Sunday, February 14, 2021

सरदार पटेल

पटेल घटनाएं
1. अविचलित: 

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ऑल इंडिया रेडियो ने अपने 29 मार्च, 1949 को रात के 9 बजे के बुलेटिन में सूचना दी कि सरदार पटेल को दिल्ली से जयपुर ले जा रहे विमान से संपर्क टूट गया है.

अपनी बेटी मणिबेन, जोधपुर के महाराजा और सचिव वी शंकर के साथ सरदार पटेल ने शाम पाँच बजकर 32 मिनट पर दिल्ली के पालम हवाई अड्डे से जयपुर के लिए उड़ान भरी थी.

क़रीब 158 किलोमीटर की इस यात्रा को तय करने में उन्हें एक घंटे से अधिक समय नहीं लगना था. पायलट फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट भीम राव को निर्देश थे कि वो वल्लभभाई के दिल की हालत को देखते हुए विमान को 3000 फ़ीट से ऊपर न ले जाएं.

लेकिन क़रीब छह बजे महाराजा जोधपुर ने जिनके पास फ़्लाइंग लाइसेंस था, पटेल का ध्यान खींचा कि विमान के एक इंजन ने काम करना बंद कर दिया है. उसी समय विमान के रेडियो ने भी काम करना बंद कर दिया और विमान बहुत तेज़ी से ऊँचाई खोने लगा.

सरदार पटेल के सचिव रहे वी शंकर अपनी आत्मकथा 'रेमिनेंसेज़' में लिखते हैं, "पटेल के दिल पर क्या बीत रही थी, ये तो मैं नहीं बता सकता, लेकिन ऊपरी तौर पर इसका उन पर कोई असर नहीं पड़ा था और वो शाँत भाव से बैठे हुए थे, जैसे कुछ हो ही न रहा हो. "

B, न्यायालय में केस लड़ते रहे।
3. सरदार पटेल को भारत का लौह पुरुष कहा जाता है। गृहमंत्री बनने के बाद भारतीय रियासतों के विलय की जिम्मेदारी उनको ही सौंपी गई थी। उन्होंने अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए छह सौ छोटी-बड़ी रियासतों का भारत में विलय कराया। देशी रियासतों का विलय स्वतंत्र भारत की पहली उपलब्धि थी और निर्विवाद रूप से पटेल का इसमें विशेष योगदान था। नीतिगत दृढ़ता के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने उन्हें सरदार और लौह पुरुष की उपाधि दी थी। वल्लभ भाई पटेल ने आजाद भारत को एक विशाल राष्ट्र बनाने में उल्लेखनीय योगदान दिया।

 4. 

 

2. सरदार पटेल अन्याय नहीं सहन कर पाते थे। अन्याय का विरोध करने की शुरुआत उन्होंने स्कूली दिनों से ही कर दी थी। नडियाद में उनके स्‍कूल के अध्यापक पुस्तकों का व्यापार करते थे और छात्रों को बाध्य करते थे कि पुस्तकें बाहर से न खरीदकर उन्हीं से खरीदें। वल्लभभाई ने इसका विरोध किया और छात्रों को अध्यापकों से पुस्तकें न खरीदने के लिए प्रेरित किया। परिणामस्वरूप अध्यापकों और विद्यार्थियों में संघर्ष छिड़ गया। 5-6 दिन स्‍कूल बंद रहा। अंत में जीत सरदार की हुई। अध्यापकों की ओर से पुस्तकें बेचने की प्रथा बंद हुई।

3. सरदार पटेल को अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने में काफी समय लगा। उन्होंने 22 साल की उम्र में 10वीं की परीक्षा पास की। सरदार पटेल का सपना वकील बनने का था और अपने इस सपने को पूरा करने के लिए उन्हें इंग्लैंड जाना था, लेकि‍न उनके पास इतने भी आर्थिक साधन नहीं थे कि वे एक भारतीय महाविद्यालय में प्रवेश ले सकें। उन दिनों एक उम्मीदवार व्यक्तिगत रूप से पढ़ाई कर वकालत की परीक्षा में बैठ सकते थे। ऐसे में सरदार पटेल ने अपने एक परिचित वकील से पुस्तकें उधार लीं और घर पर पढ़ाई शुरू कर दी।

 

4. बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व कर रहे पटेल को सत्याग्रह की सफलता पर वहां की महिलाओं ने 'सरदार' की उपाधि प्रदान की। आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को 'भारत का बिस्मार्क' और 'लौहपुरुष' भी कहा जाता है। सरदार पटेल वर्णभेद तथा वर्गभेद के कट्टर विरोधी थे।

 

5. इंग्‍लैंड में वकालत पढ़ने के बाद भी उनका रुख पैसा कमाने की तरफ नहीं था। सरदार पटेल 1913 में भारत लौटे और अहमदाबाद में अपनी वकालत शुरू की। जल्द ही वे लोकप्रिय हो गए। अपने मित्रों के कहने पर पटेल ने 1917 में अहमदाबाद के सैनिटेशन कमिश्नर का चुनाव लड़ा और उसमें उन्हें जीत भी हासिल हुई।

 

6. सरदार पटेल गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह की सफलता से काफी प्रभावित थे। 1918 में गुजरात के खेड़ा खंड में सूखा पड़ा। किसानों ने करों से राहत की मांग की, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने मना कर दिया। गांधीजी ने किसानों का मुद्दा उठाया, पर वो अपना पूरा समय खेड़ा में अर्पित नहीं कर सकते थे इसलिए एक ऐसे व्यक्ति की तलाश कर रहे थे, जो उनकी अनुपस्थिति में इस संघर्ष की अगुवाई कर सके। इस समय सरदार पटेल स्वेच्छा से आगे आए और संघर्ष का नेतृत्व किया। 

 

7. गृहमंत्री के रूप में उनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों (राज्यों) को भारत में मिलाना था। इस काम को उन्होंने बिना खून बहाए करके दिखाया। केवल हैदराबाद के 'ऑपरेशन पोलो' के लिए उन्हें सेना भेजनी पड़ी। भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिए उन्हे भारत का 'लौहपुरुष' के रूप में जाना जाता है। सरदार पटेल की महानतम देन थी 562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलीनीकरण करके भारतीय एकता का निर्माण करना। विश्व के इतिहास में एक भी व्यक्ति ऐसा न हुआ जिसने इतनी बड़ी संख्या में राज्यों का एकीकरण करने का साहस किया हो। 5 जुलाई 1947 को एक रियासत विभाग की स्थापना की गई थी।

 

8. सरदार वल्लभभाई पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री होते। वे महात्मा गांधी की इच्छा का सम्मान करते हुए इस पद से पीछे हट गए और नेहरूजी देश के पहले प्रधानमंत्री बने। देश की स्वतंत्रता के पश्चात सरदार पटेल उपप्रधानमंत्री के साथ प्रथम गृह, सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री भी थे। सरदार पटेल के निधन के 41 वर्ष बाद 1991 में भारत के सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान भारतरत्न से उन्‍हें नवाजा गया। यह अवॉर्ड उनके पौत्र विपिनभाई पटेल ने स्वीकार किया।

 

9. सरदार पटेल के पास खुद का मकान भी नहीं था। वे अहमदाबाद में किराए एक मकान में रहते थे। 15 दिसंबर 1950 में मुंबई में जब उनका निधन हुआ, तब उनके बैंक खाते में सिर्फ 260 रुपए मौजूद थे।

 

10. आजादी से पहले जूनागढ़ रियासत के नवाब ने 1947 में पाकिस्तान के साथ जाने का फैसला किया था लेकिन भारत ने उनका फैसला स्वीकार करने से इंकार करके उसे भारत में मिला लिया। भारत के तत्कालीन उपप्रधानमंत्री सरदार पटेल 12 नवंबर 1947 को जूनागढ़ पहुंचे। उन्होंने भारतीय सेना को इस क्षेत्र में स्थिरता बहाल करने के निर्देश दिए और साथ ही सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का आदेश दिया।

जम्मू एवं कश्मीर, जूनागढ़ तथा हैदराबाद के राजाओं ने ऐसा करना नहीं स्वीकारा। जूनागढ़ के नवाब के विरुद्ध जब बहुत विरोध हुआ तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया और जूनागढ़ भी भारत में मिल गया। जब हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया, तो सरदार पटेल ने वहां सेना भेजकर निजाम का आत्मसमर्पण करा लिया, किंतु कश्मीर पर यथास्थिति रखते हुए इस मामले को अपने पास रख लिया।
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15 तथ्य: सरदार पटेल को ‘भारत का लौह पुरुष’ क्यों कहा जाता है

सरदार वल्लभभाई पटेल का परिचय


भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और भारत गणराज्य के संस्थापक पूर्वजों में से एक भारत रत्न सरदार वल्लभभाई झावरभाई पटेल, (31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात के नडियाद में जन्मे), पेशे से बैरिस्टर थे।



1928 में अकाल की विभीषिका झेल रहे बारडोली में भारी कर वृद्धि के खिलाफ सत्याग्रह के दौरान उन्हें उनके साथियों और अनुयायियों द्वारा सरदार की उपाधि से सम्मानित किया गया। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में ब्रिटिश राज के खिलाफ अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन के लिये गुजरात के खेड़ा, बोर्साड और बारडोली के किसानों को संगठित किया।


1930 में सरदार वल्लभभाई पटेल को महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह में शामिल होने के कारण जेल की सलाखों के पीछे कैद कर दिया गया। जब गांधी जी को जेल भेज दिया गया तो कांग्रेसजनों के अनुरोध पर उन्होंने सत्याग्रह का नेतृत्व किया था। गांधी-इरविन समझौते के बाद 1931 में सरदार पटेल को रिहा किया गया। इसी साल सरदार पटेल को कराची अधिवेशन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया, जिसमें धर्मनिरपेक्ष भारत की परिकल्पना की गई थी।


1942 में सरदार पटेल ने भारत छोड़ो आंदोलन के लिए महात्मा गांधी को अपना पूर्ण समर्थन दिया। उन्होंने देशभर में यात्रा की और भारत छोड़ो आंदोलन के लिए समर्थन जुटाया और 1942 में दोबारा से गिरफ्तार कर लिये गये। उन्हें 1945 तक अहमदनगर किले में अन्य कांग्रेस नेताओं के साथ कैद रखा गया था।


भारत के पहले उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के रूप में उन्होंने महात्मा गांधी के अनुरोध पर अलग-अलग रियासतों को भारत गणराज्य में मिलाने का काम संभाला। वह भारत के राजनीतिक एकीकरण और 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भारतीय सेना के असल सर्वोच्च सेनापति थे।


वे स्वतंत्र भारत के वास्तुकार थे और उन्होंने बिना किसी खून-खराबे के बिखरे हुए राष्ट्र को एकजुट किया। 1991 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।



सरदार पटेल ऐसे करिश्माई नेता थे जो सीधे दिल से बात करते थे, उन लोगों की राय का भी सम्मान करते थे, जो उनसे असहमत होते थे। सरदार पटेल अंग्रेजों से लड़ने वाले भारतीयों की एकता और ‘स्वराज्य’ से ‘सुराज्य’ तक प्रगति की उनकी क्षमता में दृढ़ विश्वास रखते थे। वे बराबरी के प्रबल समर्थक थे और तीव्र औद्योगीकरण के माध्यम से महिला सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता के हिमायती थे।


सरदार वल्लभभाई पटेल के बारे में 15 तथ्य

तथ्य 1 - भारत गणराज्य में 562 रियासतों का एकीकरण

सरदार पटेल ने अपनी कूटनीतिक, संवादात्मक और दूरदर्शिता की खूबियों के जरिये कई रियासतों को बिना किसी खून-खराबे के भारतीय गणराज्य में मिलाने में कामयाबी हासिल की। बिखरे हुए राष्ट्र को एकजुट करने की उनकी कोशिशें सबसे बड़ी विरासत है, जिसमें उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और राजनीति काबीलियत की शानदार झलक देखने को मिलती है।


💐💐तथ्य 2 - संविधान सभा में योगदान

सरदार पटेल ने मसौदा समिति के सदस्यों के चयन में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने मौलिक अधिकारों, प्रधानमंत्री के पद, राष्ट्रपति की चुनाव प्रक्रिया और कश्मीर जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर मजबूत भूमिका निभाई। उन्होंने भारत के एकीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए यह सुनिश्चित करने के लिए काम किया कि सभी रियासतें भारत के संविधान को स्वीकार करें।


तथ्य 3 - आधुनिक अखिल भारतीय सेवाओं के संस्थापक

सरदार पटेल ने भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने भारतीय सिविल सेवकों की राजनीतिक हमले से सुरक्षा सुनिश्चित की। सरदार पटेल को भारतीय लोक सेवाओं के ‘संस्थापक संरक्षक’ के तौर पर यादा किया जाता है।


👌👌तथ्य 4 - कश्मीर के संरक्षक

सितंबर 1947 में जब पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला करने की कोशिश की तो सरदार पटेल ने डटकर पाकिस्तान से कश्मीर की रक्षा की। नेहरू ने पटेल को रिपोर्ट दी कि बड़ी संख्या में पाकिस्तानी सेना कश्मीर में घुसपैठ के लिये तैयार है। 26 अक्टूबर को नेहरू जी के घर पर हुई एक बैठक में सरदार पटेल ने महाराजा हरि सिंह के प्रधान मंत्री मेहर चंद महाजन से वादा किया कि भारत कश्मीर को अपना भरपूर समर्थन देगा।


👍👍तथ्य 5 - असहयोग आंदोलन के कद्दावर नेता

असहयोग आंदोलन के दौरान उन्होंने पूरे देश का दौरा किया और 3,00,000 सदस्यों की भर्ती की तथा पार्टी फंड के लिये 15 लाख रुपये जुटाये। अपनी वाकपटुता से उन्होंने सीधे दिल से असहयोग आंदोलन और सत्याग्रह के गांधीवादी आदर्शों के प्रति अपना समर्थन किया। जिससे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सामूहिक भागीदारी की शुरुआत के तौर पर देखा गया।


तथ्य 6 - गांधीजी की अनुपस्थिति में भारतीय सत्याग्रह के ‘सरदार’

उन्होंने भारतीय झंडा लहराने पर प्रतिबंध के ब्रिटिश कानून के खिलाफ 1923 में नागपुर में सत्याग्रह का नेतृत्व किया। वे महान वक्ता, नेता और एकजुटता के सूत्रधार थे, जिन्होंने महात्मा गांधी की अनुपस्थिति में सत्याग्रह को उसकी मूल भावना के साथ जारी रखा। पटेल ने समझौता वार्ता की जिसमें बंदियों की रिहाई और सार्वजनिक रूप से राष्ट्रीय ध्वज को फहराने की बात शामिल थी।


👍👍तथ्य 7 - अस्पृश्यता, जात-पात के खिलाफ और महिलाओं की मुक्ति के लिए मजबूत आवाज
1922 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में बैठने की मुख्य व्यवस्था के अलावा दलितों के लिये अलग से बैठने की व्यवस्था थी, जब सरदार पटेल ने ये देखा तो वे अपने लिये तय सीट पर बैठने की बजाय सीधे दलितों के बीच जाकर बैठ गये और वहीं से उन्होंने बैठकर अपना भाषण दिया।
बारडोली सत्याग्रह के दौरान सरदार पटेल ने सत्याग्रह की रणनीति तैयार करने और राजनीति के शामिल करने के लिये बड़ी संख्या में महिलाओं से परामर्श किया। प्रत्येक नागरिक को बराबरी सुनिश्चित करने के लिये हिंदू संहिता विधेयक को सरदार पटेल ने अपना समर्थन देकर महिलाओं के अधिकारों और उनके सशक्तिकरण के प्रति अपनी वचनबद्धता को दर्शाया।
तथ्य 8 - धर्मनिरपेक्ष भारत के सबसे मजबूत हिमायती
जून 1947 में जब उनको ये सुझाव दिया गया कि भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित कर दिया जाए और हिंदू धर्म को आधिकारिक धर्म का दर्जा दे दिया जाए, तो सरदार पटेल ने इस सुझाव को खारिज कर दिया। सरदार पटेल महात्मा गांधी के धर्मनिरपेक्ष भारत के नजरिये का दृढ़तापूर्वक समर्थन करते थे। उन्होंने कहा कि ‘‘हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि दूसरे अल्पसंख्यकों की सुरक्षा हमारी सबसे प्राथमिक जिम्मेदारी है।’’ 1950 में उन्होंने घोषणा की कि ‘‘हम धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र हैं और जिस तरह की राजनीति पाकिस्तान कर रहा है उस तरह की राजनीति हम नहीं अपना सकते। यहां हर मुसलमान को यह महसूस होना चाहिए कि वो भारतीय नागरिक है और उसके पास आम भारतीयों की तरह ही समान अधिकार हैं।’’

तथ्य 9 - महात्मा गांधी के हत्यारों के खिलाफ सख्त कार्रवाई।
(संघ के प्रति सकारात्मक रवैया।)

महात्मा गांधी की हत्या के बाद सरदार पटेल ने आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया। 18 जुलाई, 1948 को श्यामा प्रसाद मुखर्जी को लिखे एक पत्र में सरदार पटेल ने कहा, ‘‘आरएसएस और हिंदू महासभा की गतिविधियों के परिणामस्वरूप, खास तौर पर आरएसएस की गतिविधियों के चलते देश में ऐसा माहौल बनाया गया जिससे कि इतनी भयानक त्रासदी संभव हो गई। मेरे मन में इस बात को लेकर कोई संदेह नहीं है कि इस षड्यंत्र में हिंदू महासभा के चरमपंथी शामिल थे। आरएसएस की गतिविधियां ने सरकार और राज्य के अस्तित्व के लिए साफ तौर पर खतरा हो गयी हैं।

तथ्य 10 - हिंसा के खिलाफ और सांप्रदायिक सद्भाव के लिये बुलंद आवाज

1949 में बाबरी मस्जिद की ओर उमड़ी भीड़ ने मुअज्जिन का पीछा किया और वहां मंदिर के दावे के समर्थन में राम की एक मूर्ति स्थापित कर दी। सरदार पटेल ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री जीबी पंत को पत्र लिखा कि ‘‘इस तरह के विवादों को बलपूर्वक हल नहीं किया जा सकता। इस तरह के मामलों पर यदि हम मुस्लिम समुदाय की सहमति लेते हैं तो ऐसे मामलों को शांतिपूर्वक हल किया जा सकता है।’’

तथ्य 11 - आजादी की लड़ाई के लिये सांगठनिक तंत्र का निर्माण

महात्मा गांधी ने कांग्रेस को व्यापक कार्रवाई के लिए एक कार्यक्रम दिया। सरदार पटेल ने व्यापक जन-भागीदारी सुनिश्चित करके उस कार्यक्रम को पूरा करने के लिए पार्टी मशीनरी का निर्माण किया। उन्होंने आजादी के संघर्ष में पार्टी मशीनरी की महत्वपूर्ण भूमिका को महसूस किया, जिस पर उनके पहले किसी ने ध्यान नहीं दिया। उन्होंने अपने अभियानों के दौरान इस जरुरत को महसूस किया और पार्टी की ताकत बढ़ाने के लिए जो संगठित और प्रभावी तरीके से लड़ सकती है, अपनी संगठनात्मक प्रतिभा और ऊर्जा का इस्तेमाल किया।

तथ्य 12 - स्वशासन के लिए लड़ाई

स्व-शासन के लिए लड़ाई में सरदार पटेल का योगदान तब शुरू हुआ जब वे 1917 में अहमदाबाद स्वच्छता आयुक्त बने। इसके बाद वे 1922, 1924, 1927 में नगरपालिका अध्यक्ष बने। उन्होंने सीमित संसाधनों और अधिकारों के साथ अहमदाबाद में बिजली आपूर्ति और शैक्षिक सुधार सुनिश्चित किये।


तथ्य 13 - किसानों के सरदार

किसानों के अधिकारों के लिए काम करने के उनके समर्पण ने पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि दी। 1918 में उन्होंने कर न चुकाने के अभियान का नेतृत्व किया और किसानों से कैरा में बाढ़ के बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा थोपे गये भारी करों का भुगतान न करने का आग्रह किया। 1928 में बारडोली के किसानों को फिर से भारी कर वृद्धि का सामना करना पड़ा और अंग्रेजी सरकार ने भारी कर चुकाने में असमर्थ रहने वालों की जमीनें जब्त कर लीं। पटेल से वार्ता के बाद सरकार को किसानों की जमीन वापस लौटानी पड़ी।


तथ्य 14 - शरणार्थियों, कमजोरों और वंचितों के उद्धारक
1947 में भारत के बंटवारे के कारण हुई भयावह हिंसा के दौरान सरदार पटेल ने राहत शिविरों की स्थापना की, आपातकालीन आपूर्ति उपलब्ध कराई और शांति के लिये सीमावर्ती क्षेत्रों का दौरा किया।


तथ्य 15 - दूरदर्शिता और दृष्टि

अहमदाबाद नगर पालिका में पहला गुजराती टाइपराइटर 1924 में सरदार पटेल द्वारा शुरू किया गया। वह देश को औद्योगिक ताकत के तौर पर बदलने के पक्ष में थे। सरदार पटेल ने शाहीबाघ में दुधेश्वर वाटरवर्क्स में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशाला की स्थापना में मदद की।


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