Friday, February 19, 2021

Poem On human values

*A beautiful poem by Lee Tzu Pheng (Singapore Cultural Medallion winner)*

Sip your Tea
Nice and Slow, 

No one Ever knows 
when it’s Time to Go,
There’ll be no Time 
to enjoy the Glow,
So sip your Tea
Nice and Slow... 👌🏻

Life is too Short but 
feels pretty Long,
There’s too Much to do , so much going Wrong, 
And Most of the Time You Struggle to be Strong,
Before it’s too Late 
and it’s time to Go,
Sip your Tea
Nice and Slow... 👌🏻

Some Friends stay, 
others Go away,
Loved ones are Cherished, but not all will Stay ,
Kids will Grow up 
and Fly away,
There’s really no Saying how Things will Go,
So sip your Tea
Nice and Slow... ☕

In the End it’s really 
all about Understanding Love,
For this World  
and in the Stars above,
Appreciate and Value who truly Cares, 
Smile and Breathe 
and let your Worries go,
So, Just Sip your Tea
Nice and Slow.... ☕
*This poem is beyond all relationships*
*But made for us all*

​* *When I'm dead.*
​* _*Your tears will flow*_
​* _*But I won't know*_
​* _*Cry with me now instead!​*_

​* _*You will send flowers,..​*_
​* _*But I won't see*_
​* _*Send them now instead*_

​* _*You'll say words of praise,..​*_
​* _*But I won't hear..​*_
​* _*Praise me now instead!​*_

​* _*You'll forget my faults,....​*_
​* _*But I won't know.....​*_
​* _*Forget them now, instead!​*_

​* _*You'll miss me then,...​*_
​* _*But I won't feel...*_
​* _*Miss me now, instead​*_

​* _*You'll wish...​*_
​* _*You could have spent more time with me,...​*_
​*_*Spend it now instead!​*_

​* _*When you hear I'm gone, you'll find your way to my house to pay condolence but we haven't even spoken in years....​*_
​* _*Pls look for me now!!​*_
 
​* _*"Spend time with every person around you, and help them with whatever you have to make them happy!! your families, friends, acquaintance.....​"*_
​* _*"Make them feel Special. Because  you never know when time will take them away from you forever

 _1.  Alone I can 'Say' but together we can 'Talk'._
  _2.  ​Alone I can 'Enjoy' but together we can 'Celebrate'_  
  _3.  ​Alone I can 'Smile' but together we can 'Laugh'_

   ​  That's the BEAUTY of Human Relations. We are nothing without each other in
🙂🙂🙂Stay Connected 🙂🙂
*Good Morning*

Wednesday, February 17, 2021

विदेशों में भारतीय


1. According to a Ministry of External Affairs report, there are 32 million NRIs and PIOs residing outside India.[1]
दुनिया में बज रहा भारत का डंका

डाॅ. वेदप्रताप वैदिक
यह ठीक है कि अमेरिका, चीन और कुछ यूरोपीय राष्ट्र आर्थिक क्षेत्र में भारत से आगे हैं, लेकिन इस वक्त दुनिया में किसी एक राष्ट्र का डंका सबसे ज्यादा जोर से बज रहा है तो वह भारत है। दुनिया के 15 देशों में भारतीय मूल के नागरिक या तो वहां के सर्वोच्च पदों पर हैं या उनके बिल्कुल निकट हैं। या तो वे उन देशों के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री हैं या सर्वोच्च न्यायाधीश हैं या सर्वोच्च नौकरशाह हैं या उच्चपदस्थ मंत्री आदि हैं। पांच राष्ट्रों के शासनाध्यक्ष भारतीय मूल के हैं। तीन उप-शासनाध्यक्ष, 59 केंद्रीय मंत्री, 76 सांसद और विधायक, 10 राजदूत, 4 सर्वोच्च न्यायाधीश, 4 सर्वोच्च बैंक प्रमुख और दो महावाणिज्य दूत भारतीय मूल के हैं। इनमें दक्षिण एशिया के पड़ोसी देशों को नहीं जोड़ा गया है। यदि उन सबको भी जोड़ लिया जाए तो उक्त 200 की संख्या दुगुनी-तिगुनी हो सकती है। ये सब राष्ट्र भी सदियों से भारत के अंग रहे हैं और भारत उनका अंग रहा है।
आप बताएं कि क्या आपके भारत-जैसा कोई अन्य राष्ट्र सारी दुनिया में दिखाई पड़ता है? अब तो संयुक्तराष्ट्र संघ के विभिन्न संगठनों में भी दर्जनों महत्वपूर्ण पदों पर भारतीय लोग विराजमान हैं। इस समय लगभग साढ़े तीन करोड़ भारतीय मूल के नागरिक दुनिया में दनदना रहे हैं। जिन-जिन देशों में वे गए हैं, वहां उनकी हैसियत क्या है? वे कभी गए थे वहां मजदूरी, शिक्षा और रोजगार वगैरह की तलाश में लेकिन वे अब उन देशों की रीढ़ बन गए हैं। आज यदि ये साढ़े तीन करोड़ भारतीय अचानक भारत लौट आने का फैसला कर लें तो अमेरिका-जैसे कई संपन्न देशों की अर्थव्यवस्था घुटनों के बल रेंगने लगेगी। इस समय भारतीय लोग अमेरिका के सबसे संपन्न, सबसे सुशिक्षित और सबसे सुसंस्कृत लोग माने जाते हैं। अमेरिका सहित कई देशों में भारतीय लोग ज्ञान-विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्रों में सर्वोच्च स्थानों पर प्रतिष्ठित हैं। उनकी जीवन-शैली और संस्कृति वहां किसी योजनाबद्ध प्रचारतंत्र के बिना ही लोकप्रिय होती चली जा रही है।
भारत एक अघोषित विश्व-गुरु बन गया है। भारतीयता का प्रचार करने के लिए उसे तोप, तलवार, बंदूक और लालच का सहारा नहीं लेना पड़ रहा है। विदेशों में बसे भारतीय अपने मूल देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में तो भरसक योगदान करते ही हैं, वे लोग भारतीय विदेश नीति के क्षेत्र में भी हमारे बहुत बड़े सहायक सिद्ध होते हैं। कभी-कभी भारत के आंतरिक मामलों पर उनका बोल पड़ना हमें आपत्तिजनक लग जाता है लेकिन उनके लिए वह स्वाभाविक है। इसका हमें ज्यादा बुरा नहीं मानना चाहिए। हमारी कोशिश यह होनी चाहिए कि भारत को ऐसा बनाएं कि यहां से प्रतिभा-पलायन कम से कम हो।
(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं।)

Sunday, February 14, 2021

सरदार पटेल

पटेल घटनाएं
1. अविचलित: 

इमेज स्रोत,GETTY IMAGES

ऑल इंडिया रेडियो ने अपने 29 मार्च, 1949 को रात के 9 बजे के बुलेटिन में सूचना दी कि सरदार पटेल को दिल्ली से जयपुर ले जा रहे विमान से संपर्क टूट गया है.

अपनी बेटी मणिबेन, जोधपुर के महाराजा और सचिव वी शंकर के साथ सरदार पटेल ने शाम पाँच बजकर 32 मिनट पर दिल्ली के पालम हवाई अड्डे से जयपुर के लिए उड़ान भरी थी.

क़रीब 158 किलोमीटर की इस यात्रा को तय करने में उन्हें एक घंटे से अधिक समय नहीं लगना था. पायलट फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट भीम राव को निर्देश थे कि वो वल्लभभाई के दिल की हालत को देखते हुए विमान को 3000 फ़ीट से ऊपर न ले जाएं.

लेकिन क़रीब छह बजे महाराजा जोधपुर ने जिनके पास फ़्लाइंग लाइसेंस था, पटेल का ध्यान खींचा कि विमान के एक इंजन ने काम करना बंद कर दिया है. उसी समय विमान के रेडियो ने भी काम करना बंद कर दिया और विमान बहुत तेज़ी से ऊँचाई खोने लगा.

सरदार पटेल के सचिव रहे वी शंकर अपनी आत्मकथा 'रेमिनेंसेज़' में लिखते हैं, "पटेल के दिल पर क्या बीत रही थी, ये तो मैं नहीं बता सकता, लेकिन ऊपरी तौर पर इसका उन पर कोई असर नहीं पड़ा था और वो शाँत भाव से बैठे हुए थे, जैसे कुछ हो ही न रहा हो. "

B, न्यायालय में केस लड़ते रहे।
3. सरदार पटेल को भारत का लौह पुरुष कहा जाता है। गृहमंत्री बनने के बाद भारतीय रियासतों के विलय की जिम्मेदारी उनको ही सौंपी गई थी। उन्होंने अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए छह सौ छोटी-बड़ी रियासतों का भारत में विलय कराया। देशी रियासतों का विलय स्वतंत्र भारत की पहली उपलब्धि थी और निर्विवाद रूप से पटेल का इसमें विशेष योगदान था। नीतिगत दृढ़ता के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने उन्हें सरदार और लौह पुरुष की उपाधि दी थी। वल्लभ भाई पटेल ने आजाद भारत को एक विशाल राष्ट्र बनाने में उल्लेखनीय योगदान दिया।

 4. 

 

2. सरदार पटेल अन्याय नहीं सहन कर पाते थे। अन्याय का विरोध करने की शुरुआत उन्होंने स्कूली दिनों से ही कर दी थी। नडियाद में उनके स्‍कूल के अध्यापक पुस्तकों का व्यापार करते थे और छात्रों को बाध्य करते थे कि पुस्तकें बाहर से न खरीदकर उन्हीं से खरीदें। वल्लभभाई ने इसका विरोध किया और छात्रों को अध्यापकों से पुस्तकें न खरीदने के लिए प्रेरित किया। परिणामस्वरूप अध्यापकों और विद्यार्थियों में संघर्ष छिड़ गया। 5-6 दिन स्‍कूल बंद रहा। अंत में जीत सरदार की हुई। अध्यापकों की ओर से पुस्तकें बेचने की प्रथा बंद हुई।

3. सरदार पटेल को अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने में काफी समय लगा। उन्होंने 22 साल की उम्र में 10वीं की परीक्षा पास की। सरदार पटेल का सपना वकील बनने का था और अपने इस सपने को पूरा करने के लिए उन्हें इंग्लैंड जाना था, लेकि‍न उनके पास इतने भी आर्थिक साधन नहीं थे कि वे एक भारतीय महाविद्यालय में प्रवेश ले सकें। उन दिनों एक उम्मीदवार व्यक्तिगत रूप से पढ़ाई कर वकालत की परीक्षा में बैठ सकते थे। ऐसे में सरदार पटेल ने अपने एक परिचित वकील से पुस्तकें उधार लीं और घर पर पढ़ाई शुरू कर दी।

 

4. बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व कर रहे पटेल को सत्याग्रह की सफलता पर वहां की महिलाओं ने 'सरदार' की उपाधि प्रदान की। आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को 'भारत का बिस्मार्क' और 'लौहपुरुष' भी कहा जाता है। सरदार पटेल वर्णभेद तथा वर्गभेद के कट्टर विरोधी थे।

 

5. इंग्‍लैंड में वकालत पढ़ने के बाद भी उनका रुख पैसा कमाने की तरफ नहीं था। सरदार पटेल 1913 में भारत लौटे और अहमदाबाद में अपनी वकालत शुरू की। जल्द ही वे लोकप्रिय हो गए। अपने मित्रों के कहने पर पटेल ने 1917 में अहमदाबाद के सैनिटेशन कमिश्नर का चुनाव लड़ा और उसमें उन्हें जीत भी हासिल हुई।

 

6. सरदार पटेल गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह की सफलता से काफी प्रभावित थे। 1918 में गुजरात के खेड़ा खंड में सूखा पड़ा। किसानों ने करों से राहत की मांग की, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने मना कर दिया। गांधीजी ने किसानों का मुद्दा उठाया, पर वो अपना पूरा समय खेड़ा में अर्पित नहीं कर सकते थे इसलिए एक ऐसे व्यक्ति की तलाश कर रहे थे, जो उनकी अनुपस्थिति में इस संघर्ष की अगुवाई कर सके। इस समय सरदार पटेल स्वेच्छा से आगे आए और संघर्ष का नेतृत्व किया। 

 

7. गृहमंत्री के रूप में उनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों (राज्यों) को भारत में मिलाना था। इस काम को उन्होंने बिना खून बहाए करके दिखाया। केवल हैदराबाद के 'ऑपरेशन पोलो' के लिए उन्हें सेना भेजनी पड़ी। भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिए उन्हे भारत का 'लौहपुरुष' के रूप में जाना जाता है। सरदार पटेल की महानतम देन थी 562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलीनीकरण करके भारतीय एकता का निर्माण करना। विश्व के इतिहास में एक भी व्यक्ति ऐसा न हुआ जिसने इतनी बड़ी संख्या में राज्यों का एकीकरण करने का साहस किया हो। 5 जुलाई 1947 को एक रियासत विभाग की स्थापना की गई थी।

 

8. सरदार वल्लभभाई पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री होते। वे महात्मा गांधी की इच्छा का सम्मान करते हुए इस पद से पीछे हट गए और नेहरूजी देश के पहले प्रधानमंत्री बने। देश की स्वतंत्रता के पश्चात सरदार पटेल उपप्रधानमंत्री के साथ प्रथम गृह, सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री भी थे। सरदार पटेल के निधन के 41 वर्ष बाद 1991 में भारत के सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान भारतरत्न से उन्‍हें नवाजा गया। यह अवॉर्ड उनके पौत्र विपिनभाई पटेल ने स्वीकार किया।

 

9. सरदार पटेल के पास खुद का मकान भी नहीं था। वे अहमदाबाद में किराए एक मकान में रहते थे। 15 दिसंबर 1950 में मुंबई में जब उनका निधन हुआ, तब उनके बैंक खाते में सिर्फ 260 रुपए मौजूद थे।

 

10. आजादी से पहले जूनागढ़ रियासत के नवाब ने 1947 में पाकिस्तान के साथ जाने का फैसला किया था लेकिन भारत ने उनका फैसला स्वीकार करने से इंकार करके उसे भारत में मिला लिया। भारत के तत्कालीन उपप्रधानमंत्री सरदार पटेल 12 नवंबर 1947 को जूनागढ़ पहुंचे। उन्होंने भारतीय सेना को इस क्षेत्र में स्थिरता बहाल करने के निर्देश दिए और साथ ही सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का आदेश दिया।

जम्मू एवं कश्मीर, जूनागढ़ तथा हैदराबाद के राजाओं ने ऐसा करना नहीं स्वीकारा। जूनागढ़ के नवाब के विरुद्ध जब बहुत विरोध हुआ तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया और जूनागढ़ भी भारत में मिल गया। जब हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया, तो सरदार पटेल ने वहां सेना भेजकर निजाम का आत्मसमर्पण करा लिया, किंतु कश्मीर पर यथास्थिति रखते हुए इस मामले को अपने पास रख लिया।
।।।


15 तथ्य: सरदार पटेल को ‘भारत का लौह पुरुष’ क्यों कहा जाता है

सरदार वल्लभभाई पटेल का परिचय


भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और भारत गणराज्य के संस्थापक पूर्वजों में से एक भारत रत्न सरदार वल्लभभाई झावरभाई पटेल, (31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात के नडियाद में जन्मे), पेशे से बैरिस्टर थे।



1928 में अकाल की विभीषिका झेल रहे बारडोली में भारी कर वृद्धि के खिलाफ सत्याग्रह के दौरान उन्हें उनके साथियों और अनुयायियों द्वारा सरदार की उपाधि से सम्मानित किया गया। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में ब्रिटिश राज के खिलाफ अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन के लिये गुजरात के खेड़ा, बोर्साड और बारडोली के किसानों को संगठित किया।


1930 में सरदार वल्लभभाई पटेल को महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह में शामिल होने के कारण जेल की सलाखों के पीछे कैद कर दिया गया। जब गांधी जी को जेल भेज दिया गया तो कांग्रेसजनों के अनुरोध पर उन्होंने सत्याग्रह का नेतृत्व किया था। गांधी-इरविन समझौते के बाद 1931 में सरदार पटेल को रिहा किया गया। इसी साल सरदार पटेल को कराची अधिवेशन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया, जिसमें धर्मनिरपेक्ष भारत की परिकल्पना की गई थी।


1942 में सरदार पटेल ने भारत छोड़ो आंदोलन के लिए महात्मा गांधी को अपना पूर्ण समर्थन दिया। उन्होंने देशभर में यात्रा की और भारत छोड़ो आंदोलन के लिए समर्थन जुटाया और 1942 में दोबारा से गिरफ्तार कर लिये गये। उन्हें 1945 तक अहमदनगर किले में अन्य कांग्रेस नेताओं के साथ कैद रखा गया था।


भारत के पहले उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के रूप में उन्होंने महात्मा गांधी के अनुरोध पर अलग-अलग रियासतों को भारत गणराज्य में मिलाने का काम संभाला। वह भारत के राजनीतिक एकीकरण और 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भारतीय सेना के असल सर्वोच्च सेनापति थे।


वे स्वतंत्र भारत के वास्तुकार थे और उन्होंने बिना किसी खून-खराबे के बिखरे हुए राष्ट्र को एकजुट किया। 1991 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।



सरदार पटेल ऐसे करिश्माई नेता थे जो सीधे दिल से बात करते थे, उन लोगों की राय का भी सम्मान करते थे, जो उनसे असहमत होते थे। सरदार पटेल अंग्रेजों से लड़ने वाले भारतीयों की एकता और ‘स्वराज्य’ से ‘सुराज्य’ तक प्रगति की उनकी क्षमता में दृढ़ विश्वास रखते थे। वे बराबरी के प्रबल समर्थक थे और तीव्र औद्योगीकरण के माध्यम से महिला सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता के हिमायती थे।


सरदार वल्लभभाई पटेल के बारे में 15 तथ्य

तथ्य 1 - भारत गणराज्य में 562 रियासतों का एकीकरण

सरदार पटेल ने अपनी कूटनीतिक, संवादात्मक और दूरदर्शिता की खूबियों के जरिये कई रियासतों को बिना किसी खून-खराबे के भारतीय गणराज्य में मिलाने में कामयाबी हासिल की। बिखरे हुए राष्ट्र को एकजुट करने की उनकी कोशिशें सबसे बड़ी विरासत है, जिसमें उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और राजनीति काबीलियत की शानदार झलक देखने को मिलती है।


💐💐तथ्य 2 - संविधान सभा में योगदान

सरदार पटेल ने मसौदा समिति के सदस्यों के चयन में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने मौलिक अधिकारों, प्रधानमंत्री के पद, राष्ट्रपति की चुनाव प्रक्रिया और कश्मीर जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर मजबूत भूमिका निभाई। उन्होंने भारत के एकीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए यह सुनिश्चित करने के लिए काम किया कि सभी रियासतें भारत के संविधान को स्वीकार करें।


तथ्य 3 - आधुनिक अखिल भारतीय सेवाओं के संस्थापक

सरदार पटेल ने भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने भारतीय सिविल सेवकों की राजनीतिक हमले से सुरक्षा सुनिश्चित की। सरदार पटेल को भारतीय लोक सेवाओं के ‘संस्थापक संरक्षक’ के तौर पर यादा किया जाता है।


👌👌तथ्य 4 - कश्मीर के संरक्षक

सितंबर 1947 में जब पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला करने की कोशिश की तो सरदार पटेल ने डटकर पाकिस्तान से कश्मीर की रक्षा की। नेहरू ने पटेल को रिपोर्ट दी कि बड़ी संख्या में पाकिस्तानी सेना कश्मीर में घुसपैठ के लिये तैयार है। 26 अक्टूबर को नेहरू जी के घर पर हुई एक बैठक में सरदार पटेल ने महाराजा हरि सिंह के प्रधान मंत्री मेहर चंद महाजन से वादा किया कि भारत कश्मीर को अपना भरपूर समर्थन देगा।


👍👍तथ्य 5 - असहयोग आंदोलन के कद्दावर नेता

असहयोग आंदोलन के दौरान उन्होंने पूरे देश का दौरा किया और 3,00,000 सदस्यों की भर्ती की तथा पार्टी फंड के लिये 15 लाख रुपये जुटाये। अपनी वाकपटुता से उन्होंने सीधे दिल से असहयोग आंदोलन और सत्याग्रह के गांधीवादी आदर्शों के प्रति अपना समर्थन किया। जिससे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सामूहिक भागीदारी की शुरुआत के तौर पर देखा गया।


तथ्य 6 - गांधीजी की अनुपस्थिति में भारतीय सत्याग्रह के ‘सरदार’

उन्होंने भारतीय झंडा लहराने पर प्रतिबंध के ब्रिटिश कानून के खिलाफ 1923 में नागपुर में सत्याग्रह का नेतृत्व किया। वे महान वक्ता, नेता और एकजुटता के सूत्रधार थे, जिन्होंने महात्मा गांधी की अनुपस्थिति में सत्याग्रह को उसकी मूल भावना के साथ जारी रखा। पटेल ने समझौता वार्ता की जिसमें बंदियों की रिहाई और सार्वजनिक रूप से राष्ट्रीय ध्वज को फहराने की बात शामिल थी।


👍👍तथ्य 7 - अस्पृश्यता, जात-पात के खिलाफ और महिलाओं की मुक्ति के लिए मजबूत आवाज
1922 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में बैठने की मुख्य व्यवस्था के अलावा दलितों के लिये अलग से बैठने की व्यवस्था थी, जब सरदार पटेल ने ये देखा तो वे अपने लिये तय सीट पर बैठने की बजाय सीधे दलितों के बीच जाकर बैठ गये और वहीं से उन्होंने बैठकर अपना भाषण दिया।
बारडोली सत्याग्रह के दौरान सरदार पटेल ने सत्याग्रह की रणनीति तैयार करने और राजनीति के शामिल करने के लिये बड़ी संख्या में महिलाओं से परामर्श किया। प्रत्येक नागरिक को बराबरी सुनिश्चित करने के लिये हिंदू संहिता विधेयक को सरदार पटेल ने अपना समर्थन देकर महिलाओं के अधिकारों और उनके सशक्तिकरण के प्रति अपनी वचनबद्धता को दर्शाया।
तथ्य 8 - धर्मनिरपेक्ष भारत के सबसे मजबूत हिमायती
जून 1947 में जब उनको ये सुझाव दिया गया कि भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित कर दिया जाए और हिंदू धर्म को आधिकारिक धर्म का दर्जा दे दिया जाए, तो सरदार पटेल ने इस सुझाव को खारिज कर दिया। सरदार पटेल महात्मा गांधी के धर्मनिरपेक्ष भारत के नजरिये का दृढ़तापूर्वक समर्थन करते थे। उन्होंने कहा कि ‘‘हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि दूसरे अल्पसंख्यकों की सुरक्षा हमारी सबसे प्राथमिक जिम्मेदारी है।’’ 1950 में उन्होंने घोषणा की कि ‘‘हम धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र हैं और जिस तरह की राजनीति पाकिस्तान कर रहा है उस तरह की राजनीति हम नहीं अपना सकते। यहां हर मुसलमान को यह महसूस होना चाहिए कि वो भारतीय नागरिक है और उसके पास आम भारतीयों की तरह ही समान अधिकार हैं।’’

तथ्य 9 - महात्मा गांधी के हत्यारों के खिलाफ सख्त कार्रवाई।
(संघ के प्रति सकारात्मक रवैया।)

महात्मा गांधी की हत्या के बाद सरदार पटेल ने आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया। 18 जुलाई, 1948 को श्यामा प्रसाद मुखर्जी को लिखे एक पत्र में सरदार पटेल ने कहा, ‘‘आरएसएस और हिंदू महासभा की गतिविधियों के परिणामस्वरूप, खास तौर पर आरएसएस की गतिविधियों के चलते देश में ऐसा माहौल बनाया गया जिससे कि इतनी भयानक त्रासदी संभव हो गई। मेरे मन में इस बात को लेकर कोई संदेह नहीं है कि इस षड्यंत्र में हिंदू महासभा के चरमपंथी शामिल थे। आरएसएस की गतिविधियां ने सरकार और राज्य के अस्तित्व के लिए साफ तौर पर खतरा हो गयी हैं।

तथ्य 10 - हिंसा के खिलाफ और सांप्रदायिक सद्भाव के लिये बुलंद आवाज

1949 में बाबरी मस्जिद की ओर उमड़ी भीड़ ने मुअज्जिन का पीछा किया और वहां मंदिर के दावे के समर्थन में राम की एक मूर्ति स्थापित कर दी। सरदार पटेल ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री जीबी पंत को पत्र लिखा कि ‘‘इस तरह के विवादों को बलपूर्वक हल नहीं किया जा सकता। इस तरह के मामलों पर यदि हम मुस्लिम समुदाय की सहमति लेते हैं तो ऐसे मामलों को शांतिपूर्वक हल किया जा सकता है।’’

तथ्य 11 - आजादी की लड़ाई के लिये सांगठनिक तंत्र का निर्माण

महात्मा गांधी ने कांग्रेस को व्यापक कार्रवाई के लिए एक कार्यक्रम दिया। सरदार पटेल ने व्यापक जन-भागीदारी सुनिश्चित करके उस कार्यक्रम को पूरा करने के लिए पार्टी मशीनरी का निर्माण किया। उन्होंने आजादी के संघर्ष में पार्टी मशीनरी की महत्वपूर्ण भूमिका को महसूस किया, जिस पर उनके पहले किसी ने ध्यान नहीं दिया। उन्होंने अपने अभियानों के दौरान इस जरुरत को महसूस किया और पार्टी की ताकत बढ़ाने के लिए जो संगठित और प्रभावी तरीके से लड़ सकती है, अपनी संगठनात्मक प्रतिभा और ऊर्जा का इस्तेमाल किया।

तथ्य 12 - स्वशासन के लिए लड़ाई

स्व-शासन के लिए लड़ाई में सरदार पटेल का योगदान तब शुरू हुआ जब वे 1917 में अहमदाबाद स्वच्छता आयुक्त बने। इसके बाद वे 1922, 1924, 1927 में नगरपालिका अध्यक्ष बने। उन्होंने सीमित संसाधनों और अधिकारों के साथ अहमदाबाद में बिजली आपूर्ति और शैक्षिक सुधार सुनिश्चित किये।


तथ्य 13 - किसानों के सरदार

किसानों के अधिकारों के लिए काम करने के उनके समर्पण ने पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि दी। 1918 में उन्होंने कर न चुकाने के अभियान का नेतृत्व किया और किसानों से कैरा में बाढ़ के बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा थोपे गये भारी करों का भुगतान न करने का आग्रह किया। 1928 में बारडोली के किसानों को फिर से भारी कर वृद्धि का सामना करना पड़ा और अंग्रेजी सरकार ने भारी कर चुकाने में असमर्थ रहने वालों की जमीनें जब्त कर लीं। पटेल से वार्ता के बाद सरकार को किसानों की जमीन वापस लौटानी पड़ी।


तथ्य 14 - शरणार्थियों, कमजोरों और वंचितों के उद्धारक
1947 में भारत के बंटवारे के कारण हुई भयावह हिंसा के दौरान सरदार पटेल ने राहत शिविरों की स्थापना की, आपातकालीन आपूर्ति उपलब्ध कराई और शांति के लिये सीमावर्ती क्षेत्रों का दौरा किया।


तथ्य 15 - दूरदर्शिता और दृष्टि

अहमदाबाद नगर पालिका में पहला गुजराती टाइपराइटर 1924 में सरदार पटेल द्वारा शुरू किया गया। वह देश को औद्योगिक ताकत के तौर पर बदलने के पक्ष में थे। सरदार पटेल ने शाहीबाघ में दुधेश्वर वाटरवर्क्स में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशाला की स्थापना में मदद की।


इतिहास संशोधन: सान्याल

इतिहास 
 कुछ दिन पहले एक वीडियो सुनाओ संजीव सानयाल का चीफ इकोनामिक एडवाइजर जो है इतिहास को देखने के लिए कैसे गलत नैरेटिव सेट किया गया है।
1. पहला कि हमेशा ही दिल्ली ही फोकस में नजर आता है बाकी प्रदेशों का कोई चिंता नहीं 
2. दूसरा अंग्रेजों का काल और मुगलों का काल के बारे में अधिक बताया जाता है भारतीय राजाओं के बारे में नहीं और उसके कुछ अच्छे उदाहरण भी देता है 
3. तीसरा 1947 में आजादी अहिंसा से मिले और क्रांतिकारी कुछ थे अच्छे-अच्छे पर हो थोड़े-थोड़े कहीं बिखरे हुए स्वरूप में थे कोई ऑल इंडिया योगदान नहीं था 
4. और इससे पहले भारत का इतिहास राजाओं का इतिहास रहा है उसमें आम व्यक्ति का कोई योगदान संत महात्माओं के योगदान सामाजिक क्रांतिकारियों के योगदान को नकारा जाता है ऐसी कुछ बातें उसने अपनी वीडियो में और यह हमको भी देखना चाहिए कि कैसे जब आर्किटेक्चर का नाम आता है तो आपको लाल किला और ताजमहल तक समाप्त किया जाता है बीच में भारतीय स्थापत्य कला का कोई योगदान नहीं दिखाएं अशोक को भी दिखाया जाता है इसलिए अहिंसा का प्रेम ही था जबकि इतिहास इसके विपरीत है यह कहानियां घड़ी गई है राणा प्रताप लक्ष्मी बाई यह तो कुछ कवियों में कुछ लेखकों ने और कुछ प्रदेशों में प्रसिद्ध है वरना महानता अकबर शासन तो बड़ा औरंगजेब शाहजहानी था उदारता तो हिमायू
5. व्यक्तिगतवीरता और सामुहिक पराजय:   हां एक और बिंदु जोड़ा जाता है युद्ध त्वचा परंतु वह आ रही और बताया जाता है यह पृथ्वीराज चौहान अच्छा था लेकिन कैद में ही मर गया झांसी की रानी वीर थी परंतु नाले के पास ही शहीद हो गए महाराणा प्रताप बलशाली थे लेकिन हल्दीघाटी में हारना ऐसे ही हमारा इतिहास पूरा का पूरा भरा जाएगा इतिहास बताया जाता है परंतु सच्चाई एकदम इसके विपरीत है.

आत्मनिर्भर भारत (अपना)

आत्मनिर्भर भारत (अपना) 
कौन कौन से प्रश्न पूछने: 
main points
1. Modi also drew inspiration from Swami Vivekananda. Quoting him, Modi said, 'The simplest method to be worked upon at present is to induce Indians to use their own produce and get markets for Indian artware in other countries." This path shown by Swami Vivekananda is inspiration for India in post-COVID world, PM Modi asserted. 
सबसे सरल काम जो हमारे लिए करने का है कि पहले तो  हम भारतीयों को अपने देश का सामान प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करें और दूसरा काम कि हम दूसरे देशों में अपने देश की कलाकृतियों के लिए बाजार ढूंढे।

2. PM Modi stresses on five ‘Is’ for self-reliant India. June 2, 2020 12:49:55 pmPrime Minister Narendra Modi addressed the Confederation of Indian Industry’s (CII) Annual Session 2020 on Tuesday. 

Prime Minister Narendra Modi addressed the Confederation of Indian Industry’s (CII) Annual Session 2020 on Tuesday, where he assured India Inc that the economy would soon grow with the ‘Unlock 1’ already in place. The prime minister said that strengthening the economy is one of the top priorities alongside fighting coronavirus. 

अंतर: 
1. बहुराष्ट्रीय कंपनियां, विदेशी कंपनियों की आड़ में स्वदेशी न चलता जाए। तीन श्रेणी हो गयी। पहली जो चीन का विकल्प दे सकती है यथा विएतनाम व साउथ कोरिया आदि की कम्पनियां, उनके लिए वैसे ही लाल एनिमल फार्म में ला ओOल कालीन बिछाते है। दूसरी जो दुनिया की ऐसी कंपनियां जो चीन को चमका रही हैं, चीन से तंग आकर बाहर जाने का आसरा ढूंढ रही हैं, बताते हैं हज़ार से ऊपर हैं, एक प्रकार की शरणार्थी हैं, अब कौन शरणागत के खिलाफ बोलेगा। हमारे देश की परंपरा ही है। तीसरी चीन की वो कंपनियां जैसे वीवो, ओप्पो, आदि जो पहले ही शरण ले चुकी हैं। अब उन्हें कैसे भगाएंगे। चौथी वे भारतीय कंपनियां जिन्होंने होलसेल चीनी इन्वेस्टमेंट ले रखी है, वे हमारे हिस्सा बन चुकी हैं, paytm, में विजय शर्मा का 19 प्रतिशत से कम, बाकी चाइनीज अलीबाबा और चालीस चोरों का।  ओला आर इक्वल, बट सम अर मोर इक्वल देन अदर" वाली बात न हो जाए। 
2. मास प्रोडक्शन चाहिए बट प्रोडक्शन बाई मासेस भी हो। रोजगार आवश्यक। सिर्फ ग्रोथ नही, जाबलेस ग्रोथ भी हो सकती है। अंतिम व्यक्ति तक पहुंच की अनदेखी न हो। अंत्योदय, अंतिम व्यक्ति, दरिद्र नारायण आदमी की उपेक्षा न हो। स्टार्टअप, स्टैंड अप आदि में ऋण देते समय अमीर के बेटे के काम को ही ऋण प्रदान किया, एकलव्य उपेक्षित रह गया।
3. नीचे तक शासन के द्वारा ही न हो, समाज की अपनी
 संस्थाए भी इसे देखें। इस लिए स्वदेशी जैसी संस्थाओं की जरूरत है। 
4. चौथी
Five pillars D I E D S

that serve as the foundation for a self-reliant India. Here is what he said:

1. ECONOMY

We need an economy that doesn't bring incremental change but makes quantum jumps.

2. INFRASTRUCTURE

We need infrastructure that will become the identity of modern India.

3. SYSTEM

We need a system that is no longer based on the rules and rituals of the past but one that actualises the dreams of the 21st century. This system needs to be technology-based.

4. DEMOCRACY

We are the world's biggest democracy. A vibrant demography is our strength. It is the source of energy for our efforts to make India self-reliant.

5. DEMAND

The cycle of demand and supply in our economy is an asset. We need to utilise this power fully.

In a big push to revive the Covid-hit economy, Prime Minister Narendra Modi on also announced massive new financial incentives on top of the previously announced packages for a combined stimulus of Rs 20 lakh crore, saying the coronavirus crisis has provided India an opportunity to become self-reliant and emerge as the best in the world.

इससे चीन बेहद खफा है: 

पहले भी लिख चुका हूं , एंटालिया विस्फोटक कांड , जो उपर से पुलिस द्वारा इंडस्ट्रियलिस्ट मुकेश अंबानी को धमका कर पैसा उगाहने का एक साधारण केस लगता है , ऐसा है नहीं ! यह एक अंतरराष्ट्रीय साजिश है भारत के उद्योगपतियों को धमकाने और विदेशी निवेशकों को संदेश देने की , कि भारत उनके लिए निवेश की सही जगह नहीं है। जब से मुकेश अंबानी ने जुलाई से 5 G सेवा बिना चीनी उपकरणों की मदद के सुरु करने की घोषणा की है , चीन बेहद खफा है । उसे इससे अरबों खरबों डॉलर का नुक़सान होगा। वह किसी भी तरह अंबानी की 5G योजना को डीरेल करना चाहता है। इसी कारण तथाकथित किसान आंदोलनकारियों द्वारा रिलायंस जीओ के टावर थोक में तोड़े गए थेे। चीन किसी भी हालत में मोदी जी के आत्मनिर्भर भारत योजना को पलीता लगाना चाहता है जिसमें भ्रष्ट कांग्रेस पार्टी सहित सभी विपक्षी वामदल उसका साथ दे रहे हैं।

भ्रष्ट कांग्रेस पार्टी और चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी के बीच हुआ गुप्त समझौता आज चीन के काम आ रहा है। भ्रष्ट कांग्रेस पार्टी महाराष्ट्र की महा अघाडी सरकार को दिए गए सहयोग की कीमत मय सूद वसूल रही है। चीन द्वारा राजीव गांधी फाउंडेशन और इंदिरा गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट को दिए गए चंदे का कर्ज उतार रही है।

... wto complaint self reliance and NOT nehruvian era socialism..

1. https://www.drishtiias.com/images/uploads/1625641044_pasted%20image%200.png


Friday, February 5, 2021

इतिहास बोध

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के आचार्य सच्चिदानन्दमिश्र जी द्वारा वामपंथी इतिहासकार (तथाकथित) द्विजेन्द्र नारायण झा के निधन पर जिस प्रकार से प्रतिक्रिया व्यक्त की गई है वह हम सभी को पढ़ना चाहिए । यह कला भी सीखने की है कि कैसे किसी को बुरा न लगे इस विधि से  निरपेक्ष तथा तथ्यपूर्ण  विवेचन किया जाए । 
लेख निम्न  है :-
 #दमिथऑफ़दहोलीकाउकेलेखककीबौद्धिकबेईमानी 
कल "द मिथ ऑफ़ द होली काउ" के लेखक प्रोफेसर द्विजेंद्र नारायण झा नहीं रहे। इस अवसर पर बीबीसी द्वारा उनका एक साक्षात्कार छापा गया है, जिसमें वे एक अद्भुत दावा करते हैं कि सत्रहवीं शताब्दी तक उत्तर भारत में राम का मन्दिर बमुश्किल ही कहीं मिलता है। 
उनको दिवंगत नहीं कहूंगा क्योंकि वे स्वयं मरणोत्तर जीवन में विश्वास नहीं करते थे और दिवंगत कहने से मरणोपरांत स्वर्ग गमन बोधित होता है। इसी कारण ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे यह कामना भी अनुचित होगी। सोचा इस अवसर पर उनकी बौद्धिक बेईमानी के एक अंश को सामने लाते हुए इनके बारे में एक दो बातें की जाएं। सम्भवतः यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
प्रोफेसर द्विजेंद्र नारायण झा की दो पुस्तकें मैंने पढ़ी हैं "द मिथ ऑफ़ द होली काउ" और "अगेंस्ट द ग्रेन"। निश्चित ही मेहनती और समर्पित व्यक्ति थे, परन्तु इतिहास से अधिक अपनी विचारधारा के लिए। मुझे लगता है कि इतिहास पर शोध करनेवाले को तनिक ज्यादा ही अपनी निष्पक्षता के प्रति सावधान रहना चाहिए, जिसकी कमी इनके लेखन में दिखती है। आप अपनी कहानी पहले से गढ़ लें और उसके बाद उसके समर्थन के लिए मनमाने सन्दर्भ प्रस्तुत करें तो उसको इतिहास तो नहीं कहा जायेगा।
"द मिथ ऑफ़ द होली काउ" में लेखक का प्रयास यह होना चाहिए था कि ऐतिहासिक रूप से यह देखने का प्रयास करता कि "पवित्र गाय" की अवधारणा किस प्रकार जन्म लेती है और विकसित होती है। परन्तु ऐसा कोई प्रयास लेखक नहीं करता है। सम्भवतः इसलिए कि ऐसा कोई भी प्रयास उनके एजेंडे से संगत नहीं होता। इसके स्थान पर वेदों और धर्मशास्त्रों की अपनी समझ के आधार पर प्रोफ़ेसर झा पूरी पुस्तक में गाय को एक स्वीकृत भोज्य पदार्थ के रूप में स्थापित करने की कोशिश में लगे दिखते हैं। बेहतर होता यदि वे इसका शीर्षक "The cow as a food item" रखते।
पिछले दो हजार वर्षों का तो वे जैसे सन्दर्भ ही नहीं ग्रहण करते। "द मिथ ऑफ़ द होली काउ" में लेखक ने पुराणों और महाकाव्यों (रामायण और महाभारत) को सिर्फ़ तीन से चार पृष्ठों में समेट दिया और उनमें भी उन सन्दर्भों को चुनकर लिया जो उनके दृष्टिकोण से संगत हो सकते हैं। केवल इतना ही नहीं अपनी बात को सिद्ध करने के लिए गलत उद्धरण भी देते हैं। पृष्ठ 97 पर वे लिखते हैं
"Bharadvāja . . . welcomes Rama by slaughtering the "fatted calf". 
इसके समर्थन में जो सन्दर्भ (संख्या 67) वे देते हैं वह वाल्मीकीय रामायण से नहीं बल्कि आर एल मित्रा के किसी ग्रन्थ Indo-Aryans vol. I पृष्ठ 396 का सन्दर्भ प्रस्तुत करते हैं। यदि ऐसा कोई सन्दर्भ रामायण में है तो क्या उसको रामायण से ही नहीं प्रस्तुत करना चाहिए था? इसको यदि बौद्धिक बेईमानी न कहेंगे तो क्या कहेंगे? असल में संस्कृत के मूल ग्रंथों से परिचित विद्वान् इन लेखकों को पढ़ते नहीं और जो इन लेखकों को पढ़ते हैं वे संस्कृत के मूल ग्रन्थ पढ़ते ही नहीं।
संस्कृत के महाकाव्यों की इतने संक्षेप में चर्चा करना और कालिदास जैसे महाकवि का सन्दर्भग्रहण भी न करना, तथाकथित विद्वान् लेखक की नीयत पर क्या सवाल खड़ा नहीं करता? वाल्मीकीय रामायण में वसिष्ठ की गाय नन्दिनी को प्राप्त करने के लिए वसिष्ठ और विश्वामित्र का युद्ध क्या यह बताता है कि वसिष्ठ की गाय नन्दिनी के लिए होनेवाला युद्ध एक पशु के लिए होनेवाला युद्ध है। इसमें कालिदास अपने रघुवंश महाकाव्य के दूसरे सर्ग में राजा दिलीप के द्वारा पुत्रप्राप्ति के लिए वसिष्ठ की गाय नन्दिनी की किस प्रकार से सेवा की जाती है और सिंह से उस गाय को बचाने के लिए राजा दिलीप द्वारा स्वयं को उसके भोजन के रूप में प्रस्तुत कर देना क्या उस समय गाय की देवता के रूप में प्रस्तुति नहीं है? यदि लेखक ईमानदारी से अपने शोध को प्रस्तुत करना चाहता था तो क्या इसी प्रकार के अन्य संदर्भों का ग्रहण नहीं करना चाहिए था? पुराणों के विपुल साहित्य और महाकाव्यों को केवल चार पृष्ठों में निपटा देना कहीं से भी बौद्धिक ईमानदारी का साक्ष्य नहीं प्रस्तुत करता।