाता है कि हमे इसके संरक्षण हेतु कानून काफी कमजोर हैं, अपर्याप्त हैं, प्लानर्स की क्रिमिनल कमी है, इस और बहुत ध्यान देना चाहिए।
महत्वपूर्ण बिंदु यह भी है कि गांव व देहात पर्यावरण के राडार से गायब हैं: 
E. It is generally acknowledged that industrialization has polluted all natural resources - land, water and air - and raped the Nature instead of milking it.  But even this renewed interest is confined to urban areas and the industrial sector. The impact of pollution on rural as well as forest or river or hill areas has not -yet been appreciated properly. 
F. Main Culprits of Pollution?
Our planners and rulers are guilty of deliberately neglecting ecological considerations to favour the financiers.
प्रदूषण का बड़ा जिम्मेवार कौन? 
हमारे निर्माता व शासक जानबूझकर पर्यावरण की उपेक्षा करने का अपराध कर रहे हैं। (तीसरा विकल्प, पर्यावरण, पृष्ठ 144 प्रथम पैरा)
9. Mere Show of Social Forestry: Under the pressure of environmentalists, some programmes of social forestry are taken up. In the first place, these programmes are too inadequate considering the pressing need for afforestation. Secondly, they are more in the nature of window-dressing, a fashionable activity. The participants in the programmes are not earnest about their implementation.
वनकीकरणकहीं दिखावा तो नहीं?पर्यावरणविदों द्वारा दबाव डाल जाने पर सामाजिक वनविज्ञान के ये कार्यक्रम अत्यल्प हैं। दूसरी बात कि ये केवल दिखावटी हैं, केवल औपचारिकता निभाने वाले। इन कार्यक्रमों में भाग लेने वालों के मन मे  उसके कार्यन्वयन के विषय में गंभीरता नहीं है।(तीसरा विकल्प, पर्यावरण, पृष्ठ 144 दूसरा पैरा)

तीसरी बात है कि मूलतः विकास और प्रकृति का विरोध नहीं है, दोनों सम्भव है। बात बिगड़ती इस बात से है कि हम दोहन नहीं शोषण कर रहे हैं। प्रकृति रूपी गाय का दोहन  milking नहीं बल्कि शोषण एक्सप्लॉइटशन कर रहे हैं। भारत हज़ारों साल दुनियां का  अग्रणी देश रहा परन्तु प्रकृति के साथ सहजीवन simbiosis रहा। मनुष्य अपने कक प्रकृति का हिस्सा मानता रहा। इसी सोच को बदलने की जरूरत है। द्वैत पश्चिम की अवधारणा है, अद्वैत भारतीय सोच है। अंग्रेजी शब्द सिम्बईओसिस symbiosis या सहजीवन शब्द बड़े मार्के का है। 
 जो प्रकृतिवादी एल्टन (Elton, सन् १९३५) के प्राक्कथन से स्पष्ट हो जाता है। इनके अनुसार, जन्तु को मारकर खानेवाले और परजीवी में वही भेद है जो मूलधन और ब्याज पर निर्वाह करनेवालों में, अथवा चोर और धमकाकर रुपया ऐंठनेवाले (blackmailer) में हैं।

चौथी,  इससे भी बड़ी और सबसे ज्यादा जरूरत समाज कर जागरण की है।  सिर्फ कानूनों से काम नहीं चलेगा, जनजागरण अति आवश्यक है। 
हैं। 
5. भारतीय दृष्टिकोण में दम हैं। भारत में जब अत्यधिक व्यापार होता था तो भी हमारे यहां पर्यावरण की समय नहीं थी। उनके भाषण की शुरुआत भी इन्दिरा गांधी जी के भाषण के उल्लेख से होती है जिसमे भारतीय वेद परम्परा व पर्यावरण का उल्लेख है। उनके भाषण की समाप्ति भी उसी बात से होती है कि हमें प्राचीन दर्शन की ओर लौटना चाहिए जिसमें प्रकृति का वंदन है।।                                                                    a.    Ved and Ecology
1. Shrimati Indira Gandhi gave a pleasant surprise to the world environmentalist meet at Stockholm (1972) when she told them that her country had been ecology-conscious right from the early Vedic period. That has not been the case with the West. (The day was 5th June, came to be known as universal Environment Day. )
प्राचीन साहित्य में पर्यावरण:
सन 1972 में स्टॉकहोम में वैश्विक पर्यावरणविदों की जो सभा सम्पन्न हुई, उसमें श्रीमती इंदिरा गांधी ने यह कहकर सबको सुखद आश्चर्य में डाल दिया कि उनका देश प्राचीन काल से ही पर्यावरण पर ध्यान देता रहा है। पश्चिमी देशों में ऐसा नहीं है। 
(तीसरा विकल्प, पर्यावरण, पृष्ठ 137)

B. RETURN to Our Roots: Similarly, we have to get back to our philosophy and to view the earth, the air, the water, the flora and the fauna as sacred. We have to develop a technology that will be nature-protective and not nature-destructive. The whole world is going to need such a philosophy and matching technology in the twenty-first century.. 

चंदन है इस देश की माटी: साथ-साथ हमें अपने पुराने दर्शन की ओर जाना होगा कि भूमि, वायु, जल, वनस्पति और जीव-जंतु सब पवित्र है। हमे एक ऐसी तकनीक विकसित करनी है जो प्रकृतिपोषक हो, न कि प्रकृति विनाशक। पूरी दुनिया को इकीसवीं सदी में ऐसी चिंतनधारा और इसके अनुरूप तकनीक की आवश्यकता पड़नेवाली है।
(तीसरा विकल्प, पर्यावरण, पृष्ठ 145 अंतिम पैरा)
आज भारत को वैसे भी पर्यावरण के प्रति सचेत होने पड़ेगा क्योंकि भारत के पास जमीन कम है, खिलाने के लिए मानव व जानवर ज्यादा है: 
CU.India has Less Land: More Burden:
 India has 2.45% of the world's landmass, but it has to support 15 % of the world's cattle, 52% of its buffaloes, and 15% of its goats, and humans.
भारत के पास दुनियां की भूसंपदा का 2.45% भाग ही है, परन्तु दुनियां के 15% मवेशियों, जिसमें की 52% भैंसे और 15% बकरियां समाविष्ट हैं, तथा मनुष्यप्राणियों का पालन करना पड़ता है। (तीसरा विकल्प, पर्यावरण, पृष्ठ 143 पर प्रथम)
अंत में वे चेतावनी भी देते हैं कि विकासशील देश की दुहाई देकर लंबे समय तक पर्यावरण संरक्षण को टाला नहीं जा सकता: 
10 . Don't Postpone Environment: It is wrong to presume that being a developing country India can afford to postpone to a distant future the long-awaited introduction of comprehensive environmental planning, and that a periodical patchwork of tentative measures based upon adhocism would enable us to deal with this problem effectively. Even the recent UNEP document sharply criticizes the slipshod manner of dealing with the subject.
 पर्यावरण को टालना घातक: यह सोचना गलत है कि विकसनशील देश होने के कारण, पर्यावरण संबंधी चिरप्रतीक्षित समग्र योजना को सुदूर भविष्यकाल तक भारत ताल सकता है और समय-समय पर कामचलाऊ उपायों के थेगले लगाकर इस समस्या का समाधान हो सकता है। यूएनईपी द्वारा प्रस्तुत ताज़ा रिपोर्ट भी इस लापरवाही की कड़ी आलोचना की गई है। (तीसरा विकल्प, पर्यावरण, पृष्ठ 145 प्रथम पैरा)

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