Tuesday, February 21, 2012

अध्याय २. भारत जो कभी सोने की चिडिया था

Ch 2 भारत जो कभी सोने की चिडिया था.......
आज जब भारत समृद्वि और खुशहाली की और बढ रहा है तो इसको बहुत आश्चर्यजनक माना जा रहा है | क्यूंकि भारत की छवि एक गरीब, अनपड़ .और भूखे नंगे देश के नाते बनी हुई है और यही माना जाता है की भारत हमेशा से ही एक गरीब देश रहा है | यहाँ तक की भारत में भी एक बहुत बड़ी संख्या है जिनके मन में भी यही पक्की धारणा बनी हुई है | भारत के वर्तमान गृहमंत्री श्री पी चिन्दम्बर्म एक साल पहले ऑक्सफोर्ड विश्व विद्यालय में एक कार्यकर्म में हिस्सा लेने गये थे | वहां भाषण देते हुए उन्होंने कहा की यह जो कहा जाता है की भारत बहुत अमीर देश था, यह सब मिथ्या बातें है, भारत की जो तरक्की हो रही है वह अभी ही हो रही है इसके पहले कुछ नहीं था | इसलिए हमें निश्चित रूप से इस बात का गहरायी से विश्लेषण करना होगा की क्या भारत को जो सोने की चिड़िया कहा जाता था वह सिर्फ एक मिथ ही था या उस में कुछ सचाई भी थी | क्यूंकि इतिहास की सही समझ के बिना न तो वर्तमान का सही विश्लेषण हो सकता है और न ही भविष्य की ठीक योजना बनायीं जा सकती है |


अगर हम भारत के प्राचीन समय की अर्थव्यवस्था पर उपलब्ध साहित्य का अध्ययन करते है तो ध्यान में आता है की बहुत से भारतीय और विदेशी अर्थशास्त्रियो और इतिहासकारों ने भारत की समृद्वि की बात कही है | भारत में 600 इसा पूर्व महाजनपद काल में चांदी के सिक्को का प्रचलन शुरू हो गया था | मौर्या काल ने भारत को राजनीतिक रूप से एक करने के साथ ही आर्थिक रूप से भी शक्तिशाली बनाया | विशव के महान अर्थ चिन्तक कौटिल्य ने "अर्थशास्त्र " की रचना कर दुनिया को अर्थ के बारे में एक नया विचार दिया जो आज भी प्रासंगिक है | पहली शताब्दी से लेकर 15 वी शताब्दी तक भारत की अर्थव्यवस्था विशव की सब से बड़ी अर्थव्यवस्था थी | विख्यात आर्थिक इतिहासकार एंगस मैडिसन ने अपनी पुस्तक " The world economy : A Millenial Perspective " में विस्तार से भारत की आर्थिक शक्ति का जिक्र किया है | मैडिसन के अनुसार पहली शताब्दी में विशव् के सकल घरेलू उत्पाद में भारत की हिस्सेदारी 32 .9 % थी जो 1000 इसवी तक भी 28 .9 % बनी रही और भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना रहा | यह आंकड़ा बहुत दिलचस्प जान पड़ता है क्यूंकि आज अपने आपको बहुत समृद्व और शक्तिशाली मानने वाले देश कभी भी इस स्तर तक नहीं पहुँच पाए हैं की पूरे विश्व के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग एक तिहाई एक ही देश से आता हो | चोल राजायो द्वारा कावेरी नदी पर बने डैम ( विश्व के प्राचीनतम डेमो में से एक ) से लेकर कई प्रकार के ऐसे काम हुए जिस कारण से भारत कृषि उत्पादों का बहुत बडा निर्यातक देश बन गया था | इसके अतिरिक्त चमड़ा, धातु, हीरा और कपडा उद्योग भी उस काल में बहुत फल फूला जिस कारण से भारत का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में हिस्सा बढता गया | भारत की यह समृद्वि विदेशी हमलावरों को हमेशा आकर्षित करती रही है | महमूद गजनवी ने अकेले ही ६०,०९८,३०० दिरहम भारत से लुटे जिसमें सोमनाथ और कनौज से लुटे २०-२० करोड़ दिरहम भी शामिल है | यह लूट का सिलसला निरंतर चलता रहा | १३९८ में तैमूर लंग के हमलो में दिल्ली सहित पूरे उत्तर भारत को बेरहमी से लूटा गया, किसी भी एक हमलावर द्वारा भारत की सबसे बड़ी लूट उसी समय पर हुई जिसने इस पूरे क्षेत्र की समृद्वि को छिन भिन कर दिया | परन्तु इस काल में भी गुजरात , बंगाल और दक्षिण का विजयनगर साम्राज्य समृद्वि की बुलंदियों को छू रहे थे | विजयनगर को उस समय का विश्व का सबसे व्यवस्थित शहर माना जाता था , कई विदेशी यात्रियों ने उस साम्राज्य के गौरव की कहानी लिखी है
लगातार विदेशी हमलो और भारी लूट के बावजूद मुगलों के आने के समय भी भारत की समृद्वि कायम थी | बाबरनामा में बाबर ने इस समृद्वि की कहानी बहुत विस्तार से लिखी है | वह लिखता है की देश अनाज और उत्पादों से भरपूर था | 16 वी शताब्दी में मुग़ल काल के समय भारत 24.5 % की हिस्सेदारी के साथ चीन ( 25 %) के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था जो 18 वी शताब्दी तक बना रहा | अकबर के काल में 1600 ईस्वी में भारत की सालाना आय १७ मिलियन डालर थी जबकि इंग्लैंड 200 साल बाद 1800 ईस्वी में भी 16 मिलियन डालर के साथ भारत से पीछे था | १७०० ईस्वी में औरेन्गजैब का काल में भारत की सालाना आय 100 मिलियन डालर थी जो उस समय पुरे यूरोपे की आय से भी ज्यादा थी | भारत का कपडा बर्मा , अरब और अफ्रीका तक निर्यात किया जाता था | भारत का सिल्क परसिया , इंडोनशिया , हालैंड तथा कई यूरोपियन देशो को निर्यात किया जाता था | जहाँ एक तरफ बंगाल गन्ने के निर्यात का बडा केंद्र बन चुका था तो पूरा मालाबार क्षेत्र मसालों के निर्यात में बहुत आगे था | इन्ही मसालों के व्यापार के कारण ही पुर्तगाली समुन्दर के रास्ते भारत आना चाहते थे भारत की अर्थव्यवस्था कितनी मजबूत थी इस बात का अंदाजा इसी से लगया जा सकता है की विदेशी सत्ता के बावजूद भारत १८वी शताब्दी तक यूरोप और अमरीका से ज्यादा खुशहाल और समृद्ध था | भारत की इस आर्थिक समृद्वि में हमारी वैज्ञानिक कृषि पद्वति का बहुत बडा योगदान था | विख्यात गांधीवादी इतिहासकार धरमपाल जी ने अंग्रेजो के सरकारी दस्तावेजो का गहन अध्ययन करके लिखी अपनी पुस्तक " The Beautiful Tree " में विस्तार से भारत की आर्थिक समृद्वि के आंकड़े दिए हैं | पुस्तक में कृषि की उत्पादकता और कृषि तकनीकी में भारत के ज्ञान का विस्तार से जिक्र किया गया है | भारत की कृषि तकनीकी कितनी वैज्ञानिक और आधुनिक थी इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की अंग्रेजो ने भारत की कृषि में सुधार करने के लिए जिस कृषि वैज्ञानिक अल्बर्ट हावर्ड को भारत बुलाया, वह कई साल भारत की कृषि का अध्ययन करने के बाद भारत की कृषि पद्विती का कायल हो गया | अपनी पुस्तक " An Agriculture Testamant " में हावर्ड ने लिखा है की हमारे पास भारत को सिखाने के लिए कुछ नहीं है , बल्कि हमें तो भारत से खेती करने का तरीका सीखने की जरुरत है | अपनी इस पुस्तक में उसने भारत के विभिन्न भागो में अपनायी जाने वाली कई पद्वतियो का जिक्र किया है |


परन्तु दुर्भाग्य से यह समृद्वि अंग्रेजी साम्राज्य की भेट चढ़ गयी | 1775 से लेकर 1825 तक के ५० वर्षो में ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में नयी कर व्यवस्था लागू कर दी थी और १८०० ईस्वी में कंपनी ने अपने अधिकार वाले भारत के हिस्से से ११ करोड़ डालर का सालाना कर इकठा करना शुरू कर दिया था जिस का ज्यादा हिस्सा नपोलियन के साथ युद्ध में ही खर्च किया गया | यहाँ तक की भारतीय राज्यों को ईस्ट इंडिया कम्पनी से युद्ध हरने पर युद्ध का खर्चा भी भरना पड़ता था | 1825 के बाद इंग्लैंड में आई industrial revolution ने पहली बार इंग्लैंड को यूरोप का अग्रणी देश बना दिया | विख्यात अर्थशास्त्री इंदरजीत राय के अनुसार 1850 में भारत में इंग्लैंड के कपडे का निर्यात 30 % तक पहुँच गया जिस कारन भारत के कपडा उड़ोग का उत्पादन 28 % तक कम हो गया और 1860 तक 5 ,63000 लोग बेरोजगार हो गये और यह सिलसला चलता रहा | भारत के निर्यातों पर कई तरह के प्रतिबन्ध तथा कर लगा दिए गये | भारत के नील उत्पादकों को अंग्रेजो के भारी जुलम का सामना करना पड़ा और भारत का नील निर्यात का सारा उद्योग चौपट हो गया | एक एक करके भारत के सारे उद्योग धंधे अंग्रेजी राज की नीतियों की भेट चढ़ गये |
प्रसिद्व अर्थशास्त्री आर सी दत्त ने अंग्रजो के बढते सैनिक खर्चे , अफसरों के शाही खर्चे और लगातार बढते कर्ज को भारत की गरीबी के लिए उतरदायी माना है | आर सी दत्त ने विस्तार से लिखा है की भारत ही एक मात्र ऐसा देश था जो अपने पर होने वाले अंग्रेजी सेना के हमले का खर्च भी खुद ही उठता था और यहाँ तक की पर्शिया , तिब्बत , अफगानिस्तान ,चीन, सूडान और इगिप्त के विरुद्ध ब्रिटेन की लडाई का खर्चा भी भारत ने ही उठाया | अंग्रेजी विद्वान William Digby ने अपनी पुस्तक " Prosperous India," में विस्तार से बताया है की १९वि शताब्दी में भारत से GBP 6,080,172,०२१ ( ४२५५६१ करोड़ रुपये ) ब्रिटेन ले जाये गये | इसी लूट के कारण १८७५ में , Salisbury , the secretary of state ने कहा की , “As India must be bled, it must be done judiciously”. इसी का परिणाम था 1925 ईस्वी में अंग्रेजी राज की भारत से सालाना आय १२५ मिलियन डालर तक पहुँच गयी और इसी के सहारे इंग्लैंड अमरीका के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया जबकि भारत चीन, फ्रांस और जर्मनी के बाद पांचवे नंबर पर आ गया |
अंग्रेजो द्वारा भारत के संसाधनों की लूट की नीति के तेहत जहाँ एक और भारत के उद्योग बर्बाद हो रहे थे वहीँ दूसरी और जमींदारी व्यवस्था और भारी करो के बोझ से भारतीय कृषि भी संकट में आया गयी थी | 1925 आते आते भारत खाद्य पदार्थो का निर्यात करने वाले देश से आयात करने वाला देश बन चुका था | 1929 की वैश्विक आर्थिक मंदी ने भारत पर भी बहुत गंभीर परभाव डाला | अंग्रेजो की लगातार करो में वृद्धि की नीति ने अर्थव्यवस्था को बहुत हानी पहुंचाई , नमक पर कर लगाने के विरोध में गाँधी जी का एतहासिक आन्दोलन भी अंग्रेजो की भारत को लूटने की नीतियों के विरोध में ही था | भारतीय इतिहासकार रजत कान्त राय ने अपनी economic drain theory में बहुत विस्तार से सिद्ध किया की कैसे अंग्रेजो ने भारत की अर्थ व्यवस्था को निचोड़ा और कैसे भारत के संसाधनों से इंग्लैंड समृद्ध हुआ | अंग्रेजो की इस शोषण की नीति को स्वयं इंग्लैंड के ही राजनीतक नेता एडमंड बर्के ने 1780 में पहली बार उजागर किया था जब उसने ईस्ट इंडिया कंपनी पर भारत को लूटने और भारत की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने का आरोप लगाया था | एक तरफ जब ज्यादातर भारतीय चिन्तक और विदेशी विद्वान भी अंग्रेजी शासन को भारत की आर्थिक कंगाली का कारण मानते है ऐसे में भारत के प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह का ब्रिटेन की संसद में दिया ब्यान आश्चर्यजनक लगता है, जिस में वह भारत की तरक्की में अंग्रेजो के योगदान के लिए उन्हें धन्यवाद देते हैं | अंग्रेजी शासन में भारत कैसे आर्थिक रूप से बर्बाद हुआ इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की 1700 ईस्वी में विश्व की आय में भारत का हिस्सा 24 . 4 % ( जबकि उस समय पूरे यूरोप का हिस्सा २३ .३ % ही था ) था जो 1952 में मात्र ३.८ % ही रह गया | लगभग २०० वर्ष के अंग्रेजी शासन ने सोने की चिडिया कहलाने वाले भारत को गरीबी और भुखमरी का शिकार देश बना दिया |

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