Friday, March 6, 2020

विश्व बौद्धिक सम्पदा दिवस


विश्व बौद्धिक सम्पदा दिवस 

विश्व बौद्धिक सम्पदा दिवस (अंग्रेज़ी: World Intellectual Property Day) विश्व बौद्धिक सम्पदा संगठन (WIPO) के तत्वावधान में प्रतिवर्ष इसके स्थापना दिवस पर 26 अप्रैल को मनाया जाता है। इसका दिवस को मनाये जाने का उद्देश्य बौद्धिक सम्पदा के अधिकारों (पेटेंट, ट्रेडमार्क, इंडस्ट्रियल डिजाईन, कॉपीराइट) आदि के प्रति लोगों को जागरुक करना है।

उद्देश्य
किसी व्यक्ति अथवा संस्था द्वारा सृजित कोई रचना, संगीत, साहित्यिक कृति, कला, खोज, नाम अथवा डिजाइन आदि, उस व्यक्ति अथवा संस्था की ‘बौद्धिक संपदा’ कहलाती है। व्यक्ति अथवा संस्था को अपनी इन कृतियों पर प्राप्त अधिकार को ‘बौद्धिक संपदा अधिकार’ (Intellectual Property Rights) कहा जाता है। बौद्धिक संपदा अधिकार, मानसिक रचनाएं, कलात्मक और वाणिज्यिक, दोनों के संदर्भ में विशेष अधिकारों के समूह हैं। प्रथम अधिकार कॉपीराइट क़ानूनों से आवृत हैं, जो रचनात्मक कार्यों, जैसे पुस्तकें, फ़िल्में, संगीत, पेंटिंग, छाया-चित्र और सॉफ्टवेयर को संरक्षण प्रदान करता है और कॉपीराइट अधिकार-धारक को एक निश्चित अवधि के लिए पुनरुत्पादन पर या उसके रूपांतरण पर नियंत्रण का विशेष अधिकार देता है।- दूसरी श्रेणी, सामूहिक रूप से “औद्योगिक संपत्ति” के रूप में जानी जाती है, क्योंकि इनका उपयोग विशिष्ट रूप से औद्योगिक या वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिए किया जाता है। पेटेंट एक नए, उपयोगी और अस्पष्ट आविष्कार के लिए दिया जा सकता है और पेटेंट धारक को दूसरों को आविष्कारक द्वारा बिना लाइसेंस दिए एक निश्चित अवधि के लिए आविष्कार के अभ्यास से रोकने का अधिकार प्रदान करता है। बहु पक्षीय व्यापार और वाणिज्य बढ़ाने के आज के वैश्विक परिदृश्य में किसी भी देश के लिए रचनाकारों और आविष्कारकों को सांविधिक अधिकार प्रदान करके अपनी बौद्धिक सम्पत्ति की सुरक्षा करना आवश्यक हो गया है और इससे उन्हें विश्व के बाज़ार में अपने प्रयासों का उचित वाणिज्यिक मूल्य प्राप्त करने में मदद मिलती है। नवीन और सृजनात्मक क्षमता को विश्व व्यापार संगठन की बौद्धिक सम्पत्ति प्रणाली के तहत सुरक्षित रखा जाता है। इस तथ्य को मानते हुए, भारत ने विश्व व्यापार संगठन का एक संस्थापक सदस्य होने के नाते व्यापार संबंधी बौद्धिक सम्पत्ति अधिकारों (टीआरआईपीएस) से संबंधित करार का अनुसमर्थन किया है। इस करार के अनुसार भारत सहित सभी सदस्य देश परस्पर वार्ता से निर्धारित किए गए प्रतिमानों और मानकों का पालन अनुबंधित समय सीमा के अंतर्गत करेंगे।

भारत में अधिकार प्रणाली
तदनुसार, भारत ने एक बौद्धिक सम्पत्ति अधिकार प्रणाली स्थापित की है, जो विश्व व्यापार संगठन के अनुरूप है और सभी स्तरों पर चाहे वह सांविधिक, प्रशासनिक अथवा न्यायिक हो, भली भांति स्थापित है। सरकार ने बौद्धिक सम्पत्ति के भारी महत्व को देखते हुए देश में इसके प्रशासन को कारगर बनाने के लिए व्यपक उपाय किए हैं। बौद्धिक संपदा अधिकार व्यक्ति या संस्था को अपनी रचना/आविष्कार पर एक निश्चित अवधि के लिए विशेषाधिकार प्रदान करते हैं। इन विशेषाधिकारों का विधि द्वारा संरक्षण पेटेंट, कॉपीराइट अथवा ट्रेडमार्क आदि के रूप में किया जाता है। इससे सर्जक खोज तथा नवाचार(Innovation) के लिए उत्साहित और उद्यत रहते हैं और वित्तीय एवं वाणिज्यिक लाभ प्राप्त करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार सूचकांक अमेरिकी वाणिज्यिक संगठन ‘यूएस चैम्बर ऑफ कॉमर्स’ द्वारा वर्ष 2007 में स्थापित ‘ग्लोबल इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी सेंटर’ (GIPC : Global Intellectual Property Center) द्वारा वर्ष 2013 से प्रति वर्ष जारी किया है। इसका उद्देश्य अमेरिका और अन्य प्रमुख देशों में बौद्धिक संपदा अधिकारों का संरक्षण तथा इसके मानदंडों का बचाव और संवर्धन करना है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय में, औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग के अधीन ‘महानियंत्रण, पेटेण्ट, डिजाइन और ट्रेड मार्क (सीजीपीडीटीएम)’ के कार्यालय का गठन किया गया है। यह पेटेण्ट, डिजाइन, ट्रेडमार्क और भौगोलिक निदर्शन से संबंधित सभी मामलों को प्रकाशित करता है। इसके अलावा, स्वत्वाधिकारों (कॉपीराइट्स) और इससे संबंधित अधिकारों के पंजीकरण सहित सभी प्रकार की सुविधाएं मुहैया कराने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय के शिक्षा विभाग में एक कॉपीराइट कार्यालय की स्थापना की गई है।

इतिहास
जहां तक एकीकृत परिपथों ले आउट डिजाइन तैयार करने से संबंधित मुद्दों का संबंध है, ”सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय का इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग एक नोडल संगठन है। जबकि कृषि मंत्रालय पौध की सुरक्षा, किस्मों की सुरक्षा और कृषक अधिकार प्राधिकारी” पौध की किस्मों से संबंधित सभी उपायों और नीतियों को प्रशासित करता है। यद्यपि कई सदियों से बौद्धिक संपदा का संचालन करने वाले बहुत से क़ानूनी सिद्धांत विकसित हुए हैं, तथापि उन्नीसवीं सदी के बाद ही बौद्धिक संपदा शब्द प्रचलन में आया और यह कहा जाता है कि बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में इसने अमेरिका में आम स्थान पाया। प्रशासनिक ढांचे को मजबूत बनाने के लिए कई प्रकार के वैधानिक उपाय किए गए हैं। इनमें ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999; वस्तुओं का भौगोलिक निदर्शन (पंजीकरण एवं सुरक्षा) अधिनियम, 1999; डिजाइन अधिनियम, 2000; पेटेण्ट अधिनियम, 1970 और इसमें वर्ष 2002 और 2005 में किए गए संशोधन; भारतीय कॉपीराइट अधिनियम, 1957 और इसका संशोधन कॉपीराइट (संशोधन) अधिनियम, 1999; अर्द्धचालक एकीकृत परिपथ ले आउट डिजाइन अधिनियम, 2000; तथा पौधों की किस्मों और कृषक अधिकारों का संरक्षण अधिनियम ,2001 बौद्धिक संपदा अधिकार अस्थाई एकाधिकार हैं, जो राज्य द्वारा अभिव्यक्ति और विचारों के उपयोग के संबंध में लागू किये जाते हैं। बौद्धिक संपदा अधिकार आम तौर पर ग़ैर प्रतिद्वंद्वी वस्तुओं तक ही सीमित होते हैं, अर्थात् वे वस्तुएं, जिनका एक साथ बहुत से लोगों द्बारा आनंद उठाया जा सकता है या प्रयोग किया जा सकता है-एक व्यक्ति द्बारा प्रयोग, दूसरे को उसके प्रयोग से वंचित नहीं करता है। इसकी तुलना प्रतिद्वंद्वी वस्तुओं से की जा सकती है, जैसे कि कपड़े, जो एक समय में केवल एक ही व्यक्ति द्वारा इस्तेमाल किये जा सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, गणित के एक फ़ार्मूले को एक साथ कई लोग प्रयोग कर सकते हैं। बौद्धिक संपदा शब्द पर कुछ आपत्तियां इस तर्क पर आधारित है कि संपदा केवल यथार्थतः प्रतिद्वंद्वी वस्तुओं पर ही लागू हो सकती है (या कि कोई भी इस तरह की संपदा का “स्वामित्व” नहीं रख सकता). चूंकि एक ग़ैर प्रतिद्वंद्वी वस्तु का उपयोग (उदाहरण के लिए नक़ल) बहुत से लोग एक ही समय में कर सकते हैं (न्यूनतम सीमांत लागत के साथ उत्पादित) इसलिए उत्पादकों को इस प्रकार के कार्यों को स्थापित करने के लिए पैसे के अलावा प्रोत्साहन की ज़रूरत हो सकती है। इसके विपरीत, एकाधिकार में अकुशलता भी है। अतः, बौद्धिक संपदा अधिकारों की स्थापना एक लेन-देन को दर्शाती है, जो ग़ैर प्रतिद्वंद्वी वस्तुओं के निर्माण में (उनके उत्पादन को बढ़ावा देकर) एकाधिकार शक्ति की समस्याओं के साथ, समाज के हित को संतुलित करता है। चूंकि लेन-देन और प्रासंगिक लाभ और समाज के लिए उसकी लागत बहुत से कारकों पर निर्भर करेगी, जो हर समाज और उत्पाद के लिए विशिष्ट है, वह इष्टतम समयावधि जिसके दौरान अस्थायी एकाधिकार अधिकार बने रहने चाहिए, अस्पष्ट है।[1]

बौद्धिक संपदा अधिकार दिवस
Posted On April 25, 2016
डा- राधेश्याम द्विवेदी
26 अप्रैल को विश्व बौद्धिक संपदा दिवस कहा जाता है। किसी व्यक्ति अथवा संस्था द्वारा सृजित कोई रचना, संगीत, साहित्यिक कृति, कला, खोज, नाम अथवा डिजाइन आदि, उस व्यक्ति अथवा संस्था की ‘बौद्धिक संपदा’ कहलाती है। व्यक्ति अथवा संस्था को अपनी इन कृतियों पर प्राप्त अधिकार को ‘बौद्धिक संपदा अधिकार’ (Intellectual Property Rights) कहा जाता है। बौद्धिक संपदा अधिकार, मानसिक रचनाएं, कलात्मक और वाणिज्यिक, दोनों के संदर्भ में विशेष अधिकारों के समूह हैं। प्रथम अधिकार कॉपीराइट क़ानूनों से आवृत हैं, जो रचनात्मक कार्यों, जैसे पुस्तकें, फ़िल्में, संगीत, पेंटिंग, छाया-चित्र और सॉफ्टवेयर को संरक्षण प्रदान करता है और कॉपीराइट अधिकार-धारक को एक निश्चित अवधि के लिए पुनरुत्पादन पर या उसके रूपांतरण पर नियंत्रण का विशेष अधिकार देता है।- दूसरी श्रेणी, सामूहिक रूप से “औद्योगिक संपत्ति” के रूप में जानी जाती है, क्योंकि इनका उपयोग विशिष्ट रूप से औद्योगिक या वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिए किया जाता है।पेटेंट एक नए, उपयोगी और अस्पष्टआविष्कार के लिए दिया जा सकता है और पेटेंट धारक को दूसरों को आविष्कारक द्वारा बिना लाइसेंस दिए एक निश्चित अवधि के लिए आविष्कार के अभ्यास से रोकने का अधिकार प्रदान करता है।बहु पक्षीय व्यापार और वाणिज्य बढ़ाने के आज के वैश्विक परिदृश्य में किसी भी देश के लिए रचनाकारों और आविष्कारकों को सांविधिक अधिकार प्रदान करके अपनी बौद्धिक सम्पत्ति की सुरक्षा करना आवश्यक हो गया है और इससे उन्हें विश्व के बाजार में अपने प्रयासों का उचित वाणिज्यिक मूल्य प्राप्त करने में मदद मिलती है। नवीन और सृजनात्मक क्षमता को विश्व व्यापार संगठन की बौद्धिक सम्पत्ति प्रणाली के तहत सुरक्षित रखा जाता है। इस तथ्य को मानते हुए, भारत ने विश्व व्यापार संगठन का एक संस्थापक सदस्य होने के नाते व्यापार संबंधी बौद्धिक सम्पत्ति अधिकारों (टीआरआईपीएस) से संबंधित करार का अनुसमर्थन किया है। इस करार के अनुसार भारत सहित सभी सदस्य देश परस्पर वार्ता से निर्धारित किए गए प्रतिमानों और मानकों का पालन अनुबंधित समय सीमा के अंतर्गत करेंगे। तदनुसार, भारत ने एक बौद्धिक सम्पत्ति अधिकार प्रणाली स्थापित की है, जो विश्व व्यापार संगठन के अनुरूप है और सभी स्तरों पर चाहे वह सांविधिक, प्रशासनिक अथवा न्यायिक हो, भली भांति स्थापित है।सरकार ने बौद्धिक सम्पत्ति के भारी महत्व को देखते हुए देश में इसके प्रशासन को कारगर बनाने के लिए व्यपक उपाय किए हैं।
बौद्धिक संपदा अधिकार व्यक्ति या संस्था को अपनी रचना/आविष्कार पर एक निश्चित अवधि के लिए विशेषाधिकार प्रदान करते हैं। इन विशेषाधिकारों का विधि द्वारा संरक्षण पेटेंट, कॉपीराइट अथवा ट्रेडमार्क आदि के रूप में किया जाता है। इससे सर्जक खोज तथा नवाचार(Innovation) के लिए उत्साहित और उद्यत रहते हैं और वित्तीय एवं वाणिज्यिक लाभ प्राप्त करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार सूचकांक अमेरिकी वाणिज्यिक संगठन ‘यूएस चैम्बर ऑफ कॉमर्स’ द्वारा वर्ष 2007 में स्थापित ‘ग्लोबल इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी सेंटर’ (GIPC : Global Intellectual Property Center) द्वारा वर्ष 2013 से प्रति वर्ष जारी किया है। इसका उद्देश्य अमेरिका और अन्य प्रमुख देशों में बौद्धिक संपदा अधिकारों का संरक्षण तथा इसके मानदंडों का बचाव और संवर्धन करना है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय में, औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग के अधीन ‘महानियंत्रण, पेटेण्ट, डिजाइन और ट्रेड मार्क (सीजीपीडीटीएम)’ के कार्यालय का गठन किया गया है। यह पेटेण्ट, डिजाइन, ट्रेडमार्क और भौगोलिक निदर्शन से संबंधित सभी मामलों को प्रकाशित करता है। इसके अलावा, स्वत्वाधिकारों (कॉपीराइट्स) और इससे संबंधित अधिकारों के पंजीकरण सहित सभी प्रकार की सुविधाएं मुहैया कराने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय के शिक्षा विभाग में एक कॉपीराइट कार्यालय की स्थापना की गई है। जहां तक एकीकृत परिपथों ले आउट डिजाइन तैयार करने से संबंधित मुद्दों का संबंध है, ”सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय का इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग एक नोडल संगठन है। जबकि कृषि मंत्रालय पौध की सुरक्षा, किस्मों की सुरक्षा और कृषक अधिकार प्राधिकारी” पौध की किस्मों से संबंधित सभी उपायों और नीतियों को प्रशासित करता है। यद्यपि कई सदियों से बौद्धिक संपदा का संचालन करने वाले बहुत से क़ानूनी सिद्धांत विकसित हुए हैं, तथापि उन्नीसवीं सदी के बाद ही बौद्धिक संपदा शब्द प्रचलन में आया और यह कहा जाता है कि बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में इसने अमेरिका में आम स्थान पाया। प्रशासनिक ढांचे को मजबूत बनाने के लिए कई प्रकार के वैधानिक उपाय किए गए हैं। इनमें ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999; वस्तुओं का भौगोलिक निदर्शन (पंजीकरण एवं सुरक्षा) अधिनियम, 1999; डिजाइन अधिनियम, 2000; पेटेण्ट अधिनियम, 1970 और इसमें वर्ष 2002 और 2005 में किए गए संशोधन; भारतीय कॉपीराइट अधिनियम, 1957 और इसका संशोधन कॉपीराइट (संशोधन) अधिनियम, 1999; अर्द्धचालक एकीकृत परिपथ ले आउट डिजाइन अधिनियम, 2000; तथा पौधों की किस्मों और कृषक अधिकारों का संरक्षण अधिनियम ,2001
बौद्धिक संपदा अधिकार अस्थाई एकाधिकार हैं, जो राज्य द्वारा अभिव्यक्ति और विचारों के उपयोग के संबंध में लागू किये जाते हैं। बौद्धिक संपदा अधिकार आम तौर पर ग़ैर प्रतिद्वंद्वी वस्तुओं तक ही सीमित होते हैं, अर्थात् वे वस्तुएं, जिनका एक साथ बहुत से लोगों द्बारा आनंद उठाया जा सकता है या प्रयोग किया जा सकता है-एक व्यक्ति द्बारा प्रयोग, दूसरे को उसके प्रयोग से वंचित नहीं करता है। इसकी तुलना प्रतिद्वंद्वी वस्तुओं से की जा सकती है, जैसे कि कपड़े, जो एक समय में केवल एक ही व्यक्ति द्वारा इस्तेमाल किये जा सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, गणित के एक फ़ार्मूले को एक साथ कई लोग प्रयोग कर सकते हैं। बौद्धिक संपदा शब्द पर कुछ आपत्तियां इस तर्क पर आधारित है कि संपदा केवल यथार्थतः प्रतिद्वंद्वी वस्तुओं पर ही लागू हो सकती है (या कि कोई भी इस तरह की संपदा का “स्वामित्व” नहीं रख सकता). चूंकि एक ग़ैर प्रतिद्वंद्वी वस्तु का उपयोग (उदाहरण के लिए नक़ल) बहुत से लोग एक ही समय में कर सकते हैं (न्यूनतम सीमांत लागत के साथ उत्पादित) इसलिए उत्पादकों को इस प्रकार के कार्यों को स्थापित करने के लिए पैसे के अलावा प्रोत्साहन की जरूरत हो सकती है। इसके विपरीत, एकाधिकार में अकुशलता भी है।
अतः, बौद्धिक संपदा अधिकारों की स्थापना एक लेन-देन को दर्शाती है, जो ग़ैर प्रतिद्वंद्वी वस्तुओं के निर्माण में (उनके उत्पादन को बढ़ावा देकर) एकाधिकार शक्ति की समस्याओं के साथ, समाज के हित को संतुलित करता है। चूंकि लेन-देन और प्रासंगिक लाभ और समाज के लिए उसकी लागत बहुत से कारकों पर निर्भर करेगी, जो हर समाज और उत्पाद के लिए विशिष्ट है, वह इष्टतम समयावधि जिसके दौरान अस्थायी एकाधिकार अधिकार बने रहने चाहिए, अस्पष्ट है।

.बहुराष्ट्रीय बौद्धिक संपदा के जाल को तोड़ना जरूरी है।

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बहुराष्ट्रीय बौद्धिक संपदा के जाल को तोड़ना जरूरी है।

Date:02-03-17

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हाल ही में अमेरीकी चेबंर ऑफ  कॉमर्स ने भारत को एक बार फिर पेटेंट करने वाले 45 देशों की सूची में 43 वाँ स्थान देकर उसकी नाकामी को सिद्ध करने की कोशिश की है। ऐसा करने के पीछे अमेरिका के कुछ गलत इरादे हो सकते हैं, लेकिन धक्का तब लगता है, जब हमारे ही अन्वेषक ऐसी सूचियों पर भरोसा करके हमारे वैज्ञानिकों का हौसला यह कहकर नीचे गिराते हैं कि अगर हमने सूची में अपना स्थान ऊँचा नहीं उठाया, तो इसके बुरे परिणाम होंगे। उनको लगता है कि अगर हमें वाकई ‘मेक इन इंडिया‘ को सफल बनाना है, तो हमें अपने पेटेंट नंबर बढ़ाने होंगे।

वास्तव में क्या हम भारत में बौद्धिक संपदा को बढ़ा रहे हैं ? विश्वस्तरीय जेनेरिक दवाइयाँ और जनता के लिए वहन करने योग्य दवाइयाँ बनाने में हम बहुत आगे हैं। इससे भी आगे बढ़कर अपनी तकनीकी क्षमता और बौद्धिक संपदा का लोहा मनवाने का समय अब आ चुका है। ऐसा करने के लिए हमें कुछ और उपाय करने होंगे –

भारत में पेटेंट करवाना आसान नहीं है। हमारे यहाँ बहुत से पेटेंट आवेदन खारिज कर दिए जाते हैं। हमारे पेटेंट कार्यालयों के पास अन्वेषणों की सूचना का बहुत अभाव रहता है। दूसरे, किसी अन्वेषण का पेटेंट मंजूर करने से पहले यह जानना बहुत आवश्यक होता है कि वह अन्वेषण पहले से मौजूद उसी तरह के अन्वेषण से बेहतर है या नहीं। किसी खास पेटेंट-आवेदन की मंजूरी और नामंजूरी के लिए विश्व में अनेक मानदण्ड हो सकते हैं। समय के साथ पेटेंट मंजूर करने के लिए भारतीय पैमाने और भी कड़े होते जाएंगे।वर्तमान समय आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का युग है। अब मशीनें भी मानव की तरह ही सोचने लगी हैं। ऐसी मशीनें थोक में बनाई जा रही हैं। इनमें एक कुशल मानव की तरह की ही सृजनात्मकता भरी जा रही है। अगर हम पेटेंट का आधार कला या तकनीक में कौशल को बनाते हैं, तो आने वाले समय में ये मशीनें ही पेटेंट अपने नाम करवाती जाएंगी।हमें इस पेटेंट गेम को छोड़कर ओपन सोर्स फॉर्मेट जैसे माध्यमों को अपनाना होगा। जैसे आज स्मार्ट फोन लाकर हमने लैंडलाइन और लैपटॉप पर होने वाले भारी निवेश को बचा लिया। इस प्रकार के पेटेंट-मुक्त अन्वेषणों से ही हम आगे निकल पाएंगे। अन्यथा एक भंवरजाल में फंसे रहेंगे।

‘द हिंदू‘ में प्रकाशित शमनद  बशीर के लेख पर

1.BK KEYLA के 3D का जिक्र,

2.दत्तोपंत ठेंगड़ी नई द्वारा इस पर काफी समय पूर्व ली गयी रुचि।Videos

 THIS STORY IS FROM DECEMBER 02, 2019

Why students must know about Intellectual Property Rights

Sheetal Banchariya | TNN | Dec 2, 2019, 14:31 IST
Filing for intellectual property rights not only helps innovators protect their invention, but also provides better collaboration and funding opportunities
TNN
Representational Image

Filing for 

intellectual property rights

 not only helps innovators protect their invention, but also provides better collaboration and funding opportunities


India's research output had an annual growth rate of 9% from 2013 to 2017. This was considered to be one of the most productive periods in Indian research scenario. In 2019, India's position rose to 36 from 44 (2018) in the International Intellectual Property (IP) Index. Ironically, increased research did not amount to increase in IP applications, which continued to be limited. In 2017-18, 3,50, 546 applications were received by the IP offices under the Department for Promotion of Industry and Internal Trade (DPIIT), Ministry of Commerce and Industry which was slightly better than 2016-17, when the total applications were 3, 50,467.

The annual review of the international patent system, administered by the World Intellectual Property Organisation (WIPO) claimed that only 6% of 

Patent Cooperation Treaty

 (PCT) applications originating from India were filed by universities in 2018. This implies that young researchers need to know more about IP rules and rights.


Increased need for IPRs


With the increasing focus on innovation, research and cross-border collaborations, need to learn about intellectual property rights (IPRs) to safeguard their inventions has increased among the students. "As countries turn to innovation and creativity for 

sustainable development

, need to understand the importance of IPRs has increased. The demand for IP is increasing, especially in developing countries," says a spokesperson from WIPO.


In contemporary times, the research is translational and transforms into services or products. IPRs help in protecting as well as commercialising the inventions. "If the innovations are patented and taken up for commercialisation by the startups, it will give a competitive advantage to the inventors and entrepreneurs," says Nithin V George, 

TEOCO

 chair associate professor, Electrical Engineering, IIT Gandhinagar.


Integrating IPRs in curriculum


IPRs have various verticals including patent, trademark, design and copyright, where some aspects are more talked about in the academic community than others. Experts believe that the foundational awareness regarding the rights of a creator needs to be developed in students from the school level.


Vikas Dhar, CEO and founder, TekIP Knowledge Consulting - a technology and patent consulting firm, calls for the need to have a culture of respecting the rights of a creator and giving due credit while using someone else's creation. "Students will grow on to get into the professional world where they will develop and exercise IP rights, hence it must be made a part of the academic curriculum at school and university level with increasing sophistication in the pedagogical approach," he adds.

Echoing Dhar, Ashutosh Kumar Srivastava, who specialises in IPR laws and teaches at the Delhi University's Faculty of Law, says that the UGC can introduce a compulsory 2-credit course on IPRs, similar to the environmental studies course in all the higher education institutes (HEIs).


Way forward


The Indian Institutes of Technology (IITs) continue to file maximum patents, with 540 applications in 2017-18, followed by 

Amity University

 with 119 applications. The IPR ecosystem in non-premier institutes across the country needs prolonged efforts to make students aware of the importance and filing procedures.


Dhar adds that the leadership in the funding agencies are pushing innovators/entrepreneurs towards owning their technology before asking for funds. Hence, when an innovator chooses to file for an IPR, it provides other benefits beyond protection such as licensing, better collaboration and funding opportunities.


"The academic community needs a higher level of sensitisation and exposure to patenting and technology commercialisation. All academic and research institutions should also develop in-house expertise for assessment and filing of provisional patent applications as well as commercialisation of patented technologies," adds George

3.आम व्यक्ति के लिए कैसे रुचि ली जा सकती है।

4.धनपत राम जी की जानकारी व उनका काम।

5. पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन जो जज का मिला उसका उपयोग। 6. हमारे देश मे कैसे लोग विशेषकर युवा इसका बेहतर उपयोग कर रहे हैं, रोजगार के विषय को जोड़कर इसे देखा न सकता है। 

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