Monday, March 2, 2020

विकास की अवधारणा पुस्तक प्र नज

विकास अवधारणा सारांश
"विकास की अवधारणा" इस विषय पर ठेंगड़ी जी ने 1997 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के  43वे नेशनल कांफ्रेंस  चेन्नई में अपना विषय रखा। बाद में उस अंग्रेजी की पुस्तक में जो विषय रखा गया है, आज भी वह अत्यंत महत्वपूर्ण व  समीचीनी है। इस लेख में उसी का सारांश दे रहा हूँ।
1. विकास शब्द पुराना है :
जो ठेंगड़ी जी कहते हैं कि यह विकास की अवधारणा यह नया शब्द नहीं है। यह प्रारंभ से ही चल रहा है।   डार्विन का सिद्धांत भी विकास की अवधारणा को  ही इंगित करता है। यदि और पीछे  देखेंगे तो पाएंगे सुकरात, प्लेटो, अरस्तु आदि ने भी अपने समय में इसी अवधारणा के बारे में बोला है। प्राचीन यूनान से लेकर के प्राचीन रोम तक इटली के रेनेसा, जर्मन इंफॉर्मेशन आदि आदि सब इसी विकास की प्राप्त करने के नाम से संपन्न हुए है। यद्यपि विकास शब्द आज जिस प्रकार से प्रयुक्त होता है वह द्वतीय विश्व युद्ध के बाद जून 1945 में विशेषरूप से  प्रचलित किया गया।
2.  मुख्य समस्या पश्चिम की विकास अवधारणा में उसकी टुकड़े-टुकड़े सोच है - पश्चिमी सोच कंपार्टमेंटलाइज्ड है और फ्रेगमेंट्री है।   हमारी संस्कृति की सोच  एकीकृत,एकात्म या कहो तो हॉलिस्टिक है ।और इसी में हम पंडित दीनदयाल जी के एकात्म मानव दर्शन का उदाहरण ले सकते हैं. आर्थिक और समस्याओं का हम तब तक ठीक से निदान और समाधान नहीं ढूंढ सकते जब तक हम यह नहीं सोचते की बहुत से आर्थिक के अतिरिक्त कारण भी इसके लिए कारक है । आजका समाज  रॉबिंसन क्रूसो की परिस्थितियों जैसा एक-अकेला जैसा नहीं है,  वह काल्पनिक और विशेष उदाहरण है, जो कुछ उसको मिला है उसी पर वह  जीता है । 

 इकोनामिक फैक्टर्स सामाजिक समस्याओं के कारण भी  होते हैं। आर्थिक समस्याओं पर  उस देश की जलवायु, नदियां, जंगल समुद्री स्थान शांति और सुरक्षा आदि, भी बहुत बड़ा महत्व रहते हैं.  यहां भी वे पुनः  उस लेखक का वर्णन करते हैं, जो नॉन इकनोमिक बातों को अर्थजगत में बहुत महत्व देते हैं। लेखक डेविड मकॉर्ड (David Macord) अपनी पुस्तक ओपन सीक्रेट ऑफ इकनोमिक ग्रोथ में लिखते हैं "आर्थिक प्रगति के मूलभूत कारक b गैर-आर्थिक व गैर-भौतिक होते हैं। यह आत्मा ही है जो शरीर का निर्माण करती है।"( the fundamental factors making the economic growth are non-economic and non-materialistic in nature . It is the spirit itself that builds the body.)
3. विभिन्न प्रकार के पैराडाइम:  यहां भी एक चार्ट बनाते हैं जिसमें वेस्टर्न मॉडल और भारतीय मॉडल में 17 प्रकार के अंतर दर्शाए गए हैं, जैसे वहां प्रॉफिट मोटिव है और भारत में सर्विस मोटीव, वहां कंज्यूमैरिज्म वहां तेन त्यक्तेन भुंजीथा, मितव्ययी उपभोग आदि-आदि। इधर दान, पुण्य, सदाव्रत, भंडार, वहां कोटा, परमिट,  कॉपीराइट, लाइसेंस प्रोडक्टिव टैरिफ, कार्टेल  आदि है। 
 1951 में UNO  भी इस समस्या से आमने-सामने हुआ और एक समिति बनाई जिसमें भारत के डॉ.  डीआर गाडगिल भी मेंबर थे। दुर्भाग्य से वह पंडित नेहरू को भारतीय मॉडल के लिए  तैयार नहीं कर पाए और पंडित जी ने रशियन मॉडल को चुना। small is beautiful  को छोड़ दिया और Big is Better को अपना लिया। लेकिन उसके बाद एक-के-बाद-एक वेस्टर्न थ्योरी को ही अपनाते रहे। एक से तंग आए तो दूसरी और दूसरे से तंग आए तो तीसरी  अपना ली । लेकिन अपनाया ले देकर पश्चिम मॉडल ही हर हालत में।
दूसरी तरफ पश्चिमी जगत इस विकास की अवधारणा से परेशान हो गया और पिछले साल यानि कि 1996   की यूएन रिपोर्ट ऑन ह्यूमन डेवलपमेंट में स्पष्ट कहा कि अब तक जो हमने प्राप्त किया है वह जॉब्लेस ग्रोथ है, रुथलेस ग्रोथ है वायलेंट ग्रोथ, है और फ्यूचरलेस ग्रोथ है ।लेकिन जैसे ही यह रिपोर्ट पब्लिश हुई तो यूएनडीपी के चेयरमैन को बुलाया गया और उसका इस्तीफा लिया। अगली रिपोर्ट में इस किस्म का कोई जिक्र नहीं था!!
 उनका उद्देश्य थोड़े लोगों का प्रॉफिट मैक्सिमाइजेशन है और उसके लिए जीडीपी, जीएनपी, नेशनल इनकम, पर कैपिटा इनकम, बैलेंस ऑफ पेमेंट पोजीशन आदि शब्द प्रचलित करते हैं। लेकिन महंगाई, इन्फ्लेशन, बेरोजगारी, यह उनके विषय ही नहीं है।  यहां 80% को छोड़ दिया जाता है 20% की चिंता की जाती हैं । और जाते-जाते सब नीतियां 1% को लाभान्वित करने के लिए याद रह जाते हैं।  आजकल गेट नेगोशिएशन (GATT Negotiations)के अंतर्गत तो ग्लोबलाइजेशन हेजेमोनी  के कपड़े पहन कर घूम रहा है । 
विकास का ऐसी विकृत पैमाना क्यों स्वीकृत हुआ, तो उसके लिए एक बहाना लगाया जाता है के मानवीय सुख या प्रसन्नता  को गिनना, या आंकना  बहुत मुश्किल है। तो यह तर्क  घोड़े के आगे बैलगाड़ी लगाने जैसा है। समुत्कर्ष यानी अलौकिक प्रगति और निष्कर्ष यानी आध्यात्मिक प्रगति दोनों को साथ साथ चलना पड़ेगा.
सारांश में ठेंगड़ी जी कहते हैं कि यह विकास का शब्द तो वैश्विक षड्यंत्र  द्वारा अपने घिनौने मंसूबों को मूर्त रूप देने का ढंग है।  एक विद्वान इवान इलिच ( Ivan Illich) जिसने कई पुस्तकें लिखी हैं विशेषकर 'टुवर्ड्स आ हिस्ट्री ऑफ नीड्स" मेक्सिको के अपने विकास की धोखाधड़ी को उजागर करते हैं। इस  प्रकार से उन्होंने बताया कि विकास के नाम पर प्रकृति का शोषण हो रहा है कारीगरों के हुनर दबा दिए गए हैं  और बेरोजगारी आई। तथाकथित विकास वह कीमत जो मेक्सिको के गरीब लोगों  को  चुकानी पड़ी है।
नोट 1
The Point Four Program was a technical assistance program for "developing countries" announced by United States President Harry S. Truman in his inaugural address on January 20, 1949. It took its name from the fact that it was the fourth foreign policy objective mentioned in the speech.

BackgroundEdit

Following World War Two, the United States found itself in a Cold War struggle against the USSR. The Truman administration came up with the idea for a technical assistance program as a means to win the "hearts and minds" of the developing world. By sharing US know-how in various fields, especially agriculture, industry and health, officials could help "third world" nations on the development path, raise the standard of living, and show that democracy and capitalism could provide for the welfare of the individual.
Countries from the Middle East, Latin America, Asia and Africa had complained about the European emphasis of US foreign aid.

No comments:

Post a Comment