आज कोरोना काल में पूरे विश्व में चीन के खिलाफ लोगों का गुस्सा ज्वार पर है। पूरी दुनिया में केवल लोग ही नहीं बल्कि वहां की सरकारें भी चीन के खिलाफ कार्रवाई कर रही हैं। 1Q. चीन के सामान का बहिष्कार उसमें पहला कदम है लेकिन यह भी सत्य है कि आत्मनिर्भरता के लिए प्रयास इसलिए भी किये रहे हैं कि हमारी निर्भरता चीन समेत अन्य देशों पर अत्यधिक बढ़ चुकी है। आज समाज में देश को आत्मनिर्भर बनाने की आकांक्षाओं के साथ ही साथ कुछ शंकाएं और प्रश्न भी विद्यमान हैं। स्वदेशी जागरण मंच जो लंबे समय से चीन के सामान के बहिष्कार का आह्वान करता रहा है के कार्यकर्ताओं का यह भी दायित्व है कि इन शंकाओं और प्रश्नों का भली-भांति निदान दें ताकि सर्व समाज चीन के खिलाफ इस लड़ाई में एकजुट होकर पूरी तन्मयता के साथ जुट जाए।
प्रश्न 1
चीन का सामान पहले से ही हमारे दैनंदिन आवश्यकताओं और खरीद में शामिल हो चुका है। मोबाइल फोन, इलेक्ट्रॉनिक्स और बिजली के उपकरणों, बच्चों के खिलौनों, दवाओं के लिए कच्चे माल एपीआई समेत ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं। तो क्या हम उसका पूरी तरह से चीन का बहिष्कार कर भी पाएंगे? यह सही है कि पिछले लगभग 19 सालों (2001 के बाद) से हमारा आयात चीन से बढ़ता जा रहा है। जहां 2001 में चीन से हमारा आयात मात्र .....अरब डॉलर था, 2017-18 में वह 68.16 अरब डालर तक पहुंच चुका था। कई देशों की चीन पर निर्भरता तो इतनी बढ़ गई थी कि उनके उद्योग ही नष्ट गए। लेकिन यह भी सत्य है कि हमारे उद्योग चाहे काफी हद तक प्रभावित हुए लेकिन मुश्किलों और असमान प्रतिस्पर्धा के बावजूद हमारे छोटे और बड़े उद्योग डटे रहे। केमिकल, स्टील और अन्य धातु उद्योग, साइकिल, वस्त्र उद्योग, ग्लास उद्योग इत्यादि ऐसे कई उदाहरण हैं।कुछ साल पहले तक सरकारी नीति की भी बेरुखी रही, जिसके चलते चीन से आयात बढ़ता रहा।लेकिन 2017-18 के बाद परिस्थिति थोड़ी बदली है और चीन से आयात घटने शुरू हुए हैं, और देश के उद्योगों को पुनर्जीवन भी मिलना शुरू हुआ है। ग़ौरतलब है कि चीन से हमारा आयात 2017 18 में जो 63 अरब डॉलर था, 2018-19 में 53.6 अरब डॉलर और 2019-20 में 48.6 अरब डॉलर तक पहुंच गया। ऐसा चीन से असमान प्रतिस्पर्धा को रोकने हेतु एंटी डंपिंग ड्यूटी लगाने, मानकों को स्थापित करने और आयात शुल्क में वृद्धि करने आदि के कारण संभव हुआ।
प्रश्न 2
चीन से आने वाले आयातों को सरकार क्यों नहीं रोकती? यदि सरकार ही चीन के सामान पर रोक लगा दे, तो बाजार में चीनी सामान बिकेगा ही नहीं?
डब्ल्यूटीओ जैसी अंतरराष्ट्रीय व्यापार संधियों के कारण किसी भी देश में आने वाले आयातों को पूरी तरह से प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता। सरकार चाहे तो उस पर कुछ अंकुश जरूर लगा सकती है लेकिन यह भी सही है कि सरकारें तो अंतरराष्ट्रीय व्यापार संधियों से बंधी हुई होती हैं, लेकिन जनता तो नहीं। ऐसे में यदि किसी देश के सामान का इस्तेमाल देश हित में नहीं; जैसे कि चीन, तो उसका बहिष्कार कर उनके आयातों को रोका जा सकता है। यह भी सही है कि जनता द्वारा बहिष्कार के कारण सरकारों पर भी दबाव बनता है कि वह इस प्रकार के आयातों पर अंकुश लगाएं। सरकार घटिया सामानों पर मानक लगाकर, सस्ते दामों पर माल की डंपिंग होने पर एंटी डंपिंग ड्यूटी लगाकर और सामान्य तौर पर आयात शुल्क बढ़ाकर विदेशों से आयातों पर अंकुश लगा सकती है।
प्रश्न 3
यदि हम चाहें कि चीन के सामान का बहिष्कार करें तो यह पहचान कैसे हो कि कौन सा सामान भारतीय है और कौन सा चाइनीस?
चीन यह समझते हुए कि भारत में चीनी सामान का बहिष्कार हो रहा है इसलिए वो कई बार सामानों को छद्म नामों से भेजता है। जैसे पहले वे ‘मेड इन चाइना’ के नाम से भेजते थे; अब वे मेड इन ‘पीआरसी’ के नाम से भेजते हैं चीन से सीधे आने वाले सामानों पर 690-699 से प्रारंभ होने वाला बार कोड लगा होता है जिससे उनकी पहचान हो सकती है। इसके साथ ही साथ हम भारत में बनने वाले चीनी ब्रांडो के बारे में Swadeshionline.in और joinswadeshi.com की वेबसाइट से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। चीन के बहिष्कार का एक आयाम चीन की सोशल मीडिया और ई-कॉमर्स एप्स का बहिष्कार भी है। बड़ी संख्या में लोग चीनी एप्स को अपने मोबाइल फोन से हटाकर चीन को सीधे संदेश दे रहे हैं टिक-टॉक जैसी एप्स को प्रतिबंधित करने हेतु स्वदेशी जागरण मंच लंबे समय से आंदोलन कर रहा है।
प्रश्न4
कुछ लोगों का यह भी कहना है कि कोरोना काल में पीपीपी किट्स, टेस्टिंग किट्स और स्वास्थ्य संबंधी उपकरणों की जरूरत और उसकी उत्पादन क्षमता देश में न होने के कारण चीन से इन वस्तुओं के आयात बढ़ गए हैं। वास्तव में कोरोना ने चीन पर निर्भरता घटाने की बजाय बढ़ा तो नहीं दी है?
यह सही है कि प्रारंभ में ऐसा लगा कि डॉक्टरों की रक्षा हेतु पीपीई पर्याप्त टेस्टिंग के लिए टेस्ट किट्स और जीवन रक्षण हेतु वेंटिलेटर हमें चीन से ही लाने पड़ेंगे। कुछ हद तक चीन को ऑर्डर भी दिए गए। लेकिन बाद में ध्यान में आया कि चीन ने जो पीपीई किट्स भेजे वे घटिया और अनुपयोगी थे। जो टेस्ट किट्स भेजे वे नकली निकले। वेंटीलेटर्स के संबंध में तो पहली बार सरकार के ध्यान में आया कि देश में पर्याप्त वेंटीलेटर्स बनते हैं, लेकिन अफसरशाही के तौर-तरीकों के चलते हम वेंटीलेटर विदेशों से आयात करते रहे, जबकि भारतीय कंपनियां वेंटीलेटर बना कर विदेशों में निर्यात कर रही थी। इन सब घटनाक्रमों के बीच सभी उपकरण पीपीई किट्स, टेस्टिंग किट्स का भारत में पर्याप्त उत्पादन शुरू हो गया और भारत ने दो ही माह में 50000 वेंटिलेटर बना दिए यानि हम कह सकते हैं कि चीन पर हमारी निर्भरता इन वस्तुओं के लिए लगभग समाप्त हो चुकी है। शेष उत्पादों जैसे एपीआई (एक्टिव फार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट्स), इलेक्ट्रॉनिक्स के सामान आदि के लिए प्रयास शुरू हो चुके हैं। शीघ्र ही हम चीन से इन वस्तुओं के आयात से मुक्ति की घोषणा कर पाएंगे।
प्रश्न 5
चीन के कुल निर्यात 2498 अरब डॉलर(2019 में) के हैं, जबकि भारत में उनके निर्यात मात्र 68.16 अरब डॉलर ही हैं, यानि मात्र 2.7 प्रतिशत। ऐसे में हम बहिष्कार से चीन को कोई सजा कैसे दे पाएंगे?
यह सही है कि पूरे विश्व की यह आकांक्षा है कि दुनिया को महामारी में धकेलने और विशेष तौर पर दुनिया को इस महामारी से अनभिज्ञ रखने के लिए चीन को सजा मिलनी ही चाहिए। भारत में भी यह स्वभाविक आकांक्षा बार-बार दोहराई जा रही है। लेकिन चीन को सजा देने से कहीं ज्यादा यह भी जरूरी है कि हम अपने ध्वस्त हुए उद्योगों को पुनर्जीवित करें। मैन्युफैक्चरिंग उत्पाद जो अभी जीडीपी का मात्र 15% ही हैं, में वृद्धि करें। अपने देश में रोजगार बढ़े। इसलिए चीन के बहिष्कार के पीछे चीन को सजा देने से ज्यादा अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करना है। चीन को सजा देना उसका मुख्य उद्देश्य नहीं है। स्वदेशी जागरण मंच ने जब चीन के बहिष्कार का आवाहन दिया था तो भी चीन के आतंकवादियों को समर्थन देने, सीमा विवादों से भारत को परेशान करना भी एक बड़ा कारण था, लेकिन अपने उद्योगों का संरक्षण और संवर्धन उस का मुख्य उद्देश्य था।
जहां तक चीन को सजा मिलने का प्रश्न है, उसके कुकृत्य और पूरे विश्व में उसके खिलाफ गुस्से के कारण उसे सजा मिलने ही वाली है। जो लोग कहते हैं कि हमारे आयात उनके निर्यातों के मात्र 2.7 प्रतिशत ही हैं, वे शायद भूल जाते हैं कि चीन से
हमारा व्यापार घाटा (2019
में) 50 अरब डॉलर का है जो उनके व्यापार अतिरेक (430 अरब डॉलर) का 11.6 प्रतिशत है। यही नहीं 2019 में अमेरिका का चीन के साथ व्यापार घाटा 360 अरब डॉलर का रहा जो चीन के कुल व्यापार अतिरेक 430 अरब डॉलर के 85 प्रतिशत के बराबर है। समझ सकते हैं कि भारत और अमेरिका ही नहीं कई अन्य देशों में जनाक्रोश के चलते चीन दुनिया के गुस्से से अप्रभावित नहीं रहेगा और दुनिया की फैक्ट्री कहलाने वाले चीन को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा।
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