Tuesday, June 7, 2011

चीन का बढ़ता खतरा - एक नोट (चंदेल जी द्वारा तेयार)

बढ़ता चीनी खतराभारत में खिलौना बाजार 2500 करोड़ रूपये का
23 जनवरी 2009 को सरकार ने सुरक्षा आधार पर चीनी खिलौनो के आयात पर प्रतिबन्ध लगाया था जो चीन के दबाव पर उठा लिया गया। 2007 में दुनिया की प्रमुख खिलौना कंपनी भटेल ने चीन में बने 2.1 करोड़ खिलौनों को लेड की मात्रा गंभीर स्तर पर होने से वापिस ले लिया था। जबलपुर के कुल खिलौना मार्केट के 70ः पर चीनी खिलौने का कब्जा है। रोजाना एक लाख रूपये तक के चीनी खिलौने जबलपुर में बिकते हैं। चीनी कम्पनीयों की बार्बी, हॉटव्हील्स, टेडीबियर, रिमोट ब्लाग, डॉल, टॉयगन, मेटल टॉय, वुडन टॉय, म्यूजिकल टॉय, इलेक्ट्रानिक टेªन एवं कई प्रकार साफ्ट टॉयज लेड केडमियम, मर्करी जैसे हानिकारक तत्वों की अधिकता बच्चों के स्वास्थ्य के लिये घातक है।
केलिफोर्निया के पर्यावरण ष्षोध एवं नीति केन्द्र की एक रिपोर्ट के अनुसार चीना खिलौनों से बच्चों में समय के पूर्व रजस्वला होना, बहरापन, रोगरोधका क्षमता का हृास, नपुसंकता, केंसर, मानसिक विकलांगता जैसे खतरनाक रोग प्रकट हो रहे हैं। शोध में मुलायम प्लास्टिक टीयर, बच्चों को नहलाने के उपकरण, थेलेट्स लिये खिलौने, पैड्स, चटाईयां, सुलाने के उपकरण में जहरीले अग्निरोधी पाये गए। किसी खिलौने पर इन खतरनाक तत्वों की जानकारी का लेबल नहीं होने से पालकों के पास छिपे खतरनाक स्वास्थ्य के लिये खतरों की जानकारी नही होती।
एक छळव् की रिपोर्ट के अनुसार डॉल और टॉय की क्षमता को प्रभावित करने के अलावा उनकी इस प्रकार के खिलौनों का बाजार 1.5 बिलियन (700 करोड़ रू.) से उपर का है। टाक्सिक लिंक के निर्देषक रवि अग्रवाल के अध्ययन के अनुसार भारतीय बाजार में ऐसे खिलौनों की बहुतायत से प्रतिदिन लाखों बच्चे अनजाने ही अनेक रोगों के षिकार बन रहे हैं। बेबी टॉयज दमें बिस्फेनाल-। की कम सांद्रता से कैंसर की आषंका, जीन में विकृति की आषंका बढ़ी है क्योंकि बच्चों के रक्त एवं मलमूत्र में इसकी मात्रा पाई गईहै जो प्राकृतिक रूप से उपस्थित एक्ट्रोजन को प्रभावित करती है। बेल्जियम, इटली, फिलिपाईन, डेनमार्क, स्वीडन, नीदरलैण्ड, ऑस्ट्रिया, जर्मनी, स्पेन आदि देषों ने इन खिलौनों पर प्रतिबंध लगा रखा है।
चीन ने इलेक्ट्रॉनिक गुड्स के बाजार पर भी कब्जा कर लिया है। भारत में किसी एक वस्तु के बाजार पर कब्जा करने का अर्थ एक भरी पूरी व्यवस्था का खात्मा है। बहुत सारे परिवार परिवारों की विरासत विरासत के आधार पर फलती फूलती संस्कृति और उस फलती फूलती संस्कृति के आधार पर खड़ा देष। चीन ने धीरे-धीरे भारत की ऐसी समस्त व्यवस्थाओं पर उद्योगों पर कब्जा करना शुरू कर दिया है। इलेक्ट्रॉनिक्स गुड्स, फायर क्रेकर बाजार, देवी देवताओं की मूर्तियां एवं प्रतीक चिन्ह, कपड़ा उद्योग फूड प्रोडक्ट्स। यहां तक की देष में होली में चीनी रंग, दीपावली में चीनी लट्टू, झालरें, चीन लक्ष्मी। हमारे बुजुर्गों ने जिन्हौने अपनी दूरदृष्टि से इस परिवर्तन को भांप लिया था उन्हौने हमारे कंठ में एक कहावत उतारी थी ‘‘ सस्ता रोए बार-बार मंहगा रोए एक बार।
जेनेटिकली मॉडिफाईड (अनुवांषिकतः प्रवर्धित) फसलें, बीज क्या हैं।
अनुवांषिक प्रौद्योगिकी जेनेटिक इंजीनियरिंग- जीन्स में हेराफेरी का एक कृतिम प्रयास है। जीई में कृत्रिम जैव पदार्थोंे का प्रयोग किया जाता है जो पौधों की कोषिकाओं में डाले जाते है। ळम् भ्वेज मेजबान क्छ। के अन्दर जीन्स के उत्पन्न होने की प्राकृतिक व्यवस्था में गड़बड़ी पैदा करता है। ळम् अन्य जीन्स के समूह के साथ काम करता है जो प्राकृतिक रूप से पैदा नहीं होते। जेनेटिक इंजीनियरिंग एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें कृत्रिमतः तैयार जीन्स का हस्तान्तरण किया जाता है। पौधे की कोषिका का क्छ। निकालकर जो जीन अपनी विषेषताओं के साथ पैदा होता है उसे अलग निकाल लेते हैं उसमें प्रमोटर और अन्य आवष्यक वस्तुओं जैसे (मार्कर आदि) को मिलाया जाता है। इस विधि से तैयार कृत्रीम जीन को दूसरे पौधों की कोषिका में समाहित कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिये एक तरह की परिवहन प्रणाली अपनाई जाती है जिसकी जरूरत एक जीव के जीन को दूसरे जीव के जीन तक पहुंचाने में पड़ती है। इस परिवाहक को वेक्टर कहते हैं। एक अन्य विधि शूटिंग से भी कृत्रिम रूप से तैयार जीन को होस्टसेल तक हस्तांतरित करते हैं।
ळम् प्रकृति के साथ दखलंदाजी:- जैव विविधता प्राकृतिक रूप से अनेक पीढ़ियों से लगातार बनती चली आ रही है लेकिन यह एक सीमा के अन्दर होता है जैसे चावल की एक किस्म को दूसरी किस्म से मिलाना, टमाटर की किस्म को भिन्न किस्म के साथ जोड़ना आदि लेकिन जेनेटिक इंजीनियरिंग में वैज्ञानिक नए पौधे, जानवर जीन्स में हेराफेरी करके तैयार करते हैं। यह प्रक्रिया अप्राकृतिक है। एक पौधा तैयार करने में पौधे की दूसरी प्रजाति, बैक्टीरिया जानवरों यहां तक की मनुष्यों के जीन्स का भी उपयोग किया जाता है। इस तरह से तैयार जीन्स प्रयोगषालाओं से निकलकर जब बाहर मैदान मे आ जाते हैं तो उनमें प्रजनन क्षमता तो होती ही है वे प्राकृतिक जीन्स के साथ भी दखलंदाजी कर सकते हैं।
जीएम बीज या फसल के लिये प्रयुक्त जीन में खतरनाक ढंग के जेनेटिक पदार्थ, बेक्टीरिया या वायरस पाए जाते हैं। इस प्रकार तैयार अनाज में नषीले पदार्थ, एलर्जी पैदा करने वाले तत्व तथा एंटी-बायोटिक प्रतिरोधी तत्व उन लोगों के शरीर में पहुंच जाएं जो जीई द्वारा तैयार अनाज को खाते हैं।
सुरक्षा का प्रष्न:- वास्तव में पूरे विष्व में कोई भी यह नहीं जानता कि जेनेटिक ढंग से उत्पन्न पौधे खेतों में किस तरह की प्रतिक्रिया दिखाते हैं। अर्थात खुद उन पौधों पर क्या असर होता है घ् उनकी वजह से अन्य पौधों, कीड़े मकोड़ों, खेत की मिट्टी और पानी पर क्या असर पड़ता है। संक्षेप में कोई भी व्यक्ति यह नहीं जानता कि जीएम फसलें किस तरह पर्यावरण प्रदुषित करती हैं। कोई भी व्यक्ति यह नहीं जानता कि जीएम द्वारा उगाए गए अनाज का आगे चलकर सेहत पर क्या असर पड़ता है घ् उनसे कैसी-कैसी अज्ञात बीमारियां पैदा होंगी घ् क्या उनसे कैंसर जैसी भयावह बीमारी का खतरा है घ् या केवल एलर्जी और डायरिया का खतरा है घ् क्या ऐसा भी हो सकता है कि जीएम फसल के उपयोग से शरीर पर एंटी बायोटिक्स दवाओं का असर ही समाप्त हो जाए घ् क्योंकि जीएम फसल में एंटी बायोटिक्स प्रतिरोधी जीन्स भी होते हैं। अर्थात इससे बीमारियों के संक्रमण होने पर उनकी रोकथाम नहीं हो सकेगी। क्या इस विधि से नई संक्रामक बीमारियां पैदा नहीं होंगीघ् कई बार तो प्रभाव का आकलन और असर दो-तीन पीढ़ियों बाद सामने आएगा।
मोनसांटो जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियां जीएम फसलों को प्रवर्धित कर रही हैं लेकिन उनका तर्क है कि भरपूर फसल और भरपूर अनाज (उत्पादन) होने से भूखे लोगों का पेट भरेगा गली नही उतरता। वे संपूर्ण विष्व में अपना एकाधिपत्य चाहती हैं। केवल पैसा कमाना चाहती हैं। क्योंकि जीएम बीज के साथ साथ खाद भी और तक्नीकि भी उनसे ही लेनी पड़ेगी।
ठज ब्वजजवद का अनुभव अच्छा नही रहा सर्वाधिक आत्महत्याएं ही उन किसानो ने की जो ठज ब्वजजवद उगाकर मंहगा बीज मंहगी कीटनाषक और अधिक पानी सोच कर भी भरपूर मोनसाटो के दावे के अनुसार फसल प्राप्त नहीं कर सके।
भूखे रहने और कम अनाज की उपलब्धता का दावा भी गले नहीं उतरता देष में 4 करोड़ टन का सुरक्षित खाद्यान्य भण्डार है और रखरखाव के अभाव में लगभग 2 करोड़ टन खाद्यान्न सड़-गल जाता है। सन 2002 मे सरकार ने ठज ब्वजजवद कपास के व्यावसायिक उत्पादन की अनुमति दी यह आषा की जानी चाहिये कि कानून के उल्लघंन की ऐसी कहानी फिर न दोहराई जा सके। जेनेटिक कृत्रिमता संबंधी समीक्षा समिति ने ठज कपास के बीजों के आयात की अनुमति नहीं दी इसके बावजूद कपास की ठज किस्म को उगाने का परीक्षण हुआ और गैर कानूनी ढंग से और अधिक स्थानों पर उगाया गया।
ळड सरसों:- अनेक वर्षों से बड़ी मात्रा में इस किस्म के परीक्षण खेतों में चल रहे हैं जिसमे सुपर वीड्स तैयार हो सकते हैं जो ग्लूफोसिनेट के इस्तेमाल से उसके आदि हो जाते हैं ये ऐसे कीटाणू हैं जो सरसों की परंपरागत फसलों को पूरी तरह बरबाद कर सकते हैं। जीएम सरसों इस तरह तैयार होता है कि उस पर ग्लूफोसिनेट का असर नहीं होता यह तत्व मनुष्यों और पषुओं के लिये खतरनाक है क्योंकि यह स्नायुतंत्र पर असर डालता है। चूहों पर इसके प्रयोग से चूहों के भू्रणों में विकलांगता आ जाती है तो इंसान पर इसका असर कैसा होगा घ्
राउंड अप रेडी:- मोनसाटो द्वारा भारतीय किसानो का हर्बिसाइड नामक रेडी राउंडअप रेडी किस्म के उत्पादन के लिये उकसाया जा रहा है। सोया, मकई, गेंहू, सब्जियां और तिलहनो की कुछ जीएम किस्में राउंडअप हर्बिसाइड (तृणभक्षी) के उत्पादन को रोकती हैं लेकिन विकासषील देषों में खेती की छोटी और सघन जोतें हैं। आजू बाजू के खेतों में अलग-अलग फसलें उगती हैं। इस प्रकार खेत प्राकृतिक जैव विविधता वाली पर्यावरण प्रणाली के अंग हैं। यदि मोंसाटो की राउंडअप रेडी मकई के खेत के इर्द-गिर्द अन्य फसलों के खेत या वन क्षेत्र की प्राकृतिक वनस्पतियां हैं तो राउंडअप त्रणभक्षी के छिड़काव से वन वनस्पतियां एवं अन्य फसलों के समूल नष्ट होने का खतरा उत्पन्न हो जाएगा।
सोया:- भारत में तिलहन के रूप में 10000 टन सोयाबीन का आयात हुआ जिसमें ऐसी कोई गारंटी नहीं है कि उनमें जीएम दानों की मिलावट नहीं है। सोयाबीन के बीज आयातित वस्तु हैं इसका व्यापार मुख्य रूप से बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथों में है और खतरा भारतीय किसानों और उपभोक्ताओं पर आया फलस्वरूप परंपरागत तिलहनों से नियंत्रण घटा। मिलावट रहित सरसों का तेल सेहतमंद होता है और सदियों से भारत में खाद्य पदार्थ के रूप में इसका प्रयोग हो रहा है। यह स्थानीय उत्पाद होने से सस्ते में उपलब्ध है अतः इसकी कमी या समाप्ति से बहुराष्ट्रीय कंपनीयों की मोनोपाली हो जावेगी।
चीन की चुनौती
कुछा वर्षो पूर्व तत्कालीन रक्षामंत्री जार्ज फर्नान्डीज ने चीन को भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा बताते हुए आगाह किया था तो उस समय उनकी चेतावनी पर देश गंभाीर नहीं हुआ था। लेकिन आज स्वदेशी जागरण मंच के द्वारा इस मुद्दे को गांव-गांव, झार-घर प्रत्येक गली मोहल्ले में ले जाने का बीड़ा उठा लिया गया है। भसरत के लिए चीन कभी भी सहृदय नहीं रहा वह अपनी कुटिलता से बाज नहीं आया। चीन की विस्तारवादी नीति सुरसा के मुँह की तरह दिन दूपी रात चौगुनी गति से बढ़ रही है। अमेरिका के पराजय के संकेतो की शुरूआत के साथ वह संपूर्ण विश्व की एकक्षत्र महाशक्ति बनने के मार्ग पर अग्रसर है।सौर इस प्रयास में वह किसी भी हद तक गिरने के लिए तैयार है। अपनी इस साम्राज्य की विसतारवादी महतवाकांक्षा के माग्र में वह भारत को सबसे बड़ा रोड़ा मानता है, इसलिए उसका प्रत्येक कदम भारत को कमजोर करने की गहरी साजिश से भरा हुआ है। 1962 में पंचशील की आड़ में हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे लगाकर 43000 पर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा बदस्तूर कायम है।आज अरूणाचल प्रदेश और सिक्किम पर भी वह अपना अधिकार बताने से गुरेज नहीं कर रहा है।
ऽ चीनी इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॅार स्ट्रेटजिक स्टडीज की वेबसाईट पर प्रकाशित एक लेख में चीनी रणनीतिकार झान लुई पे चीनी सरकार को परामर्श दिया है कि भारत को अनेक भागो। में विभाजित कर उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए जाए ओर इस काम में पाकिस्तान, नेपाल, भूटान और बांग्लादेश जैसे सहयोगियों की सहायता लेनी चाहिए
ऽ पिछले वर्ष ही चीन की पीपुल्स लिबरेयान आर्मी द्वारा सीमा पर नियंत्रण रेखा के 270 उल्लंघन और आक्रामक सीमा चौकसी की 2285 घटनाएं हुई हैं।
ऽ 50 के दशक में लद्दाख के अक्साईचिन पर कब्जा किया हम मौन है।
ऽ 1987 मंे सुदोरांग चू घाटी के विषय में हमें अपमानजनक समझौता करना पड़ा।
ऽ दक्षिण म्यांमार के कोको द्वीप में उनकी गश्ती चौकी अब पूर्णतः सज्जित सैनिक चौकी बन गई है।
ऽ श्रीलंका में चीन एक वाणिज्य बंदरगाह का निर्माण कर रहा है।
ऽ श्रीलंका के दक्षिण में हंबनटोटा में नौसैनिक बंदरगाह बना लिया है जो भारत के लिए सामरिक खतरा है।
ऽ पाकिस्तान के सिंध प्रांत में ग्वादर सैनिक बंदरगाह तैयार हो गया है।
ऽ चीन सीमा के पार अपना मजबूत रेल नेटवर्क बना रहा है।जिसकी पटरियां अरूणाचल प्रदेश की सीमा तक पहँुच गई है।
ऽ नेपाल की राजधानी काठमाण्डू चीन के साथ सड़क मार्ग से जुड़ा है यह राजमार्ग काठमाण्डू को सोनोली बार्डर से जोड़ता है। चीन 100 मिलीयन डालर खर्च कर ल्हासा से काठमाण्डू तक सड़क बना रहा है।
ऽ चीन नेपाल स्थित नेपानी चाईनीज स्टडी संेटर के माध्यम से भारत के विरूद्ध गुप्तचरी कर रहा है।
ऽ हाल ही में नेपाल के झापा जिले में भारतीय सीमा के चीन के सहयोग से एक सेंटर खोला गया है। ऐसे 24 सेंटर गुप्तचर नेटवर्क तैयार कर आतंकवादी प्रशिक्षण एवं सूचनाओं के के आदान प्रदान के उपयोग में आ रहे है।
ऽ पाकिस्मानी आतंकवादी संगठनों विशेषकर अलकायदा को सहयोग कर रहा है।
ऽ म्यांमार के रास्ते मिजोरम तथा असम के करीमगंज के रास्ते पूर्वोत्तर के उग्रवादियों को हथियार उपलब्ध करा रहा है।
ऽ अरूणाचल प्रदेश से लगे म्यांमार के काचीन प्रांत में काचरन इंडिपेंडेंस आर्गनाईजेशन से चीन क निकट संबंध है।
ऽ मणिपुर की पिपुल्स लिबरेशन आर्मी के सदस्य हथियार व सैन्य प्रशिक्षण लेने काचीन द्वारा ही चीन जाते है।
ऽ जिस समय नगा विद्रोही नेता थुइगालेंग ;छैब्छ;श्र.डद्ध ळमदमतंस ेमबतमजवतलद्ध मुइवा की भारत सरकार से शंातिवार्ता चल रही थी एस समय मुइवा का सहायक इसाक सम अपने गुट के साथ चीन में भारत के विरूद्ध समर्थन मांगने गया हुआ था।
ऽ अरूणाचल प्रदेश में ।क्ठ से बाढ़ और नदी के क्षरण प्रबंधन योजना के लिए तकनीकि सहयता और वित्तपोषण में चीन के मुखर विरोध के फलस्वरूप् भारत को असफलता मिली जबकि शेष सभी देश भारत के समर्थन में खड़े थे।
ऽ तिब्बत पर चीन के जबरिया कब्जे के बाद तिब्बत में स्थित डेलिंगा में चीन अंतर्राष्ट्रीय मिसाइल बेस बना रहा है। जहां डी.एफ. 5 नामक 12000 किमी तक मार करने वाली अंतर महाद्वीपीय बैलेस्टिक मिसाइल तैनात कर रहा है।
ऽ छवज इल उमजमतए इनज इल पदबीमे की नीति अपनाकर धीरे-धीरे भारत की जमीन पर कब्जा करता जा रहा है।
ऽ पाकिस्तान, भूटान, नेपाल, सिक्किम,बांगलादेश, श्रीलंका, बर्मा, म्यांमार को भारत का शत्रु बनाकर अपनी ओर मिलाने मे चीन सफल हुआ है।
ऽ इन पडौसियों के साथ सैन्य समझौते करना सड़के, पुल, बंदरगाह, रेलमार्ग एरोड्रम, बांध बनाना और इस प्रकार पहुँच बना कर भारत को घेरना चीन की रणनीति का हिस्सा है।
ऽ ॅज्व् की आड़ में अपना घटिया सस्ता माल भेजकर भारत की अर्थव्यवस्था को और चौपट करने में आंश्सिक रूप् से सफल हुआ है।
ऽ वर्षों से लिट्टे के आक्रमणों से झुलसते श्रीलंका ने अचानक लिट्टे का सफाया कैसे कर दिया ? यह संभव हुआ चीन द्वारा सामरिक सहायता एवं लिट्टे की आर्थिक घेरेबंदी से।
ऽ भारत ईरान के साथ जिस गैस पाईपलाईन की योजना लंबे समय से बना रहा था उसका रास्ता भी अब चीन की ओर मुड़ गया है।
ऽ तीसरी दुनिश के नेतृत्व का भारत का दावा अब हास्य का विषय है। भारत ने अनेक अफ्रीकी देशों की स्वतंत्रता में सहायता की। लगभग 1 अरब डालर के ऋण दिए। ऐसे उदार भारत 2008 में 40 अफ्रीकी देशों सम्मेलन बंलाया तो 10 आज सही सम्मेलन 2006 में चीन ने बुलाया तो 40 मे से 40 अफ्रीकी देश पहुँचे थे।
ऽ अमेरिका भी दिल्ली के स्थान पर बीजिंग को महत्व दे रहा है अमेरिका ने अरूणाचल प्रदेश में संयुक्त सैनिक अभ्यास से किनारा कर दिया है। 2007 में बंगााल की खाड़ी में 5 देशों द्वारा संयुक्त सैनिक अभ्यास अब दोहराया नहीं जाएगा।
ऽ भारत का प्रधानमंत्री अपने देश के अखण्ड भू-भाग अरूणाचल प्रदेश के तवांग में सिर्फ इसलिए नहीं जा सके क्योंकि चीन ने उसे आँखे दिखा दी थी।
ऽ ॅज्व् का लाभ लेकर चीन भारत देश के संवेदनशील स्थानों ें पास की विविध परियोजनाओं के टेंडर परियोजना लागत से भी कम मूल्य पर हस्तगत कर आंतरिक सुरक्षा के लिए गंभीर संकट उत्पन्न कर रहा है। कितने चीनी नागरिक कर्मचारी भारत में किन-किन परियोजनाओं पर काम कर रहें है उसकी पुख्ता जानकारी भारत सरकार के पास नहीं है।
ऽ देश के 25ः से अधिक दूरसंार एक्सचंेज व विविध दूरसंचार उपकरणें का निर्माण चीन द्वारा किया गया है।
ऽ क्रेंद्र सरकार द्वारा चीनी राडार लगाना गंभीर सुरक्षा संकट की आहट है। क्योंकि चीन अपनें उपग्रहों के माध्यम से देश की संपूर्ण अंदरूनी फोटोग्राफी कर सकता ह। और पल-पल की खबर रख सकता है।
ऽ बंगलौर, हैदराबाद से साफ्टवेअर में कुशलता प्राप्त कर वापस चीन लौटे साइबर योद्धा हमारी सारी महत्वपूर्ण और गोपनीय सूचनाएं हैक कर चुके है।
ऽ भारत चीन व्यापार 2001 में 2.1 अरब डालर से 2004 तक मात्र 7 अरब डालर हुआ जो अब 2008-09-10 में लगभग 50 अरब डालर का हो चुका है। इसमें भारत का हिस्सा मात्र 9.7 अरब डालर है वह भी अधिकांश कच्चे माल के रूप में जबकि चीन से आय 40 अरब डालर का है। इसके अलावा बिलों में कम मूल्य दर्शा कर या तस्करी द्वारा भी बहुत सारा चीनी माल भारत में प्रवेश कर रहा है।
ऽ भरत का पटाखा उद्योग, खिलौना उद्योग, रसायन उद्योग, कृषि रसायन उद्योग, विद्युत उपकरण उद्योग, अनेक अभियांत्रिकी उद्योग, प्लास्टिक उद्योग, सीडाट जैसे उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग, इलेक्ट्रातिक गुड्स उद्योग, वस्त्र उद्योग संकटापन्न होकर समाप्त होने की कगार पर है।
ऽ हिमालय से निकलने वाली नदियों पर बांधों और सुरंगों के माध्यम से जल प्रवाह चीन की ओर मोड़ने की अनेंक परियोजनाएं चीन द्वारा प्रारंभ की जा चुकी है।
ऽ सस्ते घटिया स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बने चीनी माल की देश में गिक्री 3,20,000 करोड़ (32 खरब रूपयांें) हमारी जेबों से निकाला गया हमारा यह पैसा ही चरन हमारे खिलाफ शस्त्र बनाने में पड़ौसी देशों की आर्थिक सामरिक सहायता में तथा वाले माओवादी नक्सली संगठनों में चुके है।
ऽ चीन द्वारा जम्मू काश्मीर के निासियों को पेपर वीसा जारी करना, अरूणाचल प्रदेश के लोगांे को बिना वीया चीन में आमंत्रण लश्कर के संगठनों को आतंककारी घोषित करने के भरत के प्रयास पर संयुक्तराष्ट्र संघ में आपत्ति करना, हमारी महत्वपूर्ण गोपनीय जानकारीयों को सुरक्षा संस्थानों के कम्प्यूटरों को हेक कर उड़ा लेना, भारत को टुकड़ों-टुकड़ों 20-30 राज्य (राष्ट्रों) में बांट देने की अपूरणीय अप्रतिहत इच्छा अमेरिका के स्थान पर संपूणग् विश्व में दादागिरी चलाने की योजना पर अमल एक बहुत बड़े खतरे की ओर स्पष्ट संकेत है।
यह हतारी राष्ट्र के प्रति निष्ठा की अनिवार्य परीक्षा की घड़ी है। आने वाले दो तीन वर्ष निर्णायक होने जा रहे है। आखिर क्या कारण है कि सारा विश्व भारत से घबराता है ? क्यों चीन भारत की इस प्रकार घेराबंदी कर रहा है ? हम बिना किसी पर आक्रमण किए बिना किसी साम्राज्य लिप्सा के सारे आक्रमण झेलते हुए पिछले 60 वर्षों से ढुलमुल नीतियों के सहारे कब तक चलेंगे ? ये सारे अनुत्तरित ज्वलंत प्रश्न है जिनका उत्तर आपको हमें ढुढ़ना है। बस दृढ मनोबल, सर्वस्च त्याग और अडिग राष्ट्रनिष्ठा से ही इनके उत्तर खजे जा सकते हैं।

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