इन्दिरा का पर्यावरण प्रेम
यह पुस्तक जयराम रमेश ने लिखी है कि कैसे श्रीमती इंदिरा गांधी पर्यावरण के लिए समर्पित थी। यद्यपि पढ़ने पर राजनेता की विरुदावली दिखती है परंतु यह उस समय के प्रवर्न संबंधी किए गए कार्यों की सूची भी है।
१. स्मरणार्थ याद दिलाना उचित होगा कि जून 1972 को स्टॉकहोम में आयोजित प्रथम संयुक्त राष्ट्र के मानवीय पर्यावरण सम्मेलन में आयोजक राष्ट्र के राष्ट्राध्यक्ष के अलावा वह एकमात्र राष्ट्राध्यक्ष थीं, जिन्होंने अपनी बात रखी थी।
२. इसी प्रकार, वह उन पाँच राष्ट्राध्यक्षों में थीं जिन्होंने अगस्त 1976 में नैरोबी में आयोजित प्रथम नवीन एवं अक्षय ऊर्जा स्रोतों पर संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन को सम्बोधित किया था।
३. 1992 में विख्यात रियो अर्थ समिट कॉन्फ्रेंस से इसकी तुलना कीजिए, जहाँ सौ से अधिक राष्ट्राध्यक्ष मौजूद थे।
WIt is difficult to pinpoint an exact moment or occasion when her Stockholm speech came to acquire its iconic status. While it certainly created ripples— when any reference to Stockholm was made in the international community in the 1970s and 1980s, her speech would invariably get mentioned—its impact remained restricted to a limited circle for quite some time. It was most probably in the run-up to the famed Rio Earth Summit of 1992 that it was rediscovered with a bang, as it were. That it continues to resonate is proved by the fact that Karl Mathiesen wrote an article in The Guardian on 6 May 2014 with the title ‘Climate Change and Poverty: Why Indira Gandhi’s Speech Matters’. The Pakistani economist Tariq Banuri told me in September 2009 that her speech ranks with Rachel Carson’s book of 1962, Paul Ehrlich’s book of 1968, and The Limits to Growth study of 1972 as one of the four crucial milestones in the global environmental discourse
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