Friday, June 17, 2011

स्वदेशी जागरण मंच (स्वजाम) के सात सूत्र

स्वदेशी जागरण मंच (स्वजाम) के सात सूत्रस्वदेशी जागरण मंच (स्वजाम) के सात सूत्र

निम्न 7 सूत्रों को सप्ताह के नामों के साथ जोड़ा गया है। यह नामों के साथ जोड़ना केवल याद रखने के लिए ही है, चाहे तो अन्य माध्यमों से भी याद किया जा सकता है। इन 7 सूत्रों में से जितनी भी बाते संभव हो, उतनी लागू करने का प्रयास करना चाहिए।

1. साहित्य - सोमवार (स्वदेशी पत्रिका)ः किसी भी व्यक्ति को स्वदेशी आंदोलन में प्रेरित करने के लिए स्वदेशी का साहित्य पढ़ना, पढ़ाना पहली आवश्यकता है। हमारे यहां पर 4 किस्म का साहित्य उपलब्ध है, और यह चारों प्रकारों को एक जगह पर पढ़ना हो तो स्वदेशी पत्रिका पर्याप्त है। चार प्रकार के साहित्य निम्न है-
क. प्राचीन साहित्यः इसमें चाणक्य के अर्थशास्त्र से लेकर गांधीजी, धर्मपाल जी, पं. दीन दयाल उपाध्याय, श्री गुरूजी, दत्तोपंत ठेंगड़ी आदि का साहित्य इस श्रेणी में आता है। इसके द्वारा हम भारतीय अर्थशास्त्र की मूल बातें ग्रहण कर सकते है। श्री एम.जी. बोकरे की पुस्तक ‘हिन्दू अर्थशास्त्र’ भी सारांश में उपर्युक्त साहित्य का दिग्दर्शन कराती है।
ख. वर्तमान लेखक यथा श्री गुरूमूर्ति, जितेन्द्र बजाज, गोविन्दाचार्य, डॉ. मुरली मनोहर जोशी आदि-आदि। इसके अतिरिक्त स्तंभ लेखक जो आर्थिक विषयों पर लिखते हैं जैसे देवेन्द्र शर्मा, वी. सतीश, पी. साईनाथ आदि। विदेशी लेखक जैसे जोजेफ स्टिग्लिट्ज (नोबेल विजेता), मार्टिन खोर आदि का साहित्य भी वर्तमान वैश्विकरण प्रक्रिया के घातक परिणाम समझाने के लिए पर्याप्त है।
ग. पत्र-पत्रिकाएं: स्वदेशी पत्रिका के अतिरिक्त भारतीय पक्ष, आजादी बचाओं आंदोलन, सुनीता नारायण की पत्रिका ‘इंडिया टुगेदर’ व वंदना शिवा की पत्रिका भी इन सब विषयों पर प्रकाश डालती है।
घ. वेबसाइट्स (अंतरताना): स्वदेशी जागरण मंच की अधिकृत वेबसाइट www.swadeshionline.in है। इसमें मंच की भूमिका समझने के लिए काफी सामग्री है। जो प्रश्न बार-बार पूछे जाते हैं, उनको भी थ्।फ शीर्षक तथा प्रमुख व्यक्तियों के अद्यतन लेख, ब्लाग आदि भी इसमें दिए गए है।
ड. साहित्य प्रमुख व पत्रिका प्रमुख विशेष रूप से इन कार्यों को देखते है। इनके साथ धीरे-धीरे एक सहयोगी टोली भी जोड़नी चाहिए।

2. मिलन - मंगलवार: क. दूसरा महत्त्वपूर्ण पक्ष है जिसे मंगलवार के नाम से स्मरण रखना है, कार्यकर्ताओं के आपसी मेलजोल की व्यवस्था करना। इसके लिए साप्ताहिक कार्यकर्ता बैठक व मासिक विचार मंडल अर्थात विचार गोष्ठी, सेमिनार आदि आवश्यक है। इन कार्यक्रमों में अनौपचारिकता, प्रश्नोत्तर व विचार विमर्श को पर्याप्त महत्व देना चाहिए। अच्छा होगा कि स्वदेशी पत्रिका के किसी विषय को आधार बनाकर परिचर्चा रखी जाएं ताकि सभी प्रमुख लोग उस विषय को पहले से पढ़कर आएं। वक्ता यथासंभव स्थानीय हो और उससे छोटी टोली में पहले विषय के बिंदुओं पर विचार विमर्श होना अच्छा रहता है। यदि विषय के 2-3 पक्षों को रखने के लिए अलग-अलग वक्ता हों तो और भी अच्छा रहता है। कार्यक्रम में परिचय, धन्यवाद, अध्यक्षता, सूत्रधार, मंच संचालन आदि दायित्व अलग-अलग लोगों में बांटने से अधिक लोगों की भागीदारी होती है।
ख. स्वजाम के कुछ कार्यक्रम होते ही हैं, जिनके द्वारा कार्यकर्ता का प्रशिक्षण होता है। जैसे 5 जून को पर्यावरण दिवस या 28 अगस्त या भाद्रपद शुक्ल दशमी को जोधपुर, खेजडली ग्राम की शहीद अमृता देवी बिश्नोई का बलिदान दिवस, मकर सक्रांति 14 अप्रेल, स्वदेशी सप्ताह जोकि 25 सितंबर दीन दयाल उपाध्याय जी की जयंती से 2 अक्टूबर महात्मा गांधी जयंती, पूज्य दत्तोपंत ठेंगड़ी जी का जन्मदिन 10 नवंबर, स्वजाम के प्रथम संयोजक डॉ. बोकरे का जन्म दिवस, मई 18, 1926, स्वदेशी दिवस अर्थात् बाबू गेनू का बलिदान दिवस 12 दिसंबर आदि कुछ महत्वपूर्ण तिथियां हैं। जनू-जूलाई मास के निकट राष्ट्रीय विचार वर्ग व नवंबर-दिसंबर में राष्ट्रीय सभा/सम्मेलन का आयोजन होता है। जिन्हें सब इकाईयों को मनाने का प्रयास करना चाहिए। इसके अतिरिक्त जिला व प्रांतीय सम्मेलन, जून-जुलाई मास में राष्ट्रीय विचार वर्ग एवं नवंबर-दिसंबर में राष्ट्रीय सभा/सम्मेलनों का आयोजन प्रतिवर्ष होता है। कार्यक्रम बनाते समय इन तिथियों का भी ध्यान रखना चाहिए। इसके अतिरिक्त जिला, प्रांतीय सम्मेलन करने चाहिए।
ग. जब कभी एक अंतराल के बाद कार्यकर्ता इकक्ठे हों तो इस बीच में उन्होंने जो कुछ स्वदेशी विचार संबंधी पढ़ा हो, सुना हो, अथवा समाचार पत्रों की ऐसी कतरने इक्कठी की हो - उन पर चर्चा, आदान-प्रदान आदि होना व आगामी कार्यक्रमों की चर्चा भी काफी लाभप्रद रहती है। इसके लिए अलग से किसी वक्ता आदि तय करने की आवश्यकता भी नहीं पड़ती है।
घ. विचार मंडल प्रमुख इस काम के लिए अपने साथ एक टोली का निर्माण करें- ऐसी अपेक्षा है।

3. आंदोलन - बुधवार: क. तीसरी महत्वपूर्ण गतिविधि है धरना, प्रदर्शन, आंदोलन आदि। इसके द्वारा युवा शक्ति भी जुड़ती है और संगठन की धार भी तेज होती है। मास दो मास में एक बार ऐसा प्रदर्शन अति आवश्यक है। इसके अतिरिक्त जब भी कोई ऐसा विषय मिले तो उसके लिए प्रदर्शन आदि करने का स्वभाव हर इकाई का बनना चाहिए।
ख. इन कार्यक्रमों के लिए आवश्यक सामग्री यथा झंडे़, बैनर, तख्तियां, नारें, पुतलें (दहन हेतु) कुछ ऐसी चीजें है जिनके द्वारा समाज में सरलता से इन विषयों को ले जाया जा सकता है।
ग. स्थान चयन का महत्व: भीड़-भाड वाले सार्वजनिक स्थानों का इन प्रदर्शनों के लिए चयनित करना अति महत्वपूर्ण है।
घ. ऐसे अवसरों पर उचित नारे, जयघोष छोटे भाषण और वितरण के लिए पहले से तैयार संक्षिप्त परचें, पेम्फलेट, कर-पत्रक आदि देना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त मीड़िया को पहले से ही समय आदि की जानकारी देना आवश्यक है।
आंदोलन अपने मंच का प्राण है अतः इसके लिए पर्याप्त ध्यान देना आवश्यक है। संघर्ष वाहिनी प्रमुख मुख्यतः इस काम को अपनी टोली के साथ गति देता है।

4. प्रचार माध्यम (मीडिया) - वीरवार: क. समय पूर्व प्रैैस-विज्ञप्ति (प्रेस ब्रीफ) तैयार करना और उसकी पर्याप्त प्रतियां निकालकर वितरित करना महत्वपूर्ण पक्ष है। विज्ञप्ति की जानकारियां व आंकडे़ अच्छी तरह देखभाल कर लिखने चाहिए। हिन्दी व अंग्रेजी व स्थानीय भाषा की अलग से प्रेस ब्रीफ तैयार करना अधिक लाभदायक रहता है।
ख. समाचार पत्र व अन्य माध्यमों को सप्ताह पूर्व कार्यक्रम की जानकारी लिखित में देना व व्यक्तिगत वार्ता द्वारा प्रेरित करना, जिससे पत्रकारों का आने की ज्यादा संभावना है।
ग. कार्यक्रम के पश्चात कार्यक्रम के चित्र व प्रेस ब्रीफ की प्रति ई-मेल द्वारा सीधे समाचार पत्रों को भेजना और अपनी वेबसाइट पर भेजना चाहिए। इस काम को प्रचार प्रमुख को मुख्यतः देना चाहिए।
कुल मिलाकर मीडिया का महत्व अपने ध्यान में रहना चाहिए और सामान्यतः मीडिया भी स्वजाम की जानकारियों को महत्व देता ही है।

5. समन्वय, संपर्क - शुक्रवार: समविचारी संगठनों व विभिन्न आंदोलनों को चलाने वालो के साथ तालमेल बैठाना अपने आंदोलन को बल देता है। चाहे वंदना शिवा हो या खेती विरासत, थर्ड वर्ल्ड नेटवर्क हो या मेधा पाटकर, बाबा रामदेव जी हो या आजादी बचाओं आंदोलन, गांधीवादी हो या समाजवादी आदि मुद्दों पर आधारित तालमेल अवश्य होना चाहिए। इन संगठनों के कार्यक्रमों में जाना, आंदोलनों के लिए आपसी तालमेल व संवाद बने रहना चाहिए। इसी तरह भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ, विद्या भारती, अ.भा.वि. परिषद, विश्व हिन्दू परिषद, राष्ट्र सेविका समिति आदि संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ मिलकर एक संचालन समिति भी बनानी चाहिए। जिसकी नियमित अंतराल पर विधिवत बैठके होनी चाहिए। जिस आंदोलन/कार्यक्रम में इन सबका सहयोग लेना हो तो प्रारंभ से ही संवाद रहे और हर चरण पर इक्कठे योजना बनानी चाहिए। इनसे संवाद, सहयोग व सहकार की त्रिसूत्र को बनाए रखने में मुख्य भूमिका संपर्क प्रमुख की रहती है।

6. आर्थिक पक्ष - शनिवार: उपर्युक्त सब कार्यक्रमों को सफल करने के लिए धन की आवश्यकता रहती ही है। अतः प्रारंभ से ही इसकी समुचित व्यवस्था सोचनी चाहिए। इसके लिए समर्थक अभियान, मासिक/वार्षिक सहयोग दाता तैयार करने, स्मारिका (सूवेनीर), स्वदेशी मेला व स्वदेशी पत्रिका के लिए विज्ञापन एकत्र करना आदि कुछ माध्यम है। सामान्यतः एक कार्यक्रम करते समय अगले कार्यक्रम के लिए भी कुछ धन संग्रह करना आवश्यक होता है। इसी प्रकार केंद्राश के लिए भी और बाहर से बुलाए गए कार्यकर्ता/वक्ता आदि को किराया आदि देना भी स्थानीय इकाई का ही दायित्व बनता है। कुछ व्यक्तियों को इस कार्य के लिए विशेष रूप से तैयार करना लाभदायक रहता है। इसी प्रकार कार्यकर्ता टोली के सामने हर कार्यक्रम के बाद आय-व्यय का उचित ब्यौरा रखना आर्थिक पारदर्शिता व शुचिता के लिए आवश्यक है।

7. संरचना, संगठन - रविवार: क. यद्यपि स्वजाम संगठन न होकर मंच है तो भी उपर्युक्त सब कामों को सफल करने के लिए एक सक्षम कार्यकर्ता टोली हर इकाई पर आवश्यक है। क्षेत्र, प्रांत, जिला, खंड, नगर व ग्राम स्तर पर यथासंभव ये टोलियां बनाना एक महत्वपूर्ण कार्य है। स्वजाम के मुख्य 4 कार्य है- क. आंदोलन, ख. अध्ययन/शोध, ग. रचनात्मक कार्य, व घ. संपर्क या नेटवर्किंग/संपर्क और सबसे तालमेल रखना। इन चारों कामों की आवश्यकता को देखकर उपर्युक्त व्यक्तियों की तलाश करनी चाहिए।
ख. समय-समय पर इन्हें सक्रिय रखने व उचित प्रशिक्षण के लिए कार्यशाला अध्ययन शिविर व प्रशिक्षण की उचित व्यवस्था करनी चाहिए। वर्ष में एक बार लगने वाले केंद्रीय विचार वर्ग में भी इन कार्यकर्ताओें को पूर्व तैयारी के साथ भेजना बहुत उपयोगी रहता है। इसके लिए समय पूर्व उनकी सूचि बनाना व तैयारी करवानी चाहिए।
ग. इन सभी कार्यकर्ताओं को स्वजाम के लिए स्थानीय स्तर पर समय देना, दूसरी इकाईयों पर प्रवास करना कार्यवृद्धि के लिए आवश्यक है। प्रवास व उसकी उचित व्यवस्था कार्यवृद्धि के लिए रामबाण है।
घ. वर्ष में राष्ट्रीय सभा/सम्मेलन, विचार वर्ग, प्रांतीय सम्मेलन व अन्य बैठकों के लिए समय निकालना व वापिस आकर अन्य लोगों को उसकी जानकारी देना भी एक आवश्यक अंग है।
ड. उपर्युक्त सातों कामों को करने के लिए निम्न प्रकार के दायित्व होने चाहिए। संयोजक, सहसंयोजक, संचालक, संगठक, संघर्ष वाहिनी प्रमुख, विचार मंडल प्रमुख, संपर्क प्रमुख, प्रकोष्ठ प्रमुख, पत्रिका प्रमुख, साहित्य प्रमुख, प्रचार प्रमुख, कार्यालय प्रमुख, कोष प्रमुख, महिला प्रमुख, तरुण प्रमुख आदि 15 ऐसी जिम्मेवारियां है जो कार्यकर्ताओं की मनोस्थिति, क्षमता व मनःस्थिति उपलब्धता देखकर देनी चाहिए। इसके अतिरिक्त एक-एक विषय पर यथा कृषि, खुदरा व्यापार, शिक्षा, न्याय व्यवस्था, परिवार व्यवस्था आदि को देखने के लिए अलग से प्रकोष्ठ भी बनाए जा सकते है, जिनकी देखभाल प्रकोष्ठ प्रमुख को प्रमुखता से करनी चाहिए। स्थान-स्थान पर टोली बनाकर स्वदेशी मेलों का आयोजन भी इकाई की वार्षिक गतिविधियों में से एक हो सकता है जो अपने कार्य को बल प्रदान करता है।

सारांश: उपर्युक्त सातों काम केवल मात्र दिशा दर्शन के लिए है और संकेत मात्र है। अनेक कार्यकर्ताओं से विचार-विमर्श करके ही इन्हें सूचीबद्ध किया गया है। तो भी इसके अतिरिक्त भी कुछ काम ध्यान में आए तो इन शीर्षकों के अंदर यथासंभव समाविष्ट करने चाहिए। समय-समय पर अपने कार्य का विश्लेषण करने के लिए इन बिंदुओं को कार्यकर्ताओं के मध्य चर्चा के लिए रखना चाहिए व वृत्त भी एकत्र करना चाहिए। ध्यान रखें, स्वजाम के उद्देश्यों के अनुरूप स्थानीय मुद्दों को भी अवश्य शामिल करना चाहिए।

अरूण ओझा (09430513102), कश्मीरीलाल (9868271424), अष्वनी महाजन (9212209090), प्रदीप शर्मा (9810454566)ashmirilal1951@gmail.com, ashwanimahajan@rediffmail.com, pradip_swa@yahoo.com akosjmbihar@rediffmail.com, kashmirilal@rediffmail.com, k

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