Friday, August 7, 2020

राम राज्य : आत्मनिर्भर भारत

रामराज्य 
 भूमिका
प्रमुख चौपाइयां
1.  समृद्धि 
2. पर्यावरण 
3. अंतिम व्यक्ति का ध्यान 
4. शक्ति ही तो शांति का आधार है
 5. धर्माधिष्ठित समाज रचना
 समारोप 
प्रमुख चौपाइयां
1. 
सप्तदीप सागर मेखला। एक भूप रघुपति कौशला।।
रामराज्य बैठे त्रिलोका। हर्षित भये गए सब सोका।।
बयरू न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई।।
दैहिक दैविक भौतिक तापा। रामराज्य नहि काहुहि व्यापा ।।
नहिं दरिद्र कोई दुखी न दीना।नहीं कोई अबुध न लक्षण हीना।।
नहि दरिद्र सम दुख जग माहीं।संत मिलन सम सुख जग नाहीं।।

2. इससे भी बड़ा सौभाग्य है की आज 5 शताब्दी के सबसे बड़े संघर्ष के बाद आज राम मंदिर के निर्माण का काम प्रारंभ हुआ और यह दिन आंखें कभी नहीं भूलेगा
3. कोई चिंतक कहता है जब जब  किसी विकसित देश शहर का नाम आता है तो लोग एथेन्स का नाम देते हैं पर वे भूल जाते हैं कि हमारे यहां कोई इंद्रप्रस्थ भी था । वह पेरिस का नाम देते हैं परंतु भूल जाते हैं कभी पटना उससे भी विकसित था,  वे क्योटो को कल्चरल कैपिटल बोलेंगे लेकिन भूल जाएंगे कि हमारी काशी आज भी अक्षुण्ण धरोहर समेटे है।  ऐसे ही अयोध्या  में जब नाम आता है।

प्रसिद्ध अमेरिकी लेखक टवेन द्वारा :-

बनारस इतिहास से भी पुराना है। परंपराओं से भी पुराना है। किंवदंतियों से भी पुराना है। यदि इन सभी को एकत्रित कर दिया जाय तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।
जन्म मरण के पार बसी है, अपनी नगरी काशी
जो विश्व विजेता के नाते सिकंदर बोलेंगे वे शिवाजी भूल जाते हैं।  हम सीजर जुलियस सीजर बोलेंगे लेकिन महाराजा रंजीत सिंह को भूल जाएं गे। आज हर बात के मॉडल विदेशी है, अपना गौरव भूल जाते हैं, यह मानसिक गुलामी के लक्षण हैं।
4. राम के प्रति आस्था प्रगट राममंदिर आंदोलन में हुई
5. जब जब रामराज्य की बात होगी तो राम के वंशजों की भी बात होगी, जो उनके ही दिखाए व बताए रास्ते पर ही चले।
6. आज भी आम व्यक्ति को छूता है राम।कितने ही jnu में महिषासुर के नाम पे बीफ उत्सव मनाने की बेकार कौशिश हों,  राममंदिर आंदोलन विश्व का सबसे बड़ा आंदोलन रहेगा, बॉलीवुड, हॉलीवुड से लोकप्रिय रामायण का सीरियल ही होगा narender kohli , ke mahasamar इक्ष्वाकु के वंशज नावेल, Amish tripathi,  दुनिया मे कितने ही नुक्कड़ नाटक करलें यूनेस्को घोषित रामलीला को ही करेगा। 

 1.  समृद्धि. 
आत्मनिर्भर भारत जब जा रहे थे विश्वामित्र के साथ सेना, bodyguards, नहीं आर्म्स एंड अम्मूनीतिओं नहीं, लोकल बनाये लकड़ी का काम उनसे कमान बनवाए गए। लोहार हिन्ज तीर भाले बनवाएंगे। शायद कुमार विश्वास द्वारा अच्छा बोला।वहीं ।

सप्तदीप सागर मेखला। एक भूप रघुपति कौशला।।
रामराज्य बैठे त्रिलोका। हर्षित भये गए सब सोका।।
बयरू न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई।।
दैहिक दैविक भौतिक तापा। रामराज्य नहि काहुहि व्यापा ।।
नहिं दरिद्र कोई दुखी न दीना।नहीं कोई अबुध न लक्षण हीना।।
नहि दरिद्र सम दुख जग माहीं।संत मिलन सम सुख जग नाहीं।।
2. भारत के बारे में धारणा बनाई गई है की आध्यात्मिक चिंतन हुआ लेकिन आर्थिक के बारे चिंतन नहीं। हिन्दू ग्रोथ रेट अपमानजनक, लेखक का नाम। राम का राज्य देखेंगे तो स्पष्ट की गलत भावना मन में बिठाई गयी है।
चिदम्बरम का कहना कि गरीबी घटी है तो उनके राज में ही वरना भारत यो  हमेशा गरीब ही रहा है। मनमोहन सिंह कृतार्थ थे अंग्रेजों के, न्याय, 
ब. तीन सम्बोधन, सोने कि चिड़िया, दूध दही की नदीय, विश्व गुरु।
C. धर्म व मोक्ष की बात ही नहीं, काम व अर्थ की बात भी कही है।
2. पर्यावरण
पर्यावरण के चित्र देखिए इससे भी महत्वपूर्ण है यह पर्यावरण कैसे प्रगट हुआ।
कच्चिन्नागवनं गुप्तं कच्चित् ते सन्ति धेनुकाः।
कच्चिन्न गणिकाश्वानां कुन्जराणां च तृप्यसि।। (2/100/50)

जहाँ हाथी उत्पन्न होते हैं, वे जंगल तुम्हारे द्वारा सुरक्षित हैं न? तुम्हारे पास दूध देने वाली गाएँ तो अधिक संख्या में हैं न? (अथवा हाथियों को फँसाने वाली हथिनियों की तो तुम्हारे पास कमी नहीं है?) तुम्हें हथिनियों, घोड़ों और हाथियों के संग्रह से कभी तृप्ति तो नहीं होती? अनेक स्थानों पर वाल्मीकि जी ने पर्यावरण संरक्षण के प्रति संवेदनशीलता को रेखांकित किया है। श्री भरत जी अपने सेना एवं आयोध्यावासियों को छोड़कर मुनि के आश्रम में इसलिये अकेले जाते हैं कि आस-पास के पर्यावरण को कोई क्षति न पहुँचे-

ते वृक्षानुदकं भूमिमाश्रमेषूटजांस्तथा। न हिंस्युरिति तेवाहमेक एवागतस्ततः।। (2/91/09)

वे आश्रम के वृक्ष, जल, भूमि और पर्णशालाओं को हानि न पहुँचायें, इसलिये मैं यहाँ अकेला ही आया हूँ। पर्यावरण की संवेदनशीलता का यह एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

रामराज्य पर्यावरण की दृष्टि से अत्यन्त सम्पन्न था। मजबूत जड़ों वाले फल तथा फूलों से लदे वृक्ष पूरे क्षेत्र में फैले हुये थे-

नित्यमूला नित्यफलास्तरवस्तत्र पुष्पिताः। कामवर्षी च पर्जन्यः सुखस्पर्शैं मरुतः।। (6/128/13)

श्री राम के राज्य में वृक्षों की जड़ें सदा मजबूत रहती थीं। वे वृक्ष सदा फूलों और फलों से लदे रहते थे। मेघ प्रजा की इच्छा और आवश्यकता के अनुसार ही वर्षा करते थे। वायु मन्द गति से चलती थी, जिससे उसका स्पर्श सुखद जान पड़ता था।
आश्रम में कैसे बचाव
राम के भरत से प्रश्न
हर अवसर पर पौधे लगाए जाते थे, उनकी रक्षा होती थी। इनमें जल जंगल, जमीन व जानवर की बात होती थी।
5 जून की बजाए अमृतादेवी का दिन, चिपको आंदोलन
5 जून 1972 को भी वहां आ
पृथ्वी सूक्त का वर्णन गुणगान हुआ।
स्माल इस ब्यूटीफुल में भारतीय मॉडल का ही ज़िक्र है, 
पृथ्वी माता, गौ माता, सरयू, गया गंगा पूजा, 
हमारी संस्कृति में क्रिसमस ट्री घर में काट कर नहीं लाया जाता, वृक्ष की जाकर पूजा होती है, पीपल कल जल चढ़ाया जाता है।
हमारे शिव स्वयं का रंग काला नीला कर लेंगे पर  अमृत के साथ निकले जहर को बाहर नहीं फेंकते, चीन वही करता है।

पर्यावरण संरक्षण को महत्त्व देते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी का मानना है कि वृक्ष से फल तोड़कर खाना तो उचित है किन्तु वृक्ष को काटना अपराध की श्रेणी में आता है-

रीझि खीझि गुरुदेव सिख सखा सुसाहित साधु। तोरि खाहु फल होइ भलु तरु काटे अपराध।।
3. रामचन्द्र जी के विवाह के उपरान्त राज्याभिषेक की तैयारी के अवसर पर गुरु वसिष्ठ आदेश देते हैं-

सफल रसाल पूगफल केरा। रोपहु वीथिन्ह पुर चहुँ फेरा।।
 नीचे के उदाहरण में सबहिं शब्द विशेष महत्त्व का है अर्थात रोपण सभी को करना है उसका आकार, प्रकार जैसा भी हो। रामराज्य के चित्रण में इसका वर्णन आता है-

सुमन वाटिका सबहिं लगाईं। विविध भाँति करि जतन बनाई।।
लता ललित बहु जाति सुहाईं। फूलहिं सदा बसन्त की नाईं।।
3. अंतिम व्यक्ति का ध्यान : 
तीन पात्र केवट, शबरी, व अहिल्या उच्च वर्ग लेकिन त्यक्ता ( गौतम ऋषि की पत्नी को गलत श्राप दिया) पक्षी राज जटायु।
4. शक्ति ही तो शांति का आधार है: 
राम शस्त्र नक प्रभाव तो देते थे, मानसिक शक्ति का प्रभाव भी देते थे। 
आज उसी की जरूरत है। 
दो उदाहरण देखिये दो जासूस आते है लंका से राम की छावनी में, पकड़े जाते है, शुम्ब निःशुम्ब, सब पर  दंड कहते है लेकिन वे छोड़ देते हैं। शत्रु पक्ष में जाकर वे राम के ही गन गाते ही ये राम की सॉफ्ट पावर
5.  5. धर्माधिष्ठित समाज रचना
1. राम की अयोध्या और रावण की लंका दोनों में समृध्दि थी, दोनों में ताकत थी, दोनों में नदियां, वन, तड़ाग, वाटिका होंगी, 
परन्तु राम में मर्यादा थी, रावण में कोई लोकतंत्र नहीं। लात तो एकाध बार किसको नहीं पड़ी होगी,
रावण की लंका व आज का चीन दोनों एक ही दिखाई देते हैं। पाकिस्तान व साउथ कोरिया उसी के खर दूषण दिखाई देते हैं। चमक, दमक, सोने की खनक उधर ज्यादा है। मानवीय गुणों की, ह्यूमन वैल्यूज
समारोप:
1. अरुण गोविल ने राम का रोल किया कुछ समय लेकिन सिगरेट पीते थे, वे स्वयं सुनाते हैं कि एक बार ग्रामीण ने दूसरे से कहा ये राम है, अरे ये राम कैसे हो सकता है जो सिगरेट थामे हुए है, गोविल अत्यंत लज्जित हुआ दुबारा किसी के आगे वे सिगरेट समेत प्रगट नहीं हुए। अगर थोडी देर राम का चलचित्र बनाया वो बुराई से दूर हो जाता है, ज। रामराज्य का लक्ष्य मन में बस लेंगे तो चलचित्र नहीं चाल व चरित्र बदलेगा।
2. 
चौपाइयां
सबको याद हैं: 
1. जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तीन तैसी।
b. मंगल भवन अमंगलहारी, दरवहुँ सो दशरत अजर बिहारी।
c. दैहिक दैविक भौतिक तापा, राम राज न काहू।
2. कच्चिन्नागवनं गुप्तं कच्चित् ते सन्ति धेनुकाः।
कच्चिन्न गणिकाश्वानां कुन्जराणां च तृप्यसि।। (2/100/50)

जहाँ हाथी उत्पन्न होते हैं, वे जंगल तुम्हारे द्वारा सुरक्षित हैं न? तुम्हारे पास दूध देने वाली गाएँ तो अधिक संख्या में हैं न? (अथवा हाथियों को फँसाने वाली हथिनियों की तो तुम्हारे पास कमी नहीं है?) तुम्हें हथिनियों, घोड़ों और हाथियों के संग्रह से कभी तृप्ति तो नहीं होती? अनेक स्थानों पर वाल्मीकि जी ने पर्यावरण संरक्षण के प्रति संवेदनशीलता को रेखांकित किया है। श्री भरत जी अपने सेना एवं आयोध्यावासियों को छोड़कर मुनि के आश्रम में इसलिये अकेले जाते हैं कि आस-पास के पर्यावरण को कोई क्षति न पहुँचे-

ते वृक्षानुदकं भूमिमाश्रमेषूटजांस्तथा। न हिंस्युरिति तेवाहमेक एवागतस्ततः।। (2/91/09)

वे आश्रम के वृक्ष, जल, भूमि और पर्णशालाओं को हानि न पहुँचायें, इसलिये मैं यहाँ अकेला ही आया हूँ। पर्यावरण की संवेदनशीलता का यह एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

रामराज्य पर्यावरण की दृष्टि से अत्यन्त सम्पन्न था। मजबूत जड़ों वाले फल तथा फूलों से लदे वृक्ष पूरे क्षेत्र में फैले हुये थे-

नित्यमूला नित्यफलास्तरवस्तत्र पुष्पिताः। कामवर्षी च पर्जन्यः सुखस्पर्शैं मरुतः।। (6/128/13)

श्री राम के राज्य में वृक्षों की जड़ें सदा मजबूत रहती थीं। वे वृक्ष सदा फूलों और फलों से लदे रहते थे। मेघ प्रजा की इच्छा और आवश्यकता के अनुसार ही वर्षा करते थे। वायु मन्द गति से चलती थी, जिससे उसका स्पर्श सुखद जान पड़ता था।
2. तुलसीदास जी ने रामराज्य में वनों की छटा एवं उनसे मिलने वाले उपहारों का चित्रण दर्शनीय है-

फूलहिं फरहिं सदा तरु कानन। रहहिं एक सँग जग पंचानन।।
खज मृग सहज बयरु बिसराई। सबन्हि परस्पर प्रीति बढ़ाई।।
कूजहिं खग मृग नाना बृंदा। अभय चरहिं बन करहिं अनंदा।।
सीतल सुरभि पवन वह मंदा। गुंजत अलि लै चलि मकरंदा।।
लता बिटप माँगे मधु चवहीं। मनभावतो धनु पय स्रवहीं।।
ससि संपन्न सदा रह धरनी। त्रेता भई कृतयुग कै करनी।।
प्रगटीं गिरिन्ह विविध मनि खानी। जगदातमा भूप जग जानी।।
सरिता सकल बहहिं बर बारी। सीतल अमल स्वाद सुखकारी।।
सागर निज मरजादा रहहीं। डारहिं रत्न तटन्हि नर लहहीं।।
सरसिज संकुल सकल तड़ागा। अति प्रसन्न दस दिसा विभागा।।
बिधु महि पूर मयूखन्हि रबि जप जेतनेहिं काज।।
मागें बारिद देहिं जल रामचंद्र के काज। (7/23)

उक्त वर्णन में हम पाते हैं कि प्रकृति रामराज्य में स्वतः उपहार देती थी। वास्तव में प्रकृति हमें सब कुछ देती है हमें केवल धैर्य एवं विवेक से रहना है। प्रकृति का सीमित विदोहन ही सुखमय भविष्य की गारंटी है। प्रकृति द्वारा प्रदत्त वस्तु का उपभोग हमें प्रकृति से छेड़छाड़ किये बिना करना चाहिये। गणितीय भाषा में यदि हम केवल ब्याज का उपभोग करें, तो मूलधन सदा बना रहेगा एवं हम ब्याज का सदैव उपभोग करते रहें। विदोहन का यही नियम कल्याणकारी है। रामराज्य में प्रकृति का विदोहन निषिद्ध है। प्रकृति का असीमित विदोहन अपराध है। स्वाभाविक रूप से प्रकृति प्रदत्त उपहारों का उपभोग ही रामराज्य का आदर्श है। आधुनिक वानिकी का निरन्तर उत्पादन का सिद्धान्त (Principle of sustained yield) भी इसी प्रकार का है-

The principle of sustained yield envisages that a forest should be so exploited that the annual or periodic feelings do not exceed the annual or periodic growth, as the case may be.

Coming of Ram Rajya means the implementation of the Indian Constitution: Subramanian Swamy

As the foundation stone for the Ram Mandir is laid, the question of what a Ram Rajya will imply for the country has constantly been raised. According to BJP MP and Economist Dr Subramanian Swamy, it implies the "implementation of the Indian Constitution, in a nutshell." Speaking during TNIE's e-expressions conducted along with the India Policy Foundation, Swamy said, "This is true because all the concepts of Ram and what he propagated is there in the Directive Principles and the Fundamental Rights and in the advocacy of language in the Constitution."

Swamy was in conversation with TNIE Editorial Director Prabhu Chawla, Prof Kapil Kapoor, Chairman, Indian Institute of Advanced Studies and Dr Kuldeep Ratnoo, Director, India Policy Foundation.

Upon being asked if the people who wrote the Constitution of India were 'Ram Bhakts', Swamy responded vehemently, "Absolutely, Ambedkar was one of the finest. Nehru made him bitter and towards the end of his life he became very harsh. But if you see his seminar papers at Columbia University in 1915 and subsequently in his books, he is perhaps the most articulate spokesman for Hindutva I can think of. I have read every one of those books and that's why I revere him


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