Friday, March 6, 2020

अनिद्रा और अवसाद

राजनीतिः अनिद्रा और अवसाद का बढ़ता खतरा

2. Change. org ear Kashmiri,

I am walking 4000 kilometres from Kanyakumari to Leh. 

You must be wondering why? 

I am walking for the 28 students we lose to suicide everyday. Which makes it ten thousand young lives a year!

।।।

अनिद्रा के कारण कई तरह की बीमारियां पनपती हैं और जीवन प्रत्याशा कम होने की भी संभावना बढ़ जाती है। नींद की अवधि और मृत्युदर के बीच संबंध पर किए गए सोलह अध्ययनों के एक विश्लेषण में पाया गया कि जो लोग रात सात से आठ घंटे सोते थे, उनकी तुलना में कम सोने वाले व्यक्तियों में मृत्यु का खतरा बारह प्रतिशत ज्यादा होता है।

जनसत्ता
April 7, 2018

अभिजीत मोहन
हाल में फिलिप्स वार्षिक वैश्विक सर्वेक्षण की रिपोर्ट से यह तथ्य उद्घाटित हुआ कि अच्छे स्वास्थ्य के लिए अच्छी नींद लेना आवश्यक है। दुनिया भर में तकरीबन दस करोड़ लोग अनिद्रा की बीमारी से ग्रसित हैं। दुनिया के तेरह देशों- अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन, पोलैंड, फ्रांस, भारत, चीन, आस्ट्रेलिया, कोलंबिया, अर्जेंटीना, मैक्सिको, ब्राजील और जापान के पंद्रह हजार से अधिक वयस्कों पर किए गए इस अध्ययन में कहा गया है कि अस्सी प्रतिशत से अधिक लोग अनिद्रा बीमारी से अनभिज्ञ हैं, जबकि तीस प्रतिशत लोग नींद लेने और उसे बनाए रखने में दिक्कत महसूस करते हैं। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि देश की राजधानी दिल्ली में सड़सठ प्रतिशत, कोलकाता में साठ प्रतिशत, बंगलुरु में उनसठ प्रतिशत और चेन्नई में अट्ठावन प्रतिशत लोग अनिद्रा के शिकार हैं। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में तकरीबन उन्नीस प्रतिशत वयस्कों ने स्वीकार किया है कि सामान्य नींद के समय के साथ काम के घंटों का अतिव्यापित होना अनिद्रा का एक प्रमुख कारण है। बत्तीस प्रतिशत वयस्कों ने स्वीकार किया है कि प्रौद्योगिकी भी एक प्रमुख नींद विकर्षण है।

आमतौर पर अनिद्रा नींद, सुस्ती और मानसिक व शारीरिक रूप से बीमार होने की सामान्य अनुभूति को बढ़ाती है और मनोस्थिति में होने वाले बदलाव मसलन चिड़चिड़ापन और चिंता इसके सामान्य लक्षणों से जुड़े हैं। विशेषज्ञों की मानें तो अनिद्रा रोग दीर्घकालिक बीमारियां होने के जोखिम को बढ़ाता है। अमेरिका के राष्ट्रीय निद्रा फाउंडेशन के मुताबिक तीस-चालीस प्रतिशत अमेरिकी वयस्कों का कहना है कि उनमें अनिद्रा के लक्षण हैं। चिकित्सकों का कहना है कि अनिद्रा के कारण कई तरह की बीमारियां पनपती हैं और जीवन प्रत्याशा कम होने की भी आशंका बढ़ जाती है। ‘

नींद की अवधि और मृत्युदर के बीच संबंध पर किए गए सोलह अध्ययनों के एक विश्लेषण में पाया गया कि जो लोग रात सात से आठ घंटे सोते थे, उनकी तुलना में कम सोने वाले व्यक्तियों में मृत्यु का खतरा बारह प्रतिशत ज्यादा होता है। हाल ही में एक अन्य अध्ययन में सतत निद्रा और मृत्यु दर के प्रभावों की जांच में पाया गया कि सतत अनिद्रा से ग्रसित लोगों की मौत का जोखिम संतानवे प्रतिशत अधिक होता है। अनिद्रा का दुष्परिणाम यह होता है कि व्यक्ति में हीनता बढ़ती है और उसकी याददाश्त कमजोर पड़ने लगती है। उसमें चिड़चिड़ापन इस हद तक बढ़ जाता है कि वह सामाजिक रूप से मिलना-जुलना बंद कर देता है। साथ ही थके होने और पर्याप्त नींद न लेने के कारण वाहन दुर्घटनाओं की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है।
भारत की बात करें तो यहां छियासठ प्रतिशत लोगों ने स्वीकार किया है कि अनिद्रा के कारण उनका स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती प्रभावित होने के साथ-साथ मानसिक अवसाद बढ़ा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) पहले ही खुलासा कर चुका है कि भारत में अवसाद के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इसके कारणों में एक कारण अनिद्रा भी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी शीर्षक ‘डिप्रेशन एवं अन्य सामान्य मानसिक विकार-वैश्विक स्वास्थ्य आकलन’ रिपोर्ट में कहा गया है कि अन्य देशों के मुकाबले भारत और चीन अवसाद से बुरी तरह प्रभावित हैं। रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण पूर्व एशिया और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में मानसिक अवसाद से ग्रस्त लोगों की संख्या सर्वाधिक है। आंकड़ों के मुताबिक भारत में पांच करोड़ सत्तर लाख, चीन में पांच करोड़ पचास लाख, बांग्लादेश में चौंसठ लाख, इंडोनेशिया में इक्यानवे लाख साठ हजार, म्यांमार में उन्नीस लाख, श्रीलंका में आठ लाख, थाइलैंड में अट्ठाईस लाख अस्सी हजार और आस्ट्रेलिया में तेरह लाख लोग अवसाद से ग्रस्त हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में अवसाद से प्रभावित लोगों की तादाद बत्तीस करोड़ से ज्यादा है, जिसमें पचास फीसद सिर्फ भारत और चीन में ही हैं।
डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों पर गौर करें तो दुनिया भर में अवसाद के शिकार लोगों की संख्या में 2005 से 2015 के बीच साढ़े अठारह प्रतिशत बढ़ी है। रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ कि अवसाद के अलावा भारत और चीन में चिंता भी बड़ी समस्या है। भारत एवं मध्यम आय वाले अन्य देशों में आत्महत्या के सबसे बड़े कारणों में चिंता भी एक बड़ा कारण है। रिपोर्ट के मुताबिक 2015 में भारत में करीब चार करोड़ लोग चिंता की समस्या से ग्रसित हैं। पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में अवसाद ज्यादा पाया गया है। देश में बढ़ते अवसाद को ध्यान में रख कर ही पिछले दिनों केंद्र सरकार ने संसद में मानसिक स्वास्थ्य देखरेख विधेयक-2016 पर मुहर लगाई, जिसमें मानसिक अवसाद से ग्रस्त व्यक्तियों के लिए मानसिक स्वास्थ्य देखरेख एवं सेवाएं प्रदान करने और ऐसे व्यक्तियों के अधिकारों का संरक्षण करने का प्रावधान किया गया है। चूंकि भारत अशक्त लोगों के अधिकारों के संबंध में संयुक्त राष्ट्र संधि का हस्ताक्षरकर्ता है, लिहाजा उसकी जिम्मेदारी भी है कि वह इस प्रकार के प्रभावी कानून गढ़ने की दिशा में आगे बढ़े। भारत ने इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए सामुदायिक स्तर पर अधिकतम स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने की रचनात्मक और स्वागतयोग्य पहल तेज कर दी है। इससे अवसाद पीड़ित मरीजों के अधिकारों की तो रक्षा होगी ही, साथ ही मानसिक रोग को नए सिरे से परिभाषित करने में भी मदद मिलेगी।
मनोवैज्ञानिकों की मानें तो अवसाद मनोभावों संबंधी दुख है और इस अवस्था में कोई भी व्यक्ति स्वयं को लाचार व निराश महसूस करता है। इस स्थिति से प्रभावित व्यक्ति के लिए सुख, शांति, प्रसन्नता और सफलता का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। वह निराशा, तनाव और अशांति के भंवर में फंस जाता है। मनोचिकित्सकों का कहना है कि अवसाद के लिए भौतिक कारक भी जिम्मेदार हैं। इनमें कुपोषण, आनुवंशिकता, हार्मोन, मौसम, तनाव, बीमारी, नशा, अप्रिय स्थितियों से लंबे समय तक गुजरना जैसे कारण प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त अवसाद के नब्बे प्रतिशत रोगियों में नींद की समस्या होती है। अवसाद के लिए व्यक्ति की सोच की बुनावट और व्यक्तित्व भी काफी हद तक जिम्मेदार है। अवसाद अकसर दिमाग के न्यूरोट्रांसमीटर्स की कमी के कारण भी होता है। यह एक प्रकार का रसायन होता है जो दिमाग और शरीर के विभिन्न हिस्सों में तारतम्य स्थापित करता है। इसकी कमी से शरीर की संचार व्यवस्था में कमी आती है और व्यक्ति में अवसाद के लक्षण उभर आते हैं। फिर अवसादग्रस्त व्यक्ति फैसले कर पाने में कठिनाई महसूस करता है और उसमें आलस्य, अरुचि, चिड़चिड़ापन इत्यादि बढ़ जाता है और इसकी अधिकता के कारण कई बार रोगी आत्महत्या जैसे कदम तक उठा लेता है।
अमेरिकी वैज्ञानिकों ने शोध में पाया है कि यदि कोई व्यक्ति लगातार सकारात्मक सोच का अभ्यास करता है तो वह अवसाद से बाहर निकल सकता है। अक्सर देखा जाता है कि ज्यादातर समय अवसाद छिपा हुआ रहता है क्योंकि इससे ग्रस्त व्यक्ति इस बारे में बात करने से हिचकता है। अवसाद से जुड़ी शर्म की भावना ही इसके इलाज में सबसे बड़ी बाधा है। पिछले कुछ समय से अवसाद से बाहर निकलने में योग की भूमिका प्रभावी सिद्ध हो रही है। योग को और बढ़ावा दिया जाना चाहिए। अवसाद के इलाज में कई किस्मों की मनोचिकित्सा भी मददगार सिद्ध हो रही है। लेकिन सबसे अधिक आवश्यकता अवसादग्रस्त लोगों के साथ घुल-मिलकर उनमें आत्मविश्वास पैदा करने की है। अगर अवसाद की गंभीरता पर ध्यान नहीं दिया गया तो अगले दो सालों में अवसाद दुनिया में सबसे बड़ी मानसिक बीमारी का रूप धारण कर सकता है। अच्छी बात यह है कि दुनिया भर में सतहत्तर प्रतिशत लोगों ने अवसाद और बिगड़ते स्वास्थ्य से उबरने के लिए अपनी नींद में सुधार की कोशिश की है। भारत में पैंतालीस प्रतिशत वयस्कों ने ध्यान और योग करने की कोशिश की है, जबकि चौबीस प्रतिशत लोगों ने अच्छी नींद लेने और उसे बनाए रखने के लिए विशेष बिस्तर को अपनाया है। उचित होगा कि सरकार और स्वयंसेवी संस्थाएं कुछ इस तरह के कार्यक्रम गढ़ें जिनसे लोगों में अच्छी नींद के प्रति जागरूकता पैदा हो और वे संतुलित दिनचर्या के प्रति आकर्षित हों।

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